शुक्रवार, 7 नवंबर 2008
आप की बोली
एक तो बुढ़िया नाचनी, दूजे घर भा नाती. (बुंदेली)
बुढ़िया एक तो वैसे ही नाचने वाली थी, इस पर जब उसके घर नाती हुआ, तो फिर भला वह नाचने से कैसे बाज आती?
मतलब यह कि जब किसी काम के दो-दो कारण उपस्थित हो जाएँ, तब तो फिर बात ही क्या है?
बापानुं व्हाण, बेसवानी ताण. (गुजराती)
मतलब यह कि पिता के जहाज पर पुत्र को ही बैठने का स्थान नहीं मिला अर्थात् अपने ही घर में खुद के लिए सुविधा न हो.
वारया न वरे, हारया वरे. (गुजराती)
समझाने पर नहीं समझते, पर भुगतने पर सब कुछ समझ जाते हैं.
राम राखे एने कोण चाखð (गुजराती)जिसका रखवाला ईश्वर होता हैे,उसका बाल बाँका नहीं हो सकता.
इंडा एना मिंडा, कान एना थान. (गुजराती)जो अंडे देते हैं, उनके कान नहीं होते, कान के स्थान पर केवल गोले बने होते हें, जिनके कान होते हैं, वे स्तनपायी होते हैं.
एवुं सोनु शुं पहरीये, के कान तूटे. (गुजराती)मतलब यह कि अच्छी वस्तुओं को भी आवश्यकता से अधिक नहीं पहनना-खाना चाहिए, वरना वे लाभ से अधिक हानि पहुँचाती हैं.
इसी लोकोक्ति को पंजाबी में कहते हैं- इन्ना सोणा न पाओ की कन टुटण.
मन होय तो मांड़वे जवाय
मन हो तो मंजिल मिल ही जाती है.
खींचा खाली ने भभका भारी
जेब भले ही खाली हो, पर दिखावे में सबसे आगे.
ऊंट बहाइल जाय गदहा कहे, केतना पानी (भोजपुरी)इसे ही अवधि में कहते हैं- ऊंटवा बहा जाय, गदहवा थाह लेय.
मतलब यह कि जब कोई कार्य समर्थ व्यक्ति से भी न हो और असमर्थ उसे करने का प्रयत्न करे.
हियांरा रो हाको, सो कोस तक जाय. (मालवी)इसे ही पंजाबी में कहा जाता है- गिदड़ रोण सारे सुनण.
मतलब यह कि जो व्यक्ति एक-दूसरे का बहुत साथ देते हों, उनके प्रति व्यंग्य से कहते हैं कि इनमें से एक बोला, तो उसकी आवांज सौ कोस तक पहुँच जाएगी.
कब बबा मरही, कब बरा खाबोन . (छत्तीसगढ़ी)मतलब यह कि हमें समय की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए. बस अपना काम ही करते रहना चाहिए.
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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