शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009
हिमालय रहेगा तो जीवन रहेगा: बहुगुणा
हिमालय की रक्षा के लिए लोगों को आगे आना चाहिए क्योंकि हिमालय रहेगा तो जीवन रहेगा। यह कहना है हिमालय बचाओ अभियान में जुटे सुप्रसिध्द पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का। उनका मानना है कि ग्लोबल वामग के दुष्प्रभाव से हिमालय ही बचा सकता है। ग्लोबल वामग से जलवायु परिवर्तन का खतरा पैदा हो गया है। पृथ्वी का तापमान लगातार तेजी से बढ़ रहा है जिससे हिमालय के ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं जिससे जन-जीवन के लिए भी खतरा बढ़ता ही जा रहा है। हिमालय क्षेत्र में बड़ी बांध परियोजनाएं बनाने के बजाए प्राकृतिक बांध बनाए जाने की आवश्यकता है और साथ ही हिमालयी क्षेत्रों में विकास की नीतियां ऐसी होनी चाहिए जिससे वहां पलायन रूके और पारिस्थितिकी तंत्र बचा रह सके। बेतरतीब विकास योजनाओं ने वहां पर जल, जंगलजमीन एवं जीवन के लिए संकट खड़ा कर दिया है।
चिपको आन्दोलन तथा कई अन्य आन्दोलन से जुड़े श्री बहुगुणा हिमालय बचाओ यात्रा के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि वे हिमालय की रक्षा के लिए कदम आगे बढ़ाए क्योंकि हिमालय रहेगा तभी जीवन भी रहेगा। पर्यावरण को लेकर हिमालयवासी सदैव जागरूक रहे हैं और सदियों से जल ् जंगल एवं जमीन की रक्षा करना उनकी परंपरा रही है। पहाड़ के लोग अव्यवहारिक विकास योजनाओं का हमेशा विरोध करते रहे हैं लेकिन उनके विरोध को अनसुना ही किया जाता रहा है। इसके बावजूद हिमालय की रक्षा के लिए वहां के लोगों विशेषकर महिलाओं ने बखूबी मेहनत की है। चिपको आन्दोलन में महिलाओं ने अहम भूमिका निभायी। ै क्या है जंगल के उपकार : मिट्टी, पानी और बयार ै। का नारा देकर लोग हमेशा वनों की रक्षा के लिए आगे आए लेकिन पहले ब्रिटिश हुक्मरानों तथा आजादी के बाद देशी नुमाइंदों ने जनभावनाओं को दरकिनार कर ैे दिया है। जंगल के उपकार .लीसा, लकड़ी और व्यापार ै को तवाो देकर ऐसी नीतियां अपनायी जिससे वनों की भयंकर तबाही हुई। अंग्रेजों ने प्राकृतिक वनों को नेस्तनाबूद करके चीड़ जैसे शंकुल वन पैदा कर दिए। चीड़ जमीन का पानी और उसके पोषक तत्वों को सोख लेता है जिससे दूसरे तरह के पौधों को पनपने का मौका ही नहीं मिलता है। जिसका नतीजा यह है कि आज हिमालय रेगिस्तान में तब्दील होता जा रहा है। आजादी के बाद देश के नेताओं और नीति..नियंताओं ने भी इस समस्या का निराकरण की बजाय तबाही ही जारी रखना उचित समझा। पद्मविभूषण सम्मान से सम्मानित सुह्नरसिध्द पर्यावरणविद् अपनी हिमालय बचाओ यात्रा के दौरान विभिन्न राज्यों के विधायकों, सांसदों , राज्यपालों एवं मुख्यमंत्रियों से मिलकर गुहार लगा रहे हैं कि ग्लोबल वामग से हिमालय ही बचा सकता है। हिमालय की रक्षा के लिए वहां की आबादी का टिके रहना भी जरूरी है। बड़ी बांध रियोजनाओं ने विकास का विनाशकारी मॉडल स्थापित कर विस्थापन की त्रासदी को पैदा किया है तथा जल, जमीन एवं जंगल नष्ट होने से खेती और पशुपालन काफी कठिन होता गया है।
आज हालात् यह है कि परंपरागत अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गयी है तथा लोग जीविका की तलाश में पलायन करने को विवश हो गए हैं। पलायन का यह सिलसिला लगातार जारी है। जनप्रतिनिधियों को इन सारी समस्याओं की जानकारी देकर बताया जा रहा है कि हिमालयी क्षेत्र के विकास की ऐसी ठोस नीति बनायी जाय जिससे सीमाओं के प्रहरी वहीं रूक सकें और देश को वहां से पानी मिलता रहे। पहाड़ी क्षेत्रों की परंपरागत अर्थव्यवस्था को जीवित रखकर वहां रोजगार के ऐसा साधन विकसित हो जिससे लोगों को जीविका के लिए पलायन न करना पड़े। खेती के पारंपरिक स्वरूप तथा पशुपालन को बढ़ावा मिलना चाहिए। हिमालय में विशाल बांध परियोजनाओं के स्थान पर पूरे हिमालय को ही प्राकृतिक बांध बनाया जाय तथा पूरे हिलकैचमेंट को पेड़ो से भर दिया जाए ताकि वहां जल ठहर सके। इसके अलावा पहाड़ी ढाल पूरी तरह वनस्पति से ढके होने चाहिए तथा जल संचयन के लिए नीचे बहते पानी को लिफ्ट कर चोटी पर पहुंचाना होगा क्योंकि हरियाली तथा खुशहाली के ऐसा किया जाना जरूरी है। पहाड़ों में एकल प्रजाति के शंकुल वनों की जगह चौड़ी पत्तीवाले फलदार एवं रेशेदार पेड़ लगाए जाने चाहिए ताकि इससे जल संरक्षण होने के साथ ही लोगों को फायदा भी अधिक मिले ग्लोबल वामग से ग्लेशियरों पर और अधिक खतरा मंडरा रहा है और बड़े ..बांधों ने नदियों को मृत बना दिया है अविरल तथा टेढ़ी..मेढ़ी(सर्पाकार) बहने वाली नदियों का पानी शुध्द होता है। आज पहाड़ों में बांध बन जाने से मैदानी भाग के लोगों को शुध्द पानी नहीं नसीब हो रहा है अतएव हिमालय को बचाने के लिए देश के हर नागरिक को फिक्रमंद होना चाहिए। हिमालयी नीति बनने में हिमालय बसाने का विचार भी शामिल है। हिमालय में प्राकृतिक बांध बने तथा जल की समस्या जो कि स्थायी है उसका हल भी स्थायी रूप से होना चाहिए। पर्वतराज हिमालय को बचाना और बसना सामाजिक तथा सुरक्षा के द्यष्टिकोण भी काफी महत्वपूर्ण है। हिमालय वासियों के वहां बने रहने के लिए उनकी जरूरतों के अनुरूप ही नीतियां बननी चाहिए। हिमालय बचाओं मुहिम के पहले चरण में श्री बहुगुणा के साथ उत्तराखंड के विधायक किशोर उपाध्याय ् विमला बहुगुणा एवं राजीव नयन बहुगुणा सहित कई हस्तियां शामिल रहीं और उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, असम, सिक्किम ् नगालैंड, मेघालय, मणिपुर, हिमाचल एवं अरूणाचल प्रदेश का दौरा किया।दूसरे चरण में पर्यावरणविद् उन क्षेत्रों अथवा राज्यों में जाएंगे जहां से हिमालयी नदियां गुजरती हैं इनमें उत्तर प्रदेश तथा बिहार एवं बंगाल शामिल हैं और अंतिम चरण में हिमालयी सीमा से जुड़े देशों नेपाल, भूटान तथा चीन और अफगानिस्तान में जाकर हिमालय और पर्यावरण की रक्षा के लिए लोगों को जागरूक करेंगे।
लेबल:
पर्यावरण
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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