गुरुवार, 4 मार्च 2010
पंजाबी शब्दों से भरपूर बॉलीवुड की बल्ले-बल्ले
डॉ. महेश परिमल
एक समय था, जब बॉलीवुड में उर्दू के शब्दों का ही बोलबाला था। यहाँ तक कि जो उर्दू जानते थे, उन्हें प्राथमिकता मिलती थी। फिल्मों के नाम ही नहीं, बल्कि फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने वालों को भी उर्दू में महारत हासिल थी। उन दिनों लता मंगेशकर ने उर्दू सीखने के लिए एक मौलवी के पास जाना शुरू किया था। समय ने करवट ली। परिदृश्य बदलने लगे हैं। अब तो वो जमाना आ गया है कि आप पंजाबी कितनी जानते हैं? तभी आपको फिल्मों में मौका मिलेगा। पिछले कुछ वर्षों में आप ही देख लीजिए कितनी फिल्मों के नाम और गानों में पंजाबी शब्दों की बहुलता है। चक दे इंडिया, दिल बोले हडि़प्पा, रब ने बना दी जोड़ी, गॉड तुस्सी ग्रेट हो आदि तो फिल्मों के नाम हैं। इसके बाद आहुं-आहुं, सोणिये, हीरीये, शावा-शावा, ढोलना, चक दे फट्टे, जिंद, मुंडा, यारा आदि शब्दों का खुलकर प्रयोग होता है। फिल्म माचिस में गुलजार साहब ने तो चप्पा-चप्पा चरखा चले, गीत में पंजाबी शब्दों का जोरदार प्रयोग किया है।
शब्दों के इस सुहाने सफर पर चलने के पहले यह बताना आवश्यक है कि पंजाबी भाषा हिंदी और उर्दू के काफी करीब है। जिस तरह से पंजाब के लोग अपनी दिलदारी की वजह से जाने जाते हैं, ठीक उसी तरह उनकी भाषा में भी हिंदीभाषियों को अपनापन लगता है। इसीलिए लोग पंजाबी शब्दों को प्रयोग करने में अपनी शान समझते हैं। कई बार एक दोस्त दूसरे से कहता है 'तुस्सी फिक्कर न करो प्राजी, साड्डा यार हूणा जिंदा है। तो सामने वाले की पूरी चिंता खत्म हो जाती है। हम सभी ने अपने साथियों को किसी शादी समारोह में या दूल्हे के आगे भांगड़ा करते देखा ही होगा, कई बार जोश में आकर हमने भी कुछ ठुमके लगाए होंगे या फिर किसी शब्द पर उछले होंगे। इसी अवसर पर एक शब्द बार-बार आता है आहुं-आहुं, अब आप कहेंगे कि इसका क्या अर्थ होता है? यह शब्द अपने आनंद की पराकाष्ठा बताता है। जो जितने अधिक आनंद में होगा, वह उतनी ही अच्छे तरीके से इस शब्द का प्रयोग करेगा। इसी तरह का एक शब्द और है आहो-आहो। यह भी आनंद को प्रकट करने वाला शब्द है। इसका आशय हाँ-हाँ है। पर अपने अर्थ विस्तार के कारण यह आनंद की अनुभूति दर्शाता है। यही हाल 'बल्ले-बल्ले का है। अक्सर भांगड़ा करते समय अपने जोश को स्थापित करने के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। परम आनंद की अभिव्यक्ति की यह सशक्त माध्यम है। इधर जब किसी को बहुत ही ज्यादा खुशी मिलती है, तब लोग यही कहते हैं कि उसकी तो 'बल्ले-बल्ले हो गई। जिसने भी फिल्म 'चक दे इंडिया देखी होगी, उसने बार-बार यह शब्द सुना होगा 'चक दे फट्टे , यदि इसके शाब्दिक अर्थ पर जाएँ, तो स्पष्ट होगा कि यह तो उस समय प्रयुक्त किया जाता है, जब किसी युवक से कहा जाता है कि लकड़ी उठाओ। यानी परिश्रम की ओर आगे बढ़ो। इसका अर्थ विस्तार हुआ और इसे जोश और उत्साह भरने के लिए प्रयुक्त किया जाने लगा। तभी फिल्म में शाहरुख बार-बार कहते हैं 'चक दे फट्टे ।
अब आते हैं 'ढोलना पर। वास्तव में यह शब्ैद है ढोल ना। अर्थात् ढोल बजाना बंद कर। पर यह सीमित अर्थों में है। अपने विस्तार के साथ यह शब्द अपनी पे्रयसी के लिए प्रयुक्त किया जा रहा है। इस शब्द के साथ यह बात है कि यह उभयलिंगी है। यानी इसे प्रेमी प्रेमिका के लिए और प्रेमिका प्रेमी के लिए प्रयुक्त कर सकती है। जब पंजाब के गबरु जवान भांगड़ा करते हैं, तब वहाँ की कुडिय़ाँ यानी युवतियाँ भी उनके साथ मिलकर 'गिद्धा करने लगती हैं। इस दौरान बार-बार कुछ शब्द आते हैं, हिरीये, सोणिये और हडि़प्पा। इसमें 'हिरीये का वैसे तो मतलब हीरे जैसी होता है, पर अपने विस्तार के साथ यह प्रेम का प्रतीक बन गया। हीर-राँझा का प्रेम यहाँ दो साथियों को अपने में ढाल लेता है। प्रेमी अपनी प्रेमिका में 'हीर को देखता है। यही हाल 'सोणिये का है। इसे दोनों परस्पर प्रयुक्त कर सकते हैं। इसके बाद 'हडि़प्पा शब्द है। जिस तरह से कोई अतिप्रसन्नता में 'याहू कहता है, तो उसी अभिव्यक्ति के लिए 'हडि़प्पा भी अपने आनंद को उद्भाषित करने वाला शब्द है।
जब भी हम किसी गीत में 'इक शब्द को सुनते हैं, तो एकबारगी ऐसा लगता है, मानो किसी को हिचकी आ रही हो। पर इस शब्द के साथ ऐसी कोई बात नहीं है। वैसे तो यह 'एक है, जो पंजाबी में 'इक के रूप में प्रयुक्त होता है। इस शब्द के साथ जो शब्द आता है, वह हे 'वारी , पूरा शब्द हो जाता है 'इकवारी । इसका आशय है, एक बार। कई बार ऐसे हालात आते हैं, जब प्रेमी निराश हो जाता हे, तब उसकी एक ही अंतिम चाहत होती है कि उसे एक बार अपनी प्रेयसी से मिला दो। बस इसके बाद उसकी कोई चाहत नहीं है। इसी एक बार मिलने की चाहत को पंजाबी में 'इकवारी के रूप में व्यक्त करने की कोशिश की गई है। फिल्म 'सिंग इज किंग में अक्षय कुमार गाते हैं 'जी करदां भई जी करदां , यहाँ पर 'जी 'जिगर के लिए प्रयुक्त हुआ है। इन दोनों का अर्थ 'हृदय होता है। गीतकार जब दिल शब्द का बार-बार प्रयोग करके थक गए, तब इस शब्द को लिया गया। एक शब्द और 'जिंद , वास्तव में पाकिस्तान का एक नगर है, जिंद। लेकिन बॉलीवुड ने इसे जिंदगी के अर्थ में स्वीकार किया है। जिंदगी को छोटा करके इसे जिंद कहा जाने लगा।
अब आते हैं 'माही पर। अब भ्रम में मत रहें कि यह शब्द तो क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के लिए ही प्रयुक्त होता है। यह शब्द भी प्रेमी-प्रेमिका द्वारा परस्पर प्रयुक्त किया जाता है। यानी प्रियतम अपनी प्रियतमा के लिए और प्रियतमा अपने प्रियतम के लिए प्रयुक्त कर सकती है। 'मखना शब्द भी आजकल फिल्मी गीतों में बहुत ही अधिक इस्तेमाल में लाया जा रहा है। इसका शाब्दिक आशय 'मक्खन जैसी होता है। अपनी प्रेमिका को मक्खन की उपाधि देना भला किसे अच्छा नहीं लगता? इस शब्द के लिए छत्तीसगढ़वासियों से क्षमा चाहूँगा, क्योंकि वहाँ तो इस शब्द को कद्दू या कुम्हड़े के लिए प्रयुक्त किया जाता है। पंजाब में आप अपने बॉस से लेकर होटल के वेटर को 'ओय कहकर बुला सकते हैं। इसका कोई बुरा भी नहीं मानता। अभय देओल की एक फिल्म के टाइटल में 'ओये का दो बार इस्तेमाल किया गया है। याद आया आपको, ओये लकी, लकी ओये। यह शब्द आश्चर्य के साथ कटाक्ष के लिए भी प्रयुक्त होता है। यही शब्द जब भांगड़ा करते समय आता है, तब यह वास्तव में 'बल्ले-बल्ले का अर्थ देता है। अपने आनंद की अभिव्यक्ति के लिए इस शब्द का प्रयोग बार-बार होता आया है। इस शब्द का उद्देश्य तो भांगड़ा करने वालो को और अधिक उत्तेजित करना है। 'रब्बा वास्तव में यह शब्द 'रब यानी ईश्वर है। 'रब और 'रब्बा का इस्तेमाल बॉलीवुड में बरसों से होता आ रहा है। 'जा रे जा तेनुं रब दा वासता , रब दी सौं, हाय रब्बा और आदित्य चोपड़ा की फिल्म 'रब ने बना दी जोड़ी । ' शावा-शावा और सोणिये ये शब्द अक्सर शादी-ब्याह के समय हो या खुशी को अभिव्यक्त करने का कोई अवसर। यह शब्द थोक के भाव में प्रयुक्त होता है। फिल्म 'कभी खुशी कभी गम में अमिताभ बच्चन भी इस शब्द पर अपनी ही आवाज के साथ थिरक और थिरका चुके हैं। 'शावा-शावा का कोई अर्थ नहीं है। यह अपनी प्रसन्नता को अभिव्यक्त करने का एक सशक्त शब्द है। हमारे गीतकारों को जब ऐसा लगता है कि इस गीत के बीच में उत्साह डालने वाला कोई जोशीला शब्द चाहिए, तो वे बिंदास होकर पंजाबी शब्दों का प्रयोग करते हैं। 'सोणिये का मतलब 'सुंदर होता है। पंजाबी अपनी प्रेमिका सुंदर प्रेमिका को प्यार से 'सोणिये नहीं कहेगा, तो और क्या कहेगा?
तो शब्दों का यह सफर यहीं खत्म करते हैं। क्योंकि यार से यारा और यारा से याराना बनते देर नहीं लगती। शब्दों की अपनी रफ्तार होती है, यह अपनी गति से सदैव चलते रहते हैं। इस सफर में कई शब्दों का खुलासा करने की कोशिश की है, इसके बाद भी यदि कुछ समझ में नहीं आया, तो 'मैनुं की करां प्राजी ।
डॉ. महेश परिमल
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फिल्म संसार
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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जिन शब्दो को रोज़ सुनते है उनके बारे मे जानकर अच्छा लगा । फिल्मे भाषा का प्रसार करती है और धीरे धीरे हई शब्द हिन्दी के संसार से जुड़ जाते है ।
जवाब देंहटाएंaccha laga aapka ye lekh kai shavd filmo ke madhyam se bhasha kee seemao ko langh sabhee ke sath ghul mil jate hai......
जवाब देंहटाएंmehanat saaf dikhati hai iss lekh me..bhashaayen dilon ko jodatee hai. sharad bhai ke vichaaron se mai sahamat hoo. samvedanaon ke pankh isee tarah udaan bharate rahe...
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