
डॉ. महेश परिमल
हाल में एक फिल्म आई 'इएमआई', इस फिल्म में यही बताने की कोशिश की गर्इ्र है कि बैंक से रुपया लिया है, तो चुकाना ही पड़ेगा। अब यह बैंक पर निर्भर करता है कि वह किस तरह से अपना रुपया वसूल करे। इस दिशा में सुप्रीमकोर्ट का भी आदेश आ गया है कि लोन लेने वाले उपभोक्ता को किसी भी तरह का मानसिक या शारीरिक कष्ट न दिया जाए। पर मध्यमवर्गीय परिवार अच्छे से जानता है कि बैंक का एक नोटिस ही घर के सारे सदस्यों को तनावग्रस्त कर देता है। इस बात को गाँठ बाँधकर रख लो कि र्का से आप सब-कुछ खरीद सकते हैं, पर सुख नहीं। कर्ज से तनाव ही घर पर आएगा, धन तो रास्ते में ही खत्म हो जाएगा।
कुछ समय पहले तक क्रेडिट कार्ड का होना रसूखदार होना माना जाता था। लोग बड़ी से बड़ी खरीददारी आसानी से कर लेते थे। कई बार तो वे केवल अपनी शान बघारने के लिए ही ऐसी चीजें खरीद लेते थे, जो उनके किसी काम की नहीं होती थी। पर अब समय के साथ इसकी भी परिभाषा बदलने लगी है। अब तो लोगों का इस कार्ड के प्रति मोहभंग हो रहा है। अब यह सुविधा दु:खदायी होने लगी है। अब तो लोग किसी भी तरह इससे मुक्ति पाना चाहते हैं। अब यह चीज शान और रसूखदार होने की निशानी नहीं, बल्कि तनाव बढ़ाने वाली चीज बनकर रह गई है।
हमारे बुजुर्ग कह गए हैं कि देनदारी और कचरे में कोई अंतर नहीं है, दोनों ही तेजी से बढ़ते हैं। गहरे अर्थों वाली यह सीख लोगों को रास नहीं आई और लोग आसानी से मिलने वाले पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड के चंगुल में मध्यमवर्ग फँसकर रह गया है। अब तो हालत यह हो गई है कि लोग अब पर्सनल लोन और के्रडिट कार्ड के बाकी की किस्तें भरने के लिए लोन लेने लगे हैं। इसमें में कोई फायदा नहीं है, यह तो वही बात हुई कि एक गङ्ढे से निकली मिट्टी उपयोग करने के लिए दूसरा गङ्ढा खोदना।
यह ध्यान में रखें कि क्रेडिट कार्ड देते समय उपभोक्ता और बैंक के बीच में एक एजेंसी होती है। एजेंसी अपना काम कमीशन के लिए करती है। उपभोक्ता को लोन मिलने के बाद एजेंसी बीच में से हट जाती है, रह जाते हैं ग्राहक और बैंक। इस सौदेबाजी में जो कुछ भी वादे होते हैं, वे एजेंसी की तरह से दिए गए होते हैं, बैंक का उन वादों से कोई लेना-देना नहीं होता। एजेंसी के हटते ही वे सारे वादे हवा में लुप्त हो जाते हैं। बैंक के वादे उसके स्टेटमेन कंप्यूटर में दाखिल किए गए साफ्टवेयर के अनुसार होते हैं। इसी कारण आज लेट पेमेंट का विवाद कई बैंकों के साथ क्रेडिटकार्डधारियों का हो रहा है। यदि बैंक के 25 रुपए भी बाकी हैं, तो आपके स्टेटमेन में 250 रुपए लेट फी की एंट्री कर दी जाती है।
आजकल की बैंके बहुत ही चालाक हो गई हैं। वह मध्यमवर्ग की मानसिकता को अच्छी तरह से समझती है। लोन और क्रेडिट कार्ड देते समय वह इसी मनोविज्ञान पर काम करती है। मध्यमवर्ग भी यह अच्छी तरह से जानता है कि अपनी इात की खातिर कुछ भी करके वह किस्तें भरेगा ही। इस वर्ग की इसी मानसिकता का बैंक लाभ उठाती हैं। नेता की तरह लुभावने वादे तो बैंक और ग्राहक के बीच सेतु बनती है एजेंसी। जो लोन मिल जाने के बाद दिखाई तक नहीं देती। उसे तो कमीशन चाहिए, जो उसे मिल जाता है। लोगो को दोनों हाथों से लूटने वाली बैंक आज अपने को कंगाल बता रही हैं। हाल में आई विश्व आर्थ्ािक मंदी में ये बैंकें अपने आपको यह बताने में तुली हुई हैं कि अब हमारे पास धन नहीं है, पर आज भी यदि कोई उपभोक्ता उनसे लोन लेने या क्रेडिट कार्ड लेने जाए, तो वह पलक पावड़े बिछाकर उसका स्वागत करती है। एक बार यदि ग्राहक इन की बातों में फँस जाए, तो फिर उसका छुटकारा मुश्किल है। यदि हम अपने घर के करीब किसी दुकानदार से सामान लेते हैं, यदि सात तारीख तक उसका भुगतान नहीं कर पाते, तो वह समझ जाता है कि कोई परेशानी होगी। वह आठ दिन और इंतजार कर लेता है। पर बैंक के कंप्यूटर को इस तरह की कोई आदत नहीं सिखाई गई है। वह अपना काम बखूबी जानता है और ग्राहक पर बोझ बढ़ा देता है। ग्राहकों को लूटने के लिए उसके पास कई साधन हैं।
बिना विचार किए लिए जाने वाले लोन और के्रडिटकार्ड पर खर्च पर तगड़ा ब्याज देना पड़ता है, इसे कभी न भूलें। एक बार अपने क्रेडिट कार्ड से प्राप्त सुविधा और उस पर लगने वाले ब्याज पर नजर डाल लें, तो आपको समझ में आ जाएगा कि सुविधा तो कम मिली, पर ब्याज अधिक लग गया। अपने तमाम स्टेटमेन का बारीकी से अध्ययन करें, आप देखेंगे कि उसमें कई ऐसे पेंच होंगे, जिसमें आप कभी भी फँस सकते हैं। के्रडिट कार्ड या लोन की जानकारी अपने घर के सदस्यों को अवश्य दें, ताकि समय पर उनसे सहायता ली जा सके। किसी एजेंसी के कहने या फिर दोस्त की देखादेखी में लोन या क्रेडिट कार्ड कदापि न लें, अन्यथा आप मुश्किल में पड़ सकते हैं।
क्रेडिट कार्ड लेने वाले यह ध्यान में रखें कि क्या वास्तव में उन्हें उसकी आवश्यकता है? जब आवश्यकता ही है, तो उसके नखरे उठाने की क्षमता क्या आपमें है? कहीं आप किसी के कहने पर या अपनी इात में चार चाँद लगाने के लिए तो ऐसा नहीं कर रहे हैं? अक्सर लोग अपनी शान बढ़ाने के लिए ऐसा करते हैं, जो भविष्य में उनके लिए अभिशाप बनकर सामने आता है। भौतिक सुख प्राप्त करने के ये सभी साधन तनाव लेकर आते हैं, यह सच है, इनसे मानसिक शांति नहीं खरीदी जा सकती है। सच्चा सुख तो घर की सूखी रोटी और चटनी में भी मिल सकता है, यदि आपमें उस सुख को समझने की समझ है तो ................
डॉ. महेश परिमल