सोमवार, 29 मार्च 2010
भारत की कहानी दस्तावेजों की जुबानी
अभिलेखीय दस्तावेजों में संरक्षित है भारत का रोमांचकारी इतिहास
क्या आपको पता है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का पासपोर्ट कभी ओरलैंडो मजोटा के नाम से बना था और आजादी के लिए अपनी जान गंवाने वाले भगत ¨सह, राजगुरू और सुखदेव की चिता की राख आज भी अपनी वीरता की गाथा कह रही है ।
देश की पराधीनता से लेकर स्वाधीनता के संग्राम तक तथा विभाजन की ˜त्रासदी से लेकर युवा भारत के सफर तक की हर रोमांचकारी और महत्वपूर्ण घटनाओं के प्रामाणिक और अत्यंत दुर्लभ दस्तावेज और सामग्री का का यह खजाना मौजूद है राष्ट्रीय अभिलेखागार में । इन्हें सांस्कृतिक विरासत के तौर पर आगामी पीढ़ियों के लिए संजोए रखने की अहम जिम्मेदारी निभा रहे राष्ट्रीय अभिलेखागार ने अपनी स्थापना के ११क् वर्ष पूरे कर लिए है। इस मौके पर अभिलेखागार की ओर से १२ मार्च को अभिलेखागार की प्रांसगिकता, विषय पर एक संगोष्ठि का आयोजन किया गया । जिसमें जाने माने शिक्षाविद, अभिलेखीय विशेषज्ञ और इतिहासकार अपने अनुभवों और विचारों को प्रस्तुत किया।
ब्रिटिश शासन के दौरान १८९१ को इंपीरियल रिकार्ड आफ्सि के रूप में कोलकाता में अपनी शुरुआत करने वाला अभिलेखागार वर्ष 1926 में देश की राजधानी कोलकाता से दिल्ली आने के साथ ही यहां स्थानांतरित हो गया और आजादी के साथ ही १९४७ में इसे राष्ट्रीय अभिलेखागार का नया नाम दिया गया। अभिलेखागार में दस्तावेजों का इतना बड़ा खजाना है कि यदि इन्हें क्रमवार बिछा दिया जाए तो इनकी 40 किलोमीटर लंबी श्रृंखला बन जाएगी। इन दस्तावेजों में प्रत्येक सरकारी विभाग से जुडे पुराने रिकार्ड, दुर्लभ पांण्डुलिपियां, नामी-गिरामी शख्सियतों के निजी दस्तावेज,मुहरें,नक्शों के अलावा आजादी के परवानों के लिखे ऐसे अनेकं संस्मरण,पुस्तके,लेख और पत्र शामिल हैं जिन पर ब्रिटिश राज में प्रतिबंध लगा दिया गया था। अभिलेखागार में 1748 से क्रमवार तिथि में रिकार्ड संरक्षित रखे गए हैं हालांकि इसके पूर्व के फ्रासी,हिन्दी,संस्कृत, अरबी,तमिल,तेलुगु और फ्रांसीसी भाषा में लिखे रिकार्ड भी उपलब्ध हैं। इन दस्तावेजों को संरक्षित रखने तथा शोधकर्ताओं और आम लोगों तक इनकी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए अभिलेखागार ने अत्याधुनिक वैज्ञानिक तरीके अपनाए हैं। कई दस्तावेंजो की माइक्रो फ्ल्मि बनाई गई है ताकि बड़ी संख्या के रिकार्ड बेहद आसानी से एक ही जगह पर देखे जा सकें। कई रिकार्ड की जानकारी आनलाइन भी उपलब्ध कराई गई है ।
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अतीत के झरोखे से
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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बहुत अच्छी जानकारी दी है.
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी. आभार...
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