गुरुवार, 18 दिसंबर 2008
सामुदायिक रेडियो : एक नए युग की शुरुआत
राकेश ढौंडियाल
मीडिया विस्फोट के इस दौर में जहाँ एक ओर भारतीय उपग्रह चैनल आपसी प्रतिस्पर्धा में सिर्फ बाज़ार को दृष्टिगत रखते हुए, कार्यक्रमों का प्रसारण कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर निजी एफएम चैनलों की भीड़ फिल्संगीत और पॉप म्यूज़िक का प्रसारण कर राजस्व कमाने की होड़ में जुटी है। आकाशवाणी अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता को स्वीकारता है किन्तु राजस्व अर्जन के बढ़ते दबाव के चलते आकाशवाणी ज़बरदस्त बदलाव के दौर से गुज़र रहा है । आम भारतीय की स्थानीय समस्याओं और हितों को दृष्टिगत रखते हुए आकाशवाणी द्वारा राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर के प्रसारण के साथ- साथ देश भर में स्थानीय स्तर पर कई 'लोकल रेडियो स्टेशन' आरम्भ किए गए । देश भर में बिछे रेडियो चैनलों के जाल के बावजूद लगातार यह महसूस किया जाता रहा कि कुछ है जो छूट रहा है, छोटे समुदायों के प्रसारण हितों और अधिकारों का पूर्णतया संरक्षण नहीं हो पा रहा है। सम्भवत: इसीलिए भारत में सामुदायिक रेडियो को वैधानिक मान्यता मिलते ही कई समुदायों का ध्यान इस ओर गया है।
सामुदायिक रेडियो को किसी एक परिभाषा में बाँधना सम्भव नहीं है। प्रत्येक देश के संस्कृति सम्बन्धी क़ानूनों में अन्तर होने के कारण देश और काल के साथ इसकी परिभाषा बदल जाती है। किन्तु मोटे तौर पर किसी छोटे समुदाय द्वारा संचालित कम लागत वाला रेडियो स्टेशन जो समुदाय के हितों, उसकी पसंद और समुदाय के विकास को दृष्टिगत रखते हुए ग़ैरव्यावसायिक प्रसारण करता है, सामुदायिक रेडियो केन्द्र कहलाता है। ऐसे रेडियो केन्द्र द्वारा कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण, सामुदायिक विकास, संस्कृति सम्बन्धी कार्यक्रमों के प्रसारण के साथ-साथ समुदाय के लिए तात्कालिक प्रासंगिता के कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा सकता है। सामुदायिक केन्द्र का उद्देशय समुदाय के सदस्यों को शामिल कर समुदाय के लिए कार्य करना है।
सामुदायिक रेडियो की शुरूआत अमरीका में बीसवी सदी के चौथे दशक में हो गई थी। इसके पूर्व तीसरे दशक में, डेविड आर्मस्ट्राँग, एफएम प्रसारण का अविष्कार कर रेडियो प्रसारण के एक नए युग का सूत्रपात कर चुके थे। अपने शुरूआती दिनों में अमरीकी रेडियो का स्वरूप मुख्यतया व्यावसायिक था। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन द्वारा एफएम बैंड की निचली आवृतियों (881 मेगा हर्ट्ज़ से 919 मेगा हार्ट्ज़ तक) शैक्षणिक रेडियो के लिए सुरक्षित रखने का प्रावधान किया गया। एफएम रेडियो की संभावनाओं को पहचानने का यह पहला प्रयास था। एफएम रेडियो तकनीक की सुविधाजनक प्रणाली और इसकी कम लागत को देखते हुए भविष्य दृष्टाओं को इसमें एक ओर संभावना नज़र आई सामुदायिक रेडियो केन्द्र की संभावना । सामुदायिक रेडियो की कल्पना ने जब साकार रूप लिया तो यह संचार के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी क़दम सिद्ध हुआ
पहला सामुदायिक रेडियो केन्द्र 'वेस्ट कोस्ट' में लुइस हिल नाम के मशहूर पत्रकार द्वारा आरम्भ किया गया। 1946 में इससे जुड़े प्रसारणकर्ताओं ने ''पेसिफिका फाउंडेशन'' की स्थापना की। विश्व युद्ध के पश्चात् उस समय विभिन्न राष्ट्रों के बीच समझ पैदा करने को आवश्यकता महसूस की जा रही थी।
इसी उद्देश्य से पेसेफिका फाउंडेशन ने सामुदायिक रेडियो प्रसारण आरम्भ किया। इस फाउंडेशन से जुड़े शांतिप्रिय बुद्धिजीवी इस बात से भली भाँति परिचित थे कि रेडियो के प्रायोजक इसके कार्यक्रमों को अपने हितों के अनुरूप प्रभावित कर सकते हैं अत: यह निर्णय लिया गया कि श्रोताओं की सहायता से ही केन्द्र का व्यय वहन किया जाएगा। आवश्यक राशि जुटाने के बाद फाउंडेशन ने बर्कले, कैलिफोर्निया से 15 अप्रैल 1949 को प्रसारण आरम्भ कर दिया। इस रेडियो केन्द्र से आज भी प्रसारण हो रहा है और अपनी तरह का यह सबसे पुराना रेडियो केन्द्र है। लेटिन अमरीकी देश बोलीविया में खदान श्रमिकों द्वारा 1949 में आरम्भ किया गया रेडियो केन्द्र, सामुदायिक रेडियो का अनूठा उदाहरण है। बोलीविया अपनी चाँदी एवम् टिन की खानों के लिए एक समय विश्व प्रसिद्ध था। शहरों से मीलों दूर इन खानों में हज़ारों श्रमिक कार्य करते थे। इनके लिए मनोरंजन और संचार के माध्यमों का नितांत अभाव था। इन श्रमिकों ने अपने वेतन का एक भाग संचित कर उस राशि से एक रेडियो केन्द्र स्थापित किया । प्रसारण की लोकप्रियता इस कदर बढ़ी कि इसने स्थानीय पत्र और तार सेवा के महत्व को तक कम दिया। श्रमिकों के संदेश सांस्कृतिक गतिविधियों की सूचना आपातकालीन उदघोषणाएं , सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों सम्बन्धी जानकारियों के साथ-साथ ट्रेड यूनियन और सरकार के बीच संवाद के समाचार प्रसारित होने लगे। कुछ ही वर्षों में बोलीविया में ऐसे 26 सामुदायिक रेडियो केन्द्रों से प्रसारण आरम्भ हो गया। सैन्य शासन के दौरान कई बार इन केन्द्रों को कुचल दिया गया किन्तु इस विचार में इतनी शक्ति थी कि ये बार-बार उठ खड़ा हुआ । इंग्लैंड में कम्युनिटी रेडियो का विचार उन अवैधानिक रेडियो स्टेशनों से आरम्भ हुआ जो सत्तर के दशक में बरमिंघम, बिस्टल, लंदन और मैनचेस्टर में ऐफ्रो-कैरिबियाई अप्रवासियों द्वारा आरम्भ किए गए। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने इन्हें 'पाइरेट रेडियो' की संज्ञा दी थी किन्तु अवैधानिक होने के बावजूद इन केन्द्रों ने कम्युनिटी रेडियो की शक्ति को सिद्ध कर दिया था।
भारत में सामुदायिक रेडियो की आधारशिला सर्वोच्च न्यायालय ने 1995 में रखी जब उसने अपने एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में यह कहा कि 'रेडियो तरंगे लोक सम्पति हैं'। अन्नामलाई विश्वविद्यालय , चेन्नई का 'अन्ना एफएम' भारत का पहला कैम्पस कम्युनिटी रेडियो केन्द्र बना, जिसका प्रसारण 01 फरवरी 2004 से आरम्भ हुआ। इसे ई अम आर सी ।द्वारा संचालित किया जाता है। 16 नवम्बर 2006 को भारत सरकार द्वारा एक नई कम्युनिटी रेडियो नीति को अधिसूचित किया गया । इसके अनुसार ग़ैरव्यावसायिक संस्थायें, जैसे स्वयंसेवी संस्थायें, कृषि विश्वविद्यालय ,सामाजिक संस्थायें, भारतीय कृषि अनुसंधान की संस्थायें, कृषि विज्ञान केन्द्र तथा शैक्षणिक संस्था कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकती हैं । ऐसी कोई भी संस्था, जो व्यावसायिक, राजनैतिक, आपराधिक गतिविधियों से सम्बद्ध हो या जिसे केन्द्र अथवा राज्य सरकार द्वारा अवैध घोषित किया गया हो, कम्युनिटी रेडियो खोलने की हक़दार नहीं है। व्यष्टि या व्यक्ति विशेष को भी यह अधिकार प्राप्त नहीं है। ऐसी पंजीकृत संस्थायें जो कम से कम तीन वर्षों से सामुदायिक सेवा के क्षेत्र में कार्य कर रही हों, कम्युनिट रेडियो के लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकती हैं । इसके लिए कोई लाइसेंस फीस देय नहीं है । आवेदक को रु 2500- क़े मामूली प्रोसेसिंग शुल्क के अतिरिक्त रु 25,000- क़ी बैंक गारंटी जमा करनी होती है । लाइसेंस मिलने पर इन्हें 100 वॉट के एफएम ट्रांसमिटर के ज़रिए प्रसारण करने की अनुमति मिलती है । इसका एंटेना अधिकतम 30 मीटर ऊँचाई तक स्थापित किया जा सकता है । ऐसे ट्रांसमीटर की पहुँच 12 किमी क़े घेरे तक सीमित होती है । केन्द्रों को अपने आधे कार्यक्रम यथासंभव स्थानीय भाषा या बोली में, स्थानीय स्तर पर ही बनाने होते हैं। भारत में निजी एफएम और कम्युनिटी रेडियो पर अब तक समाचारों के प्रसारण की अनुमति नहीं हैं। एक घंटे के प्रसारण समय में पाँच मिनट के विज्ञापन बजाए जा सकते हैं। प्रायोजित कार्यक्रमों के प्रसारण की अनुमति नहीं है किन्तु राज्य अथवा केन्द्र सरकार से प्रायोजित कार्यक्रम प्राप्त होने की दशा में इन्हें प्रसारित किया जा सकता है । आने वाले कुछ वर्षों में भारत भर में लगभग चार हज़ार कम्युनिटी रेडियो केन्द्र खोले जाने का अनुमान है ।
मीडिया का निजीकरण और पूर्णत: स्वतंत्र मीडिया आम भारतीय के लिए मायने नहीं रखता। आज भी भारत, गाँव में बसता है और भारतीय ग्रामीणों की प्रसारण आवश्कताओं की पूर्ति बड़े प्रसारक नहीं कर सकते। जिस देश में बहुत कम दूरियों पर लोगों की ज़रूरतें, भाषा और संस्कृति बदल जाती हो वहाँ यह संभव भी नहीं है। सामुदायिक रेडियो, सामुदायिक कल्याण, पर्यावरण जागरूकता, विविधता में एकता ओर समग्र विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है। यही नहीं कुछ और स्वतंत्रता मिलने पर यह छोटे-छोटे केन्द्र प्रजातंत्र को उसका सही अर्थ प्रदान कर सकते हैं।
राकेश ढौंडियाल
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अभिमत
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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सामुदायिक रेडियो के बारे में कोई विस्तृत सामग्री लिखित में कहीं से मिल सकती हो तो कृपया सम्पर्क सूत्र बताइएगा ।
जवाब देंहटाएंआपकी बडी कृपा होगी यदि आप bairagivishnu@gmail.com पर मुझे यह उपलब्ध करा सके ।