बुधवार, 8 दिसंबर 2010

मत रखियों अपनी बिटिया का नाम नीरा


-मनोज कुमार
शीर्षक पढ़ कर आपको शायद अच्छा न लगे किन्तु सच यही है। जो लोग जिम्मेदार हैं और जिन लोगों से प्रेरणा पाकर समाज उनका अनुसरण करता है वही लोग इस तरह के कर्म करेंगे तो कहना ही होगा कि मत रखियों अपनी बिटिया का नाम
नीरा। आइए इस बहाने ही सही एक बार नामकरण पर थोड़ी चर्चा हो ही जाए।भारतीय मानस हमेशा से चर्चित और प्रेरणा देने वालों के नाम पर अपने बच्चों का नामकरण करता आया है। भारतीय समाज में साक्षरता का प्रतिशत भले ही कम हो किन्तु समाज हमेशा से विवेकवान रहा है। जिस समय हर मंच पर नीरा राडिया और नीरा यादव की चर्चा हो रही है। अखबार के पन्नों और टेलीविजन के पर्दे पर उनकी बात कही और सुनी जा रही है तब संभव है कि कुछ माता-पिता इन नामों पर फिदा हो जाएं और जैसे होता आया है हर चर्चित नाम अपने बच्चों के कर दिये जाएं।
राम एक सर्वकालिक चरित्र हैं। चरित्रवान बच्चे की तमन्ना के साथ राम का नाम सदियों से लोग रखते आये हैं और लक्ष्मण को आज्ञाकारी भाई के रूप में देख कर उसका नाम भी स्नेहपूर्वक रखा गया है। भरत को भी समाज ने अनदेखा
नहीं किया और अनेक परिवारों में ऐसे नाम रखे गये। समय समय पर इतिहास में नाम दर्ज कराने वाले व्यक्तियों के नाम भी अनेक परिवारों में दर्ज हो गये। भारतीय समाज विवेकवान है इसलिये उसे राम, लक्ष्मण, भरत, सीता, पार्वती, राधा, कृष्ण नाम रखने में कभी संकोच नहीं हुआ किन्तु उसने कभी अपने बच्चे का नाम विभीषण नहीं रखा। ऐतिहासिक तथ्य है कि अपने भाई से विद्रोह कर राम की मदद करने वाले विभीषण को लोग याद करते हैं किन्तु यह नहीं भूलते कि जो अपने परिवार का नहीं हुआ, अपने भाई का नहीं हुआ वह भला हमारा कैसे हो सकता है? ऐसे में उनका नाम किसी ने अपने बच्चे का नाम नहीं बनाया। आधुनिक समाज में भी गांधी और नेहरू के नाम पर हजारों बच्चे मिल जाएंगे, इंदिरा नाम की बच्चियों की तादात भी कम नहीं होगी लेकिन कानून की परिधि से बाहर जाकर काम करने वाले फूलनदेवी, मलखानसिंह और दाउद के नाम
वाले शायद ढूंढ़ने से भी न मिले। खिलाड़ियों और फिल्मस्टार के नाम पर तो लगभग हर परिवार में एक चिराग मिल जाए।
इस सिलसिले में मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के एक परिवार की घटना का उल्लेख करना सामयिक होगा। यहां एक पिता ने सानिया मिर्जा के नाम पर अपनी लाडली का नाम रख दिया। सोचा सानिया ने जैसे देश का नाम किया है वैसा ही
उसकी बेटी भविष्य में करेगी लेकिन उसे निराशा अपनी बेटी से नहीं सानिया से हुई। सानिया ने पाकिस्तानी से ब्याह का ऐलान किया। सानिया के इस फैसले से दुखी पिता ने तत्काल अपनी बेटी का नाम बदल कर सोनिया कर दिया। पिता को
इस बात का भय रहा होगा कि उसकी बेटी एक दिन अपने देश का नाम खराब न कर दें। इसे सहज और स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानी जानी चाहिए और उस व्यक्ति के देशप्रेम को सलाम किया जाना चाहिए।
हमारे देश में इन दिनों नीरा नाम पर ग्रहण लगा हुआ है। नीरा राडिया का नाम खबर की सुर्खियों से धुंधला पड़ा ही नहीं था कि एक और नीरा के कारनामे सुर्खियों में आ गये। ये दूसरी हैं नीरा यादव। नीरा यादव उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यसचिव हैं और उन्हें जमीन घोटाले के मामले में चार साल की कैद सुनायी गयी है। समाज का मूलभूत नियम तो यह कहता है कि एक शक्तिशाली एक निरीह और जरूरतमंद को अपनी तरह शक्तिशाली बनाये किन्तु अनुभव ठीक इसके विपरीत है। नीरा राडिया और नीरा यादव सशक्त स्त्रियों के रूप में सामने आयी हैं किन्तु इन दोनों महिलाओं ने स्त्रियों की दशा सुधारने में कोई प्रयास नहीं किया। समय बतायेगा कि नीरा राडिया और नीरा यादव कितनी सही और गलत थीं लेकिन आज तो यह बात साफ है कि इनकी कमाई के एजेंडे में, लाभ देने ले लोगों की सूची में पांच गरीब और असहाय महिलाएं भी होती तो समय न सही, समाज का एक वर्ग तो इन्हें माफ कर देता। इस मामले में सच तो यही है कि सशक्त और बलशाली लोगों की कौम एक अलग होती है और निशक्त: और निर्बल लोगों की एक अलग कौम। हम उम्मीद कर सकते हैं कि बार बार नीरा का नाम आ
रहा है किन्तु जिस तरह समाज ने विभीषण जैसे नामों से परहेज किया वैसा ही कुछ भाव भी इन नामों के साथ होगा।
-मनोज कुमार

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