गुरुवार, 10 दिसंबर 2009
आज भी बरकरार है ही मैन की छवि
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के ही मैन धर्मेद्र कों अपने सिने करियर के शुरूआती दौर में ऐसे दिन भी देखने पडो थे' जब निर्माता-निर्देशक उन्हें फिल्मों के लिए अनुपयुक्त बताकर घर लौट जाने की सलाह दिया करते थे।
08 दिसंबर 1935 को पंजाब के फगवाडा में जन्मे धर्मेद्र का रूझान बचपन से ही फिल्मों की ओर था और वह अभिनेता बनना चाहते थे। फिल्मों के लिए उनकी दीवानगी का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि फिल्में देखने के लिए वह मीलो पैदल चलकर शहर जाते थे। अभिनेत्री सुरैया के वह इस कदर दीवाने थे कि उन्होंने 1949 में प्रदशत उनकी फिल्म दिल्लगी चालीस बार देख डाली थी। वर्ष 1958 में फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर पत्रिका फिल्म फेयर ने एक विज्ञापन निकाला' जिसमें नए चेहरों को अभिनेता के रूप में काम देने की पेशकश की गई थी।धर्मेद्र इस विज्ञापन को पढ़कर काफी खुश हुए और नौकरी छोड़कर अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई आ गए लेकिन यहां उन्हे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मुंबई में काम काम पाने के लिए वह स्टूडियों दर स्टूडियों भटकते रहे। वह जहां भी जाते उन्हें खरी खोटी सुननी पड़ती।धमेन्द्र चूंकि विवाहित थे 'अत कुछ निर्माता उनसे यह कहते कि यहां तुम्हें काम नही मिलेगा। कुछ लोग उनसे यहां तक कहते कि उन्हें अपने गांव लौट जाना चाहिए और वहां जाकर फुटबॉल खेलना चाहिए लेकिन धर्मेद्र ने उनकी बातों को अनसुना कर अपना संघर्ष जारी रखा। उसी दौरान धर्मेद्र की मुलाकात निर्माता-निर्देशक अर्जुन हिंगोरानी से हुई 'जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचान कर अपनी फिल्म'दिल भी तेरा हम भी तेरे में उन्हें नायक के रूप में काम करने का मौका दिया लेकिन फिल्म की असफलता से धर्मेद्र को गहरा धक्का लगा और एक बार उन्होंने यहां तक सोच लिया कि मुंबई में रहने से अच्छा है कि गांव लौट जाया जाए।बाद में धर्मेद्र ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया। फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे की असफलता के बाद धर्मेद्र ने माला सिन्हा के साथ अनपढ़, पूजा के फूल, नूतन के साथ बंदिनी ्और मीना कुमारी के साथ काजल जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया। इन फिल्मों को दर्शकों ने पसंद तो किया लेकिन कामयाबी का श्रोय बजाय धर्मेद्र के फिल्म अभिनेत्रियों को दिया गया। वर्ष 1966 में प्रदशत फिल्म 'फूल और पत्थर 'की सफलता के बाद सही मायनों में बतौर नायक धर्मेद्र अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। फिल्म में उन्होंने एक ऐसे मवाली का अभिनय किया' जो समाज की परवाह किए बिना अभिनेत्री मीना कुमारी से प्यार करने लगता है। दिलचस्प बात है कि आज के दौर के नायक अपने शरीर सौष्ठवको दिखाने के लिए बेवजह कमीज उतार देते है पर इस फिल्म के जरिए धर्मेद्र पहले ऐसे नायक हुए जिन्होंने इस परंपरा की नीवं रखी। इस फिल्ममें अपने दमदार अभिनय के कारण वह फिल्म फेयर के सर्वश्रोष्ठ अभिनेता पुरस्कार के लिए नामांकित भी किए गए।
धर्मेद्र को प्रारंभिक सफलता दिलाने में निर्माता -निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी की फिल्मों का अहम योगदान रहा है। इनमें अनुपमा, मंझली दीदी और सत्यकाम जैसी फिल्में शामिल है। सत्यकाम में धर्मेद्र ने एक ऐसे युवक का किरदार निभाय' जिसने देश की स्वतंत्रता के बाद जैसा सपना देश के बारें में सोचा था' वह पूरा नहीं हो पाता है। फिल्म के एक द्यश्य में धमेन्द्र को जब मरना होता है तो इस द्यश्य में बिना बोले उन्होंने सिर्फ अपनी आंखों के जरिए दिखा दिया कि उनकी आंखे भी बोलती है। हालांकि फिल्म टिकट खिड़की पर असफल साबित हुई लेकिन सिने दर्शकों का मानना है कि यह उनकी कैरियर की उत्कृष्ठ फिल्मों में से एक है। फूल और पत्थर की सफलता के बाद धर्मेद्र की छवि ही मैन के रूप में बन गई। इस फिल्म के बाद निर्माता निर्देशकों ने अधिकतर फिल्मों में धर्मेद्र की ही मैन वाली छवि को भुनाया। निर्माताओं ने उन्हें को एक ऐसे नायक के रूप में पेश किया' जिसे अपनी जिस्मानी ताकत पर पूरा भरोसा है और अपनी इसी ताकत के बल पर वह समाज में फैल रहे जुल्म और अत्याचार को अकेले समाप्त कर देना चाहता है। इन फिल्मों में आंखे, प्रतिज्ञा और शोले, जैसी फिल्में शामिल है।
सत्तर के दशक में धर्मेद्र पर यह आरोप लगने लगे कि वह केवल मारधाड़ और एक्शन से भरपूर फिल्में ही कर सकते है। धर्मेद्र को इस छवि से बाहर निकालने में एक बार फिर से निर्माता -निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने मदद की। और उन्हें लेकर चुपके चुपके जैसी हास्य से भरपूर फिल्म का निर्माण किया और उनसे हास्य अभिनय कराकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। फिल्म इंडस्ट्री के रूपहले पर्दे पर धर्मेन्द्र की जोड़ी हेमा मालिनी के साथ खूब जमी। यह फिल्मी जोंडी सबसे पहले फिल्म 'शराफत से चर्चा में आई। वर्ष 1975 में प्रदशत फिल्म शोले में धर्मेन्द्र ने वीर और हेमा मालिनी ने बसंती की भूमिका में दर्शकों का भरपूर मनोंरजन किया। हेमा और धमेन्द्र की यह जोड़ी इतनी अधिक पसंद की गई कि फिल्म इंडस्ट्री में 'ड्रीम गर्ल' के नाम से मशहूर हेमा मालिनी उनके रीयल लाइफ की ड्रीम गर्ल बन गईं। बाद में इस जोड़ी ने ड्रीम गर्ल, चरस, आसपास, प्रतिज्ञा, राजा जानी, रजिया सुल्तान, अली बाबा चालीस चोर, बगावत, आतंक, द बनग ट्रेन, दोस्त, आदि फिल्मों में एक साथ काम किया।
वर्ष 1975 धर्मेद्र के सिने कैरियर का अहम पड़ाव साबित हुआ और उन्हें निर्देशक रमेश सिप्पी की फिल्म शोले में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में अपने अल्हड़ अंदाज से धर्मेद्र ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। फिल्म में उनकके संवाद उन दिनों दर्शकों की जुबान पर चढ़ गए। खास तौर पर जब धर्मेद्र शराब के नशे में पानी की टंकी पर चढ़कर कूद जाउंगा फांद जाउंगा 'जिस अंदाज में बोला था'उसकी चर्चा और नकल सिने प्रेमी आज भी करते हैं। धर्मेद्र के सिने कैरियर पर नजर डालने पर पता चलता है कि वह मल्टी स्टारर फिल्मों का अहम हिस्सा रहे है। जब कभी फिल्म निर्माताओ को ऐसी फिल्मों में' अभिनेता की जरूरत होती' वह धर्मेद्र को नजर अंदाज नहीं करते थे। धर्मेद्र की मल्टीस्टारर सुपरहिट फिल्मों में कुछ है मेरा गांव मेरा देश, यादों की बारात, शोले, धरमवीर, राम बलराम, द बनग ट्रेन ्राजपूत, राजतिलक, गुलामी ्सल्तनत, लोहा ्इंसानियत के दुश्मन, तहलका, फरिश्ते, क्षत्रिय आदि ' अपने पुत्र सनी देओल को लांच करने के लिए उन्होंने 1983 में 'बेताब ' जैसी सुपरहिट फिल्म का निर्माण किया। इसके अलावा उन्होंने 1990 में सनी को लेकर 'घायल 'जैसी सुपरहिट फिल्म का निर्माण किया। उल्लेखनीय है कि फिल्म 'घायल 'ने सनी देओल के कैरियर को नई दिशा दी। इस फिल्म के लिए वह सर्वश्रोष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। वर्ष 1995 में अपने दूसरे पुत्र बाबी देओल को लांच करने के लिए धमेन्द्र ने फिल्म 'बरसात 'का निर्माण किया।
सत्तर के दशक में हुए एक सर्वेक्षण के दौरान धमेन्द्र को विश्व के सबसे खूबसूरत व्यक्तियों में शामिल किया गया। उनके प्रभावी व्यक्तित्व के कायल अभिनय सम्राट दिलीप कुमार भी है जिन्होंने उनकी बड़ाई करते हुए कहा था जब कभी मैं खुदा के दर पर जाउंगा' मै बस यही कहूंगा कि मुझे आपसे केवल एक शिकायत है आपने मुझे धर्मेद्र जैसा हैंडसम व्यक्ति क्यों नही बनाया। धर्मेद्र ने चार दशक लंबे सिने करियर में कई फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीता लेकिन दुर्भाग्य से किसी भी फिल्म में सर्वश्रोष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर से सम्मानित नहीं किए गए। हालांकि फूल और पत्थर 1966, मेरा गांव मेरा देश 1971, यादों की बारात 1973 और रेशम की डोरी 1974 के लिए वह सर्वश्रोष्ठ अभिनेता के पुरस्कार के लिए नामांकित अवश्य किए गए। इसके अलावा आई मिलन की बेला के लिए सर्वश्रोष्ठ सहायक अभिनेता और नौकर बीबी का 1983 के लिए सर्वश्रोष्ठ कॉमिक अभिनेता के लिए भी नामांकित किए गए। धर्मेद्र को फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1997 में जब फिल्मफेयर के लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने कहा 'मैने अपने करियर में सैकड़ो हिट फिल्में दी है लेकिन मुझे कभी अवार्ड के लायक नही समझा गया। आखिरकार मुझे अब अवार्ड दिया जा रहा है। मैं खुश हूं। फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद धर्मेद्र ने समाज सेवा के लिए राजनीति में प्रवेश किया और 2004 में राजस्थान के बीकानेर से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर लोकसभा के सदस्य बने। धर्मेद्र अब तक लगभग ढाई सौ फिल्मों में अभिनय कर चुके है लेकिन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें उनक।कद के बराबर वह सम्मान नही मिला' जिसके वह हकदार है लेकिन अमेरीका की प्रसिध्द मैगजीन टाइम पत्रिका ने विश्व के दस सुंदर व्यक्तियों में शामिल करके प्रथम उनके चित्र को मुखपृष्ठ पर प्रकाशित किया और राजस्थान में उनके प्रशंसको ने उनके वजन से दुगना खून देकर ब्लड बैंक की स्थापना की, जो उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं।
प्रेम कुमार
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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