सोमवार, 16 जून 2008
देश में जारी है मिलावटी दूध का तांडव
डॉ. महेश परिमल
दूध हमारे जीवन का एक आवश्यक पेय पदार्थ है। दूध की महिमा अपरंपार है। दूध का मोल कभी चुकाया नहीं जा सकता, इस उक्ति के पीछे दूध में समाहित वे भाव हैं, जिससे माँ के माध्यम से शिशु तक पहुँचता है। जन्म के कुछ समय तक तो माँ का यही दूध उसके लिए अमृततुल्य होता है। लेकिन मिलावट की इस दुनिया में अब कुछ भी शुद्ध नहीं है, यहाँ तक माँ का दूध भी। आज वह भी मिलावट का शिकार हो गया है। कुछ देशों में मिलावट के कानून इतने सख्त हैं कि वहाँ मिलावट नहीं होती, पर हमारे देश में अभी तक मिलावट के नाम पर किसी को कोई बड़ी सजा दी गई हो, ऐसा सुनने में नहीं आया। दूध को दवा मानने वालों को कैसे समझाया जाए कि आज दवाओं में भी मिलावट जारी है और हमारे देश में 'सब चलता है', के कारण कुछ खास नहीं हो पाता।
दूध एक संपूर्ण आहार ही नहीं, दवा भी है। विश्व में माता का दूध सर्वश्रेष्ठ साबित हो चुका है। दूध पीने से अनेक रोगों का नाश होता है। दूध में पानी, खनिज तत्व, वसा, प्रोटीन, शर्करा आदि पदार्थो का समावेश होता है, जो शरीर के लिए अति आवश्यक है। किंतु आज मिलावटी दूध बाजार में उपलब्ध है। इसके सेवन से स्त्रियों को स्तन और गर्भाशय का केन्सर होने की संभावना बढ_ण जाती है। छोटे बच्चों को यदि ये मिलावटी दूध नियमित रूप से दिया जाए, तो इसके सेवन से युवावस्था तक आते-आते ये अनेक रोगों के शिकार हो सकते हैं। ये सारी बातें यदा-कदा अखबार या अन्य पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हमारे मस्तिष्क में बैठती है, किंतु इसके बाद भी आज की आधुनिक मम्मियाँ अपने फिगर मेन्टेन की चाहत में बच्चों को स्तनपान कराने से दूर रहती हैं। शारीरिक सौंदर्य की चिंता में लगभग 94 पýý्रतिशत माताएँ संतान को डिब्बाबंध दूध देकर बीमारियों को आमंत्रित कर रही हैं।
एक समय था, जब हमारे देश में दूध की नदियाँ बहती थीं। इसके विपरीत वह समय जल्द ही आने वाला है, जब हम अपनी सुबह की शुरुआत विदेशी दूध की चाय पीकर करेंगे, क्योंकि मल्टीनेशनल कंपनियाँ अपनी गुणवत्तायुक्त और एकदम नई पेकिंग के साथ दूध का व्यापार करने के लिए हमारे देश में प्रवेश कर चुकी हैं। दक्षिण भारत में इनका दूध का व्यापार शुरू हो चुका है। विदेशी कंपनियाँ भी अपने लाभ की ओर ध्यान देते हुए पूरी तैयारी के साथ बाजार में कदम रख रही हैं। इस व्यापार के पीछे की हकीकत देखी जाए, तो मिलावटी दूध की बात सामने आती है। आज पेकिंग दूध में मिलावट की दृष्टि से ही चिकित्सक रोगी को इसे न पीने की सलाह देते हैं। दूध में पानी से लेकर जंतुनाशक, डी.डी.टी., सफेद रंग, हाइड_्रोजन पैराक्साइड आदि मिलाकर सिन्थेटिक दूध बनाया जाता है। देश में प्रतिदिन लगभग 1 करोड़ लीटर से अधिक दूध की बिक्री होती है। किंतु मिलावटी दूध के कारण अब तो दूध को संपूर्ण आहार कहना भी गलत होगा।
आज मिलावटी दूध के सेवन से लोग अनेक रोगों का शिकार हो रहे हैं। माँ के दूध में 87.7 प्रतिशत पानी, 3.6 प्रतिशत वसा, 6.8 प्रतिशत शर्करा, 1.8 प्रतिशत प्रोटीन, 0.1 प्रतिशत खनिज तत्व होते हैं। भैंस के दूध में 84.2 प्रतिशत पानी, 6.6 प्रतिशत वसा, 5.2 प्रतिशत शर्करा, 3.9 प्रतिशत प्रोटीन और 0.8 प्रतिशत अन्य खनिज पदार्थ उपलब्ध होते हैं। गाय के दूध में 84.2 प्रतिशत पानी, 6.6 प्रतिशत वसा, 5.2 प्रतिशत शर्करा, 3.9 प्रतिशत प्रोटीन, 0.7 प्रतिशत खनिज तत्व होते हैं। बकरी के दूध में 86.5 प्रतिशत पानी, 4.5 प्रतिशत वसा, 4.7 प्रतिशत शर्करा, 3.5 प्रतिशत प्रोटीन, 0.8 प्र्रतिशत खनिज तत्व, भेड़ के दूध में 83.57 प्रतिशत पानी, 6.18 प्रतिशत वसा, 4.17 प्रतिशत शर्करा, 5.15 प्रतिशत प्रोटीन और 0.93 प्रतिशत खनिज तत्व होते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि संसार में माता का दूध सर्वश्रेष्ठ है।
दूध एक उत्तम आहार होने के बाद भी आज केवल मिलावट के कारण ये संदेह के घेरे में है। दूध की शुध्दता पर लगे प्रश्न चिह्न से उसकी गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में दूध के पंद्रह नमूने लिए गए और जब उस पर शोध किया गया, तो पता चला कि उसमें 0.22 से 0.166 माइक्रोग्राम जितना डी.डी.टी. था। पंजाब में दूध में डी.डी.टी. होने का प्रमाण अन्य रायों की तुलना में 4 से 12 गुना अधिक है। यदि ऐसा दूध स्त्रियाँ सेवन करें, तो उनमें स्तन केन्सर या गर्भाशय का केन्सर होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। दूध पावडर में भी डी.डी.टी. का प्रमाण अधिक होने के कारण यह छोटे बच्चों के लिए भी हानिकारक है।
आज लाइफ स्टाइल में आनेवाले बदलाव के कारण पेकिंग वाले दूध की माँग लगातार बढ़ती जा रही है। साथ ही दूध पावडर की मांग भी बढ़ रही है। वसायुक्त एवं वसारहित दूध दोनों का ही विक्रय अधिक होता है। इससे आगे बढ़कर कंपनियों द्वारा खास ऐसी पेकिंग की जा रही है, जिसमें दूध लगभग तीन महीने तक खराब नहीं होता। प्लास्टिक की पेकिंग वाला दूध अच्छा होता है और अधिक समय तक खराब नहीं होता, ऐसा भी लोग मानने लगे हैं। आंध्रप्रदेश की एक दुग्ध डेयरी ने तो 6 माह तक खराब न होने वाले दूध को बाजार में लाने की तैयारी कर ली है। ग्राहक तो केवल पूर्ण विश्वास के साथ दूध की डेयरी और ब्रान्ड का नाम पढ़कर दूध खरीदते हैं। भारत में डेयरी प्रोजेक्ट का बाजार वर्ष में 36000 करोड़ का है।
दूध की लगातार बढ़ती जा रही माँग के कारण ही ताजा दूध मिलना तो अब संभव ही नहीं है। सभी दुधारू पशुपालक अपने पशुओं का दूध डेयरी में बेच देते हैं। यहाँ तक कि बीमार पशु का दूध भी आय को ध्यान में रखते हुए डेयरी में पहुँचा दिया जाता है। सोने पे सुहागा यह कि कई पशुपालक तो अपने पशुओं को अधिक दूध के लिए इंजेक्शन देकर दूध का व्यापार करने से भी नहीं चूकते। ऐसा दूध स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है, इस दिशा में उन्हें सोचने की फुरसत ही नहीं है।
दूध का व्यापार करने वाले इन स्वार्थी लोगों ने तो दूध का मूल रंग ही बदल दिया है। आज दूध सफेद नहीं, अनेक रंगों में उपलब्ध है। साथ ही विविध फ्लेवर में भी बाजार में उपलब्ध है। 10 रुपए में मात्र 200 ग्राम दूध ग्राहक को देकर आज खूब कमाई की जा रही है। अमेरिका, दुबई, सिंगापुर सहित कई देशों में मिलावट को लेकर बनाए गए नियम काफी सख्त होने के कारण वहाँ पर खास मिलावट नहीं होती, पर हमारे देश में तो सब चलता है, की तर्ज पर खूब मिलावट होती है। नियम है, पर वे सभी ताक पर रखे हुए हैं। इसी का फायदा उठाकर व्यापारी वर्ग पूरे मुनाफे के साथ अपना व्यापार फैलाता जा रहा है।
दूध पीने से शरीर को वसा, प्रोटीन, खनिज तत्वों सहित अन्य जरूरी पोषक तत्व प्राप्त होते हैं, किंतु मिलावटी दूध के सेवन से तो निरोगी व्यक्ति भी रोगी बन जाता है। ऑंखों की योति फीकी पड़ जाती है, जोड़ो में दर्द की समस्या पैदा होती है। इसके बाद भी उपभोक्ता असमंजस की स्थिति में है कि जाएँ तो जाएँ कहाँ_? क्योंकि मिलावट का बाजार इतना विस्तृत है कि उसे कोई दूसरी राह ही नहीं सूझती। इस मिलावटी दूध के साथ छिपा एक सत्य यह भी है कि आज दुधारू पशुओं की संख्या भारत में ही नहीं विश्व में भी कम होती चली जा रही है। इस स्थिति में इस समस्या का हल क्या होगा? फिलहाल तो एक ही हल नजर आता है कि दूध को केवल गरम करके नहीं वरन् अच्छी तरह से उबाल कर फिर सेवन किया जाए। यही एक उपाय है जो रोगों से बचाने में कुछ हद तक सफल हो सकता है।
डॉ. महेश परिमल
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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