गुरुवार, 18 मार्च 2010

योग की राजनीति या राजनीति का योग


डॉ. महेश परिमल
हमारे देश में वैसे भी राजनैतिक दलों की कोई कमी नहीं है, इस पर हमारे रामकिशन यादव जी ने आगामी तीन वर्षो में एक राजनैतिक दल बनाने की घोषणा कर दी है। आप जानते हैं कौन हैं ये रामकिशन यादव, अरे ये तो वही रामदेव बाबा हैं, जो देश भर में योगगुरु के नाम से जाने जाते हैं। इन्होंने देश भर में पिछले एक दशक से योग की जो अलख जगाई है, वह आज भी पीड़ा से छटपटाते लाखों लोगों के जीवन में रोशनी बनकर उजास फैला रही है। उनके सामने बहुत सी चुनौतियाँ हैं। अपने कटाक्षों के लिए सुर्खियों में छाए रहने बाबा रामदेव ने यह फैसला किया है कि वे अब योग से भोग की दुनिया में कदम रखने जा रहे हैं। उन्होंने फैसला किया है कि वे स्वयं कभी चुनाव नहीं लडें़गे, पर सभी 543 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे। उनका मानना है कि राजनीति में वे चाणक्य की भूमिका अदा करेंगे। वे कोई पद भी स्वीकार नहीं करेंगे।
अभी तो उनके सामने मदमस्त हाथी एक बहुत बड़ी समस्या है। मायावती को लेकर वे कुछ न कुछ कहकर सुर्खियों में आते ही रहे हैं। अपने बयानों से कई बार उन्होंने नेताओं को भी आड़े हाथों लिया है। जिस शहर में उन्होंने अपना शिविर लगाया है, डॉक्टरों के कोपभाजन बने हैं। योग से जो प्रसिद्धि उन्हें प्राप्त की है, उतनी ख्याति अन्य किसी योगगुरु को नहीं मिली है। टीवी पर रोज सुबह आज भी हजारों लोग उन्हें देखकर योग करते हैं और अपनी व्याधियों को दूर करते हैं। लोगों की पीड़ा हरने वाला व्यक्ति यदि यह सोचे कि अब भारतीय राजनीति को योग की आवश्यकता है, ताकि बीमार भारतीय राजनीति स्वस्थ हो सके। वैसे इस देश में राष्ट्रीय दल खड़ा करना बहुत ही मुश्किल है। बेशुमार दौलत की आवश्यकता होती है। इस घोषणा से यह तो पता चल ही गया कि उनके पास धन की कोई कमी नहीं है। अपना राजनैतिक दल बनाने की घोषणा से कई लोग जल-भुन गए हैं। उनकी सबसे बड़ी विरोधी नेता मायावती हैं। यह हाथी इतना मदमस्त हो गया है कि उसे भूख-गरीबी दिखाई नहीं देती। उसे नोटों का हार चाहिए। अब हार उसके लिए भले ही गले की हड्डी बन गया है। आयकर विभाग तो सतर्क हो ही गया है। मायावती ने पार्टी कार्यकत्र्ता आर.एस. शर्मा को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया है, जिसने हार में नोटों की जानकारी दी थी।
बाबा रामदेव भारतीय राजनीति में एक कमल की तरह प्रस्तुत होना चाहते हैं। वे कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। उनके सामने कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गांधी हैं, जिन्होंने पार्टी को एक नई दिशा दी है। यही नहीं उनके सामने बाल ठाकरे का उदाहरण है, जिन्होंने पद तो स्वीकार नहीं किया, पर मुंबई महानगरपालिका में अपना वर्चस्व कायम रखा, यही नहीं सरकार किसी की भी हो, वे उसे छद्म रूप से चलाते ही हैं। जब देश में यह सब हो सकता है, तो जो बाबा चाहते हैं, वैसा क्यों नहीं हो सकता। वे अपने तरीके से मदमस्त हाथी पर अंकुश रखना चाहते हैं। राजनीति का जवाब राजनीति से देने के लिए बाबा ने जिस तरह से पत्रकार वार्ता में अपना दल बनाने की घोषणा की है, उससे यही लगता है कि वे जिस परिवर्तन की इच्छा रखते हैं, वह राजनीति के दलदल में जाने के बाद ही पूरी हो सकती है। बाबा के अनुयायियों की संख्या देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वे उत्तर प्रदेश सरकार के लिए अवश्य सरदर्द साबित हो सकते हैं।
मतदाता हर दल से यही अपेक्षा रखता है कि यह दल उन्हें संरक्षण प्रदान करेगा। महँगाई से बचाएगा, राशन दुकानों से मिलने वाले राशन की गुणवत्ता बेहतर करेगा, सड़क, पानी की समस्याओं से मुक्त कराएगा। पर ऐसा हो नहीं पाता। जिन पर विश्वास करके वह अपना कीमती मत देता है, वही चुनाव जीतकर अविश्वासी हो जाता है। इन्हीं मतदाताओं से दूर हो जाता है। संसद में उन्हें हाथापाई करते हुए जब भी देखा जाता है, तो शर्म आती हे कि हमने किस मूर्ख कों अपना कीमती मत देकर संसद में भेजा है। जिस देश की संसद में महान विभूतियाँ विराजती थीं, वही संसद आज लगातार शर्मसार हो रही है। ऐसे में एक नए राजनैतिक दल का स्वागत तो किया ही जा सकता है, जिसका कर्णधार एक योगी हो। दूसरी ओर आज के कथित योगी जिस तरह से भोग की राजनीति कर रहे हैं, उससे यही संशय है कि बाबा रामदेव ने जिस तरह से अपने योग से लाखों लोगों को व्याधियों से मुक्ति दिलाई है, क्या राजनीति में आकर वे राजनीति के बजबजाते फोड़े का इलाज कर पाएँगे?
डॉ. महेश परिमल

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