बुधवार, 29 जुलाई 2009

यह दुर्भाग्यपूर्ण है?


प्रिय साथी,
हमारे मतबल पत्रकार के अस्तित्व को कभी आंच नहीं आ सकती क्योंकि मुफलिसी
का रास्ता हमने चुन लिया है किन्तु हमारे हक पर डाका डालने का उपक्रम लगातार किया जाता रहा है। खबर छपी है
कि लवगुरु मटुकनाथ पत्रकारिता करेंगे। यह खबर मुझे ठीक नहीं लगी। जो पुराने साथी हैं उन्हें यह जरूर पता होगा कि बैंकों और टीचिंग प्रोफेशन से जुड़े लोग किस तरह पूर्णकालिक पत्रकारों के हक पर डाका डालते रहे हैं। इन्हीं मुद्दों पर मेरी टिप्पणी आपके अवलोकनार्थ प्रेषित है। संभव हैं कि आप मेरी राय से सहमत हों या न भी हो। दोनों ही सूरत में मेरे आलेख पर
अपनी टिप्पणी जरूर भेजें।
मनोज कुमार
सम्पादक
समागम मीडिया साथियों की मासिक पत्रिका
भोपाल
मो. 09300469918
अभी अभी अखबार में खबर पढ़ रहा था कि लवगुरु के नाम से ख्यातिलब्ध प्रोफेसर मटुकनाथ को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है। यह रोजनामचा की खबर थी और इसके आगे की खबर चौंकाने वाली थी कि मटुकनाथ अब पत्रकारिता करेंगे। मैं समझता हूं कि पत्रकारिता में मुझ जैसे रोज घिसने वाले पत्रकारों को यह खबर पढ़कर पीड़ा हो रही होगी कि पत्रकारिता को मटुकनाथ और उन जैसे लोगों ने सराय बना लिया है जो कहीं के नहीं हुए तो पत्रकारिता का रास्ता पकड़ लिया। यह दुर्भाग्यपूर्ण बात मानता हूं कि पत्रकारिता के लिये न तो शिक्षा का बंधन है और न अनुभव की कोई समयसीमा। जब चाहा
पत्रकारिता का रास्ता पकड़ लिया और जब चाहा छोड़ दिया। इस मुद्दे के बरक्स मेरे दिमाग में कुछ सवाल कौंधे कि आखिर पत्रकारिता क्या है? क्या वह पेशा है अथवा मिशन? पत्रकारिता रोजगार है अथवा पेशन? पत्रकार कौन हो सकता है?
किसी भी क्षेत्र से नाकामयाब हो गये लोग या कहीं से हटाये गये लोग या फिर वो जिसने तय कर लिया है कि उसे फिकरापरस्ती मंजूर है? ये सवाल अचानक नहीं उठे हैं बल्कि पत्रकारिता की सीमा को लेकर, उसके आचरण को लेकर और उसकी मर्यादा को लेकर समय समय पर सवाल उठाया जाता रहा है और जब जरूरत होती है पत्रकारिता की छांह में अथवा उसकी आड़ में खुद को महफूज़ कर लिया जाता है।
मटुकनाथ के पत्रकारिता में प्रवेश को लेकर हमारे एक दोस्त सहमत हैं। उन्हें लगता है कि इस पर कोई बहस नहीं होनी चाहिए। वे पत्रकारिता की शिक्षा के रास्ते अखबारों से होते हुए प्रोफेसरी कर रहे हैं। शायद इसलिये वे मटुकनाथ के पत्रकारिता में आने में कोई दिक्कत नहीं देखते हैं बल्कि वे उन्हें सेलिब्रेटी की नजर से देखते हैं लेकिन पत्रकारिता को
सेलिब्रेटी की जरूरत नहीं है बल्कि एक संजीदा पत्रकार की जरूरत है जो दिल की सुनता है जो परायों के दर्द को अपना समझता है। इस दर्द को अपनाने में उसे सिर्फ और सिर्फ तकलीफ मिलती है और इस तकलीफ में भी वह खुश रहता है। मटुकनाथ क्या ऐसा दर्द झेल पाएंगे? क्या उन्हें मुफलिसी मंजूर होगी? इस सवाल का जवाब तो खुद मटुकनाथ दे सकते हैं।
एक मौजू सवाल यह भी है कि मंदी के बहाने को लेकर रोज-रोज अखबारों और टेलीविजन में छंटनी हो रही है। तनख्वाह में कटौती हो रही है। ऐसे में मटुकनाथ जैसे लोगों के आने से कुछ और साथियों के हक पर डाका नहीं डलेगा?
आप सबको यह तो पता होगा ही कि अखबारों में अंशकालिक उपसम्पादक और मैग्जीन सेक्सन में ऐसे अनेक लोग काम करते हैं जो पहले से किसी बैंक अथवा टीचिंग प्रोफेशन में हैं। ये वो लोग हैं जिन्हें पत्र प्रबंधन कम वेतन देकर रख
लेता है और वे उसे मंजूर कर लेते हैं और इससे एक प्रोफेशन जर्नलिस्ट बेरोजगार हो जाता है। यह सिलसिला अभी बंद नहीं हुआ है। बहुत सारे काबिल साथियों को अपने परिवार चलाने के लिये मारामारी करनी होती है और ये अंशकालिक लोग अपनी स्थायी नौकरी की मोटी तनख्वाह के बाद भी एक पत्रकार को बेकार रहने पर मजबूर करते हैं और ऐसे में मटुकनाथ जैसे लोगों के आने के बाद स्थिति बिगड़ेगी ही।
एक और बात। मटुकनाथ के सवाल पर तर्क यह भी दिया जाता है कि व्यवसायी से लेकर अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी पत्रकारिता में आ रहे हैं। मैं उन लोगों को बताना चाहूंगा कि वे लोग पत्रकारिता में नहीं आ रहे हैं बल्कि वे इस मीडियम में आ रहे हैं और वे मालिक हैं न कि पत्रकार। किसी अखबार पत्रिका का प्रकाशन करना अथवा टेलीविजन चैनल शुरू करने का अर्थ पत्रकारिता करना नहीं है बल्कि उस मीडियम का स्वामी बनना है।
मनोज कुमार

1 टिप्पणी:

  1. मटुकनाथ जब प्रेम कर सकते हैं तो पत्रकरिता क्यों नहीं?

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