सोमवार, 9 मार्च 2009
क्या जवाब है सीबीआई के पास
नीरज नैयर
शुक्र है निठारी कांड का हश्र बाकी मामलों जैसा नहीं हुआ. निठारी के नरपिशाचों को अदालत ने सजा-ए-मौत सुनाकर चार साल से न्याय की आस में टकटकी लगाए बैठे पीड़ितों के कभी न भरने वाले जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया है. लेकिन इस फैसले से केंद्रीय जांच एजेंसी एक बार फिर सवालों में घिर गई है.
हालांकि सीबीआई ने खुद ही पंढेर और उसके नौकर कोहली को मौत की सजा देने की पैरवी की थी लेकिन शुरू में उसने जिस तरह से पंढेर को बचाने के प्रयास किए वो जांच एजेंसी की कार्यशैली और उसकी निष्पक्षता की कलई खोलने के लिए काफी है. निठारी कांड 29 दिसंबर, 2006 को उजागर हुआ था. रेप और हत्या के इस केस में पहले यूपी पुलिस ने जांच शुरू की. बाद में सरकार ने काफी फजीहत के बाद यह केस जनवरी, 2007 में सीबीआई के हवाले कर दिया. इस मामले में कुल 19 एफआईआर दर्ज की गई थी. शुरू में तो सीबीआई की तफ्तीश से लग रहा था कि जल्द ही सबकुछ सामने आ जाएगा मगर ऐसा नहीं हुआ. मामला खिंचता गया और लोग इंतजार करते रहे. निठारी कांड का हश्र भी अन्य मामलों जैसा होता अगर पीड़ित परिवार जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाते. पंढेर रसूख वाला व्यक्ति है. शायद सीबीआई इसी रसूख के दबाव में आकर उसे बचाती चली गई. आरोपत्रों में से उसके नाम काट दिए गये. कहा गया कि पंढ़ेर पूरे मामले से अंजान है. सारा खेल उसके नौकर ने ही रचा और धड़ाधड़ साजिशों को अंजाम देता गया. अब Hkला यह कैसे मुमकिन है कि नौकर घर में बलात्कार करे, हत्याएं करे और शवों के अंगों का सेवन करे और मालिक को इसकी कानों-कान खबर न हो. सीबीआई का तर्क था कि पंढ़ेर देश से बाहर था.
वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है जब केंद्रीय जांच एजेंसी की जांच पर संदेह प्रकट हुआ हो. ऐसे मामलों की लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है. कई मामले तो दश्कों तक चलते के बाद भी बेनतीजा फाइलों में बंद पड़े हैं. नोएडा के बहुचर्चित आरुषी-हेमराज मर्डर केस में ही सीबीआई ने कैसे काम किया ये सबके सामने आ चुका है. उत्तर प्रदेश पुलिस ने जिस तरह से जल्दबाजी में गलत तार जोड़ते-जोड़ते मामले को गलत दिशा में मोड़ दिया था सीबीआई भी कुछ वैसा ही करती नजर आई. जिन लोगों को उसने दोषी बताया वो कोर्ट से बरी हो गये. इतने लंबे वक्त में जांच एजेंसी इतने भी सबूत नहीं जुटा पाई कि अपने निर्णय की अदालत में हिफाजत करवा सके.
ण सीबीआई अब भी अंधेरे में हाथ-पांव मार रही है. 16 मई 2008 को हुई इस घटना में सीबीआई ने यह निष्कर्ष निकाला कि आरुषि के पिता डॉक्टर तलवार के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं. सीबीआई को सबूतों के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है और वारदात में इस्तेमाल हथियार तक उसे नहीं पाया है. किडनी रैकेट मामले की जांच भी सीबीआई को मिली थी. सीबीआई की जांच की दिशा भी वही रही जो पुलिस की थी. सीबीआई इस मामले में डॉक्टर अमित सहित अन्य के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर चुकी है और मामला अदालत में पेंडिंग है. एसीपी राजवीर सिंह मर्डर केस भी सीबीआई के हवाले किया गया और उस मामले की जांच के बाद सीबीआई चार्जशीट दाखिल कर चुकी है.
इसमें भी कोई खास सफलता नहीं मिल सकी है. सीबीआई हमेशा से असरदार हस्तियों से जुड़े मामले में नाकाम ही रही है. ताज कॉरीडोर से लेकर मुलायम सिंह के आय से अधिक संपत्ति के मामलों में जांच एजेंसी को सर्वोच्च न्यायालय तक से फटकार सुनने को मिली है. ताजमहल के पास बन रहे कॉरीड़ोर के करोड़ों रुपए के घपले के केस में उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती का बचाने के आरोप जांच एजेंसी पर लगे. पहले खुद सीबीआई की तरफ से कहा गया कि गया कि मायावती के खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद हैं लेकिन थोड़े वक्त बाद उसने यह कहकर सबको हिला दिया कि बसपा सुप्रीमो के खिलाफ जांच आगे बढ़ाने का कोई फायदा नहीं उसने इस मामले को बंद करने तक की सिफारिश कर डाली. ऐसे ही उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह को आय से अधिक संपत्ति के केस में सीबीआई ने जमकर रियायत दी. उनके क्लीन चिट देने तक की नौबत आ पहुंची थी.
इस मामले में भी अदालत ने सीबीआई को जमकर फटकार लगाई. दरअसल केंद्रीय जांच एजेंसी सही मायनों में किसी काम की नहीं बची है. उसका राजनीतिकरण हो चुका है. अधिकारी भी क्राइम केस से ज्यादा किसी मंत्री की निजी जिंदगी की तहकीकात करने में दिलचस्पी दिखाने लगे हैं. केंद्र में आने वाली हर सरकार जांच एजेंसी को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती रही है. मुलायम सिंह के मामले में भी वही हुआ. जब तक मुलायम कांग्रेस के करीबी थी केस फाइलों में दबा रहा मगर जैसे ही उन्होंने बागी तेवर दिखाए जांच तेज हो गई. हालात ये हो चले हैं कि अगर सीबीआई किसी केस की तफ्तीश अपने हाथ में लेती है तो लोग कहने लगते हैं, अब तो हो गई जांच. सीबीआई जैसी संस्था के प्रति इस तरह की सोच यह साबित करने के लिए काफी है कि जांच एजेंसी पर अब किसी को Hkरोसा नहीं.
नीरज नैयर
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अभिमत
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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होली की हार्दिक शुभकामनाऍं।
जवाब देंहटाएंcbi raajneetik khilona hai, baaki bhaarat me har cheej bikaoo hai.
जवाब देंहटाएंआपकॊ भी हॊली की अशेष शुभकामनाएँ तिलक हॊली मनाएँ भाई चारा बढ़ाएँ
जवाब देंहटाएं