बुधवार, 22 दिसंबर 2010

प्रतिभाओं को नजरअंदाज करती मध्यप्रदेश सरकार



डॉ. महेश परिमल

उपेक्षा किसी की भी हो, अच्छी बात नहीं है। उपेक्षित इंसान कभी-कभी हताश होकर अपनी क्रियाशीलता को खत्म कर देता है। पर उसके मन में हमेशा यही भाव होता है कि यहाँ यदि मेरी कला के जौहरी नहीं मिलेंगे, तो निश्चित ही वह जौहरी कहीं और होगा। कई बार जौहरी काफी देर बाद मिलते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ मध्यप्रदेश शासन के साथ। जिन विभूतियों को सरकार ने नकार दिया, उसे ही केंद्र सरकार ने नवाजा। अपने अधिकारियों की लापरवाही के कारण अनजाने में मध्यप्रदेश सरकार को एक ऐसा तमाचा पड़ा है, जिससे वह चाहे तो सबक ले सकती है। अन्यथा हमेशा की तरह अपने काहिल अधिकारियों को कोसकर अपना पल्ला झाड़ सकती है।
मेरे सामने दो खबरें ऐसी हैं, जिसमें प्रदेश सरकार की लापरवाही साफ दिखाई देती है। इसमें प्रशासनिक रूप से अक्षम अधिकारियों का दोष सबसे अधिक है, जिनके कारण राज्य की प्रतिभाओं का सम्मान करना तो दूर उन्हें याद तक नहीं किया गया। एक तरफ जहॉं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के काफिले के सामने आकर एक दुखियारी अपनी विकलांग बेटी के लिए शासन से गुहार करती है, तो मुख्यमंत्री तुरंत ही उन्हें सहायता प्रदान करते हैं, तो दूसरी तरफ देश के जाने माने फोटोग्राफर वामन ठाकरे की बेशकीमती कृतियों को अनदेखा किया जा रहा है, तो दूसरी तरफ किसी मासूम से किसी की जान बचाई, तो उसे पुरस्कृत करने के लिए भी उसके पिता को बार- बार चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। उक्त दोनों उदाहरणों में जिन्हें राज्य सरकार ने ठुकराया, उन्हें ही केंद्र सरकार पुरस्कार से नवाजने जा रही है। यह सब अधिकारियों के ढुलमुल रवैए और लापरवाही के कारण हो रहा है। प्रतिभा कभी भी सम्मान की मोहताज नहीं होती।
पद्मश्री से सम्मानित 80 वर्षीय जाने-माने कैमरा आर्टिस्ट वामन ठाकरे की जिस कला को राज्य शासन ने ठुकरा दिया, उसी को अंतत: दिल्ली ने सम्मान दिया है। उनके द्वारा खींची गईं जो नायाब तस्वीरें भारत भवन और राज्य संग्रहालय की लाल फीताशाही में उलझकर स्थान पाने से वंचित रह गईं, अब उन्हीं को नई दिल्ली के प्रतिष्ठित इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट एंड कल्चर ने स्वीकार कर लिया है। उनकी बहुमूल्य 145 तस्वीरों को पिछले सप्ताह ही सेंटर से आई टीम अपने साथ दिल्ली ले गई हैं। ये वे तस्वीरें हैं, जो श्री ठाकरे ने पिछले पांच-छह दशकों में खींची हंै। वामन ठाकरे देश के एकमात्र कैमरा आर्टिस्ट हैं, जिन्हें पद्मश्री 2007 में सम्मानित किया गया है। भोपाल के भारत भवन और राज्य संग्रहालय से निराश होकर अंतत: उन्हें देश के अन्य कला केंद्रों की ओर रुख करना पड़ा। 9 नवम्बर को ही सेंटर के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. अचल पंड्या और रिसर्च ऑफिसर एम विष्णु भोपाल आए और इन तस्वीरों को अपने साथ लेकर गए। इनमें ठाकरे द्वारा 1952 में खींचा गया पहला फोटो (शीर्षक :फीलोसॉफर) भी शामिल है। यह पहला ही फोटो पुरस्कृत हुआ था।
देश के दूसरे कैमरा आर्टिस्ट श्री ठाकरे देश के ऐसे दूसरे कैमरा आर्टिस्ट हैं, जिनकी तस्वीरों को यहां संग्रहित किया गया है। इससे पहले देश के फोटोग्राफी इतिहास के विख्यात फोटोग्राफर हैदराबाद निवासी लाला दीनदयाल द्वारा खींची गईं तस्वीरों और कांच के निगेटिव को करीब सौ साल पहले वहां संग्रहित किया गया था।
लापरवाही का दूसरा उदाहरण है, मासूम मुनीस। प्रदेश के अधिकारी बच्चों को पुरस्कृत करने के मामले में कितने लापरवाह हैं, इसका ताजा उदाहरण हैं मुनीस खान। राजधानी के अधिकारियों ने मुनीस को जिस काम के आधार पर राज्य स्तरीय महाराणा शौर्य पुरस्कार के लिए उपयुक्त नहीं माना था, उसी के लिए उन्हें राष्ट्रीय स्तर का वीरता पुरस्कार दिया जाने वाला है। हैरानी तो इस बात की है कि जब इसकी जानकारी अधिकारियों को दी, तो भी उन्होंने अपनी गलती नहीं मानी और मुनीस को दोबारा आवेदन देने के लिए कह दिया। मुनीस ट्ठान ने अगस्त 2009 में पटरी पर बैठे एक शराबी को सामने से आ रही ट्रेन से कटने से बचाया था। इस बहादुरी के कारनामे को ऐशबाग थाने के पंचनामे और नजूल अधिकारी के परिपत्र में भी प्रमाणित किया गया। ये सारे दस्तावेज लेकर मुनीस के पिता मुश्ताक खान ने 24 अप्रैल 2010 को महाराणा प्रताप शौर्य पुरस्कार के लिए आवेदन दिया, लेकिन जिला प्रशासन ने इसे नकार दिया। इसके बाद उन्होंने कई बार जनसुनवाई में कलेक्टर को भी आवेदन दिया, लेकिन वहां से भी बस जांच के लिए कह दिया गया। वहीं दूसरी तरफ 24 अप्रैल को दिल्ली भेजा गया उनका आवेदन स्वीकार कर लिया गया है। नई दिल्ली स्थित भारतीय बाल कल्याण परिषद ने सारे दस्तावेज के आधार पर मुनीस का चयन उन 16 बच्चों में किया है, जिन्हें बापू गैधानी राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सट्ठमानित किया जाएगा। मुनीस को यह सम्मान २६ जनवरी को मिलेगा। अब जब यह मामला सामने आया है, तो संबंधित हर अधिकारी अपना पल्ला झाड़ रहा है। अब यदि मेनीस को सचमुच ही पुरस्कार प्राप्त करना है, तो उसे फिर से आवेदन करना होगा। जबकि इसके पहले उसके पिता ने आवेदन कर रखा है।
क्या है बापू गोधानी पुरस्कार: यह पुरस्कार भारत में 16 वर्ष या उससे कम उम्र के उन बहादुर बच्चों को दिया जाता है, जो सभी बाधाओं के खिलाफ बहादुरी और निस्वार्थ बलिदान की भावना से किए गए वीरतापूर्वक कार्य करते हैं। यह पुरस्कार राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार की श्रेणी में आता है।
इस तरह से उपेक्षा से आहत होकर प्रतिभाओं का पलायन होता है। दूसरे जिन्हें उनसे प्रेरणा लेनी होती है, वे भी आहत होते हैं। प्रतिभाओं के पलायन का यह भी एक कारण है। कई बार तो प्रतिभा का आकलन मोहल्ले वाले ही नहीं कर पाते हैं। वह तो अन्य संस्थाएँ जब उन्हें सम्मानित करती हैं, तब उन्हें खयाल आता है कि हमारे ही बीच एक ऐसी प्रतिभा थी, जिसकी हमने कद्र ही नहीं की। वैसे वामन ठाकरे ने जो कुछ भी किया, उसके पीछे उनका उद्देश्य यह कतई नहीं था कि उन्हें किसी प्रकार से सम्मानीत किया जाए। जब सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित कर दिया, तो फिर और कौन सा सम्मान बाकी रह जाता है? ऐसे लोग यदि प्रदेश में हैं, तो उनका सम्मान तो प्रदेश सरकार को भी करना चाहिए। लेकिन लालफीताशाही के चक्कर में कई बार कुछ ऐसा हो जाता है, जिसे नहीं होना चाहिए। यही बात मुनीस की है। जब उसने किसी की जान बचाई, तो उसका उद्देश्य यह नहीं था कि ऐसा करने से उसे पुरस्कार मिलेगा। उसने तो तत्क्षण ही यह निर्णय लिया कि इस व्यक्ति की जान बचानी चाहिए। उसकी जान बच गई, यही उसका उद्देश्य था, जो उसी समय पूरा हो गया। उसे पुरस्कार मिलना चाहिए, यह सोचना तो सामाजिक संस्थाओं और सरकार का है।
डॉ. महेश परिमल

3 टिप्‍पणियां:

  1. सर इस बात के बारे में कौन सोचता है ...आज कल तो प्रतिभा की कोई कदर नहीं है ..हर तरफ चोर बाजारी का बोल बाला है ....हर जगह ऐसा ही है ...क्या करें व्यवस्था नहीं वल्कि हमारी खामी है ....शुभकामनायें

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  2. प्रति‍भाओं को अक्‍सर उपेक्षाओं का शि‍कार होना पडता है....प्रति‍भाशाली होने के साथ पहुंच वाला होना जरूरी होता है....तभी आज की प्रणाली में न्‍याय मि‍लने की उम्‍मीद हो सकती है.....

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