गुरुवार, 29 मई 2008
नाम बदलेगा, शहर की तासीर नहीं....
डॉ. महेश परिमल
शेक्सपीयर ने कहा है कि नाम में क्या रखा है. पर सच तो यह है कि आज हर कोई नाम के पीछे ही भागा जा रहा है। हर जगह बड़े-बड़े नामों की ही चर्चा है। अब तो नामों के साथ खिलवाड़ भी शुरू हो गया है। लोग बड़ी तेजी से अपना नाम बदलने लगे या उसमेें फेरफार करने लगे हैं, समझ में नहीं आता कि उनका नाम क्या है और उनका उपनाम क्या है? नामों के इस चक्कर में अब हमारे देशके शहरों के नाम भी बदलने लगे हैं, गोया नाम बदले जाने से उस शहर का विकास तेजी से होने लगेगा। शहरों के नाम बदल जाने से कुछ लोगों की आत्मा को शांति मिलती होगी, पर उस शहर के मजदूर को तो उतनी ही रोंजी मिलती होगी, नाम बदल जाने से उसकी रोंजी में बढ़ोत्तरी तो नहीं होती होगी, फिर नाम बदलने का आखिर क्या अर्थ?
चेन्नई, कोलकाता, मुम्बई के बाद अब बेंगलोर का नाम बेंगालुरु करने की कवायद चल रही है, इससे किसको क्या लाभ होगा, यह तो किसी को नहीं पता, पर प्रांतवाद और भाषावाद के चलते हो रहे नामों के इस परिवर्तन से कई बार मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। बेंगलोर के नाम बदलने की राजनीति में अपना स्वार्थ देखने वाले क्या यह बता सकते हैं कि नाम बदलने से क्या उस शहर में बाहर से आने वाले लोगों को मूलभूत सुविधाएँ मिल जाएँगी? क्या उस शहर से सड़कों पर पसरा अतिक्रमण हट जाएगा? या फिर उस शहर के एक आम मजदूर को अधिक मजदूरी मिलने लगेगी? यह सब तो नहीं होगा, तो फिर आखिर नाम बदलने की इतनी होड़ क्यों?
आईटी का नाम आते ही बेंगलोर का नाम सबसे पहले लिया जाता है। यह वह शहर है,जहाँ कंप्यूटर का दिल धड़कता है। इंटरनेशनल स्तर पर टॉपटेन टेक्नीकल हॉट स्पॉट की सूची में बेंगलोर भी शामिल है। भारत का यह आईटी हब अब विश्व में आईटी क्षेत्र में एक जाना-पहचाना नाम बन गया है। बेंगलोर का मतलब आईटी और आईटी का हॉट स्पॉट मतलब बेंगलोर। अब यह नाम सबकी जुबान पर चढ़ गया है। कर्नाटक के रजत जयंती वर्ष पर बेंगलोर सहित राज्य के अन्य सात शहरों के नाम बदले जाने की तैयारी भी हो चुकी है।
आईटी के क्षेत्र में तो यह कहा जा रहा है कि यदि आपका कार्यालय बेंगलोर में नहीं है, तो आप आईटी के क्षेत्र में हैं ही नहीं। विश्व की लगभग 1500 इंफोटेक कंपनियों की यहाँ ऑफिस है। अधिकांशउत्पादन इकाइयाँ यहाँ मौजूद हैं। भारत के 70 अरब डॉलर के साफ्टवेयर उद्योग का 75 प्रतिशत काम यहीं होता है। ऐसे में यदि इस ब्रांड का नाम बदला जाएगा, तो विदेशके लोग कैसे समझ पाएँगे? विश्व में अपना ब्रांड खड़े करने में बरसों लग जाते हैं, फिर इसे बाजार में प्रतिस्पर्धा के बीच सँभाल पाना भी एक दुष्कर कार्य है, ऐसे में एक शहर का नाम बदलने की तैयारी शुरू हो चुकी है। केंद्र सरकार ने भी इसके लिए हरी झंडी दिखा दी है।
अँगरेजों ने इस देशको 200 वर्षों तक गुलाम बनाए रखा, दस दौरान बेंगालुरु का नाम बेंगलोर हो गया। यह नाम इतना अधिक प्रचलित हो गया कि सबकी जुबान पर चढ़ गया। बोलने में सहज हो गया। अब नया नाम भले ही कन्नड़भाषियों को अच्छा लगे, पर 80 प्रतिशत अँगरेजी की गिरफ्त में रहने वाले इस शहर का नया नाम अँगरेजीदाँ लोगों को बिलकुल भी पसंद नहीं आएगा, यह तय है। यदि पुराने ही नाम वापस लाने हैं, तो वाराणसी, पाटलिपुत्र, कर्णावती, भेलसा, भोजपाल, गुवाहाटी आदि नाम भी अब क्या नए सिरे से जोड़े जाएँगे?
किसी भी शहर का नाम उस तरह से क्यों पड़ा, यह कोई नहीं बता सकता, पर इतना तो तय है कि लोग अपनी सुविधा अनुसार वस्तुओं या शहरों के नाम रख लेते हैं। शहरों के नामों पर भी ऐसा ही होता है। कई नामों को तो अँगरेजों ने ही बदला है, जो अब भी प्रचलित हैं। जब इस देशसे अभी तक अँगरेजी को ही नेस्तनाबूद नहीं किया जा सका है, तो उनके द्वारा दिए गए नामों के प्रति इतनी अधिक अरुचि आखिर क्यों? फिर तो बेंगलोर अँगरेजों द्वारा ही पोषित एक राज्य है। आखिर कंप्यूटर के क्षेत्र में उसे इतना अधिक महत्व इसलिए दिया गया कि वहाँ का पर्यावरण अँगरेजों के अनुकूल है। एक कोशिशबेंगलोर से अँगरेजी हटाने के लिए की जाए, तब शायद लोगों को समझ में आ जाएगा कि कितना मुश्किल है, नामों के साथ छेड़छाड़ करने में।
एक गरीब बालक का नाम सुखरु से बदलकर यदि विक्टर कर दिया जाए, तो क्या वह गायें चराने का काम छोड़ देगा? उसके गाँव का नाम पिटियाझर के बजाए पेंटागनी कर दिया जाए, तो क्या उस गाँव के लोगों की तकदीर बदल जाएगी। भाषा और प्रांतवाद के कारण यदि नामों से खिलवाड़ किया जा रहा है, तो यह अनुचित है। नाम के बजाए यदि वहाँ के नागरिकों की मूलभूत सुविधाओं की ओर ध्यान दिया जाए, तो अधिक अच्छा होगा। क्या मद्रास का नाम बदल जाने से वहाँ के लोग सुखी हो गए, बम्बईवासी क्या अब यातायात समस्या से मुक्त हो गए, कलकत्तावासी अब गंगा के प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से मुक्त हो गए? यदि इन सबका जवाब हाँ में है, तो निश्चित रूप से उन शहरों का ही नहीं, बल्कि देशका नाम भी बदल जाए, तो किसी को कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।
डॉ. महेश परिमल
लेबल:
आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
इस मसले पर गंभीरता के साथ विचार किया जाना चाहिए आपके विचारो से सहमत हूँ . धन्यवाद
जवाब देंहटाएं