गुरुवार, 15 मई 2008

चलो शाकाहार की ओर


डॉ. महेश परिमल
दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं, एक शाकाहारीऔर दूसरे लाशाहारी। आप कहेंगे, यह भी भला कोई बात हुई, मनुष्य भला क्यों लाशाहारी होने लगा? अब आप ही बताएँ कि मांस को मनुष्य का निवाला बनने के पहले क्या बनना पड़ता है? किसी जानवर को मारकर ही तो मांस की प्राप्ति होती है। मांस बनने के पहले वह जानवर तो एक लाश के रूप में ही हमारे सामने था, उसी लाश का एक हिस्सा उनका निवाला बना, तो फिर उस निवाले को ग्रहण करने वाला लाशाहारी ही तो हुआ ना।
अरे भई! जब प्रकृति ने ही मनुष्य के शरीर की रचना शाकाहारी के लिए की है, तो फिर हम भला कौन होते हैं, प्रकृति के खिलाफ जाने वाले? मांसाहारी प्राणियों की ऑंतें छोटी होती हैं, जबकि इंसान की ऑंते लम्बी होती हैं। लम्बी ऑंतें केवल शाकाहारी प्राणियों में ही पाई जाती हैं। इंसान के लीवर और ऑंत में मांस को पचाने के लिए उत्पे्ररकों का नामोनिशान नहीं है, इसका आशय यही हुआ कि विकासवाद के चलते मानव मांसाहार का त्याग करता गया और शाकाहार को अपनाता गया। जो अपना शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास नहीं करना चाहते, वे मांसा पसंद करते हैं। जो मानवता और सभ्यता की दौड़ में आगे निकलना चाहते हैं और जिन्हें आध्यात्मिक सुख की तलाश है, वे निश्चित रूप से शाकाहारी बन जाते हैं।
आपको पता है कि प्लुटो, सुकरात, न्यूटन,अल्बर्ट आइंस्टाइन, एपीजे अब्दुल कलाम, अमिताभ बच्चन, करीना कपूर और मल्लिका शेरावत में क्या समानता है? यही कि इनका संबंध शाकाहार से है और इस बात का उन्हें गर्व भी है। आज विश्व की कई हस्तियाँ लगातार मांसाहार छोड़कर शाकाहार की ओर बढ़ रही हैं। मुम्बई के उपनगर मालाबार हिल्स में तो पिछले दिनों एकमात्र मांसाहारी होटल बंद हो गई, क्योंकि वहाँ मांसाहार के ग्राहक नहीं आते थे। कई देशों में मेकडोनाल्ड कंपनी के भी कई रेस्तारां अब शाकाहारी होने लगे हैं। विदेशों में तो अब शाकाहार का वर्चस्व बढ़ने लगा है। डॉक्टर भी अब अपने मरीजों को शाकाहारी भोजन लेने की सलाह दे रहे हैं। इसके बाद भी यदि लोग मांसाहार ग्रहण कर रहे हैं, तो यह उनकी मानसिक दिवालिएपन का ही एक उदाहरण ही है।
अब इसे हम पर्यावरण की दृष्टि से देखते हैं। पर्यावरणविद् यह मानने लगे हैं कि आज जो ग्लोबल वामिंग हो रही है, उसकी एक वजह मांसाहार भी है। एक एकड़ जमीन का उपयोग इस उद्देश्य से किया जाए कि यहाँ पाले गए जानवरों का कतल करना है, तो उसमें एक वर्ष में केवल 75 किलोग्राम मांस का उत्पादन हो सकता है, किंतु इस जमीन का उपयोग शाकाहार उत्पादन के लिए किया जाए, तो उसमें 9040 किलो अनाज उगाया जा सकता है। अमेरिका और कनाडा में मांस के लिए पशुओं को पालने के लिए अनाज उगाया जाता है। ऐसा 14 किलोग्राम अनाज पशुओं को खिलाया जाए, तब कहीं जाकर उनके शरीर में एक किलो मांस बनता है।
एक किलो गेंहूँ पकाने के लिए 55 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, किंतु एक किलो मांस के उत्पादन के लिए 21 हजार 570 लीटर पानी खर्च हो जाता है। विश्व में अनाज और पीने के पानी की जो विकराल समस्या देखने में आ रही है, उसके लिए कुछ हद तक मांसाहारी जीवन शैली भी जवाबदार है। हैदराबाद के समीप स्थित अल-कबीर कतलखाने में प्रति वर्ष 48 करोड़ लीटर पानी खर्च हो जाता है, जिसके कारण आसपास के गाँवों में पीने के पानी की समस्या पैदा हो गई है।

हॉलीवुड और बॉलीवुड के कई कलाकार मांसाहार का त्याग कर शाकाहार की तरफ बढ़ रहे हैं। हाल ही में करीना कपूर ने मांसाहार हमेशा के लिए त्यागने की घोषणा की है। उसका मानना है कि अपने सौंदर्य को अखंड बनाए रखने के लिए उसने मांसाहार का त्याग किया है। कई अन्य फिल्मी सितारों ने अपने पशु-पे्रम के कारण मांसाहार का त्याग किया है। दक्षिण के सुपरस्टार आर. माधवन का कहना है '' मैं प्राणियों से प्र्रेम करता हूँ, उसकी हत्या कर उसका मांस खाना मुझे गवारा नहीं है। इसलिए मैं शाकाहार को हृदय से स्वीकार करता हूँ।'' दूसरी ओर अदिति गोवात्रीकर का कहना है ''मैं कोई व्रत या फिर पूजा पर विश्वास नहीं करती, पर जब से मैंने शाकाहार ग्रहण करना शुरू किया है, तब से मेरी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ रही है। अब मुझे सब कुछ अच्छा लगने लगा है।'' सूफी गायिका शिवानी कश्यप कहती हैं कि मैं संगीत की साधना में आगे बढ़ रही हूँ, तो उसके लिए मेरा शाकाहार होना ही जवाबदार है। यदि हम शाकाहारी खुराक लेना शुरू करें, तो हमारे व्यवहार में सौम्यता आती है। विख्यात चिंतक जार्ज बर्नाड शॉ कहते थे कि मेरा पेट प्राणियों का कब्रिस्तान नहीं है, इसलिए मैं माँसाहार ग
्रहण नहीं करता।
अब तो डॉक्टर भी अपने मरीजों से शाकाहारी भोजन लेने की सलाह दे रहे हैं। उन्हें यह अच्छी तरह से पता है कि मांसाहारी भोजन से अनेक रोग पैदा होते हैं। अंडा, चिकन, मटन और मछली खाने से शरीर का कोलेस्ट ्रॉल बढ़ता है, जिससे ब्लड प्रेशर और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारी हो जाती है। मांसाहारी पदार्थों में निहित सल्मोनेला नामक जहर कैंसर भी पैदा करता है। उसके कारण चर्बी बढ़ती है और डायबिटीस जैसी बीमारी भी होती है। इस संबंध में मनोचिकित्सकों का कहना है कि मानव के क्रोधी स्वभाव के लिए मुख्य रूप से मांसाहार ही जवाबदार है। मांसाहारी का दिमाग तामसी बन जाता है। ऐसे लोग स्वस्थ मन से कोई निर्णय नहीं ले सकते।
विदेशों में भारतीय योग विद्या के बढ़ते प्रचार से आजकल विदेशों में शाकाहार के प्रति रुझान बढ़ रहा है। बाबा रामदेव, बीकेएस अयंगार, दीपक चोपड़ा और भरत ठाकुर जैसे योगगुरुओं द्वारा विदेशों में लगाए जाने वाले योग शिविरों के प्रभाव से लोग मांसाहार का त्याग कर शाकाहार की तरफ बढ़ रहे हैं। अमेरिका और लंदन में आज ऐसे रेस्ताराँ खुल गए हैं, जहाँ केवल स्वादिष्ट शाकाहारी व्यंजन ही परोसे जाते हैं। भारतीय पाकशास्त्र में इतनी अधिक शाकाहारी व्यंजनों की सूची है,उसके बाद भी लोग केवल जीभ के स्वाद के लिए मांसाहार ग
्रहण करते हैं। अब तो कुछ एयरलाइंस ने भी शाकाहारी भोजन परोसना शुरू कर दिाय है।
मुम्बई के उपनगर मालाबार हिल्स की कुछ सोसायटियों में यह नियम है कि जो मांसाहारी हैं, वे यहाँ के सदस्य नहीं बन सकते। इस कारण मांसाहारी आज मुम्बई की इस पॉश कालोनी में चाहते हुए भी फ्लैट नहीं खरीद सकते। इस क्षेत्र की एकमात्र मांसाहारी होटल कुछ समय पहले ही ग्राहकों की कमी के कारण बंद हो गई। शाकाहार का प
्रभाव इस इलाके में इतना अधिक है कि किसी भी दुकान में अंडे या मछली भी नहीं मिलती। जब शाकाहार के लिए बना मानव अपनी मर्यादा भूलकर मांसाहार की तरफ बढ़ रहा है, तो इसे क्या कहा जाए? शाकाहारी व्यक्ति ही सही दिशा में कुछ नया सोच सकता है। मांसाहारी या कहें लाशाहारी तो केवल क्रोध करता ही दिखाई देगा, हर तरफ, हर जगह। तो क्या आपने भी निर्णय ले लिया कि अब अपने पेट को कबि्रस्तान नहीं बनने देंगे। शाकाहार ग्रहण करेंगे और शाकाहारी बनने के लिए प्रेरित करेंगे।
डॉ. महेश परिमल

3 टिप्‍पणियां:

  1. बढिया आलेख!
    शाकाहार- सही आहार।

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  2. इन्सान, और इन्सानियत को जीवित रहना है तो शाकाहारी होना ही होगा।

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  3. pahle to fresh fruits ka chitra lagane ke lie shukriya, aur fir shakahar par itna badhiya lekh dene ke lie aabhar.

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