बुधवार, 21 मई 2008
डिप्रेशन की शिकार शिखर पर पहुँची हस्तियाँ
भारती परिमल
आज हर आदमी सफल होना चाहता है। हर किसी का संघर्शकेवल सफलता के लिए ही है। कोई नौकरी में, कोई व्यवसाय में तो कोई मीडिया में सफल होना चाहता है। कहा जाता है कि सफल होना आसान है, पर सफलता को बरकरार रखना बहुत ही मुश्किल है। आज वॉलीवुड में ऐसे न जाने कितने ही लोग हैं, जो पहले सफलता के उच्च शिखर पर थे, पर आज गुमनामी के अंधेरे में जीवन बिता रहे हैं। इनमें से कई तो ऐसे हैं, जो अब नशे के आदी हो चुके हैं। परवीन बॉबी जैसी अभिनेत्री तो अकेलेपन में ऐसे गुम हुई कि एक दिन उसकी लाशही उसके घर से मिली। आज राजेशखन्ना, मनोज कुमार, सुलक्षणा पंडित, प्राण के अलावा कई अभिनेता और अभिनेत्रियाँ हैं, जिनकी खबर कभी भी आ सकती है। ये सभी सफलता को पचा नहीं पाए। इसलिए गर्दिशके दिनों में जी रहे हैं।
हमेशा आर्कलाइट के सामने अपने अभिनय का प्रदर्शन करने वाले सेलिब्रिटी करोड़ो रूपए से खेलते हैं। अपने आसपास दर्शकों की भीड़ बनाए रखते हैं। उनके जीवनशैली की चकाचौंध से आम दर्शकों की ऑंखें विस्फारित हो जाना स्वाभाविक है, क्योंकि उनका जीवन आम लोगों से बिलकुल विपरीत होता है। इसीलिए हम हमेशा उनके प्रति आकर्शित रहते हैं। अखबारी दुनिया हो या रेडियो व टेलिविजन का संसार, हम हमेशा उनके जीवन से जुड़ी छोटी से छोटी बातें जानने को व्याकुल होते हैं। किंतु क्या आप जानते हैं लाखों-करोड़ों दिलों की धड़कन ये सेलिब्रिटी जिन्हें अपने प्रशंसकों के समूह से सुरक्षित रखने के लिए जहाँ सुरक्षागार्डो की आवश्यकता होती है, उन्हीं का जीवन हकीकत में एकदम सूनापन लिए हुए और हताशा से घिरा होता है ?
चकाचौंध भरी जिंदगी का पर्याय बने ये सेलिब्रिटी एक समय ऐसे दौर से गुजरते हैं कि ''दीया तले ऍंधेरा'' उक्ति को चरितार्थ करते नजर आते हैं। पैसा और प्रसिध्दि पाने के लिए हमेशा लालायित रहती ये सेलिब्रिटियाँ रात-दिन कड़ी मेहनत कर शीर्ष पर पहुँचती हैं और एक समय ऐसा आता है कि उनके हिस्से में केवल अकेलापन और दु:ख ही आता है। सफलता के पीछे का यह अकेलापन उन्हें निरंतर डिप्रेशन की ओर ले जाता है।
हॉलीवुड और बॉलीवुड के ये फिल्मी कलाकार लगातार डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं और अपने त्रासदीपूर्ण जीवन का बोझ ढोने को विवशहै। डिप्रेशन के कारण ये सनकी स्वभाव के बनते जा रहे हैं। अनियमित जीवनशैली, प्रेम में विफलता, जीवन में शुश्कता, प्रियजनों या माता-पिता का नैतिक सपोर्ट न मिलना आदि अनेक ऐसे कारण हैं, जिसकी वजह से ये शराब और नशीले पदार्थो के आदी हो जाते हैं। जब नशे के इस जाल से बाहर निकलना उनके लिए संभव नहीं होता तो अंत में आत्महत्या कर जीवनलीला समाप्त कर देना ही इनकी विवशता है।
आखिर क्या कारण है कि अपने जमाने की चर्चित हस्तियाँ अपना समय गुजर जाने के बाद डिप्रेशन में आ जाती है ? उनके पास पैसा, प्रसिध्दि, सुख, समृध्दि सभी कुछ होता है, फिर भी वे निराशा से घिरे होते हैं क्योंकि पैसे से प्रेम और खुशी नहीं खरीदी जा सकती। आमतौर पर ये सेलिब्रिटी अपने शहर और परिवार से अलग होकर ही सफलता के सोपान चढ़ते हैं। इसमें थोड़ा-सी भी रुकावट आती है कि ये हताशहो जाते हैं। हिंदी फिल्म जगत के महान अभिनेता गुरुदत्त की मृत्यु अधिक मात्रा में ड्रग्स के सेवन से हुई थी। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे शराब के आदी हो चुके थे। फिल्म निर्माण के क्शेत्र की असफलता ने उन्हें भीतर से आहत कर दिया था। वे ज्यादा से ज्यादा समय एकांत में नशे की हालत में ही गुजारा करते थे। परवीन बॉबी का एकाकीपन उन पर इस कदर हावी हो चुका था कि वह किसी से मिलना भी पसंद नहीं करती थी। गुमनामी के ऍंधेरे में रहने के बाद एकाएक उनकी मौत की खबर ने सभी को चोंका दिया था। जाने-माने खलनायक प्राण की बात करें, तो हम पाते हैं कि वो एक ऐसे अभिनेता हैं जिनके नाम मात्र से ही दिलों में दहशत समा जाती है। कोई भी माता-पिता अपने बेटे का नाम प्राण्ा रखना पसंद नहीं करते। लोगों के दिलों में इस डर के साथ अपना स्थान बनाने वाले प्राण स्वयं अगोरोफोबिया का शिकार हो गए। किसी से मिलना तो दूर उन्हें ऊँचाई से भी डर लगने लगा। डर उन पर इस कदर हावी हो गया कि उनकी स्थिति देखकर यकींन ही नहीं होता कि वे कभी एक सफल खलनायक भी हुआ करते थे।
बॉलीवुड की बात करें तो 60 के दशक की ''सेक्स बम'' के नाम से जानी जाने वाली मर्लिन मुनरो ने भी नींद की गोलियों का अधिक सेवन कर मौत को गले लगाया था। जेनिस जोपलीन और जिमी हेन्ड्रीक्स जैसे रॉक्र्स भी हेरोइन और शराब के नशे के कारण मौत की आगोशमें चले गए थे।
मनोचिकित्सक के अनुसार लोगों की नजरों में बने रहने का मानसिक दबाव सेलिब्रिटियों को नशीले द्रव्यों और शराब का सेवन करने को बाध्य करता है। जानीमानी हस्तियों पर लोगों की नजरें हमेशा टिकी रहती है, इस मानसिकता के साथ जीना और हमेशा युवा बने रहने की लालसा इन्हें अधमरा बना देती है। मानसिक रूप से बीमार होकर ये नशीले पदार्थो का सहारा लेते हैं। इन पदार्थो के जाल से बाहर निकलना आसान नहीं होताहै। संजय दत्त, फरदीन खान जैसे फिल्मी कलाकार भी इस जाल में फँस चुके हैं। रिहेबिलीटेशन थेरेपी से नशे से मुक्ति पाना संभव है, किंतु इसके लिए जरूरत होती है-दृढ़ संकल्प की। इसके अलावा परिवार वालों का साथ, दोस्तों का अपनापन ये सभी नैतिक रूप से मददगार साबित होते हैं।
डिलीवरी के बाद कई अभिनेत्रियाँ डिप्रेशन की शिकार हो जाती है। ब्रिटनी स्पीयर्स और ब्रुक शील्ड इस दौर से गुजर चुकी हैं। ब्रिटनी ने अपनी पुस्तक ''डाउन कम द रेन'' में इस बात की पुश्टि की है कि पुत्री रोवन के जन्म के बाद वे डिप्रेशन में आ गई थी। वे दिन उनके सबसे बुरे दिन थे। जब वे अपने बीते दिनों को याद करते हुए उन्हें फिर से पाने के लिए बेताब हो गई थीं। डॉक्टर्स के अनुसार 60 से 90 प्रतिशत सेलिब्रिटी अपने पहले बच्चे के जन्म के बाद कुछ सप्ताह तक एंजाइटी सिंड्रोम से पीडित होती है। यही कारण है कि ये हताशा के सागर में डूबती -उतराती हैं।
इस प्रकार का डिप्रेशन दूर करने में परिवार एवं दोस्तों की विशेशभूमिका होती है। अभिनेत्री से गायिका बनी सुचिता कृश्णमूर्ति बच्ची के जन्म के बाद पूरी तरह हताशा में डूब गई थी। उपचार के बहाने उनकी माँ और बहन उन्हें उसी पार्क में ले गई, जहाँ वे गर्भावस्था के दौरान सैर के लिए जाती थी। वहाँ मिलने वाले सभी उनके परिचित थे। उन्होंने उसे सांत्वना दी और समझाया। इस दौरान वे लगभग चीखते हुए रो पड़ी थी। बाद में उन्होंने इस बात को महसूस किया कि ईश्वर सभी समस्याओं को दूर करता है और यह मातृत्व उसी की तरफ से मिला उपहार है। इसे दिल से स्वीकार करना चाहिए।
कई अभिनेत्रियाँ फिगर मेन्टेन की फिक्र में ही डिप्रेशन का शिकार हो जाती है। शारीरिक सुंदरता को बनाए रखने के लिए डायटिंग ही एकमात्र शस्त्र होता है। लगातार परहेज के साथ जीने वाली ये सेलिब्रिटी कुछ न खा पाने की बंदिशके साथ डिप्रेशन में चली जाती हैं। हाई प्रोटीन आहार के कारण विटामिन का प्रमाण घटता है और चेहरे पर झुर्रियाँ दिखने लगती हैं। जाहिर है आइना झूठ नहीं बोलता, परिणाम स्वरूप हताशा आ घेरती है। ऐसे मामलों में पतला होना या बने रहना, हमेशा जवान बने रहना ही डिप्रेशन का मुख्य कारण होता है। भूख को मारने के कारण ये एनोरेक्सिया और बूलीमिया से पीडित हो जाती हैं। ऐसे मरीज को संभालना बहुत मुश्किल होता है। ये मरीर्ज डॉक्टर के पास जाने को तैयार नहीं होते। दुबली-पतली मॉडल या अभिनेत्रियाँ मानसिक रूप से भी कमजोर होती हैं।
कुछ फिल्मी हस्तियाँ अपने आपसे ही प्रेम करती है। 70 के दशक के प्रसिध्द अभिनेता राजेशखन्ना सेट पर बच्चों जैसी हरकतें और जिद कर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्शित करने का प्रयास करें, तो इसे सुनकर आश्चर्य ही होगा। डॉक्टर इसे 'अहंप्रेम' मानते हैं। वे अपनी एक निश्चित इमेज को बनाए रखने के लिए ऐसी हरकतें करते हैं।
ये सेलिब्रिटियाँ सफलता का नशा ऑंखों पर चढ़ाए हुए जीने की लालसा में इस तरह अपना वर्तमान दांव पर लगा लेती हैं कि असफलता उन्हें बुरी तरह से तोड़ देती है। जबकि उन्हें मानसिक रूप से इस बात को समझने की आवश्यकता है कि सफलता और असफलता दोनों ही जीवन का एक अंग है। यदि एक को स्वीकार किया है, तो दूसरे को भी स्वीकार करना ही होगा। ऊँचाई पर रहने वाले ये विशिश्ट नामधारी भी है तो एक साधारण मानव ही। उनमें भी वे सभी कमजोरियाँ है, जो आम लोगों में होती हैं। वे अपने काम के कारण जाने जाते हैं, तो उस काम के प्रति ईमानदार रहते हुए उन्हें अपना आत्मविश्वास खोना नहीं चाहिए और जीवन के हर रूप को स्वीकार करना चाहिए।
भारती परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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