शनिवार, 27 दिसंबर 2008
मोबाइल मेसेज और डिप्रेशन की शिकार युवापीढ़ी
भारती परिमल
बीप... बीप... बीप... मोबाइल पर मेसेज का सिगनल आया और मोबाइलधारी जो कुछ समय पहले बाहरी दुनिया से जुड़ा हुआ था, वह एकदम से उससे कट गया और पहुँच गया मोबाइल से जुड़ी एक छोटी सी दुनिया में। मोबाइल की दुनिया छोटी इसलिए कि जैसे-जैसे विज्ञान उन्नति करता जा रहा है, लोगों से हमारा जुडाव कम से कमतर हाो चला जा रहा है। एक समय था, जब हमारे पास अपने स्नेहीजनों से मिलने के लिए सशरीर उनके पास पहुँचने के सिवाय और कोई उपाय न था। लोग तीज-त्योहार पर ही नहीं यूँ ही इच्छा होने पर एक-दूसरे के हालचाल जानने के लिए समय निकाल कर घर मिलने के लिए जाते थे। घंटों साथ बैठकर दु:ख-सुख की बातें करते थे। गप्पों की थाली में अपने अनुभवों की वानगी एक-दूसरे को परोसते थे। फिर समय ने करवट ली और पत्र लिखने का दौर आया। अब जब मिलने जाना संभव न होता, तो लोग लम्बे-लम्बे पत्रों के माध्यम से अपने दिल का हाल सामने वाले को सुनाते थे और उसकी खैर-खबर पूछते थे। स्नेह की पाती पर अपनेपन के उभरे हुए अक्षर और अंत में स्वयं के स्वर्णिम हस्ताक्षर से सुसाित पत्र जब अपनों के द्वार पर पहुँचता था, तो ऑंखों में दूरी का भीगापन भी होता था और दूर होकर भी पास होने की चमक भी झलक आती थी।
पत्रों की यह दुनिया अपनी धीमी रफ्तार से आगे बढ़ ही रही थी कि विकास का एक और साधन हमारे घर की शोभा बन गया। टेलिफोन ने घर-घर में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। अब लोगों को एक-दूसरे के हालचाल पूछने के लिए मिलने जाने या पत्र लिखने की आवश्यकता नहीं थी। फोन के माध्यम से ही वे एक-दूसरे से बातें कर लिया करते थे। स्वजनों से मिलने का सिलसिला कम होता चला गया। पत्र लिखना तो मानों छूट ही गया। जबकि पत्र अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है। पत्र में जिस तरह से अपनी भावनाओं को उँडेला जा सकता है, वह फोन में संभव नहीं है। पत्र को लम्बे समय तक सहेजकर रखा जा सकता है। पत्र में लिखे गए अक्षर व्यक्तित्व की पहचान होते हैं। लोगों ने इस बात को महसूस भी किया, किंतु समय की कमी और व्यस्तता के बीच इस प्रगति को स्वीकार करना ही विवशता थी।
आज भी फोन का अपना महत्व है। फोन से लाभ है, तो नुकसान भी। फोन पर की जानेवाली बातचीत में आमने-सामने मिलने जैसी आत्मीयता नहीं होती, किंतु उसके बाद भी ध्वनि के माध्यम से एक-दूसरे की भावनाओं को समझा जा सकता है। अपनी खिलखिलाहट से खुशी जाहिर की जा सकती है, तो सिसकियों के द्वारा अपने दु:ख को भी महसूस करवाया जा सकता है। फोन के माध्यम से अपनेपन को बाँटा जा सकता है, किंतु इससे मिलने वाली खुशी को देखा नहीं जा सकता।
आज है एसएमएस का जमाना। संदेश संप्रेषण का सबसे आधुनिक माध्यम- मोबाइल द्वारा एसएमएस करना और अपनी बात सामने वाले तक पहुँचाना। बात पहुँचने के बाद उस पर उसकी क्या प्रतिकि्रया हुई इस बात से बिलकुल अनजान रहना। क्योंकि यह संप्रेषण का एकतरफा माध्यम है। मोबाइल द्वारा एसएमएस भेजना भावनाओं को व्यक्त करने के बजाए उन्हें छुपाना है। किसी को सॉरी कहने के लिए उसे महसूस करने की कोई आवश्यकता नहीं है। बस, मैसेज बॉक्स में सौरी लिखा और भेज दिया। एक सेकन्ड में यह मैसेज सामने वाले तक पहुँच जाएगा। मैसेज का आदान-प्रदान वन-वे ट ्रेफिक है। आप सामने वाले को आघात तो पहुँचा सकते हैं, पर उसके प्रत्याघात से बचा जा सकता है। एसएमएस के माध्यम से किसी का दिल एक पल में तोड़ा जा सकता है, किंतु उसके टूटने की आवाज को सुना नहीं जा सकता।
एसएमएस का फैशन जिस तेजी से बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से आत्मीयता खत्म होती जा रही है। मोबाइल के द्वारा एसएमएस से विवाह हो रहे हैं, तो एक ही क्षण में तलाक भी लिए जा रहे हैं। एसएमएस की आकर्षक दुनिया लोगों को करीब ला रही है, तो उनके बीच दूरियाँ भी बढ़ा रही है। हॉलीवुड अदाकारा ब्रिटनी ने मोबाइल मैसेज के माध्यम से एक तरफ मोबाइल का महत्व बढ़ा दिया, तो दूसरी ओर वैवाहिक जीवन के महत्व को भी क्षण भर में कम कर दिया। टेक्स्ट मैसेज का उपयोग बातचीत करने के लिए कम और बातचीत टालने के लिए अधिक किया जाता है। कॉलेज के युवा तो अपने मित्राें से केवल एसएमएस के माध्यम से ही बातें करते हैं। भावनाओं की अभिव्यक्ति को इसने बिलकुल निष्प्राण बना दिया है। आपको आश्चर्य होगा, किंतु सच यह है कि आज की युवापीढ़ी को भावनाओं की अभिव्यक्ति के प्रति रूचि भी नहीं है। वे इसे समय बरबाद करने के अलावा और कुछ नहीं मानती।
इस व्यस्त दिनचर्या और एसएमएस में सिमटी दुनिया युवापीढ़ी को मानसिक रूप से बीमार बना रही है। मोबाइल से भेजे जानेवाले एसएमएस इतने छोटे होते हैं कि उसमें भाषा की दरिद्रता साफ झलकती है। साथ ही विचारों और भावनाओं की दरिद्रता भी छुप नहीं सकती। इसे न तो प्रिंट के माध्यम से अपने पास फाइल में सुरक्षित रखा जा सकता है न ही मैसेज बॉक्स में लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है।
आज के आधुनिक उपकरण मानवीय शक्तियों को बढ़ा रहे हैं, किंतु साथ ही उसकी भावनाओं को कुंठित कर रहे हैं। एक-दूसरे को यूं तो मोबाइल के माध्यम से कुछ सेकन्ड में ही सुन सकते हैं, मैसेज के माध्यम से वैचारिक रूप से मिल भी सकते हैं, किंतु अपनेपन की खुशी या गम बाँटने में ये माध्यम बिलकुल निरर्थक है। एसएमएस के इस क
्रांतिकारी अविष्कार ने युवाओं को अकेलेपन का ऐसा साम्राय दिया है कि उसके मालिक वे स्वयं हैं। इसकी खुशी बाँटने के लिए भी आसपास कोई नहीं है। नीरवता का यह संसार उन्हें लगातार डिप्रेशन की ओर ले जा रहा है। तनाव का दलदल उन्हें अपनी ओर खींच रहा है और युवापीढ़ी है कि मानसिक रोगी बनने के कगार पर पहुँचने के बाद भी हथेली में सिमटी इस दुनिया से बाहर ही नहीं आना चाहती। बीप..बीप.. की यह ध्वनि भविष्य की पदचाप को अनसुना कर रही हैं। फिर भी युवा है कि इस बात से अनजान अपनेआप में ही मस्त है। समाज में बढ़ते इन मानसिक रोगियों के लिए कौन जवाबदार है वैज्ञानिक या स्वयं ये मानसिक रोगी बनाम आज की युवापीढ़ी? जवाब हमें ही ढूँढ़ना होगा।
भारती परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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आज के बच्चे सिर्फ़ एस एम् एस में ही यकीन रखते हैं. अगर किसी दोस्त से कुछ काम हो, तो मोबाइल पर सीधे बात करने से बचते हैं चाहे कितना भी ज़रूरी हो.
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