शनिवार, 24 मई 2008
आकाश से मौत बरस सकती है मोबाइलधारियों पर
डॉ. महेश परिमल
पिछले साल ही ब्रिटेन में एक किशोरी मोबाइल से बात कर रही थी, उस समय खूब तेज बारिशहो रही थी, बादल गरज रहे थे, बिजली चमक रही थी और हवा भी काफी तेज चल रही थी। उक्त किशोरी मोबाइल के आकाशसे गिरने वाली बिजली के संबंध में कुछ भी नहीं जानती थी। अचानक ही आकाशमें बिजली कौंधी और वह बेहोशहो गई। बाद में जाँच में पता चला कि किशोरी के कान और मस्तिश्क को काफी क्षति पहुँची है। ''ब्रिटिशमेडिकल जर्नल'' में प्रकाशित यह घटना मोबाइल के आकाशीय बिजली के रिश्ते का उजागर करती है। यदि बारिशहो रही हो साथ ही बिजली भी कौंध रही हो, तो उस समय मोबाइल से बात करना अपनी जान को जोखिम में डालना है। यहाँ तक कि स्वीच ऑफ किया हुआ मोबाइल भी बारिशके समय अपने पास रखना खतरनाक है। भारत में मोबाइल बेचने वाली कंपनियाँ अपने उपभोक्ताओं को कभी नहीं बताती कि बारिशहोती हो और बिजली चमकती हो, तब मोबाइल का उपयोग न करें, किंतु ऑस्टे्रलिया सरकार ने मोबाइल उपभोक्ताओं के लिए एक मार्गदर्शिका बनाई है, जिसमें यह स्पश्ट किया गया है कि तेज हवा चल रही हो, बादल गरज रहे हों और बिजली की चमक दिखाई दे रही हो, तो मोबाइल अपने पास न रखें, यदि आप मोबाइल रखते हैं, तो आपकी जान को खतरा है।
इन दिनों पूरे देश में मानसून सक्रिय हो गया है, खूब तेज बारिशहो रही है। इसके साथ ही मोबाइलधारकोें की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, ऐसे में इन्हें कौन समझाए कि बारिशके समय मोबाइल अपने पास रखना कितना खतरनाक है। इन दिनों महानगरों ही नहीं, बल्कि शहरों और कस्बों में एफएम का चलन है। लोग अपने मोबाइल से एफएम सुनते हुए वाहन चालन करने लगे हैं। इस तरह से इस मौसम में वे किस तरह से अपनी जान को जोखिम में डाल रहे हैं, यह उन्हें नहीं पता और न ही मोबाइल बेचने वाली कंपनियों को। बारिशके समय मोबाइल से बात करने वालों का अचानक बेहोशहोना, बहरापन आना या फिर मृत्यु को प्राप्त होना, इस तरह की घटनाएँ सभी देशों में हो रही हैं। हमारे देश में भी हो रही होंगी, पर इसकी जानकारी अभी लोगों को नहीं है, विदेशों में इस तरह की घटनाएँ सामने आने लगी हैं, इसके पीछे मोबाइल भी एक कारण है, इसे अभी उन्होंने समझा है। हमने नहीं समझा है, हमें इसे समझने में अभी वक्त लगेगा। आइए जानें कि मोबाइल किस तरह आकाशीय बिजली को अपनी ओर आकर्शित करता है।
मोबाइल में धातु के अलग-अलग भाग होते हैं। ये धातु बिजली को अपनी ओर आकर्शित करते हैं। मोबाइल की संवेदनशीलता के ही कारण उसे पेट्रोल पम्प में उपयोग करने नहीं दिया जाता। उसमें व्याप्त तमाम धातु बिजली को अपनी ओर आकर्शित करने में सक्षम होते हैं। शहरों में बिजली गिरने की घटनाएँ इसलिए कम होती हैं, क्योंकि यहाँ आकाशीय बिजली को तुरंत जमीन में दाखिल कर देने की व्यवस्था होती है। शहरों में बिजली के सुचालक लगे होते हैं। लोगों ने अपने घरों में बिजली का मीटर लगाते समय देखा होगा कि मीटर से एक तार किस तरह से जमीन से जोड़ दिया जाता है, इस गङ्ढे में काफी नमक भी डाला जाता है। इसका आशय यही है कि आकाशीय बिजली सीधे उस माध्यम से जमीन पर चली जाती है। इसे लाइटनिंग अरेस्टर कहते हैं। आकाशमें विचरण करने वाले परिंदों पर जब भी बिजली गिरती है, तो वह उसी क्षण मृत्यु को प्राप्त होता है। अब यह प्रश्न स्वाभाविक है कि यदि उड़ते विमान में बिजली गिरे, तब क्या होगा। जिन्हें विमान की तकनीक के बारे में थोड़ी सी भी जानकारी है, वे जानते हैं कि सभी विमानों के ऊपर अलग-अलग भागों में ऐसे सेंसर लगे होते हैं, जो बिजली को एक सिरे से दूसरे सिरे तक धकेलकर बाहर की ओर भेज देते हैं। यूँ तो बारिशमें लोहे की डंडी वाली छतरी लेकर बाहर निकलना भी खतरनाक है। इसमें भी बिजली का वही नियम लागू होता है, जिसमें वह अपने सुचालक को खोजती है और उसके माध्यम से वह जमीन में चली जाती है। यह माध्यम यदि किसी इंसान के हाथ में है, तो उसे भी बुरी तरह प्रभावित करने से नहीं चूकती। बिलकुल यही गणित मोबाइल के साथ भी है। बिजली के स्वभाव से हम सभी परिचित हैं, पर वह मोबाइल के माध्यम से हमें प्रभावित कर सकती है, यह हमें अभी नहीं मालूम।
एक जानकारी के अनुसार विश्व में आकाशमें हर सेकंड 1800 से 2000 बादलों की गर्जना होती है। आकाशसे बिजली पृथ्वी पर 22,400 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गिरती है। इस संबंध में वैज्ञानिकों का मानना है कि आकाशमें रोज 44,000 बार बिजली चमकती है, किंतु सभी बिजलियों की चमक धरती पर मनुश्यों को दिखाई नहीं देती। इसका कारण बिजली और हमारे बीच बादलों की मोटी परत का होना है। ऐसा माना जाता है कि बादलों में जो बिजली होती है, उसका दबाव करोड़ों वोल्ट तक हो सकता है। जब पृथ्वी और बादलों के बीच विद्युत क्षेत्र की तीव्रता 36000 हजार वोल्ट प्रति सेंटीमीटर पहुँच जाती है, तभी वायु में अणु आयनित हो जाते हैं और बादलों की उग्रता पृथ्वी में समा जाती है। हमारे देश में हर वर्शबिजली गिरने से 900 से 1000 लोगों की मौत होती है। दूसरी ओर अमेरिका में मात्र 150 लोग ही मौत का शिकार होते हैं। इसका कारण यही है कि वहाँ बिजली के सुचालक अधिक लगे हैं। यह तय है कि आकाशीय बिजली को जमीन में जाने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। फिर यह माध्यम कोई पेड़ भी हो सकता है और इंसान भी। गाँवों में जिस पेड़ पर बिजली गिरती है, वह एकदम ही काला हो जाता है। फिर उसमें संवेदना नाम की कोई चीज नहीं रहती। मानो उसे जला दिया गया हो। आकाशीय बिजली तत्क्शण ही किसी को भी जला देने में सक्षम होती है।
हमारे देश में जब सिगरेट के पेकेट और गुटखे के पाऊच पर यह सूचना अंकित होती है कि यह यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, तो फिर मोबाइल कंपनियों को भी अपने मोबाइल सेट पर आकाशीय बिजली से दूर रहने की सलाह देनी चाहिए। तभी मोबाइलधारक यह समझेंगे कि आकाशीय बिजली उनके लिए किस तरह उनकी जान भी ले सकती है।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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