
हिमालय की रक्षा के लिए लोगों को आगे आना चाहिए क्योंकि हिमालय रहेगा तो जीवन रहेगा। यह कहना है हिमालय बचाओ अभियान में जुटे सुप्रसिध्द पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का। उनका मानना है कि ग्लोबल वामग के दुष्प्रभाव से हिमालय ही बचा सकता है। ग्लोबल वामग से जलवायु परिवर्तन का खतरा पैदा हो गया है। पृथ्वी का तापमान लगातार तेजी से बढ़ रहा है जिससे हिमालय के ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं जिससे जन-जीवन के लिए भी खतरा बढ़ता ही जा रहा है। हिमालय क्षेत्र में बड़ी बांध परियोजनाएं बनाने के बजाए प्राकृतिक बांध बनाए जाने की आवश्यकता है और साथ ही हिमालयी क्षेत्रों में विकास की नीतियां ऐसी होनी चाहिए जिससे वहां पलायन रूके और पारिस्थितिकी तंत्र बचा रह सके। बेतरतीब विकास योजनाओं ने वहां पर जल, जंगलजमीन एवं जीवन के लिए संकट खड़ा कर दिया है।
चिपको आन्दोलन तथा कई अन्य आन्दोलन से जुड़े श्री बहुगुणा हिमालय बचाओ यात्रा के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि वे हिमालय की रक्षा के लिए कदम आगे बढ़ाए क्योंकि हिमालय रहेगा तभी जीवन भी रहेगा। पर्यावरण को लेकर हिमालयवासी सदैव जागरूक रहे हैं और सदियों से जल ् जंगल एवं जमीन की रक्षा करना उनकी परंपरा रही है। पहाड़ के लोग अव्यवहारिक विकास योजनाओं का हमेशा विरोध करते रहे हैं लेकिन उनके विरोध को अनसुना ही किया जाता रहा है। इसके बावजूद हिमालय की रक्षा के लिए वहां के लोगों विशेषकर महिलाओं ने बखूबी मेहनत की है। चिपको आन्दोलन में महिलाओं ने अहम भूमिका निभायी। ै क्या है जंगल के उपकार : मिट्टी, पानी और बयार ै। का नारा देकर लोग हमेशा वनों की रक्षा के लिए आगे आए लेकिन पहले ब्रिटिश हुक्मरानों तथा आजादी के बाद देशी नुमाइंदों ने जनभावनाओं को दरकिनार कर ैे दिया है। जंगल के उपकार .लीसा, लकड़ी और व्यापार ै को तवाो देकर ऐसी नीतियां अपनायी जिससे वनों की भयंकर तबाही हुई। अंग्रेजों ने प्राकृतिक वनों को नेस्तनाबूद करके चीड़ जैसे शंकुल वन पैदा कर दिए। चीड़ जमीन का पानी और उसके पोषक तत्वों को सोख लेता है जिससे दूसरे तरह के पौधों को पनपने का मौका ही नहीं मिलता है। जिसका नतीजा यह है कि आज हिमालय रेगिस्तान में तब्दील होता जा रहा है। आजादी के बाद देश के नेताओं और नीति..नियंताओं ने भी इस समस्या का निराकरण की बजाय तबाही ही जारी रखना उचित समझा। पद्मविभूषण सम्मान से सम्मानित सुह्नरसिध्द पर्यावरणविद् अपनी हिमालय बचाओ यात्रा के दौरान विभिन्न राज्यों के विधायकों, सांसदों , राज्यपालों एवं मुख्यमंत्रियों से मिलकर गुहार लगा रहे हैं कि ग्लोबल वामग से हिमालय ही बचा सकता है। हिमालय की रक्षा के लिए वहां की आबादी का टिके रहना भी जरूरी है। बड़ी बांध रियोजनाओं ने विकास का विनाशकारी मॉडल स्थापित कर विस्थापन की त्रासदी को पैदा किया है तथा जल, जमीन एवं जंगल नष्ट होने से खेती और पशुपालन काफी कठिन होता गया है।

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