मंगलवार, 4 नवंबर 2008
बेशुमार दौलत = तनाव और असुरक्षा
डॉ. महेश परिमल
दीपावली तो चली गई, पर अभी भी उपहार देने और लेने का सिलसिला जारी है। इस दौरान लोग आपस में मिलकर बधाई देना भी नहीं भूल रहे हैं। परस्पर शुभकामनाएँ देना और दीपोत्सव पर आपसी भाईचारे की मिसाल देकर सुखद जीवन की कामना भी कर रहे हैं। यह त्योहार मुख्य रूप से धन को अपनी ओर आकर्षित करने का होता है। धन यानि जिससे वैभव के संसाधन खरीदे जा सकें। जो जितना अधिक धनी, उसके पास उतनी ही अधिक वैभव और ऐश्वर्य की चीजें। लोगों का यही मानना है कि जिसके पास सम्पत्ति जितनी तेजी से बढ़ती है, उसी तेजी से उसके पास सुख बढ़ता है। उनके लिए पैसा ही सब-कुछ है। पर देखा जाए तो अब यह धारणा पूरी तरह से निर्मूल सिद्ध हो चुकी है कि पैसा ही सब-कुछ है। अब तो अरबपति भी यह मानने में कोई संकोच नहीं करते कि कई बार ऐसी स्थिति आई, जिसके समाधान के लिए पैसा कोई काम न आया। तो फिर काम क्या आया? यदि आप यह जानना चाहते हैं, तो इस आलेख को पूरा पढ़ना पड़ेगा।
लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स के अर्थशास्त्री रिचर्ड लेयार्ड कहते हैं कि हाल के दशकों में इकट्ठी की गई जानकारियों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब व्यक्ति की आय 5 लाख रुपए वार्ष्ािक के पार हो जाती है, तो आय के अनुसार उनके सुख में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होती। उदाहरण के रूप में जापान में प्रति व्यक्ति आय 1958 से 1987 तक आय में पाँच गुना वृद्धि होने के बाद भी उनके सुख के स्तर में कोई खास वृद्धि नहीं हुई। बचपन में कभी पढ़ा था, जिसमें संतों की वाणी में कहा गया था कि ''जब आयो संतोष धन बाबा, सब धन सूरि समान रे! अर्थात् जीवन में सबसे बड़ा धन यदि कोई है, तो वह है संतोष, इंसान के पास सभी प्रकार की धन-दौलत आने के बाद भी सुख नाम के प्रदेश में पहुँचने का अहसास होता नहीं है। जिस क्षण मानव के भीतर संतोष की अनुभूति होती है, तभी उसे लगता है कि अब उसे धन की कतई आवश्यकता नहीं और अब वह भीतर से सुख का अनुभव कर सकता है। हमारे संतों की वाणी को अब विदेशों में भी स्वीकारा जाने लगा है।
धन के बारे में यह कहा गया है कि इंसान जितना इसके पीछे भागता है, यह उससे उतना ही दूर चला जाता है। यदि आता भी है, तो जाने के रास्ते निकालकर ही आता है। साथ ही अपने साथ ढेर सारे तनाव लेकर आता है। यानि जितना धन, उतना तनाव। इसके साथ धन के साथ एक बात और कही जाती है, वह यह कि इसे कमाने में जितना अधिक आनंद आता है, उससे अधिक आनंद उस धन को जरूरतमंदों को देने में आता है। तिजोरी में पड़े धन से किसी प्रकार का आनंद नहीं आता, दान से धन की वृद्धि तो होती है, पर दूसरे रूप में हमारे सामने आती है। यह आनंद सात्विक होता है। यही कारण है कि हमारी भारतभूमि में दानवीर कर्ण जैसे महापुरुष पैदा हुए हैं, जिन्हें अपना सब-कुछ देने में कोई संकोच नहीं होता था। धन असुरक्षा को जन्म देता है। जिसके पास जितना धन है, वह उतना अधिक असुरक्षित है। जिसके पास धन नहीं है, उसे किसका डर? वास्तव में धन अपने साथ तनाव ही नहीं, बल्कि असुरक्षा की भावना को अपने साथ लाता है। जिसके पास संतोष का धन है, आज वही सबसे अधिक धनी और सुखी व्यक्ति है।
किसी गरीब आदमी को एकाएक अकल्पनीय दौलत मिल जाए, तो वह खुशी से पागल हो जाता है। ऐसा हम सबने किसी न किसी को लॉटरी निकलने पर देखा ही होगा। हकीकत यह है कि यह खुशी अधिक समय तक नहीं टिकती। अर्थशास्त्री रिचर्ड लेयार्ड लॉटरी जीतने वाले लोगों का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जब वे लॉटरी जीतते हैं, तब उनके आनंद की सीमा नहीं रहती। दिन बीतने के साथ-साथ उनके आनंद में कमी आ जाती है। कुछ समय बाद उनका आनंद पूरी तरह से समाप्त हो जाता है। उसके बाद भी लोग लॉटरी खरीदकर रातों-रात करोड़पति होने की लालसा क्यों रखते हैं? इसके जवाब में लेयार्ड कहते हैं कि उसका मुख्य कारण यही है कि इंसान की नजर हमेशा पास की चीजें देखने में रहती है, यदि वे दूर की और जिंदगी का विचार करें, तो लॉटरी लगते ही वे पागल न बन जाएँ।
जिनके पास धन की कमी होती है, वे हमेशा यह सोचते हैं कि यदि उनके पास करोड़ों रुपए आ जाएँ, तो उनके जीवन की सारी समस्याओं का अंत हो जाएगा। जिसके पास सच में करोड़ों-अरबों रुपए हैं, उनका अनुभव कहता है कि जीवन में अनेक समस्याएँ ऐसी होती हैं, जिनके समाधान के लिए धन बिलकुल भी मदद नहीं करता। देखा जाए, तो जीवन की कई समस्याओं के पीछे मुख्य रूप से बेशुमार दौलत ही है। मुम्बई के जाने माने डीएनटी सर्जन डॉ. नवीन हीरानंदानी के पास मलाबार हिल जैसे वैभवशाली इलाके में 3 हजार वर्गफीट का फ्लेट था, जिसके कीमत करीब दस करोड़ रुपए है। इसके बाद भी उनकी पत्नी उनसे अलग रहती, वे स्वयं भी डिप्रेशन का शिकार हो गए। करोड़ो रुपए की सम्पत्ति होने के बाद भी उनके जीवन में सुख नहीं था। एक दिन उन्होंने अपनी नस काटकर अपनी जीवनलीला की खत्म कर दी। यदि सम्पत्ति बहुत अधिक हो, तो वह भी संतानों को किसी प्रकार काम नहीं आती। वह सम्पत्ति उन्हें बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अब एस. कुमार्स समूह के बिगड़े नवाब अभिषेक कासलीवाल को ही लें, अधिक धन ने उन्हें शराबी और वेश्यागामी बना दिया। एक बार नशे में ही उन्होंने एक 52 वर्षीया महिला का बलात्कार कर दिया, तब यह सम्पत्ति उस परिवार की इात बचाने में भी काम नहीं आई। प्रमोद महाजन की मृत्यु के बाद उनकी दो हजार करोड़ की छोड़ गए, ऐसा कहा जाता है। इतना अधिक धन होने के बाद भी ड्रग्स के सेवन के आरोप में राहुल महाजन को जेल की हवा खानी पड़ी। परिवार की बदनामी हुई, सो अलग। धन से बदनामी को नहीं टाला जा सका।
ब्रिटेन के प्रसिध्द 'साइंस' जर्नल में यह बताया गया है कि आखिर धनदौलत से लोगों को सुख क्यों नहीं मिलता? इसमें बताया गया है कि धन से खुशियाँ खरीदी जा सकती है, यह मान्यता सर्वव्यापी है, पर भ्रामक भी है। एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि औसत से अधिक आय प्राप्त करने वाले लोगों मध्यम वर्ग के लोगोें की अपेक्षा अधिक सुखी नहीं होते। इनमें से औसत लोग तनाव में जीते हैं, साथ ही आनंद देने वाली प्रवृत्तियों की ओर कम ही ध्यान दे पाते हैं। वजह सफ है, इन्होंने संतोष से अधिक ध्यान धन पर दिया। उसी धन ने उन्हें वह सब-कुछ नहीं दिया, जिसकी वे कल्पना करते थे। जिनके पास धन की कमी होती है, वे हमेशा अधिक धन कमाने की सोचते हैं। यदि एक बार वे अपनी गरीबी से ऊपर उठ जाते हैं, तो जितनी तेजी से उनकी आवक बढ़ती है, उतनी तेजी से उनके सुख में वृद्धि नहीं होती।
उपरोक्त कथन को उदाहरण से समझने की कोशिश की जाए, तो बेहतर होगा। किसी के पास 100 करोड रुपए है, इसके बाद वह 100 करोड़ रुपए या फिर 500 करोड़ रुपए कमा ले, इससे उसकी जीवन शैली पर क्या प्रभाव पड़ेगा? एक सीमा के बाद यदि इंसान धन कमाता भी है, तो अधिक सुख-सुविधा के लिए नहीं कमाता। इसके पीछे होता है, उसका अहंकार। इसी अहंकार के पोषण के लिए वह अधिक से अधिक धन कमाता है। इससे बड़ी बात यह है कि धन की वृद्धि के साथ-साथ उसमें असुरक्षा की भावना बलवती होती जाती है। इस असुरक्षा को दूर करने के लिए वह अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है। एक बात सच है, वह यह कि दुनिया का सबसे अधिक खरबपति है, वह उतना ही अधिक भयभीत इंसान है। जो भयभीत नहीं है, तो उसे इतना अधिक धन जमा करने का कोई कारण भी नहीं है। दूसरी ओर जो निर्भय है और जो जीवन की आवश्यकताओं को समझता है, साथ ही थोड़े में संतोष करना जानता है, वह उतना ही अधिक पुरुषार्थ करता है। एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति के वेतन में यदि एक हजार रुपए की वृद्धि होती है, तो वह आनंद की अनुभूति करता है। उधर बिल गेट्स की आय में यदि 100 करोड़ डॉलर की वृद्धि होती है, तो उसे क्या फर्क पड़ता है? मध्यम वर्ग का आदमी अपने परिवार के साथ रास्ते चलते हुए कहीं भुट्टा खा लिया, या फिर बच्चों के साथ आइसक्रीम खा लिया, इससे उसे जो आनंद मिला, इसे वह स्वयं ही जानता है। इसी आनंद को प्राप्त करने के लिए बिल गेट्स यदि पाँच करोड़ डॉलर भी खर्च कर दे, फिर भी उस आनंद को छू भी नहीं पाएगा, जिस आनंद को उस व्यक्ति ने पाँच रुपए के भुट्टे या 100 रुपए की आइसस्क्रीम खरीदकर प्राप्त की थी।
इंसान के पास यदि धन बढ़ता है, जो जीवन में मुफ्त में मिलने वाली कई चीजों का पूरी तरह से उपभोग नहीं कर सकता। हृदय के भीतर से उमड़ने वाली खुशियों को कभी धन से प्राप्त नहीं किया जा सकता। धन से सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता, यह जानते हुए भी आज हर कोई भागा जा रहा है, धन के पीछे। अभी विदेशों में एक मजेदार सर्वेक्षण हुआ। कुछ लोगों से यह कहा गया कि आपका वेतन कम कर दिया जाएगा, बदले में आपकी जवाबदारी कम कर दी जाएगी, आपके काम के समय को भी कम कर दिया जाएगा, क्या आपको यह मंजूर है? अधिकांश लोगों का यही कहना था कि वेतन कम मत करें, बाकी सब कम कर दें, तो चलेगा। इससे यही सिद्ध होता है कि आज भी दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो यह मानते हैं कि पैसे से सब-कुछ खरीदा जा सकता है। लेकिन सच नहीं है। किसी आदिवासी इलाके में यदि आप फँस जाएँ, तो उनके लिए पैसा कुछ नहीं होता, वे तो व्यवहार को समझते हैं, यदि वहाँ किसी रईस ने अपने धन का प्रलोभन आदिवासियों को दिया, तो समझ लो, आदिवासी उसके शरीर नाश्ता बनाकर ही दम लेंगे। यदि धन से हटकर व्यवहार किया, तो संभव है, वे उसकी पूजा भी करने लगे। किसी करोड़पति व्यक्ति की माँ या फिर पिता को एक विशेष समूह के खून की आवश्यकता हो, पैसा पानी की तरह बहाने के बाद भी समय पर खून न मिले, तो फिर क्या काम की दौलत? शहर में जब बाढ़ का पानी घुस आया हो, तो क्या उसे अपनी दौलत से रोक पाएँगे, क्या काम की वह दौलत, जो भूकंप के समय भी काम न आई। उस समय तो एक करोड़पति भी बिना इलाज के अपनी जान गँवा बैठता है।
अंत में यही कि धन अपने साथ तनाव और असुरक्षा लेकर आता है, धन कई समस्याओं के समाधान में काम नहीं आता। सीमा से अधिक धन अहंकार का ही पोषण करता है। धन मुस्कान तो दे सकता है, पर भीतर की हँसी नहीं दे सकता। धन की महत्ता उसे दान करने में है, संग्रह में नहीं। जहाँ धन है, वहाँ कलह है। धनी व्यक्ति की इात केवल स्वार्थी लोग करते हैं। किसी फकीर के सामने जाने से सबसे अधिक डर धनी व्यक्ति को ही लगता है। धनी व्यक्ति कभी खिलखिलाकर नहीं हँस सकता।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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सही कह रहे हैं. जितना धन , उतना डर और खोने की उतनी आशंकाऐं. अच्छा आलेख.
जवाब देंहटाएंसच है, कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है
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