बुधवार, 4 जून 2008

हर वर्ष साढ़े 5 लाख अकाल मौतें दे रहा है वायु प्रदूषण


डॉ. महेशपरिमल
हम आ पहुँचे, पर्यावरण दिवस के करीब। आ गया भाषणों, संकल्पों, आश्वासनों, प्रतिज्ञाओं और शपथ का दिवस। अब हम पढ़ेंगे कि पर्यावरण लगातार प्रदूषित हो रहा है, हमें इसके लिए कृतसंकल्प होकर इस दिशा में ठोस काम करना होगा। अगर पर्यावरण ठीक नहीं रहा, तो हम भी ठीक नहीं रहेंगे। ये सारे संकल्प कई समारोहों में होंगे। आप ध्यान से देखना, समारोहे के बाद चाय-नाश्ते की प्लेंटें इधर-उधर बिखरी होंगी। सारी अव्यवस्थाएँ एक ओर और संकल्प एक ओर। हम मना लेंगे पर्यावरण दिवस। बस हमारा कर्तव्य समाप्त। सारे वादे, इरादे, संकल्प, शपथ सब एक ओर और हमारी तमाम सुविधाएँ एक ओर।उसके बाद कहीं कोई जुम्बिशनहीं, पर्यावरण को बचाने, उसकी रक्षा करने आदि सभी बातें हवा में विलीन हो गई। पूरे विश्व को बिगड़ते पर्यावरण्ा की चिंता है, पर इसके लिए कहीं कुछ हो रहा है, तो वह काफी कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एशिया में बढ़ रहा प्रदूषण प्रतिवर्श5 लाख 37 हजार लोगों की अकाल मौत का कारण बनता है। केवल प्रदूषण से ही इतनी मौतें, इसके बाद भी इसे बचाने में हमारी कोई भूमिका नहीं, आश्चर्य है!वैज्ञानिकों के अनुसार अगर दुनिया की कुल आबादी का तीन प्रतिशत भी ग्लोबल वार्मिंग रोकने हेतु इस्तेमाल होता है, तो 2030 तक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सकता है। लेकिन यह संभव नहीं हो पाएगा, क्योंकि स्थिति लगातार हाथ से निकलती जा रही है। '' बेटर एयर क्वालिटी '' याने शुध्द गुणवत्ता वाली हवा के बारे में यह कहा जाता है कि इस तरह की हवा अब केवल सपनों की बात रह गई है, क्योंकि वायु प्रदूषण्ा के कारण हमारे देश में 40 करोड़ लोग दमे या साँस की तकलीफ से पीड़ित हैं। विश्व बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक ने 2000 और 2003 के बीच एशिया के 20 बड़े शहरों का सर्वेक्षण कराया, उस समय मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई सहित दस मेगा शहरों में औसत से अधिक वायु प्रदूषण पाया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रति क्यूबिक मीटर 50 माइक्रोग्राम से कम प्रदूषण को मान्यता दी है, किंतु केवल दिल्ली में ही यह मात्रा 340 से 800 माइक्रोग्राम प्रदूषण्ा पाया गया। तकनीकी भाषा में इसे सस्पेंडेड पार्टीक्यूलेट्स पर क्यूबिक मीटर कहा जाता है। इसका आशय यही हुआ कि वायु प्रदूषण केवल दिल्ली ही नहीं, बल्कि अन्य बड़े शहरों में तेजी से फैल रहा है। जिसके भयावह परिणाम सामने आ रहे हैं।

मुम्बई, कोलकाता, और पूणे में कार्बनमोनोऑक्साइड, सल्फरडायऑक्साइड, नाइट्रोजन डायऑक्साइड के बाद सस्पेंडेड पार्टीक्यूलेट्स देखने को मिले। वायु प्रदूषण का मुख्य कारण सड़कों पर दौड़ने वाले वाहन हैं। 2003 के ऑंकड़ों के अनुसार में भारत में 6 करोड़ 60 लाख निजी वाहन थे, 2004 में इसमें 70 लाख नए वाहनों का समावेशहो गया। हर महीने भारत के शहर में 300 से 500 नए वाहन शामिल होते हैं। बढ़ते वाहनों से बढ़ते वायु प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए पेट्रोल के बजाए सीएनजी ( कम्पेस्ड नेचुरल गैस) के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया, ताकि वायु प्रदूषण में कमी आए। लोग ऐसा मानते हैं कि सीएनजी के प्रयोग से वायु प्रदूषण्ा शून्य हो जाएगा, लेकिन यह गलत सिध्द हो रहा है। अब यह सिध्द हो गया है कि सीएनजी, पेट्रोल और डीजल से अधिक प्रदूषण फैला रही है। सीएनजी अपनी ज्वलनशीलता के कारण अपेक्षाकृत अधिक नाइट्रोजन ऑक्साइड छोड़ रही है। इससे हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है।
नई दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंस के विशेशज्ञों के अनुसार पिछले 5 वर्षों में ऑंखों में जलन, दम अथवा साँस लेने में तकलीफ, असह्य सरदर्द, वाइरस इंफेक्शन, हार्ट प्राब्लम, ब्रोंकाइटिस याने श्वाँस नली में सूजन, फेफड़े की बीमारी और कैंसर के मामलों में काफी वृद्धि हुई है। इन सब तकलीफों के लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है।
आखिर वायु प्रदूषण बढ़ता कैसे है? यह जानने के लिए जरा अपने आसपास ही नजर दौड़ा लो, कारण सामने ही दिखाई देगा। सड़क पर वाहनों का धुऑं, सड़क किनारे लगे खाद्य पदार्थों के ठेले, लघु उद्योगों और कारखानों की चिमनियों से लगातार निकलते काले धुएँ को तो सभी ने देखा होगा, इसके अलावा चौकाने वाली बात तो यह है कि पुलिस के वाहन, एम्बुलेंस, सरकारी एम्बेसेडर कारें आदि भी वायु प्रदूषण फैलाने में सहायक हैं। शायद ही पुलिस के किसी वाहन की कभी पीयूसी जाँच होती होगी। ये वाहन तो कानून के साथ चलकर वायु प्रदूषण बढ़ाने में सहायक हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण से होने वाले रोगों के इलाज में भारतीय हर वर्श4550 करोड़ रुपए खर्च करते हैं। एक तरफ वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है, तो दूसरी तरफ कटते जंगल के कारण स्थिति और गंभीर होती जा रही है।
अब एक छोटी-सी बात की ओर ध्यान दें। इस दिशा में अब तक बहुत कम लोगों का ध्यान गया है। जिनके पास कार है, वे अपने वाहन में लगे केटेलिक कन्वर्टर या स्मोक एरेस्टर की खूबी से अंजान होते हैं। वायु प्रदूषण को घटाने में ये यंत्र अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब वाहनों के एक्जास्ट पाइप से जहरीला धुऑं निकलता है, तब ये केटेलिक कन्वर्टर उसके जहरीलेपन को कम करता है। इसी तरह वायु प्रदूषण को कम करने के लिए बसों और ट्रकों में स्मोक एरेस्टर लगा होता है, किंतु इन दोनों साधनों की नियमित साफ-सफाई नहीं होती। शायद ही कोई वाहनधारी इस ओर ध्यान देकर नियमित साफ-सफाई करवाता होगा। इस संबंध में किसी भी ट्रक ड्राइवर से पूछो तो वह यही कहेगा कि उसको तो हम खुद ही साफ कर लेते हैं साहब। दरअसल हमारे देश में 75 से 80 प्रतिशत ड्राइवर अशिक्षित है। उन्हें केटेलिक कन्वर्टर और स्मोक एरेस्टर के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती। इसकी भूमिका से भी वे अनजान होते हैं। यही कारण है कि अनजाने में ये लोग वायु प्रदूषण फैलाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।
सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार 2001 में जब वाहनों में सीएनजी का उपयोग शुरू किया गया, तब कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फरडायऑक्साइड, पोली-साइक्लीक एरोमेटिक हाइड्रोजन और अन्य दूसरे जहरीले रसायनों के फेलाव में कमी देखी गई थी। किंतु इसके कुछ महीनों बाद ही वायु प्रदूषण में काफी इजाफा देखा गया। इसकी वजह वही थी, कि सीएनजी से चलने वाले वाहनों का रख-रखाव सही नहीं हो पाया। उन वाहनों की नियमित सर्विसिंग नहीं हो पाई और प्रदूषण बढ़ता गया।
अब शहरों में दिन में सीएनजी से चलने वाले वाहनों से होने वाला फायदा रात में डीजल से चलने वाले भारी ट्रकों से धुल जाता है। वायु प्रदूषण फेलने का यह भी एक कारण है। सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का कहना है कि वायु प्रदूषणरूपी इस दैत्य को यदि समय रहते काबू में नहीं लाया गया, तो अगले दशक में प्रदूषण से होने वाले रोगों की संख्या में भारी वृद्धि होगी, इसे निबटने में विश्व के डॉक्टर और वैज्ञानिकों की हालत खराब हो जाएगी, यह तय है।

इन जानकारियों के बीच एक खबर थोड़ी-सी राहत पहुँचाती है। अभी पिछले माह ही वाशिंगटन में एक नई शुरुआत हुई। हुआ यह कि वहाँ वाहनों की अधिकता के कारण सड़कों को जितना चौड़ा किया जा सकता था, वह किया गया। वाहनों की भीड़ को कम करने के लिए जितने भी प्रयास होने थे, वह भी सब किए गए। फिर भी सड़कों से वाहनों को कम नहीं किया जा सका। तब सरकार ने ''कम्यूट ट्रीप रीडक्शन प्रोग्राम '' शुरू किया। इस प्रोग्राम के अमलीकरण पर सरकार सख्त थी, फिर भी पहले ही दिन इसे काफी प्रतिसाद मिला। आश्चर्य होगा यह जानकर कि पहले दिन ही वाशिंगटन में अपनी गाड़ी गेरैज में छोड़ दी और बसों से कार्यालय जाना शुरू किया। पहले ही दिन सड़कों से 22 हजार गाड़ियाँ कम हो गई। अब तो वहाँ के लोग वायु प्रदूषण के प्रति इतने सचेत हैं कि नेता, वरिष्ठ नागरिक और बड़ी-बड़ी कंपनियों के अधिकारी भी बस में सफर कर रहे हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को प्रोत्साहन देने के लिए लोग ऐसा भी कर सकते हैं! क्या हम सब अपने पर्यावरण को बचाने के लिए इस तरह का कोई छोटा सा काम नहीं कर सकते?
डॉ. महेश परिमल

1 टिप्पणी:

  1. महेश जी, निश्चित ही हम सभी को पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी तरफ जैसा, जितना बन पड़े कोशिश करनी चाहिए।
    अपनी ओर से मैंने पानी पर एक टिप्‍पणी लिखी है, मेरे ब्‍लाग पर देखिए।
    www.jajbat.blogspot.com

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