मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
महंगाई ने बदली जीवन शैली
महंगाई ने पिछले एक साल में लोगों की जीवन शैली में काफी बदलाव पैदा किया है। उच्च मध्य वर्ग के परिवारों में हालांकि इस महंगाई का असर ज्यादा नहीं दिखाई देता लेकिन ऐसे परिवार भी मानते हैं कि मामूली ही सही, उनकी लाइफस्टाइल में भी बदलाव जरूर आया है। सब्जियों, शक्कर, खाद्यान्न, दालों, दूध, घी, मिठाइयां और दूसरी तमाम खाने-पीने से जुड़ी चीजों की कीमतें इस दौरान दोगुनी तक बढ़ चुकी हैं।
अमेरिकी कंपनी ओपन सॉल्यूशंस में सीनियर टेक्निकल मैनेजर विशाल अग्रवाल इंदापुरम के शिप्रा में रहते हैं। विशाल की मासिक आय एक लाख रुपए से ऊपर है। पिछले साल भर में महंगाई के कारण खाने-पीने की आदतों में आए बदलाव के बारे में विशाल ने कहा, 'खाने-पीने का खर्च मेरी कुल सैलरी का करीब 10 फीसदी ही होगा। ऐसे में महंगाई से बजट पर बोझ बढ़ा है लेकिन यह इतना नहीं है कि कुछ कटौती करनी पड़ी हो।' लेकिन उच्च आय वर्ग में आने वाले विशाल का कहना है कि महंगाई ने उनकी जिंदगी के दूसरे पहलुओं को खासा प्रभावित किया है। उनकी पत्नी एक गृहिणी हैं। विशाल बताते हैं, 'पहले मैं हफ्ते में परिवार के साथ करीब तीन बार बाहर घूमने-फिरने, खाने-पीने के लिए जाता था, लेकिन अब ऐसा एक या दो बार ही होता है।'
लेकिन दिल्ली की एक बड़ी जनसंख्या ऐसी है जिसके लिए मनोरंजन तो दूर की बात, खाने की थाली भी उसकी जेब पर भारी पड़ रही है। पूर्वी दिल्ली के गांधी नगर इलाके में रहने वाले के बी सिंह एक निजी संस्थान में कंप्यूटर ऑपरेटर का काम करते हैं। के बी सिंह को 11,000 रुपए तनख्वाह मिलती है। किराए के घर में रहने वाले के बी के घर में पत्नी और दो बच्चे हैं। के बी बताते हैं, 'घर का खर्च इतनी तनख्वाह में चलाना मुश्किल हो गया है। इसमें सबसे ज्यादा खर्च खाने-पीने पर बढ़ा है। पहले घर खर्च के बाद थोड़ी सी बचत हो जाती थी अब घर खर्च के बाद जेब में कुछ भी नहीं बचता। यहां तक कि बहुत संभल कर चलने के बावजूद भी पूरा महीना काटना मुश्किल हो जाता है।' के बी सिंह कहते हैं, 'लौकी जैसी सब्जी की कीमत 20 से 24 रुपए है, जिसे आमतौर पर गांवों में कोई खाना पसंद नहीं करता है।'
निम्न मध्य वर्ग के बाहर जाकर खाने-पीने की गतिविधियों पर महंगाई की मार जबर्दस्त है। लोगों को रेस्त्रां, होटलों में जाना या हफ्ते के अंत में परिवार के साथ फिल्म देखने की अपनी इच्छा को महंगाई के दबाव में रोकना पड़ रहा है। के बी सिंह कहते हैं, 'पांच-छह महीने पहले मैं परिवार के साथ मूवी देखने गया था। यही हाल बाहर जाकर खाने-पीने का है। एक बार बाहर जाकर खाना खाने का खर्च 400-500 रुपए आता है। समझ लीजिए कि एक बार बाहर खाने से ही महीने का पूरा बजट इस वजह से बिगड़ने का डर रहता है।'
कीमतों की अगर बात की जाए तो जरूरी चीजों के दाम बेतरह बढ़े हैं। मसलन, पिछले साल इस वक्त चीनी का भाव 17-18 रुपए प्रति किलो था जो अब 34 रुपए पर है। मदर डेयरी और अमूल दूध की कीमतों में 2 रुपए की बढ़ोतरी कर चुके हैं। दालों का भी यही हाल है। दिल्ली में दालों को बेचने के लिए सरकार मैदान में कूद चुकी है, तब भी अरहर की दाल 75 रुपए प्रति किलो, चना दाल 34 रुपए प्रति किलो, मूंग दाल 58 रुपए और उड़द 49 रुपए प्रति किलो पर चल रही है। सब्जियों की कीमतों को देखा जाए तो आलू 18 से 22 रुपए प्रति किलो, तोरई 24 रुपए, परवल करीब 40 रुपए, करेला 38-40 रुपए, गोभी 40 रुपए और प्याज 15 रुपए प्रति किलो पर मौजूद हैं। ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि जानकारों की राय में आने वाले दिनों में भी इस परिस्थिति में ज्यादा अंतर आता नहीं दिखता
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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