सोमवार, 6 जुलाई 2009

बड़े खतरे के रूप में उभर रहा चीन


नीरज नैयर
पेंटागन की रिपोर्ट पर अगर यकीन किया जाए तो चीन भारत के लिहाज से बहुत बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि उन्नत हथियारों में लगातार इजाफा करके चीन एशिया के सैन्य संतुलन बिगाड़ रहा है. वह परमाणु, अंतरिक्ष और साइबर युद्ध के लिए तकनीक विकसित कर रहा है, जिसके कारण क्षेत्रीय संतुलन गड़बड़ा रहा है. इससे एशिया-प्रशांत क्षेत्र से बाहर भी असर होगा. एक आशंका यह भी व्यक्त की गई है कि चीन के साथ पड़ोसी देश (भारत) का टकराव हो सकता है क्योंकि वह इस क्षेत्र में अपने को एकमात्र शक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. ऐसे हालात में युद्ध की स्थिति से भी इंकार नहीं किया गया है. रिपोर्ट में पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के भी युद्ध में शामिल होने की सम्भावनाओं पर विचार किया गया है. चीन से पाकिस्तान की नजदीकी किसी से छिपी नहीं है, बांग्लादेश का झुकाव भी चीन के प्रति अधिक हुआ है और म्यांमार की सैन्य सरकार से ड्रैगन के अच्छे रिश्ते हैं. इस लिहाज से अगर भविष्य में युद्ध की स्थिति निर्मित होती है तो भारत को चौतरफा हमलों का सामना करना पड़ेगा. हालांकि यह मानना जरा मुश्किल है कि चीन भारत के साथ 1962 जैसा सुलूक दोहरा सकता है. समय बदल गया है और भारत मजबूत स्थिति में है. उसने न सिर्फ अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है बल्कि तकनीक में भी महारथ हासिल की है.
वो आज परमाणु शक्ति संपन्न देशों की जमात में खड़ा है. ऐसे में चीन को पुराना रुख अपनाने से पहले सौ बार सोचना होगा. मगर ड्रैगन की फितरत उस भेडि़ए की माफिक है जो रात के अंधेरे में चुपके से वार करता है. इसलिए वो कब क्या करेगा कोई जान सकता. अरुणाचल पर दावा ठोंकने के बीच अचानक 2007 में उसने एक स्थानीय प्रोफेसर को वीजा देकर सबको चौंका दिया था, उसके इस कदम को जानकारों ने सीमा विवाद सुलझाने के प्रति गंभीरता दिखाने के रूप में लिया था लेकिन ऐसा कुछ अब तक देखने को नहीं मिला. दरअसल चीन अरुणाचल को अपना बताता रहा है और कहता रहा है कि स्थानीय लोगों को वीजा की कोई जरूरत नहीं. उस परिपेक्ष्य में तो उसका वीजा जारी करने का फैसला लेना अप्रत्याशित घटना थी. यह तो महज एक उदाहरण मात्र है चीनसमय-समय पर अपनी कथनी और करनी में फर्क के नमूने पेश करता रहा है. उसकी शुरू से यही कोशिश रही है कि भारत पर दबाव बनाकर उसे नियंत्रण में रखा जाए. भारत की दोस्ती और भाईचारे की तमात कोशिशों को नजरअंदाज करते हुए चीन हमारे खिलाफ जो षणयंत्रकारी खेल खेलता रहा है उसे समझने के लिए इतिहास की किताब के कुछ पन्नें पलटने होंगे. दोनों देशों के बीच की कटुता को बहुत लंबा समय गुजर चुका है. हिंदी चीनी भाई-भाई वाला मैत्री का दौर तिब्बत को मुक्त कराने वाले चीनी अभियान के साथ 1950 में ही खत्म हो गया था. इन्हीं दिनों चीन ने कुछ ऐसे नक्शे छापे, जिनमें भारतीय भू-भाग पर चीनी दावा किया गया था. इसके बाद उपजा सीमा विवाद दोनों को रणभूमि तक ले आया. 1958 में लोंग जू और कोंगका दर्रा पर मुठभेड़ में 13 भारतीय सैनिकों के शहीद हो जाने के बाद रिश्तों में तल्खी और तेज हो गई. 1959 में जब दलाई लामा ने पलायन किया और भारत में शरण ली तो चीनी नेता आगबबूला हो गये, चीन के कब्जे से पहले तिब्बत स्वतंत्र था. 25 लाख वर्ग किलोमीटर वाला यह देश चीन तथा भारत के मध्य बसा एशिया के बीचों-बीच स्थित है.
तिब्बत और भारत संबंध बड़े धनिष्टï रहे थे. विशेषकर 7वीं शताब्दी से जब भारत से बौद्घ धर्म का तिब्बत में आगमन हुआ था. जब तिब्बत स्वतंत्र था तो तिब्बती सीमाओं पर भारत के केवल 1500 सैनिक रहते थे और अब अनुमान है कि भारत उन्हीं सीमाओं की सुरक्षा के लिए प्रतिदिन 55 से 65 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है. 1950 के दौरान चीन ने तिब्बत के आंतरिक मामलों में दखल देना शुरू किया. चीन से लाखों की संख्या में चीनी तिब्बत में लाकर बसाए गये. जिससे तिब्बती अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएं और आगे जाकर तिब्बत चीन का अभिन्न अंग बन जाए. 1959 में जब तिब्बती जनता ने चीनी शासन के विरुद्घ विद्रोह किया तो चीन ने उसे पूरी शक्ति से कुचल दिया. दलाईलामा को प्राणरक्षा के लिए भारत आना पड़ा. इसके बाद तिब्बत की सरकार भंग कर दी गई और वहां सीधे चीन का शासन लागू कर दिया गया. 1960 में चीनी नेता चाऊ एन लाई की भारत यात्रा के दौरान भी जब सीमा विवाद नहीं सुलझा तो युद्घ के आसार सामने आने लगे. इसके बाद रही सही कसर नेहरू जी के उस भाषण ने पूरी कर दी जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने चीनियों को भारतीय भूमि से खदेड़ निकालने का आदेश दिया था. चीनी जैसे इसी मौके के इंतजार में थे उन्होंने इसे अपनी शान के खिलाफ समझा और भारत को युद्घ की आग में झोंक दिया, इस युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा था. इतना लंबा समय गुजर जाने के बाद भी चीन की विस्तारवादी आदतों में कोई बदलाव नहीं आया है, वो नए-नए क्षेत्रों पर अपना अधिकार जताता रहा है. कुछ दिन पहले वायुसेना प्रमुख एयर चीफ
मार्शल फाली एच मेजर ने भी कहा था कि भारत को पाकिस्तान के मुकाबले चीन से कहीं अधिक खतरा है. चीन की सेना का आकार पाकिस्तानी सेना से करीब तीन गुणा बड़ा है, लेकिन चीन की सैन्य क्षमता के बारे में सटीक जानकारी का नहीं होना चिंता का विषय है. यह बात सही है कि चीन की सैन्य क्षमता के बारे में स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कोई नहीं जानता कि उसकी ताकत किस हद तक है. चीन महज रक्षा समीकरण के लिहाज से ही नहीं बल्कि भौगोलिक दृष्टि में भी हमेशा कई गुना ज्यादा फायदे में है. वह तिब्बत से हम पर हमला कर सकता है, वैसी स्थिति में केवल 500 मीटर की दूरी होगी और बीजिंग दिल्ली के दरवाजे खटखटा रहा होगा. वह 1000 किमी. रेंज वाली अपनी मिसाइल से उत्तर भारत के किसी भी बड़े शहर को निशाना बना सकता है. जबकिभारत को ऐसा भौगोलिक लाभ ïनहीं मिल सकता. इसलिए भारत को पेंटागन की रिपोर्ट को गंभीरता से लेकर अपनी तैयारियां तेज कर देनी चाहिए.
नीरज नैयर

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