शनिवार, 13 मार्च 2010
मस्तिष्काघात ने बदल दी जिंदगी
इसे कुदरत का करिश्मा कहा जाए या फिर इत्तेफाक कि कभी लड़ाई-झगड़ने में लगे रहने वाले अपराधी किस्म के एक शख्स की जिन्दगी मस्तिष्काघात के बाद इतनी बदल गई कि अब वह एक जुनूनी कलाकार बन चुका है। कभी पेशे से भवन निर्माता रहे ६क् वर्षीय टामी मैकहाग का दिमाग मस्तिष्काघात के बाद बिल्कुल बदल चुका है और वह हर रोज १६ घंटे चित्रकारी में लगाते हैं । चित्र बनाने का जुनून उन पर इस हद तक छाया हुआ है कि उन्होंने अपने घर की दीवारों, छत यहां तक कि फर्श को भी खूबसूरत चित्रों से सजा दिया है।
टामी के सिर के पिछले हिस्से में दो फोड़े हो गए थे, जिनके फूट जाने के बाद वह २क्क्१ में एक हफ्ते तक कोमा में रहे । इस दौरान वह मौत के बिलकुल नजदीक पहुंच चुके थे। जब वह इस गहरी बेहोशी से जागे तो जिन्दगी के प्रति उनका नजरिया पूरी तरह से बदल चुका था। उनमें सृजन की ऐसी उद्दाम और अनियंत्रित ऊर्जा आ गई थी कि उसे संभालना उनके लिए मुश्किल हो गया और वह कविता लिखने, चित्र बनाने, मूíतयां गढने और नक्काशी करने लगे । डाक्टरों का मानना है कि टामी के अचानक कलाकार बन जाने का कारण मस्तिष्काघात है। अमरीका में हार्वर्ड विश्वविद्यालय की एक तंत्निका विज्ञानी डॉ. एलिस फ्लाहर्टी ने टीम और उसकी अविश्वसनीय स्थिति का अध्ययन करने के बाद कहा कि उनकी चोट के कारण ही उनमें यह प्रकाश फूटा। टामी के मित्न समझ नहीं पा रहे हैं कि इस बदले हुए व्यक्ति का क्या किया जाए, जो मूíतयां बनाने के लिए लट्ठे पर घंटों मोम टपकाता रहता है, अक्सर कविताएं बोलता है, बिल्लियों को प्यार करता है और गलती से भी कोई कीड़ा कुचल जाए तो रोने लगता है। टामी के व्यक्तित्व परिवर्तन से तंत्रिका विज्ञानियों के लिए एक विषय मिल गया है। फोड़ा फूटने के बाद उसके मस्तिष्क में जिस तरह से बदलाव आया है, उससे शायद उन्हें यह सुराग मिल सकता है कि मस्तिष्क में रचनात्मक क्षमता किस तरह उत्पन्न होती है।
ब्रेन हेमरैज के बाद से टामी के लिए सभी रंग अधिक चटकीले हो गए हैं। वह कहते हैं कि वह समझ नहीं पाते कि नए रंगों को किस तरह बयान करें। बीमारी के बाद उन्हें नौ साल हो चुके हैं और उनका हर दिन और लगभग हर रात कला के सृजन में ही गुजरती है। मेर्सीसाइड में बर्कनहेड स्थित उनके घर में फायरप्लेस के अगल-बगल अब एक चित्नित बड़ा घोड़ा खड़ा है, जबकि उनका रेडियेटर आकृतियों और रंगों से सजा हुआ है। टामी अपने बदलाव के बाद हालांकि हजारों पें¨टग, नक्काशियां और मूíतयां बना चुके हैं लेकिन वह अपने को कलाकार नहीं मानते हैं। वह कहते हैं,, मैं कलाकार नहीं हूं। मैंने किताबों में रूप और रंग का अध्ययन नहीं किया है। मैं तो सिर्फ रचना कर रहा हूं और अपने भीतर से सृजनात्मकता के प्रवाह को निकलने दे रहा हूं। बीमार पड़ने से पहले मैं हरफनमौला था और बिल्कुल भी सृजनशील नहीं था। मैं टूटी हुई नालियों को जोड़ सकता था या प्लग के साकेट को ठीक कर सकता था, लेकिन पें¨टग, कविता या इस तरह की चीजें तो कतई नहीं कर सकता था। अपनी नई जिन्दगी के तजुर्बो को बांटने के लिए अब टामी की योजना ऐसे शौकिया कलाकारों की पे¨टग को प्रदíशत करने के लिए एक नि:शुल्क गैलरी स्थापित करने की है, जो किसी बीमारी से ग्रस्त हैं। इसके लिए उनकी योजना बर्कनहेड में मार्केट स्ट्रीट की एक इमारत को क्रिएटिव सेंटर में बदलने की है। वह कहते हैं,, वहां इस समय मेरी २क्क् से अधिक पें¨टग लगी हैं और मैं ऐसे लोगों के कार्यो को प्रदíशत करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहता हूं जो बीमारियों से जूझ रहे हैं। यह एक ऐसा स्थान होगा, जहां जीवन से संघर्ष कर रहे लोग अपने को अभिव्यक्त कर सकेंगे और जनता की खुशी के लिए अपने चित्रों को प्रदर्शित कर सकेंगे।
अजय कुमार विश्वकर्मा
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अभिमत
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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adbhut jaankaaree.........
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ऐसा भी होता है ?
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