सोमवार, 5 मई 2008
तौबा कर लो, पालतू पशु-पक्षियों से
डॉ. महेश परिमल
पशु-पक्षियों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी स्वामिभक्ति के कई किस्से इतिहास में दर्ज हैं। ये अकेलेपन के साथी होते हैं। लोग इनके पास बैठकर अपना समय काट लेते हैं। इन्हें घुमाने के नाम पर स्वयं भी रोज सुबह-शाम घूम लेते हैं। ये बोलते नहीं हैं,पर इंसान की सारी भावनाओं को बेहतर समझते हैं। कम से कम एक इंसान से तो अधिक ही समझते हैं। समय के साथ अब ये पशु-पक्षी समाज में प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए घरों में रखे ेजाने लगे हैं। अब इसके साथ घर-परिवार की सुरक्षा का सवाल भी सामने आने लगा है। लोग अब अपने घरों में महिालाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए इन्हें पालने लगे हैं।
एक मित्र का घर ढँढ़ते हुए किसी पॉश कॉलोनी पहुँचा। घर तो बड़ी ही मुश्किल से मिला। पर सबसे दु:खद बात तो यह रही कि अधिकांश घरों के आगे नाम भले ही न मिला हो, पर एक बोर्ड अवश्य मिला, जिस पर लिखा था 'बीवेयर ऑफ डॉग'। लगा कि यहाँ आदमी कम और कुत्ते अधिक रहते हैं। पहले लोगों के घरों के आगे स्वागतम, पधारिए, आपका स्वागत है आदिे वाक्य लिखे मिलते थे, पर अब वह बात नहीं रही। आज इंसान इंसान के जितना करीब नहीं हैं, उससे अधिक तो जानवरों के करीब है। आखिर क्यों न हो इन जानवरों की स्वामिभक्ति सभी जानते हैं। ये जानवर तो खैर दूसरे अपरिचितों को ही अपना शिकार बनाते हैं, पर इंसान तो सबसे पहले अपने ही परिचितों पर हाथ साफ करता है। यही कारण है कि आजकल लोग घरों में कुत्ते पालने लगे हैं।
आजकल जिस तरह से अपराध बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए घर की महिलाओं और बच्चों के संरक्षण के लिए लोग कुत्तों को पालने लगे हैं। कोई देशी कुत्ता पालता है, तो कोई विदेशी। घर यदि छोटा है तो पामेरियन या कोकर स्पेनियल। घर बड़ा हो, तो अल्सेशियन, डॉबरमेन, गोल्डन रिट्रीवर, लाब्राडोर या फिर रोट वाइलर। ये सभी पालने वाले की आर्थिक स्थिति को भी दर्शाते हैं। किसी-किसी घर में तोता, लव बल्ड्र्स होते हैं, तो किसी घर में छोटा-सा मछलीघर ही होता है। अपने घर में इस तरह के तमाम शौक पालने वाले शायद यह नहीं जानते हैं कि पाशु-पक्षियों को पालने से क्या-क्या नुकसान भी हो सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि इन पशु-पक्षियों को पालने से इंसान को कितने तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। रिपोर्ट में तो इन पशु-पक्षियों से होने वाली मौतों की भी जानकारी दी गई है। डॉक्टरों का कहना है कि जो लोग अपने घरों में पशु-पक्षियों को पालते हैं, वे एक मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं। इस बीमारी को जूनोटिक कहते हैं। इन पशु-पक्षियों से इंसान को न जाने कितनी तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। इनमें से कितनी ही बीमारी तो जानलेवा हो सकती हैं। ऑंकड़े बताते हैं कि 2000 से 2005 के बीच दुनियाभर के 5 करोड़ लोग इन पालतू पशु-पक्षियों से होने वाली बीमारियों से ग्रस्त पाए गए। इनमें से 78 हजार लोग तो मौत के शिकार हुए। इनमें महिलाओं और बच्चों की संख्या अधिक है। यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि पालतू पशु-पक्षियों के कारण देश में कितनी मौतें हुई, यह जानने की कोई विधि अभी हमारे पास नहीं है। फिर भी आए दिनों यह खबर पढ़ने को मिलती ही रहती है कि अमुक शहर में पालतू कुत्ते ने अपने ही मालिक या मालकिन को काट लिया, जिससे उनकी मौत हो गई। कई बार बच्चे ही इनके शिकार होते हैं।
इस संबंध में यदि किसी पशु-पक्षियों के डॉक्टरों से पूछा जाए, तो वे काफी कुछ कहते हैं। उनका सारा हमला विदेशी पशू-पक्षियों पर है। उनका मानना है कि विदेशी पशु-पक्षियों को पालना खतरे से खाली नहीं है। इसकी वजह साफ है, विदेशी पशु-पक्षी विदेशी वातावरण, हवा-पानी, खुराक और ऋतुओं के आदि होते हैं- उन्हें भारतीय वातावरण में ढलने में काफी समय लगता है। दूसरी ओर उनकी सेहत को बनाए रखने के लिए हमारे देश में कई नियमों का पालन आवश्यक हो जाता है। जैसे लार्ज ब्रीड के नाम से जाने जाने वाले अल्सेशियन, लाब्राडोर जैसे कुत्तों को रोज सुबह-शाम दो-तीन किलोमीटर चलने की कसरत जरूरी है। पामेरियन जैसे छोटे से कुत्ते को भी रोज गेंद से व्यायाम कराना आवश्यक होता है।
इसके बाद भी यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि इससे पालतू पशु-पक्षियों को किसी प्रकार की बीमारी नहीं होगी। 'द जर्नल ऑफ इंटर्नल मेडिसीन' के ताजा अंक में यह कहा गया है कि जूनोटिक बीमारी के मामले दिनों-दिन बढ़ते ही जा रहे हैं। 2000 और 2004 के बीच केवल अमेरिका में ही दो लाख 10 हजार मामले साल्मोनेला बीमारी के आए। इससे केवल 90 लोगों की मौत हुई। यह बीमारी सल्मोन नामक मछली से होती है। यदि आपके घर में पालतू कुत्ते या बिल्ली हैं, तो उनसे आपको चमड़ी या श्वास की बीमारी हो सकती है। खरगोश पालने से टुलारेमिया नाम की बीमारी होती है। इसी तरह सफेद चूहों और कबूतरों से कई लोगों को दमे की शिकायत होती है।
घर में पशु-पक्षी पालने में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं है, भारत जैसे कृषि प्रधान देश मेें गाय, भैंस, बैल, बकरी, घोड़े, गधे पालने का प्रचलन है- राजस्थान, गुजरात में तो ऊँटगाड़ी चलती है, इसके लिए तो ऊँट का होना आवश्यक है। पर इन्हें पालने के बाद इनसे सावधान भी रहना आवश्यक है। भारतीय किसान यह अच्छी तरह से जानते-समझते हैं कि जहाँ पशुओं को रखा जाता है, वहाँ गंदगी तो होती ही है। उनके मल-मूत्र से कई तरह की बीमारियाँ फैलती हैं। इसलिए जो समझदार किसान होते हैं, वे अपने पशुओं के मल-मूत्र को नष्ट करना भी अच्छी तरह से जानते हैं। फिर भी यदि इस दिशा में जन-जागृति अभियान चलाया जाए, तो देश में फैलने वाले कई रोगों से बचा जा सकता है।
एक युवक के शरीर पर सैकड़ों तिल थे। वहाँ कभी-कभी खुजली भी होती थी। कई लोग उसे भाग्यशाली भी कहने से नहीं चूकते थे। एक बार उसने डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर को आश्चर्य हुआ, इतने सारे तिल तो हो नहीं सकते। उसने एक तिल पर केमिकल डाला और चिपटे की सहायता से उस तिल को उखाड़कर माइक्रोस्कोप से देखा, तो पता चला कि वह तो अति सूक्ष्म जूँ जैसा जीव था। तब उसने बताया कि जहाँ वह सोता है, वहीं पर गली का एक आवारा कुत्ता भी सोता है। उसके बाद तो उस युवक ने डॉक्टर के माध्यम से शरीर के सैकड़ों कथित 'तिल' दूर करवाए। इसी तरह की एक और घटना है- एक मृत व्यक्ति के शरीर में से कुछ अंगों को निकाल कर उसे तीन मरीजों को दान किया गया। स्थानीय अखबारों में मृत व्यक्ति और उसके स्वजनों के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण को एक खबर का रूप दिया गया, किंतु कुछ दिनों बाद ही जिन तीन मरीजों को उस मृत व्यक्ति के अंग प्रत्यारोपित किए गए थे, उनकी मृत्यु हो गई। पोस्टमार्टम के परिणामों से यह बात सामने आई कि जिस व्यक्ति के मृत शरीर में से अंगदान किए थे, वह व्यक्ति पालतू पशु के संक्रमण का शिकार बना था। उसने एक हेम्स्टर नामक जीव को जो कि खरगोश और चूहे की प्रजाति का एक जीव था, उसे पाला था। इस हेम्स्टर ने अपने मालिक को 'लिम्फोसाइटिक कोरियो मेनिनजाइटिस' नाम के वाइरस का संक्रमण दिया था। ये संक्रमण वाले अंग जिन तीन व्यक्तियों को दान में मिले वे तीनों ही शीघ्र मृत्यु को प्राप्त हुए।
इस तरह से कहा जा सकता है कि पशु-पक्षियों को पाला तो अवश्य जाए, पर इस बात का पूरा खयाल रखा जाए कि उससे किस-किस तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। उसके संपर्क में आने वाले लोगों को किस प्रकार की सावधानियाँ रखनी चाहिए। लोग तो कुत्ते को ऐसे चूमते हैं, मानों वह उनका ही कोई सगा हो। जिस तरह से एक व्यक्ति अपने रिश्तेदारों से एक दूरी बनाए रखता है, ठीक उसी तरह इन जानवरों से भी एक निश्चित दूरी बनाए रखना आवश्यक है। ये मूक प्राणी दया के पात्र हैं, पर इनसे हमें जानलेवा बीमारी मिले, यह तो कोई नहीं चाहेगा। इसलिए अब 'कुत्तों से सावधान' के बजाए यदि 'कुत्तों से होने वाली बीमारियों से सावधान' होने की अधिक आवश्यकता है।
डॉ. महेश परिमल
साथियॊ
मेरे ब्लाग में आने के बाद भाई अरविंद मिश्रा ने कुछ टिप्पणी कर मेरा ग्यानवर्धन किया मैं उनका आभारी हूँ उन्हॊंने अपने विचार कुछ इस तरह से रखे
डॉक्टरों का कहना है कि जो लोग अपने घरों में पशु-पक्षियों को पालते हैं, वे एक मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं। इस बीमारी को जूनोटिक कहते हैं।"
ग़लत -जूनोतिक मानसिक बीमारी नही है बल्कि पालतू पशु पक्षियों से मनुष्यों मी होने वाले रोग को जूनातिक कहते हैं .
"पामेरियन"-ग़लत -सही शब्द है पाम्रेनियन
"दो लाख 10 हजार मामले साल्मोनेला बीमारी के आए। इससे केवल 90 लोगों की मौत हुई। यह बीमारी सल्मोन नामक मछली से होती है-
यह भी ग़लत -सल्मोनेल्ला कोई बीमारी नही है बल्कि एक विषाणु जनित आंत्र-व्याधि है जो केवल सामन [शुद्ध उच्चारण ] मछली से ही नही अनेक मछलियों के सेवन से हो सकती है जो इस से संदूषित /संक्रमित होंगी .
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दृष्टिकोण
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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मेरी जानकारी के अनुसार साल्मोनेला एक जीवाणु है जो मछली -मांस के जरिये मनुष्य मे कभी कभार आंत्र शोथ का कारण बनता है ,जानलेवा भी हो सकता है -यह मछली नही है .
जवाब देंहटाएंसाफ साफ लिखा है की सेल्मोन एक मछली होती है, जो सल्मोनेला नामक वाइरस की मूल वाहक है. टिपण्णी करने से पहले कम से कम गूगल पर salmon और salmonella सर्च कर लेना था.
जवाब देंहटाएं"डॉक्टरों का कहना है कि जो लोग अपने घरों में पशु-पक्षियों को पालते हैं, वे एक मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं। इस बीमारी को जूनोटिक कहते हैं।"
जवाब देंहटाएंग़लत -जूनोतिक मानसिक बीमारी नही है बल्कि पालतू पशु पक्षियों से मनुष्यों मी होने वाले रोग को जूनातिक कहते हैं .
"पामेरियन"-ग़लत -सही शब्द है पाम्रेनियन
"दो लाख 10 हजार मामले साल्मोनेला बीमारी के आए। इससे केवल 90 लोगों की मौत हुई। यह बीमारी सल्मोन नामक मछली से होती है-
यह भी ग़लत -सल्मोनेल्ला कोई बीमारी नही है बल्कि एक विषाणु जनित आंत्र-व्याधि है जो केवल सामन [शुद्ध उच्चारण ] मछली से ही नही अनेक मछलियों के सेवन से हो सकती है जो इस से संदूषित /संक्रमित होंगी .
ऊपर के सारे तथ्य विनम्रता पूर्वक आपको इस आशय से समय निकाल कर प्रेषित कर रहा हूँ कि यदि चाहें तो तदनुसार अपने आलेख को संशोधित कर लें जो अन्यथा एक अच्छा लेख है .विज्ञान संचार एक जिम्मेदारी का क्षेत्र है -आप सहमत होंगे .
सादर ,