शनिवार, 25 जुलाई 2009
जांच पर हंगामा कितना उचित
नीरज नैयर
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को सुरक्षा जांच से क्या गुजरना पड़ा पूरे मुल्क में बवाल हो गया, धड़ाधड़ प्रतिक्रियाएं आनें लगी, अमेरिकी एयरलाइंस को दोषी करार दिया जाने लगा. संसद में तो तो कुछ माननीय सांसदों ने एयरलाइंस का लाइंसेंस रद्द करने और तलाशी लेने वाले अमेरिकी को देश से निकालने तक की मांग कर डाली. जबकि जिसकी तलाशी ली गई यानी कलाम साहब की वो पूरी तरह खामोश हैं, उन्होंने न तो जांच के वक्त वीवीआई होने का कोई रुबाव झाड़ा और न ही अब कुछ बोल रहे हैं. वो शायद इस बात से सहमत हैं कि सुरक्षा से समझैता नहीं किया जाना चाहिए. कांटिनेंटल एयरलाइंस को अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी डिमार्टमेंट के ट्रांसपोर्ट सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन यानी टीएस की तरफ से स्पष्ट निर्देश दिए गये हैं कि विमान में सवार होने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जांच की जाए. उन्होंने अति विशिष्ट, विशिष्ट लोगों के लिए के लिए अलग से कोई दिशा निर्देश नहीं बनाए हैं. ऐसे में जांच करने वाले अधिकारी महज अपनी नौकरी कर रहे थे, उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं था कि कलाम साहब किस श्रेणी में आते हैं. रुतबे-रुबाब के आगे नियम-कायदे ताक पर रखने की परंपरा सिर्फ हमारे देश में है, दुबई जैसी खाड़ी मुल्क में भी अति विशिष्ट, विशिष्ट माननीयों को हवाई अड्डे पर सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ता है, बस फर्क सिर्फ इतना होता है कि उन्हें आम लोगों की तरह लाइन में नहीं लगना होता. उनके लिए अलग से व्यवस्था की जाती है. यह बात सही है कि पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते अब्दुल कलाम को जांच से छूट मिली है और उनकी जांच नागरिक उड्डयन ब्यूरों के सर्कुलर का सरासर उल्लघंन है. लेकिन कांटिनेंटल एयरलाइंस जिस मुल्क से ताल्लुक रखती है उसके भी अपने कुछ नियम हैं, कहने वाले बिल्कुल ये कह सकते हैं कि भारत में आने के बाद वह यहां के नियम-कानून मानने के लिए बाध्य है. पर जनाब गौर करने वाली बात ये भी है कि एयरलाइंस सुरक्षा के अपने मानकों के ऊपर किसी भी देश के नियमों को हावी नहीं होने देती. इतना सब हो जाने के बाद भी कांटिनेंटल की तरफ से महज खेद जताया गया है, उसने ये कतई नहीं कहा कि फिर ऐसा नहीं होगा, मतलब सुरक्षा उसके लिए सर्वोपरि है. 11 सितंबर 2001 के बाद अमेरिका ने सुरक्षा संबंधि बहुत से कदम उठाए हैं और इसतरह की जांच उसी का एक हिस्सा मात्र हैं, लिहाजा इस पर बेफिजूल का हो-हल्ला करना तर्कहीन ही लगता है. हमारे देश में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व उपराष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, लोकसभा अध्यक्ष समेत 32 श्रेणियों में आने वाले अतिविशिष्ट लोगों को एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच में छूट मिली हुई है. छूट के दायरे में लोकसभा के स्पीकर, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, लोकसभा व राज्यसभा में विपक्ष के नेता, भारत रत्न से सम्मानित हस्तियां, सुप्रीम कोर्ट के जज, मुख्य निर्वाचन आयुक्चत और धर्मगुरु दलाई लामा भी आते हैं. कुछ वक्त पहले तीनों सेनाओं के प्रमुखों को भी इस श्रेणी में शामिल किया गया था, यानी उन्हें भी सुरक्षा जांच के लिए नहीं रोका जा सकता, सरकार ने ये फैसला उस वक्त लिया था जब प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वॉड्रा को थलसेना अध्यक्ष के ऊपर रखने पर हंगामा मचा था. रॉबर्ट किसी संवैधानिक पद पर न होते हुए भी अति विशिष्टजनों को मिलने वाली छूट का लाभ इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि वो कांग्रेसाध्यक्ष के दामाद हैं. वीवीआईपी, वीआईपी तो दूर की बात हैं, हमारे देश में तो थोड़ी सी ऊंचाई पाने वाला हर व्यक्ति अपने आप को राजा समझने लगता है, मसलन प्रेस का तमगा लगने के बाद पत्रकार पुलिस वालों को कुछ नहीं समझते. सामान्य चेकिंग के दौरान अपने आप को रोका जाना उनकी शान में गुस्ताखी करने जैसा होता है. वो अपने आप को आमजन से ऊपर समझते हैं और चाहते हैं कि उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाए. जो लोग वैश्रो देवी अक्सर जाते रहते हैं उन्होंने गौर किया होगा कि वहां आने वाले आर्मी के जवान सुरक्षा जांच चौकियों पर तैनात पुलिसकर्मियों से अमूमन उलझे रहते हैं, उन्हें यह गंवारा नहीं होता कि कोई पुलिसवाला उनकी तलाशी ले. पुलिसवाले खुद नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाने से पीछे नहीं रहते, उन्हें लगता है कि उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है. महज कुछ लोग नहीं बल्कि पूरे मुल्क की मानसिकता ही ऐसी हो गई है कि हम हमेशा अपने आप को निर्धारित नियमों से ऊपर रखना चाहते हैं. अब्दुल कलाम ने जांच में सहयोग करके और बेवजह मामले को तूल न देकर एक उदाहरण पेश किया है, उन्होंने इस संबंध में कोई शिकायत तक नहीं की. वह विदेश यात्रा के दौरान सुरक्षा घेरों का हमेशा पालन करते हैं, दरअसल इस मामले को इतना ऊछालने वाले इस बात को लेकर आशंकित हैं कि कहीं अगर उनके साथ ऐसा कुछ हो गया तो सारा रुबाब धरा का धरा रह जाएगा, इसलिए वो चाहते हैं कि अमेरिकी एयरलाइंस को सुरक्षा से समझौता न करने का सबक सिखाए जाए. एयरलाइंस के खिलाफ जांच के आदेश दे दिए गये है और उसे ये सिखाने की पूरी कोशिश की जाएगी कि भारत में वीवीआईपी देश, उसकी सुरक्षा और हर लिहाज से सबसे ऊपर होते हैं, इसलिए अगर उसे भारत में काम करना है तो अपनी प्राथमिकताओं की सूची में सुरक्षा को दूसरा स्थान देना होगा क्योंकि पहले स्थान पर सिर्फ और सिर्फ वीवीआईपी ही आ सकते हैं.
नीरज नैयर
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दृष्टिकोण
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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... सारगर्भित अभिव्यक्ति है, यदि प्रोटोकाल के अनुसार छूट प्रदाय की गई है तब यह घटना निश्चिततौर पर निन्दनीय व दण्डनीय है साथ-ही-साथ सुरक्षा भी आवश्यक है !!!
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