मंगलवार, 1 दिसंबर 2009
तक्षशिला की मूर्तियों पर तालिबान की टेढ़ी नजर
पाकिस्तान के पुरातत्वविदों ने चेतावनी जारी की है कि आतंकवादी संगठन तालिबान और अलकायदा के आतंकवादी तक्षशिला इलाके में प्राचीन गांधार कला के नमूनों और बौद्ध धर्म कीमूर्तियॉं नष्ट कर रहे हैं । उनकी इस कारगुजारी के कारण यहां की अमूल्य धरोहर घीरे धीरे सिमट रही है । तक्षशिला संग्रहालय के वरिष्ठ अधिकारी अब्दुल नासिर खां के मुताबिक आतंकवादियों की गतिविधियां जारी रहीं तो देश की सांस्कृतिक संपदा एक दिन खत्म हो जाएगी और संस्कृति का तानाबाना छिन्न भिन्न हो जाएगा । गौरतलब है कि देश की राजधानी इस्लामाबाद से महज ३२ किलोमीटर दूर तक्षशिला पुरातत्व के नजरिए से सबसे महत्वपूर्ण उत्खनन जगहों में से एक है । विदेशी शोधकर्ता और तीर्थयात्री भारी संख्या में बौद्ध और हिन्दू धर्म के इस एक प्राचीनतम केंद्र में आते हैं । लेकिन आतंकवादियों की धमकी के बाद उनका तक्षशिला में आना बेहद कम हो गया है जिससे इस शहर की रौनक खत्म हो रही है । तक्षशिला के इस हालात ने मार्च 2001 में अफ्गानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों की उस बर्बर करतूत को ताजा कर दिया है जिसमें बामियान इलाके में स्थत भगवान बुद्ध की तकरीबन डेढ हजार साल पुरानी प्रतिमा को नष्ट कर दिया गया था और अब तक्षशिला की मूॢतयां और पुरात्तव महत्व की वस्तुओं को नष्ट करना तालिबान का एक और कुत्सित प्रयास है । तक्षशिला और आस पास के इलाके में हाल के दिनों तक 15.20 विदेशी संस्थान शोध के लिए खुदाई के काम में लगे थे लेकिन आतंकवादियों के खौफ् के कारण ये संस्थान लौट चुके हैं और शोध का काम फ्लिहाल ठप हो गया है ।
यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल तक्षशिला आज का नहीं बल्कि ईसा पूर्व आठवीं सदी का शहर है और यह पांचवी सदी ईसा बाद तक खूब फ्ली फ्लूी । इस दौरान यहां जिस कला ने अपने पांव पसारे उसे गांधार कला कहा गया । गांधार कला और मथुरा कला भारतीय उपमहाद्वीप की बेशकीमती कला विरासत का हिस्सा है । आज तक्षशिला के खण्डहर इतिहास की गवाही दे रहे हैं । इन खण्डहरों को पुरातत्वविदों ने तीन भागों में बांटा है और हर हिस्सा एक विशेषकाल खंड से जुडा है। सबसे पुराना हिस्सा छठी सदी ईसापूर्व का है । दूसरा हिस्सा दूसरी सदी के ग्रीक बैक्ट्रियन साम्राज्य के दौर का है जबकि तीसरा हिस्सा कुषाण साम्राज्य के समय का है । इन खण्डहरों के अलावा तक्षशिला में ढेर सारे बौद्ध स्तूप और मठ हैं । इनमें से धर्मराजिका स्तूप .जोलियान मठ और मोहरा मुरादू मठ काफ्ी प्रसिद्ध है । इतिहास में तक्षशिला के राजा आंभि का ल्लेख मिलता है । राजा आंभि ने यूनान के सम्राट ङ्क्षसकदर महान के भारत आक्रमण के समय आत्समर्पण कर दिया और सिकंदर को आगे जाने का रास्ता दिया । यह घटना ३२६ ईसापूर्व की है । इसके बाद झेलम के किनारे सिकंदर का सामना राजा पुरू ने किया । जिसकी वीरता ने विशालकाय यूनानी सेना को हैरत में डाल दिया था । बाद में तक्षशिला ३२१ से ३१७ ईसापूर्व के दौरान मगध के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के अधीन हो गया । महान रणनीतिकार और अर्थशा ग्रंथ के रचियता चाणक्य इसी महान सम्राट क े दाहिना हाथ थे । तक्षशिला का ज्यादा विकास चंद्रगुप्त मौर्य के पोते और सम्राट अशोक महान के शासनकाल में हुया । इस काल में तक्षशिला बौद्ध धर्म के केंद्र के रूप में आकार लेने लगा । इसके बाद सौ ईसापूर्व में इंडोग्रीक शासनकाल में तक्षशिला के निकट सिरकप नई राजधानी बनी ।अठहत्तर ईस्वी में यहां कुषाण शासक कनिष्क का प्रभुत्व रहा ।इस शहर का उल्लेख चीनी यात्री फ्हायिान और ह्वेनसांग ने भी किया है । तक्षशिला की ज्यादा प्रसिद्धि यहां मौर्य युग के बने एक विश्वविद्यालय से है । हालांकि इतिहासकारों में इसके स्वरूप पर मतभेद है । चाणक्य इसी विश्वविद्यालय में शिक्षक थे। इसके अलावा महान चिकित्सक चरक भी इसी संस्थान की खोज थे । चंद्रगुप्त मौर्य ने भी यहीं से शिक्षा ग्रहण की थी । उस दौर में १६ साल की उम्र पूरी करने पर ही इस विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलता था और वेद अध्ययन और आठ कलाओं में शिष्य को पारंगत किया जाता था । इनमें शिकार.धनुष बाण आदि का प्रशिक्षण एवं विधि.चिकित्सा और सैन्य कला में छात्र को निपुण बनाया जाता था ।
तक्षशिला गांधार कला का प्राचीन केंद्र भी रहा है । गांधार उस राज्य का नाम था जहां तक्षशिला स्थित था । गांधार कला और मथुरा कला भारत के दो विशेष कलावर्ग रहे हैं । गांधार की कला में जहां पाश्चात्य तत्वों की प्रधानता है वहीं मथुरा कला में भारतीय तत्वों का प्रभाव सहज ही महसूस किया जा सकता है । तक्षशिला के अलावा स्वात घाटी में स्थित संग्रहालय और पेशावर का संग्रहालय भी आतंकवादियों की धमकियों से जूझ रहे हैं । हालांकि स्वात घाटी में आतंकियों का असर कम हो गया है लेकिन उनका खतरा बना हुया है । पेशावर क ा संग्रहालय फ्लिहाल पर्यटकों के लिए तो खुला हुया है लेकिन सुरक्षा की ²ष्टि से इसका एक गेट सील कर दिया गया है और सीमेंट के बैरीकेडस लगा दिये गए हैं । लोगों को केवल पैदल आने की अनुमति है ।
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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जिस समाज ने अपनी संस्कृति को अपना न माना और पराई को अपना माना है, उससे उस संस्कृति की किसी धरोहर को बचाकर रखने की क्या अपेक्षा की जा सकती है?
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती