अमीर देश के गरीब लोगडॉ. महेश परिमल
उस दिन मेरी बिटिया निबंध पढ़ रही थी, जिस में लिखा था कि भारत एक अमीर देश है, जहाँ गरीब लोग रहते हैं। मुझे आश्चर्य हुआ, भला ये क्या पढ़ रही है बिटिया? मैंने उसकी कॉपी ध्यान से देखी, लिखा तो सही था, क्लॉस में मैडम ने यही लिखवाया था। दिन भर यह वाक्य मेरे जेहन में घूमता रहा। यह सच है कि पहले भारत सोने की चिडिय़ा कहलाता था। इसके बाद गरीब देश हो गया, फिर बना विकासशील देश। लेकिन अब यह कैसे बन गया, अमीर देश, जहाँ गरीबों को प्रश्रय मिला है? ङ्क्षचतन प्रक्रिया से गुजरते हुए यह बात सामने आई कि सचमुच आज भारत तेजी से उद्योगपतियों का देश बन गया है, पर उससे भी दोगुनी तेजी से वह भामाशाहों से वंचित होने लगा है। इसी बीच एक खबर पढऩे को मिली कि एक कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर संजय सोमानी, जिसकी सालाना आय 63 लाख है, नई दिल्ली एयरपोर्ट पर 20 हजार का मोबाइल चोरी करते हुए पकड़ा गया। कैसी मानसिकता है, इंसान जितना अधिक अमीर होता है, उतना ही अधिक कंजूस होता जाता है। शायद यही स्थिति आज हमारे देश की है। पहले गरीब था, तो दानदाता अधिक थे, आज अमीर है, तो दानदाताओं का कहीं अता-पता नहीं।
कुछ वर्ष पहले जब बिल गेट्स भारत आए थे, तब उनके सम्मान में आयोजित समारोह में सोनिया गांधी ने कहा था कि भारत दानदाताओं का देश है। सोनिया जी ने यह बात भूतकाल के परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर कही थी। आज यदि देश के दानदाताओं की ओर दृष्टि डालें, तो स्पष्ट होगा कि हमारे समाज में अब दानदाताओं की संख्या में तेजी से कमी आ रही है। इसकी कुछ वजहें हैं। पहली तो यही कि आज हमारी कानूनी पेचीदगियाँ बढ़ गई हैं, यदि कहीं मोटी राशि दान में दी जाए, तो आयकर वाले पीछे पड़ जाते हैं। इस विभाग को समझाना बहुत ही कठिन है। व्यक्ति की जब आय होती है, तो यह विभाग उसके साथ-साथ होता है, पर जब वहीे व्यक्ति गरीब हो जाता है, तो यह विभाग उसकी ओर देखना भी ठीक नहीं समझता। इसके अलावा दूसरी मानसिकता यह भी है कि जब व्यक्ति दान देता है, तो वह चाहता है कि दान की राशि सही व्यक्ति तक पहुँचे। पर ऐसा हो नहीं पाता, दान की राशि संस्था के संचालकों का घर भर देती है, राशि सही लोगों तक नहीं पहुँच पाती। हाल ही में सलमान खान ने कैंसरग्रस्त एक बालिका के इलाज के लिए 5 लाख का चेक टाटा मेमोरियल हास्पीटल के नाम दिया। काफी समय गुजरने के बाद सलमान का पता चला कि उसके द्वारा दान में दी गई राशि उस बालिका तक नहीं पहुँच पाई। टाटा मेमोरियल जैसी संस्था और सलमान खान जैसे सेलिब्रिटी के साथ जब ऐसा हो सकता है, तो फिर साधारण लोगों द्वारा दी गई दान की राशि का क्या होता होगा? यही वजह है कि इंसान दान देने से कतराने लगा है।
अब भारत के अतीत की ओर झाँके। यही वह देश है, जहाँ कर्ण जैसे दानवीर पैदा हुए हैं। भामाशाह जैसे सेवक पैदा हुए हैं। यहीं पंडित मदन मोहन मालवीय और एनी बेसेंट ने मिलकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर डाली। डेविड सासुन जैसे विदेशी व्यक्ति ने गेट वे ऑफ इंडिया के निर्माण में आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1841 में लेडी अवाबाई जीजीभोये ने 1 लाख 57 हजार रुपए दान देकर साउथ मुंबई को माहिम से जोडऩे वाले कोज-वे का निर्माण करवाया। इसके निर्माण के पहले ही भारत सरकार के से यह समझौता कर लिया था कि इस रास्ते से गुजरने वाले राहगीर से टोल टैक्स नहीं लिया जाएगा। हाल ही में बांद्रा-वर्ली सी लिंक का उपयोग करने वालों से 50 रुपए टोल टैक्स के रूप में लिए जाते हैं। हमारे देश में आज भी कई मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारेे हैं, जहाँ लंगर का आयोजन होता है, यहाँ भोजन दान की राशि से बनता है। कई स्थानों के बारे में अभी तक यह पता नहीं चलता कि दान की राशि आती कहाँ से है? फिर भी धनपतियों में अब दान की इच्छा धीरे-धीरे समाप्त होने लगी है। दूसरी ओर विदेश से आने वाले बिल गेट्स, रिचर्ड गेरे, प्रिंस चाल्र्स धनपति अपने हितार्थ भारत में दान देते हैं, जिसे हम सहजता के साथ स्वीकार कर लेते हैं।
भारत में अंबानी, हिंदुजा, मित्तल और टाटा जैसे चार औद्योगिक समूह की संयुक्त संपत्ति की गिनती की जाए, तो वह करीब 60 मिलियन डॉलर होती है। इतनी राशि तो एक छोटे देश की पूरी सम्पत्ति होती है। इसके बाद भी इन लोगों द्वारा किए जा रहे दान से भारत की गरीबी को दूर करने में 'ऊँट के मुँह में जीराÓ साबित हो रही है। हाल ही में 'द ज्वाय ऑफ गिविंगÓ वीक का आयोजन किया गया। इसमें सचिन तेंदुलकर का चयन ब्रांड एम्बेसेडर के रूप में किया गया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए एक बड़ी राशि दने वाली नंदिता दास ने कहा कि ऐसा नहीं है कि हमारे देश में दानदाताओं की संख्या कम हो रही है। आज भी हमारे समाज में ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है, जो दान देकर भूल जाते हैं। उन्हें प्रचार पसंद नहीं है। इसलिए उनके दान की चर्चा नहीं होती। चर्चा केवल उन्हीं दान की होती है, जिसका प्रचार-प्रसार किया जाता है। इसलिए लोगों को लगता है कि देश में दानदाताओं की संख्या में लगातार कमी आ रही है। एक और वजह यह है कि दान देने वालों के पीछे आयकर विभाग पड़ जाता है। इसके अलावा लोगों में अब यह डर बैठ गया है कि दान की राशि सही हाथों तक नहीं पहुँचती। जो सलमान खान के साथ हुआ, वह सबके साथ हो सकता है। व्यवस्था से विश्वास उठने लगा है, लोगों का। यदि व्यवस्था सही हो जाए, इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
दान के बारे में रतन टाटा कहते हैं कि पहले शैक्षणिक संस्था, अस्पताल बनाने के लिए दान दिया जाता था। पर अब दान का स्वरूप बदलने लगा है। अब दान, व्यक्ति के विकास और महिला भू्रण हत्या रोकने, जल बचाने एवं जनजागरण के लिए दिया जाने लगा है। अब उद्योगपति व्यक्तिगत दान देने के बजाए अपनी कंपनियों द्वारा स्थापित की गई कार्पोरेट फाउंडेशन को देने लगे हैं। दान पर ही उद्योगपति गोदरेज फाउंडेशन के चेयरपर्सन परमेश्वर गोदरेज कहते हैं कि समाज में परिवर्तन तभी आएगा, जब सक्षम व्यक्ति और संस्था सरकार के साथ संयुक्त रूप से प्रयास करने के लिए आगे आएँगे।
डॉ. महेश परिमल
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009
भारत में कम होते भामाशाह
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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