सोमवार, 25 अगस्त 2008

अपने शहर में अपनेपन की तलाश


एक बड़े शहर का छोटा-सा नागरिक हूँ मैं। पहले यही शहर अपने बचपन में मेरे बचपन के साथ खेलता था, फुदकता था। हम साथ-साथ बड़े हुए। अचानक शहर ने कुलाँचे मारना शुरू किया। मैं जीवन की जद्दोजहद में फँस गया। शहर फैलता गया, मैं सिमटता गया। शहर का दायरा दस-बीस नहीं अस्सी किलोमीटर हो गया। मैं दो कमरों के फ्लैट में सिमटता गया। मैं नागरिक बना रहा और शहर 'मेट्रोपोलिटन सिटी' बन गया।
आज मैं शहर में अपने चलने लायक जगह ढूँढ़ रहा हूँ। कहते हैं, शहरों में पैदल चलने वालों के लिए फु टपाथ होते हैं, पर मेरे शहर में तो कहीं नहीं दिखता फुटपाथ। कहाँ है फुटपाथ? लोग जिसे फुटपाथ कहते हैं, वहाँ तो दुकानें लगी हैं। मैं आगे कैसे बढूँ? क्या मैं इस शहर में पैदल भी नहीं चल सकता? मैं नागरिक हूँ। वरिष्ठ नागरिक हूँ। सरकार के तमाम करों की अदायगी करता हूँ। तब फिर मुझे मेरे शहर में पैदल चलने का अधिकार क्यों नहीं है?
सुना है, शहर जब बड़ा होने लगता है, तब उससे भी बड़े अधिकारी आने लगते हैं। वे शहर के भविष्य पर चिंता करते हैं, योजना बनाते हैं, ताकि बड़े होते शहर के नागरिकों को कोई तकलीफ न हो। बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाकर नागरिकों की ऑंखों में सपना डाल देते हैं। शहर में अब ऐसा होगा, शहर में अब वैसा होगा। कुछ वर्ष बाद सपने तो बूढ़े हो जाते हैं, पर शहर के सीने में ऊग आती हैं बड़ी-बड़ी गगनचुम्बी इमारतें। कई आवासीय कालोनियाँ, बड़े-बड़े कार्यालय और बड़ी-बड़ी दुकानें। शहर काँक्रीट का जंगल बनकर रह जाता है। लोगों का जीना मुहाल हो जाता है।
तब हो जाता है शहर अलमस्त। दिन भर भागता है, पर रात को सोता नहीं। आराम नहीं करता। रात को उसकी रफ्तार और तेज हो जाती है। तब भी फुटपाथ खाली नहीं मिलता। फुटपाथ तब शरणस्थली हो जाता है, गरीब और बेसहारा लोगों के लिए। मैं उनको फाँदकर तो जा नहीं सकता। इतनी मानवता तो शेष है मुझमें। फिर भी मैं अपने इस शहर में चलने के लिए फुटपाथ की तलाश में हूँ। आप मेरी मदद करेंगे? कहाँ है फुटपाथ इस शहर में? या फिर मुझे ऐसी जगह बता दें, जहाँ मैं कुछ पल सुकून के गुजार सकूँ। जहाँ शोर न हो, न वायु प्रदूषण और न ही सांस्कृतिक प्रदूषण। आप बता सकते हैं ऐसी जगह कहाँ है इस शहर में?

डॉ. महेश परिमल
मुझे लगता है आप भी मेरी कोई सहायता नहीं कर पाएँगे, क्योंकि आप भी इस शहर का एक हिस्सा हैं। अगर आप इस शहर का हिस्सा नहीं बन पाए हैं, तो फिर आप इस शहर के बारे में अच्छा कैसे सोच सकते हैं? जब आप इस शहर को अपने भीतर महसूस करेंगे, तभी इसे समझ पाएँगे। मेरे बहुत से हमउम्र साथी हैं, जो इस शहर को अपने भीतर महसूस करते हैं। हमने तय किया है कि हम इस शहर में फुटपाथों को फिर से आबाद करेंगे। उसे पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित करेंगे। हमें चाहिए आपका नैतिक समर्थन। आप देंगे ना?
डॉ. महेश परिमल

4 टिप्‍पणियां:

  1. Yugs, daw nabasahan ko naman ni sa iban nga blog?

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  2. हर शहर की यही कहानी है. बचपन से जिस शहर के साथ आप जुड़े थे वह अब कहीं खो गया . यहाँ रहकर भी अजनबी सा लगता है . आपका संकल्प नेक है.मेरी शुभकामनायें .

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  3. हमारा नैतिक समर्थन जरूर मिलेगा। आप आगे बढ़ें ।

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  4. आप आगे बढ़ें .हमारा नैतिक समर्थन जरूर मिलेगा.शुभकामनायें.

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