शनिवार, 31 मई 2008
मौत के आगोश में लिपटा एक कश जिंदगी का
; डॉ. महेश परिमल
देवानंद की एक फिल्म बरसों पहले आई थी, जिसमें वे गाते हुए कहते हैं '' हर फिक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया। '' वह समय ऐसा था, जब हर फिक्र को धुएँ में उड़ाया जा सकता था, पर अब ऐसी स्थिति नहीं है, अब तो लोग इससे भी आगे बढ़कर न जाने किस-किस तरह के नशे का सेवन करने लगे हैं। हमारे समाज में पुरुषयदि धूम्रपान करे, तो उसे आजकल बुरा नहीं माना जाता, किंतु यदि महिलाओं के होठों पर सुलगती सिगरेट देखें, तो एक बार लगता है कि ये क्या हो रहा है। पर सच यही है कि पूरे विश्व में धूम्रपान से हर साल करीब 50 लाख मौतें होती हैं, उसमें से 8 से 9 लाख लोग भारतीय होते हैं। इसके बाद भी हमारे देश में धूम्रपान करने वाली महिलाओं की संख्या में लगातर वृद्धि हो रही है। वे भी अब हर फिक्र को धुएँ में उड़ा रही हैं।
हमारे देश के महानगरों में चलने वाले कॉल सेंटर के बाहर रात का नजारा देखा है कभी आपने? न देखा हो, तो एक बार जरूर कोशिश करें। वहाँ आपको देखने को मिलेगा, मुँह से धुएँ के छलले निकालती युवतियाँ। ऐसा सभी कॉल सेंटर्स में दिखाई देगा। जिन्होंने यह दृश्य पहले कभी नहीं देखा है, उनके लिए यह अचरच भरा हो सकता है, पर आजकल यह सामान्य बनता जा रहा है कि युवतियाँ लड़खड़ाते कदमों से अस्त-व्यस्त हालत में कुछ न कुछ बड़बड़ाते हुए इधर-उधर भटकती रहती हैं। इधर कुछ वर्षों से यह देखने में आ रहा है कि केवल कॉल सेंटर्स में ही नहीं, बल्कि कार्यालयों में ऊँचा पद सँभालने वाली महिलाओं, क्लब-पार्टी में युवतियों के मुँह से निकलने वाले धुएँ के छलले अब आम होने लगे हैं। यह उनके लिए स्टाइल स्टेटमेंट बन गया है। इसके पीछे होने को तो बहुत से कारण हो सकते हैं, पर सबसे उभरकर आने वाला कारण है काम का दबाव। आपाधापी और प्रतिस्पर्धा के इस युग में आजकल महिलाओं पर भी काम का दबाव बढ़ गया है। घर और ऑफिस दोनों जिम्मेदारी निभाते हुए वह इतनी थक जाती है कि उसे शरीर को ऊर्जावान बनाने के लिए वह न चाहते हुए भी धूम्रपान का सहारा लेने लगी है। महिलाओं द्वारा धूम्रपान कोई आज की बात नहीं है। भारत के सुदूर ग्रामों में आज भी मजदूरी करने वाली महिलाएँ बीड़ी पीते हुए देखी जा सकती हैं। कई स्थानों पर पुरुषों की तरह शारीरिक परिश्रम करते हुए काम के बीच कुछ पल का समय निकालकर बीड़ी का कश ले लेती हैं। कुछ विशेषसम्प्रदाय की महिलाओं में बीड़ी या तम्बाखू का सेवन आम है। इसीलिए तम्बाखू का अधिक उपयोग करने वालों भारत का नम्बर तीसरा है। हर वर्षविश्व को करीब 50 लाख मौतें देने वाला यह पदार्थ न जाने और कितनी जानें लेगा। हालांकि भारत में तम्बाखू का सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत अभी कम है, फिर भी इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है, यह विचारणीय है।
महानगर में रहने वाली युवतियाँ तो काम के दबाव में ऐसा कर रही हैं, यह समझ में आता है। इसके अलावा ऐसी युवतियों की संख्या भी बहुत अधिक है, जिन्होंने इसे केवल शौक के तौर पर अपनाया। पहले तो स्कूल-कॉलेज में मित्रों के बीच साथ देने के लिए एक सुट्टा लगा लिया, फिर धीरे-धीरे यह उनकी आदत में शामिल हो गया। उधर पार्टियों में शामिल होने वाली महिलाएँ एक-दूसरे की देखा-देखी में या फिर अपनी मित्र का साथ देने के लिए या फिर गँवार होने के आरोप से बचने के लिए केवल ''ट्राय'' के लिए अपने होठों के बीच सिगरेट रखती हैं, धीरे-धीरे यह नशा छाने लगता है। अपनी पसंदीदा अभिनेत्रियों को टीवी या फिल्म में जब युवतियाँ देखती हैं कि वे भी तनाव के क्षणों में किस तरह से सिगरेट के कश लगाती हैं, तब हम भी क्यों न तनाव में ऐसा करें? वे शायद यह समझ नहीं पाती कि उनकी पसंदीदा अभिनेत्री को यह सब करने के लिए लाखों रुपए मिलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि 70 के दशक में जो महिलाएँ पार्टी में धूम्रपान नहीं करती थीं, उन्हें ''आऊट डेटेड '' माना जाता था। आज तो हालात और भी अधिक बुरे हैं।
इसी तरह धूम्रपान का शिकार बनी वनिता का कहना था-जब मैं कॉलेज में थी, तब मित्रों के कहने से मैंने पहली बार सिगरेट को हाथ लगाया, फिर इस डर से कि कहीं मैं इन मित्रों को न खो दूँ या यह सब मुझे अपने से दूर न कर दें, इसलिए मैंने इस व्यसन को जारी रखा। धीरे-धीरे यह मेरी आदत में शामिल हो गया। अब तक जब भी मौका मिलता, मैं सिगरेट सुलगाती और उसके कश लेने लगती। एक बार रात में मेरी खाँसी बढ़ गई, माता-पिता घबरा गए, वे मुझे डॉक्टर के पास ले गए, मैं समझ गई कि अब मेरा झूठ यहाँ नहीं चलेगा। तब मैंने डॉक्टर को एकांत में हकीकत बता दी और वादा किया कि मैं इस व्यसन को छोड़ दूँगी, पर मेरे माता-पिता को इस बारे में कुछ न बताया जाए। डॉक्टर मेरी बात सुनकर घबरा गए, पर उन्होंने स्थिति को सँभाला और मुझे इस व्यसन से मुक्त करने का फैसला किया। मुझे निकोटीन दिया जाता था, खास प्रकार के माउथ वॉश से कुल्ला करने का कहा जाता, मेरे लिए वे दिन बहुत ही यातनापूर्ण थे, इस व्यसन से मुक्ति के लिए मुझे मानसिक रूप से भी तैयार होना पड़ा। छह महीनों के इलाज से यह लाभ हुआ कि धूम्रपान से मेरे फेफड़ों को हुए नुकसान की भरपाई हो गई। उसके बाद तो मैंने धूम्रपान से तौबा ही कर ली। वनिता जैसी किस्मत सबकी नहीं होती, इसमें वनिता की इच्छा शक्ति ने कमाल किया। वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन (WHO) ने एक सर्वेक्षण में बताया कि धूम्रपान या तम्बाखू का सेवन छोड़ने का संकल्प कई लोग करते हैं, पर 71 प्रतिशत में से मात्र 3 प्रतिशत लोग ही इसमें सफल हो पाते हैं। बाकी लोग कुछ समय बाद फिर वही नशा करने लगते हैं। उनकी देखा-देखी में उनकी संतानों में भी यह प्रवृति देखने को मिलती है। जिन परिवारों में महिलाएँ धूम्रपान करती हैं, उन परिवारों में बच्चों को ऐसा कुछ अनोखा नहीं लगता। मुम्बई में हुए एक सर्वेक्षण्ा में यह पाया गया कि 33.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाएँ, जो किसी न किसी प्रकार के तम्बाखू का सेवन करती हैं, ऐसी महिलाओं का गर्भपात, अधूरे महीने ही प्रसूति, अविकसित बच्चे को जन्म देना आदि घटनाएँ होती हैं। पति का साथ देने के लिए धूम्रपान, मद्यपान या फिर तम्बाखू का सेवन गर्भावस्था के दौरान भी करने वाली एक महिला ने बताया कि इस दौरान में काफी तकलीफों से गुजरना पड़ा। बच्चे के जन्म के बाद उसकी अच्छी परवरिश के लिए मैंने तम्बाखू का सेवन छोड़ दिया, पर इसे लम्ब समय तक अपने से दूर नहीं कर पाई, तक कई लोगों ने समझाया कि यह सेवन तुम्हारे बच्चे के लिए खतरनाक है, मैं इसे समझती, तब तक काफी देर हो चुकी थी, मेरा बच्चा बहुत ही छोटी उम्र में ही धूम्रपान की लत लग गई है।
तम्बाखू से होने वाले नुकसान से शिक्षित वर्ग बहुत अच्छी तरह से वाकिफ होता है, पर विडम्बना यह है कि महानगर की महिलाओं में धूम्रपान का शौक बुरी तरह से हावी हो रहा है। एक शोध के अनुसार एक सिगरेट में ''फिनोल'', सीसा, टार और केडियम जैसे 4800 खतरनाक केमिकल होते हैं, दूसरी ओर उसके धुएँ में 4000 केमिकल और 500 जहरीली गैसें होती हैं। यह जानते हुए भी इंसान फिर इसी लत का शिकार होता रहता है। आश्चर्य की बात यह है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को तम्बाखू का व्यसन छोड़ने में अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। हमारे देश में 49 ये 59 वर्षतक महिलाओं में यह व्यसन सामान्य है, किंतु उसकी शुरुआत बाल्यकाल में ही हो जाती है। विद्यार्थियों में यह आदत दस वर्षकी उम्र या उसके पहले ही हो जाती है। भारत में तम्बाखू का सेवन उत्तर-पूर्व में होता है। परिवार में यदि बड़े लोग खुलेआम धूम्रपान करते हैं, तो उस परिवार के बच्चे भी इसे अपनाने में देर नहीं करते। बचपन की यह आदत युवावस्था में काम के दबाब को देखते हुए बढ़ जाती है। '' टोबेको कंट्रोल फाउंडेशन ऑफ इंडिया'' के प्रेसीडेंट डॉ. सजीला मैनी के अनुसार यदि भारतीय युवतियाँ 15 से 22 वर्षके बीच तम्बाखू का सेवन न करे, तो आमतौर पर इस व्यसन के शिकार की संभावना बहुत ही कम हो जाती है।
इसके बाद भी ''पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए'' यह उक्ति उन लोगों के लिए सही बैठती है, जो रोज ही इस लत को छोड़ने का संकल्प लेते हैं और वह चीज सामने आते ही संकल्प भूल जाते हैं। इसलिए यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि उसने धूम्रपान छोड़ दिया। इसके लिए तो जरूरी यह है कि क्या वास्तव में धूम्रपान ने उसे छोड दिया है?
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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what about man ? it seems you have only affection for woman and no affection for poor man . your this post and another one before this only tells woman not to smoke . dear dr parimal why are you so partial with the health issues of man . write for them also . let them also lead a healthy life . its important that the society learns to take care of man , poor soul he is getting neglegted time and again
जवाब देंहटाएंone day he may vanish from this earth out of suffocation before that write few post for betterment of hsi health
३१ मई के दिन आपकी यह पोस्ट बहुत ही सामयिक बन पड़ी है.
जवाब देंहटाएंसमस्या का गहरे से विवेचन किया आपने.
शायद मेरा कुछ हो सके?
महेश जी
जवाब देंहटाएंआप बुद्धिजीवी लोग भी यदि इसतरह एक पक्ष की बात करेंगें तो हम लोग एक दूसरे की निन्दा ही करते रह जाएँगें।
जो चीज़ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है उसमें भी पुरूष और महिलाओं का वर्गीकरण क्यों कर रहे हैं ? आप क्या चाहते हैं कि महिलाओं का मनोबल गिरता रहे? आप यहाँ भी दादागिरी दिखा रहे हैं ? आप जैसे लेखक से हम इस तरह के पक्षपात की उम्मीद नहीं रखते। लिखने से पहले यह अवश्य सोचें कि आप केवल पुरूषों को खुश करने के लिए तो नहीं लिख रहे।लेखक सार्वजनिक हित के लिए लिखे तो अच्छा होगा। सस्नेह
साथियो,
जवाब देंहटाएंअकसर मेरी पोस्ट पढ़कर लोग तैश में आ जाते हैं, उनकी शिकायत यही होती है कि मैं महिलाओं के खिलाफ ही लिखता हूँ। आज की पोस्ट में मैंने महिलाओं द्वारा किए जा रहे धूम्रपान पर लिखा है, लेकिन ध्यान से पढ़ा जाए, तो मैंने यह भी लिखा है कि उन्हें आखिर क्यों सिगरेट, बीड़ी या अन्य मादक द्रव्यों का सहारा लेना पड़ता है। आज की महिलाओं के पास दोहरी जिम्मेदारी है। मैं महिलाओं की दिल से इात करता हूँ, उनके प्रति मेरे भीतर गहरे तक सम्मान है। उन्हें गलत ठहराने की हिमाकत मैं नहीं कर सकता, पर आज की महिलाएँ जिस तरह से समाज के सामने एक नए रूप में आ रहीं हैं, उससे लगता है कि अब उसने पुरुषों से आगे बढ़ने का निर्णय ले ही लिया है। अब साथ-साथ चलने की बारी नहीं है। यह अच्छी बात है, विशेषकर पुरुष प्रधान इस देश में, जहाँ पुरुष केवल मक्कारी, लफ्फाजी, धूर्तता और लम्पटता में ही जी रहे हों, उस स्थिति में नारी को अपना विशेष स्थान बनाना ही होगा। पर अब तो वह कहीं-कहीं भटक भी रही है। वरना अपने कथित प्रेमी के 300 टुकड़े तो नहीं करती? पुरुषों जैसी कू्ररता यदि नारी में आ जाए, तो फिर हम सब उनमें कैसे देखेंगे, माँ, बहन, दीदी, भाभी माँ, चाची, बुआ, मामी, दादी, नानी आदि का स्वरूप?
मैं यह नहीं कहता कि नारी पुरुष की सहधर्मिणी होकर रहे, पर एक माँ, एक बहन के रूप में तो रह सकती है ना? अब देखिए ना, शोभा दीदी ने मुझे इस तरह से फटकारा, पर आखिर में उन्होंने सस्नेह लिखकर यह भी बता दिया कि वह भी एक नारी है, जो अपनी बात पूरी शिद्दत के साथ कह भी रहीं हैं और सामने वाले पर अपना स्नेह भी उँडेल रही है। मैं नारी के इसी रूप की कद्र करता हूँ। पुरुष तो अपनी मर्यादा नहीं समझते और न जाने क्या-क्या करते रहते है, इसका आशय यह तो कतई नहीं कि नारी भी लक्ष्मण रेखा पार कर दे। अंत में विश्व की समस्त नारियों का वंदन करते हुए उन्हें प्रणाम करता हूँ, मुझे गलत न समझा जाए, यही प्रार्थना
महेश
Dr.Mahesh Parimal ji,
जवाब देंहटाएंMeri samajh me nahi aata ki aap apne post me aurat jaait kio hi kyun nishana banate hain.Pehle yuvatiyon me fashion ka .........,phir depresioon ki shikar....,is post me bhi aapne aurat hastiyon ke baare me hi baat ki hai.Phir apka ye teesara post.dukh to is baat ka hai ki is tereh ke post hame jyadater hindi me padne ko milte hain jin karan hindi bhasha ko thodi badnaami bhi jhelani parati hai.aise mere dimaag me ke khyal aur ata hai.kahin ye aap apne blog ki publicity ke liye to nahi ker rehe hain?Itani jyada partiality nahi kijiye.aur agar aisa likhna hi hai to hamari hindi ko kam se kam bakhsh dijiye.
Dhanyawaad.
@ mahesh ji : aap likhte rahiye.. aur main nahi samajhta hun ki aapko koi safaai dene ki jaroorat hai.. aapne achchha likha hai..
जवाब देंहटाएंsahi kahoon to aise comment dekh kar bas chehre par ek muskaan aa jati hai, chahe vo kisi purush ka ho ya fir mahila ka.. :)
या शेख अपनी-अपनी देख. वैसे भी जनसंख्या बहुत बढ़ रही है, और उसके साथ आने वाले दबाव, प्रतिद्वंदिता, जिंदगी की जद्दोजहद के कारण लोग अन्दर से निराश हो चुके हैं. आधुनिक मनोविज्ञान की अवचेतन की अवधारणा के अनुसार अवचेतन में गहरी निराशा और मजबूरी की भावना इन्सान को नशे की और ले जाती है. समझाने का इसपर कोई असर नहीं होगा. और वैसे भी जो मरना चाहता है, और अपने बच्चों के स्वास्थ्य का ख्याल उसे नहीं है, उसे आप क्यों रोक रहे हैं? आख़िर हमें(किसी भी व्यसन से दूर रहने वालों को) भी हक है एक साफ-सुथरी दुनिया में रहने का जहाँ हर किसी को पूरी पर्सनल स्पेस मिले. और फ़िर लोग ख़ुद ही मौत के मुंह की ओर बढ़ रहे हैं, रोकने पर विरोध भी कर रहे हैं, फ़िर आप क्यों समझाने में लगे हैं? आप-हम जैसे नशे और विध्वंसक गतिविधियों से दूर रहने वालों को तो केवल उन्ही बातों का विरोध करना चाहिए जो कल हमारा अस्तित्व खतरे में डाल दें. नशे-धूम्रपान का नुकसान तो सिर्फ़ व्यक्ति और उसके परिवार को ही होता है. जनसंख्या का एक हिस्सा ख़ुद को मिटा लेने और हमारे लिए जगह बनाने तैयार है तो क्यों न उसकी यह इच्छा पूर्ण हो जाने दें?
जवाब देंहटाएंकरने दीजिये लोग जो करें, जब तक हमारा नुकसान नहीं, इससे हमारे संसाधनों की ही बचत होगी. तम्बाकू उद्योग की 'तम्बाकू पर प्रतिबन्ध' के विरोध मे दलील है की तम्बाकू का सेवन करने वाले ज्यादातर लोग पचपन से सत्तर के बीच मर जाते हैं, जिससे सरकारों पर पेंशन, इलाज, सामजिक सुरक्षा का बोझ कम हो जाता है, और इसका सीधा लाभ धुम्रपान नहीं करने वालों को मिलता है
@Dr. Parimalji,
जवाब देंहटाएंपुरुषों जैसी कू्ररता यदि नारी में आ जाए, तो फिर हम सब उनमें कैसे देखेंगे, माँ, बहन, दीदी, भाभी माँ, चाची, बुआ, मामी, दादी, नानी आदि का स्वरूप?
Pahle yeh situtaion tha ki purushon ki krurta nariyan chup chap sahti thee, lekin aaj samay change ho chuka hai so aaj nariyan bhi yeh krurta purushon mein dekhna pasnd nahi karti hai! yeh mat sochiye krurta dikhakar yeh purush apna prushatva sthapit kar rahe hein! Aap kabhi purushon ke against kuch likh hi nahi sakte hein, kyunki aapme itni himmat nahi hai! Aap sirf nari ko apna nishana bana sakte hein, kyunki aapko kahin na kahin nariyon ki shakti se khundak hai!
rgds.
मैं नारी के इसी रूप की कद्र करता हूँ। पुरुष तो अपनी मर्यादा नहीं समझते और न जाने क्या-क्या करते रहते है, इसका आशय यह तो कतई नहीं कि नारी भी लक्ष्मण रेखा पार कर दे।
जवाब देंहटाएंnaari kae liyae लक्ष्मण रेखा kyon ??
purush kae liyae sayamit aachran ki vyavstha kyon nahin
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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