गुरुवार, 25 मार्च 2010
खुशबू से खुली राहें
डॉ. महेश परिमल
शादी के पहले सेक्स! सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह अपराध नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि कोई युगल यदि शादी किए बिना ही साथ-साथ रहता है, तो वह कोई अपराध नहीं करते हैं। इसके पहले 2008 के अक्टूबर महीने में महाराष्ट्र सरकार ने लिव इन रिलेशनशिप (शादी के बिना साथ-साथ रहना) को मान्यता देते हुए एक कानून बनाया गया। उसी वर्ष जनवरी माह में सुप्रीम कोर्ट ने एक और फैसले में कहा था कि लिव इन रिलेशनशिप का दर्जा शादी जितना ही है। 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि दो बालिग युवक-युवती बिना शादी किए साथ-साथ रहते हैं, तो इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए। इस दौरान उनके बीच संबंध भी स्थापित हो जाएँ, तो भी इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। साथ-साथ रहना इंसान का हक है।
न्यायमूर्ति के.जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने दक्षिण भारत की अभिनेत्री खुशबू के मामले में यह ऐतिहासिक फैसला किया है। सन् 2005 में खुशबू ने एक साक्षात्कार में शादी से पूर्व शारीरिक संबंधों को उचित माना था। इस पर देशव्यापी बहस छिड़ गई। विभिन्न सामाजिक संस्थाओं ने खुशबू पर मुकदमा दर्ज कर दिया। उनका कहना था कि खुशबू के इस बयान से समाज में विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
हमारे देश में अभी भी परंपरावादी लोग शादी से पहले शारीरिक संबंध के मामले में नाक-भौं सिकोड़ते हैं। इसके विपरीत आज मेटोपोलिटन शहरों में कई ऐसे युगल हैं, जो साथ-साथ रहना पसंद करते हैं। ऐसे युवाओं के लिए सुप्रीमकोर्ट का यह फैसला राहत देने वाला है। लिव इन रिलेशनशिप पर विश्वास करने वाले युगल यदि अलग होते हैं, तो उन्हें भी शादी की तरह अधिकार मिलने चाहिए। यह एक आदर्श स्थिति है। सुप्रीमकोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है। भारतीय संस्कृति की दृष्टि से देखें, तो शादी जैसी सामाजिक व्यवस्था पर आज भी कोई ऊँगली नहीं उठा सकता। अपनी तमाम कमियों के बाद भी विवाह एक आदर्श व्यवस्था है। इसे कोई भी कानून चुनौती नहीं दे सकता। शादी और संबंध किसी कानून से नहीं चलते। शादी का बंधन जब टूटता है, तभी कानून की आवश्यकता पड़ती है। आज की पीढ़ी शादी के बंधन में बँधना नहीं चाहती। न चाहे, पर इससे विवाह का महत्व किसी भी प्रकार से कम नहीं हो जाता।
महाराष्ट्र सरकार ने पहले ही विवादास्पद लीव इन रिलेशनशिप को कानूनी रूप से मान्यता दे दी है। इसके अनुसार अब बिना शादी किए युवक-युवती जब तक चाहें, साथ रह सकते हैं। इन्हें मिला खुला आकाश। इसका मतलब यही हुआ कि बिन फेरे हम तेरे। बिना फेरों के साथ-साथ रहना अब तक सभी जगह शक की नजरों से देखा जाता है। पर अब ये जोड़े खुश हैं कि उन्हें किसी प्रकार की काननूी अड़चन नहीं आएगी और वे मुक्त होकर जीवन का मजा ले सकते हैं। जान अब्राहम और विपाशा बसु को अपना आदर्श मानने वाले ये कथित जोड़े गर्व के साथ सर उठाकर जीना चाहेंगे। इसका दूसरा पहलू भी कम खतरनाक नहीं होगा, जब एक समय बाद दोनों अलग हो जाएँगे, फिर उनका हाल-चाल पूछने कौन आएगा? विशेषकर युवती के लिए वह जीवन थोड़ा मुश्किल होगा, पर मुझे लगता है, तब तक वह युवती इतनी बोल्ड हो चुकी होगी कि उस चुनौती को भी सहजता के साथ स्वीकार कर लेगी।
आज जमाना तेजी से भाग रहा है। उसी तेजी से जीवन मूल्य बदल रहे हैं। हर काम शार्टकट में होने लगा है। लोगों में जिज्ञासा काफी बढ़ गई है। इंतजार तो आज की पीढ़ी करना ही नहीं जानती। धर्य किस चिड़िया का नाम है, कोई इनसे पूछे। ऐसे में विवाह के बंधन में बँधना इन्हें भारी लगता है। वक्त का तकाजा यही है कि बिना शादी के साथ-साथ रहा जाए। इसमें कोई बुराई नहीं है। वैसे भी मानव आजकल लगातार संकीर्ण होता जा रहा है। उसे किसी की परवाह नहीं है। सामाजिक व्यवस्थाएँ तो उनके लिए एक बोझ है। जिसे वह ढोना नहीं चाहती। किसी का किसी से कोई सरोकार नहीं है। तब फिर क्यों न खुले आकाश में मुक्त विचरण किया जाए? एक सुखद अनुभूति के साथ स्वच्छंद विचरण!
अब तो यह कहा जा सकता है कि संबंध कैसे भी हों, उसे कहाँ तक निभाना है, निभाना भी है या नहीं, ये सब निर्भर करता है, उन परिस्थितियों पर, जो आज की जरूरत है। इस तरह के संबंधों को ‘‘लीव इन रिलेशनशिप’’ कहा जाने लगा है। अब जीवनमूल्यों में आए बदलाव को देखते हुए इस तरह के संबंधों को नई पहचान और परिभाषा देनी होगी। यह बात अलग है कि इस तरह के संबंध कितने टिकते हैं, समाज इन्हें किस तरह की सम्मति देता है। ये संबंध समाज के लिए कितने हितकारी हैं, यह सब हमारे समाजशाियों को सोचना है। अब जब इसे कानूनी मान्यता मिल गई है, तो यह कहा जा सकता है कि हमारा समाज कितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है।
अपने पुष्ट विचारों के साथ खुशबू ने जो कुछ कहा, आज वह एक ऐतिहासिक निर्णय के रूप में हमारे सामने आया है। खुशबू ने अपने विचारों से कई राहें खोल दी हैं, उन लोगों के लिए, जो बिन फेरे हम तेरे, में विश्वास करते हैं। राहें खुली हैं, पर इसमें अवरोध के रूप में और कोई नहीं, हम ही होंगे। हमसे बड़ा हमारा दुश्मन और कोई नहीं है। आज जो सच है, कल नहीं भी हो सकता। पर जो शाश्वत सत्य है, वह यही कि विवाह एक महान् परंपरा है, जिसे निभाना बहुत ही सहज है और बहुत मुश्किल भी। जो इसे निभा ले जाते हैं, वे अपनी शादी की रजत और स्वर्ण जयंती मनाते हैं, और जो नहीं निभा पाते, वे दिवस ही मना पाते हैं।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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जिम्मेदारी से मुह मोड़ने को आधिकारिक स्वीकृति .
जवाब देंहटाएंइसे वेश्यावृत्ति से कैसे अलग माना जाएगा ?
मतलब एक और विवाद......
जवाब देंहटाएं.......................
यह पोस्ट केवल सफल ब्लॉगर ही पढ़ें...नए ब्लॉगर को यह धरोहर बाद में काम आएगा...
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....