शुक्रवार, 30 मई 2008
हवाएँ होने लगी हिंसक
डॉ. महेश परिमल
मौसम लगातार बदल रहा है। प्रकृति अब लोगों को डराने लगी है। अब डर लगता है प्रकृति की गोद में मचलना। प्रकृति के अनुपम उपहार हमारे सामने ही भूमिगत होने लगे हैं। पिछले 10 से 12 वर्षों में प्रकृति असंतुलन अधिक दिखाई दे रहा है। लोग इसका कारण ग्लोबल वार्मिंग को मान रहे हैं। वैज्ञानिक इसे ''अलनाइनो'' कहते हैं। आज जो स्थिति दिखाई दे रही है, वैसी स्थिति करीब 4 हजार साल पहले भी आई थी। आज जो हालात बदल रहे हैं, उसका सबसे अधिक असर कृषि और पानी पर पड़ेगा, बाढ़ और अकाल अब होते ही रहेंगे। आपको यह जानकर आष्चर्य होगा कि अमेरिका के पेरु देष में लगातार बारिष के कारण 2300 वर्गमील का खाली स्थान एक बड़े सरोवर में तब्दील हो गया। अब वहाँ जमीन दिखाई ही नहीं देती। प्रकृति का इस तरह से लगातार हिंसक होना यही बताता है कि मानव यदि अभी भी सचेत न हुआ, तो इसका विकराल रूप हम सबको बहुत ही जल्द दिखाई देगा। आइए पिछले कुछ वर्षों में विष्व में हुई कुछ घटनाओं की तरफ नजर डालें, इससे ही पता चल जाएगा कि अब प्रकृति अपना खेल खेलकर ही रहेगी-
केनेडा में बर्फ का अभूतपूर्व तूफान आया, लोग त्राहिमाम्-त्राहिमाम् पुकारने लगे। ऐसा दृष्य वहाँ पहले कभी नहीं देखा गया।
अफ्रीका में बाढ़ के कारण हजारों लोग मारे गए।
अमेरिका के पेरु देष में लगातार बारिष के कारण 2300 वर्गमील का खाली स्थान एक बड़े सरोवर में तब्दील हो गया। अब वहाँ जमीन दिखाई ही नहीं देती।
अमेरिका में बर्फ के तूफान ने तबाही मचाई।
ग्रेट प्लेइंस में तेज हवा से की चपेट में आकर 124 लोग मारे गए।
मास्को में इतनी तेज हवा चली कि लोग डर गए, क्योंकि इसके पहले उन्होंने हवा का यह रौद्र रूप कभी नहीं देखा था।
चीन में यांग्त्से नदी में आई बाढ़ में करीब 500 लोग बह गए। नदी के किनारे टूट गए, तबाही का मंजर चारों ओर दिखाई देने लगा।
अमेरिका के केलिफोर्निया राज्य की नदियों में आई बाढ़ के कारण असंख्य लोगों ने जान गवाई।
फ्लोरिडा में आए झंझावात के बाद जोरदार बिजली गिरी, 2000 स्थानों पर आग लग गई, 5 लाख एकड़ जमीन के जंगलों का नाष हो गया। 25 अरब डॉलर की सम्पत्ति का नुकसान हुआ।
बलूचिस्तान जैसी सूखी जगह पर बारिष के बाद बाढ़ आ गई, सैकड़ों लोग बह गए। जहाँ लोग पानी के लिए तरसते थे, वही पानी उनकी मौत का कारण बना।
1998 में लैटिन अमेरिका के पेरुग्वे मानाग्वे और होंडुरास में बाढ़ से 10 हजार लोग मौत के षिकार हुए।
इंडोनेषिया में बिजली गिरने से जंगल जल गए, बहुत ही नुकसान हुआ।
दक्षिण अमेरिका के चीली के रेगिस्तान में बर्फ की बारिष हुई, जिससे एक फीट ऊँची बर्फ की परत जम गई।
1997 में अमेरिका के टर्की नदी में बाढ़ आने से हजारों लोग मौत के षिकार हुए।
तो ये थे, पिछले 10-12 बरसों में आई तबाही के किस्से। ऐसा नहीं है कि उक्त कारणों से जनजीवन पर कोई असर नहीं होता। इन कारणों से जनजीवन इतना अस्त-व्यस्त हो जाता है कि लोग महँगाई की मार से जूझने लगते हैं। मौसम का सबसे पहला असर समुद्र पर पड़ता है, तूफान से समुद्र की मछलियाँ उसमें फँस जाती हैं, इससे उनकी मौत हो जाती है। इस तरह के तूफानों के बाद यूरोप और अमेरिका में मछलियों की कीमतों में 25 प्रतिषत बढ़ोत्तरी हो जाती है। इंडोनेषिया में बेमौसमी बारिष से सोयाबीन की फसल को काफी नुकसान हुआ, फलस्वरूप सोयाबीन तेल की कीमतों में 40 प्रतिषत बढ़ोत्तरी हो गई।
यह सब हो रहा है प्ृथ्वी के गर्म होने के कारण। वैज्ञानिकों का मानना है कि जब तक पृथ्वी का गर्म होना जारी रहेगा, इस तरह के तूफान, बारिष, झंझावात, बर्फबारी, बिजली गिरने आदि प्रकोप जारी रहेंगे। सौ वर्षों में पृथ्वी का तापमान में एक डिग्री फैरनहीट की वृदधि देखी गई है। अभी गर्मी में ही पूरे देष में करीब 500 लोग मारे गए। यही हाल अतिवृष्टि से भी हो रहा है। लोग मर रहे हैं, मौसम विभाग की सारी भविष्यवाणी झूठी साबित हो रही है। समय हाथ से निकला जा रहा है। अब तक तो प्रकृति ने मानव को सहेजा, किंतु मानव प्रकृति को सहेजना नहीं सीख पाया, इसलिए अब प्रकृति ने स्वयं ही फेसला कर लिया है कि उसे क्या करना है।
प्रकृति अब हिंसक होने लगी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अब इंसान प्रकृति का प्रकोप देखेगा। ये प्रकोप क्या-क्या हो सकते हैं, जरा इस पर नजर डाल लें- पृथ्वी का तापमान बढ़ने से कृषि पैदावार कम होगी, नई तकनीकों से भले ही अधिक उत्पादन लिया जाए, पर वह फसल अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रखी जा सकेगी, पानी के लिए युध्द होगा, खूनी जंग होगी, लोग हरियाली देखने के लिए तरस जाएँगे, बारिष अधिक होगी, इससे चारों ओर पानी ही पानी होगा, जमीन कम होने लगेगी, विष्व की बढ़ती जनसंख्या चिंता का विषय होगी, किंतु प्रकृति इस समस्या को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाएगी, इसलिए वह अपना संतुलन बनाए रखने के लिए विप्लव का सहारा लेगी। मौसम का बदला हुआ स्वरूप हजारों लाखों लोगों को अपने आगोष में ले लेगा। भविष्य में जहाँ आज पानी है, वहाँ की जमीन रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगी और जहाँ आज रेगिस्तान है, वह जगह पानी से सराबोर हो जाएगी।
यह तो हुई विष्व की स्थिति, अब भारत में क्या हो सकता है, यह जान लें, तो बेहतर होगा। हाल ही '' भारत में मौसम के परिवर्तन के प्रभाव'' पर हुए एक षोध में कहा गया है कि आगामी 70 वर्र्षो में भारत में अकाल की विभीषिका जोर पकड़ेगी, अल्प वर्षा और अतिवृष्टि के नजारे देखने को मिलेंगे, गर्मी और बढ़ेगी, मच्छरों से लेकर अन्य कीड़े-मकोड़ों की संख्या में बेतहाषा वृद्धि होगी, संक्रामक रोग फैलेंगे, बंगाल की खाड़ी में समुद्री तूफान बढ़ेंगे, नदियाँ सूख जाएँगी।
अब तक हमारा देष षट्ऋतुओं का देष कहलाता था, लेकिन मोसम के बदलते तेवर के कारण वह भी अनियमित हो जाएगा। कभी भी कोई भी ऋतु आ जाएगी। तब षायद इंसान भी अपना स्वभाव बदल देगा। वह भी पहले से अधिक आक्रामक हो जाएगा, संवेदनाओं से उसका नाता टूट ही जाएगा। लोग भावनाषून्य हो जाएँगे, मार-काट का दौर जारी रहेगा, हत्या जैसी बात अब और साधारण हो जाएगी। ऐसे में एक सभ्य समाज की परिकल्पना ही झूठी साबित हो जाएगी। एक बार सोचो, कैसा होगा उस समय का संसार?
; डॉ. महेश परिमल
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पर्यावरण
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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