भारती परिमल
एक राजा था।उसके तीन बेटे थे। तीनों ही राजकुमार अपने आपको एक-दूसरे से बहादुर, होषियार और बुद्धिमान मानते थे।वे खेल-खेल में हमेषा एक-दूसरे को नीचा दिखाते हुए अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने में लगे रहते थे। एक दिन इसी बात को लेकर उनमें बहुत समय तक बहस होती रही। जब कोई नतीजा नहीं निकला, तो आपस में तय किया कि क्यों न रानी माँ के पास जाकर इस बात का निर्णय लिया जाए!
तीनों राजकुमार रानी माँ से मिले और अपनी बात उनके सामने रखते हुए प्रष्न पूछा- बताओ माँ हम तीनों में से श्रेष्ठ कौन है? यह सुनकर रानी माँ भी कुछ देर के लिए मौन हो गई, क्योंकि उनके तीनों ही बेटे एक-दूसरे से बढ़कर पराक्रमी और होषियार थे।वे स्वयं ही सोच में पड़ गई कि इन तीनों में से सर्वश्रेष्ठ कौन है?
रानी माँ ने तीनों ही पुत्रों को शांत करते हुए एवं प्यार से समझाते हुए कहा कि मेरे लिए तो तुम तीनों ही होषियार और श्रेष्ठ हो। तुम तीनों ही मेरे लिए बराबर हो। किंतु वे तीनों तो ठहरे राजकुँवर। भला वे इस बात से कैसे एक क्षण में ही सहमत हो जाते! वे तीनों तो जिद पर आ गए और हठ करते हुए बोले- नहीं, नहीं, आपको कहना ही होगा कि हम तीनों में से कौन सबसे अधिक श्रेष्ठ है।
अब तो रानी माँ सचमुच ही परेषानी में पड़ गई। थोड़ी देर सोचने के बाद वे बोली- ठीक है, बच्चों! एक काम करो, एक महीने में तुम तीनों में से जो भी सबसे अधिक उपयोगी चीज मेरे लिए ले आएगा, वही मेरी नजरों में श्रेष्ठ होगा।
तीनों राजकुमारों को रानी माँ की यह बात जँच गई। वे तीनों ही दूसरे दिन रानी में के लिए उपयोगी चीज लाने के लिए राज्य से बाहर परदेस के लिए निकल पड़े। पहला राजकुमार जिस देष में गया, वहाँ घूमते-घूमते उसे बाजार में जादुई चष्मा बिकते हुए देखा। इस चष्मे की विषेषता यह थी कि इसे पहनकर जिसे देखने की इच्छा हो, उसे देखा जा सकता था। राजकुमार को यह चीज बहुत अच्छी लगी और उसने उसे खरीद लिया।
दूसरा राजकुमार जिस देष में गया, वहाँ उसे बाजार में एक ऐसा जादुई कालीन दिखाई दिया, जिस पर बैठ कर जहाँ जाने की इच्छा हो, वहाँ जाया जा सकता था। उसने वह बेषकीमती जादुई कालीन खरीद लिया।
तीसरे राजकुमार को परदेस में एक जादुई फल मिला, जिसे सूँघने मात्र से ही मरणासन्न व्यक्ति भी बिस्तर से उठ खड़ा होता था। राजकुमार को यह फल सबसे अधिक उपयोगी लगा और स्वर्णमुद्राएँ देकर उसने वह फल खरीद लिया।
इस तरह से तीनों ही राजकुमार ने अपनी-अपनी बुद्धिमानी से श्रेष्ठ वस्तुओं का चयन कर उसे खरीद लिया। तीनों ने अलग होते समय एक-दूसरे से वादा किया था कि एक निष्चित दिन और समय पर वे आपस में मिलेंगे।वे लोग तय किए गए समय पर उस स्थान पर पहुँच गए। तीनों ने अपनी-अपनी चीजों की विषेषताओं के बारे में बताया। उसके बाद पहले राजकुमार ने चष्मा पहनकर रानी माँ को देखने की इच्छा प्रकट की। देखा तो पता चला कि रानी माँ बहुत अधिक बीमार है और मरणासन्न स्थिति में बिस्तर पर लेटी हैं। उसने दोनों भाइयों को ये बात बताई। दूसरा राजकुमार बोला- चिंता की कोई बात नहीं। हम तीनों इस जादुई कालीन पर बैठ कर अभी राजमहल पहुँच जाते हैं। वे तीनों ही कालीन पर बैठ गए और पल भर में ही रानी माँ के पास थे। वहाँ पहुँचकर तीसरे राजकुमार ने अपनी जेब से जादुई फल निकाला और रानी माँ को सूँघाया। फल सूँघते ही रानी माँ तो बिस्तर से उठ बैठी, जैसे कुछ हुआ ही न हो। सामने देखा तो तीनों राजकुमार खड़े मुस्करा रहे थे। रानी माँ और राजा तीनों बेटों को देखकर बहुत खुष हुए। रानी माँ ने तीनों बेटों को गले लगा लिया और खूब प्यार किया। तीनों राजकुमार ने फिर अपना पुराना प्रष्न उनके सामने रख दिया।
रानी माँ बोली- मुझे क्या मालूम कि तुम तीनों कौन-सी वस्तु लेकर आए हो? उसके बारे में जाने बिना मैं कोई निर्णय कैसे ले सकती हूँ? तब पहले राजकुमार ने अपने जादुई चष्मे के बारे में बताया कि किस प्रकार उसे पहनकर उसने रानी माँ के बीमार होने का पता लगाया और फिर हम तीनों यहाँ आ पहुँचे। दूसरा राजकुमार शीघ्र ही बोला- ना, ना, वो तो मेरे जादुई कालीन पर बैठ कर हम तीनों कुछ ही पलों में यहाँ पहुँचे हैं।
इतनी देर से चुप खड़ा तीसरा राजकुमार बोल पड़ा- ये तो सच है कि बड़े भाई और मँझले भाई के कारण आपकी बीमारी का पता चला और शीघ्र ही यहाँ आना संभव हो पाया, किंतु मेरे द्वारा लाए गए जादुई फल का ही प्रभाव था कि आप उसको सूँघते ही तुरंत बिस्तर से उठ खड़ी हुई। अत: इन तीनों में श्रेष्ठ तो मैं ही हुआ।
रानी माँ ने तीनों बेटों की तरफ मुस्कराते हुए देखा और बोली- मुझे ठीक करने में तुम तीनों का ही बराबर का हाथ है। यदि जादुई चष्मे से देखा न जाता, तो मेरे बीमार होने का पता ही न चलता। यदि जादुई कालीन न होता तो शीघ्र ही राजमहल पहुँचना संभव ही न था और यदि ये जादुई फल ही न होता तो आज मेरा जीवित बचना संभव ही न था, क्योंकि वैद्य तो उपचार करते हुए हार गए थे और निराष हो चुके थे। इसलिए मेरे जीवित होने में तुम तीनों के द्वारा लाई गई वस्तुओं की बराबर की हिस्सेदारी है। वैसे भी माँ के लिए तो बेटे ऑंखों के तारे के समान हैं। तुम तीनों ही मेरी ऑंखें हो। क्या किसी एक ऑंख को श्रेष्ठ कहा जा सकता है भला? फिर श्रेष्ठ तो वह होता है, जो दूसरों को श्रेष्ठ समझे। इस दृष्टि से तुम तीनों ही श्रेष्ठ हो। मेरे प्यारे बेटों, मेरी नजरों में तो तुम तीनों ही मेरे अनमोल रतन हो, ऐसा कहते हुए रानी माँ ने तीनों राजकुमारों को फिर से गले लगा लिया।
रानी माँ की बातें सुनकर तीनों राजकुमारों का अहंकार नष्ट हो गया और वे जीवन में सदैव स्वयं को श्रेष्ठ न मानकर दूसरे को श्रेष्ठ मानने लगे।
भारती परिमल
मंगलवार, 14 जुलाई 2009
श्रेष्ठ कौन?
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बच्चों का कोना
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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bahut hi achhi kahani.
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