गुरुवार, 9 जुलाई 2009

फ्लॉप शो साबित हुआ आम बजट


नीरज नैयर
इस आम बजट को आमजन की अपेक्षाओं के अनुरूप तो नहीं कहा जा सकता लेकिन सरकार की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के इसमे सारे गुण मौजूद हैं. वित्तमंत्री प्रणव
मुखर्जी ने भविष्य में राजनीतिक लाभ से संबंधित योजनाओं को अत्याधिक प्रमुखता दी है. बजट में टैक्सों की हेराफेरी और थोड़ी बहुत छूट प्रदान करके लोकलुभावन बनाने की कोशिश की है लेकिन वो भी कारगर होती नजर नहीं आती. बजट में आयकर छूट सीमा जो पहले 1,50,000 तक थी उसे अब 1,60,000 कर दिया गया है, ऐसे ही महिलाओं के लिए इसे 1,80,000 से बढ़ाकर 1,90,000 किया गया है, हालांकि वरिष्ठ नागरिक इस मामले कुछ ज्यादा फायदे में रहे हैं उनके लिए छूट सीमा पहले के 2,25,000 से बढ़ाकर 2,40,000 कर दी गई है. यानी वरिष्ठ नागरिकों को छोड़कर अधिकतम रियायत दी गई महज 10,000. बजट में जीवन रक्षक दवाएं, बड़ी कारें, एलसीडी, मोबाइल फेान,
सीएफएल,वाटर प्यूरीफायर, खेल का सामान आदि सस्ता किया गया है. जबकि डॉक्टर-वकील की सलाह, सोना-चांदी, कपड़े आदि के लिए अब ज्यादा दाम चुकाने होंगे.
नफे -नुकसान के गुणा-भाग में उतरने से पहले बजट के बाकी हिस्सा पर भी प्रकाश डालाना बेहतर रहेगा, प्रणव मुखर्जी ने किसानों का खास ख्याल रखने की बात कही है, उन्हें अब सस्ते दर से कर्ज दिया जाएगा. खाद सब्सिडी अब उनके हाथ तक पहुंचाई जाएगी. 2014-15 तक गरीबी उन्नमूलन की दिशा में उल्लेखनीय काम करने का प्रावधान बजट में है, इसके अलावा अल्पसंख्यकों पर दरियादिली की बरसात की गई है, एससी-एसटी और ओबीसी में आने वाले बच्चों की शिक्षा पर अत्याधिक ध्यान केंद्रित किया गया है. अब बात शुरू करते हैं आयकर छूट से जिसको सरकार की तरफ से बहुत बड़ा कदम बताया जा रहा है, अगर दो हफ्ते पहले ये बजट आता और ये प्रावधान किया गया होता तो कुछ हद तक इसे बड़ा कदम करार दिया जा सकता था लेकिन मौजूदा वक्त में ऐसी कोई गुंजाइश नहीं. बजट से ठीक पहले सरकार पेट्रोल पर चार और डीजल पर दो रुपए बढ़ा
चुकी, उस लिहाज से इस छूट को ऊंट के मुंह में जीरा समान कहा जा सकता है. छूट की सच्चाई को विस्तार से समझने के लिए हम इसको ऐसे देख सकते हैं, अगर आपकी सालाना कमाई 500,000 से 9,90,000 के आसपास है तो आपकी सालाना बचत हुई करीब 1030, अगर 10,00,000 है तो 21530, 20,00,000 पर 51530, और 50,00,000 पर तकरीबन 1,41,530 के आसपास. पहले वाली श्रेणी यानी 500,000 से 9,90,000 को लेकर आगे चलते हैं, इतनी कमाई पर बचत का आंकड़ा सालाना हजार रुपए से थोड़ा सा ज्यादा है और महीने की बात की जाए तो यह पहुंचता है करीब 85.83 के इर्द-गिर्द. अब जरा सोचें की मेट्रो सीटी में रहने वाला एक व्यक्ति जो प्रति माह 100 लीटर के आस-पास पेट्रोल खर्च करता है, उसे तेल की कीमत में मौजूदा वृद्धि के बाद चार रुपए ज्यादा चुकाने होंगे यानी पहले अगर वो 42 रुपए देता था तो अब उसे 46 देने पड़ेंगे.
इस हिसाब से 100 गुणा चार मतलब कुल भार बढ़ा 400 और बचत हुई महज 85.83. यानी अगर सही मायनों में देखा जाए तो सरकार ने जितना दिया नहीं उससे
ज्यादा वसूल कर लिया. छूट के रूप में सरकार ने केवल एक झुनझुना पकड़ाया है जिसे देखकर बच्चा तो मुस्कुरा सकता है लेकिन पेशेवर व्यक्ति नहीं. अब यह तो केवल प्रणव
मुखर्जी और मनमोहन सिंह की आर्थिक विशेषज्ञों की टीम ही बता सकती है कि इस बजट में उदारता जैसे शब्द कहां हैं. बजट में राष्ट्रीय ग्रामीण जैसी योजनाओं पर पैसे की बरसात की गई है जबकि यह कई बार उजागर हो चुका है कि यह योजना भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है. कहीं-कहीं तो काम करने के बाद भी मजदूरों को उनका मेहनताना नहीं
मिलता. ऐसे में ज्यादा जरूरत इस तरह की योजनाओं के व्यापक क्रियान्वयन की थी ताकि जिनके लिए योजनाएं बनाई गई हैं उन तक लाभ पहुंच सके. जहां तक बात
अल्पसंख्यकों और पिछड़ी जातियों को लुभाने की है तो ये पूरा वोट बैंक को रिझाने वाला स्टंट है. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के बजट में 74 प्रतिशत का इजाफा किया गया है. इतना ही नहीं, अल्पसंख्यक बहुल जिलों में पानी, बिजली, सड़क, शिक्षा, बैंक आदि की व्यवस्था पर भी सरकार ने नजरें इनायत की हैं. यह धनराशि खास तौर से नौ योजनाओं पर खर्च की जाएगी. ज्यादा ध्यान 20 प्रतिशत से अधिक अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों में मल्टी सेक्टोरल योजना के कार्यों पर दिया जाएगा. अल्पसंख्यक छात्रों की तालीम के मद्देनजर पूर्व मैट्रिक छात्रवृत्ति, मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति के साथ ही उच्च स्तर पर व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों के लिए योग्यता सह-युक्ति छात्रवृत्ति को भी प्राथमिकता में शामिल किया गया है. इसके साथ ही पश्चिम बंगाल व केरल में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कैंपस खोले जाने के लिए 25-25 करोड़ की योजना अलग से है. बजट में अनुसूचित जाति के छात्रों को मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति के मद में ही करीब 750 करोड़ खर्च करने का एलान किया गया है, इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्ग को विशेष केंद्रिय सहायता में 450 करोड़ अगल रखें गये हैं. पिछड़े वर्ग के छात्रों की मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना के लिए 135 करोड़ा का प्रावधान है, जबकि इस
समुदाय के मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति के लिए 30 करोड़ और रखे गये हैं. सरकार का मानना है कि इससे करीब 11 लाख पिछड़े विधार्थियों का भला होगा. ठीक ही है, इतनी रकम से किसी का भी भला हो सकता है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि सामान्य वर्ग की झोली में क्या डाला गया. क्या सामान्य जाति के बच्चों को छात्रवृत्ति की खास जरूरत नहीं
पड़ती, क्या गंदगी और अव्यवस्थाओं का आलम केवल अल्पसंख्यक बहुल जिलों में ही होता है. बजट में सामान्य वर्ग की जरूरतों पर कोई ध्यान केंद्रित नहीं किया गया. माना जा रहा था कि सरकार बजट में महंगाई से राहत दिलाने के लिए कुछ कदम उठा सकती है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. उल्टा तेल मूल्यों के लिए एक टास्क फोर्स यानी स्टडी ग्रुप बनाने की बात कही गई है. पिछले एक साल में देश में 65 फीसदी परिवारों का जीवन स्तर पहले के मुकाबले खराब हुआ है. इसकी वजह खाद्य और अन्य वस्तुओं की कीमतें बढऩा है. हालांकि यह बात अलग है कि मुद्रास्फीति की दर दिसंबर 2008 से ही 3 फीसदी से नीचे बनी हुई है. कुल मिलाकर कहा जाए तो यह आम बजट पूरी तरह फ्लॉप शो साबित हुआ है और इससे ये संकेत मिलते हैं कि आने वाले दिनों में आयकर में दी गई नाममात्र छूट के एवज में सरकार और कुछ और भार बढ़ा सकती है.
नीरज नैयर

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