गुरुवार, 18 सितंबर 2008
आपके मंदिर में कचरा
डॉ. महेश परिमल
कोई आपके दरवाजे पर ढेर सारा कचरा डाल दे, तो आप क्या करेंगे? संभवत: अपनी दयाशीलता के वश में होकर आप कुछ नहीं कहेंगे, पर वही व्यक्ति प्रतिदिन आपके दरवाजे पर कचरा फेंकना शुरू कर दे, तो निश्चय ही आपको क्रोध आ जाएगा और एक दिन आप उसकी धुनाई कर देंगे। है ना यही बात। आप कहेंगे कि यह भी कोई बात हुई। वह रोज मेरे दरवाजे पर गंदगी डाल रहा है, मैं कैसे चुप रह सकता हूँ। आपने बिलकुल सही किया। हर इंसान को ऐसा ही करना चाहिए।
अब अगर आप स्वयं ही अपने दरवाजे पर रोज दिन में कई बार गंदगी डाल रहे हैं, तो स्वयं को किस तरह की सजा का हकदार पाते हैं आप? शायद आप समझे नहीं। मैं उन सभी व्यसनी लोगों को सवालों के कटघरे में खड़ा करना चाहता हूँ, जो रोज ही अपने दरवाजे याने स्वयं के मुख, जो कि ईश्वर का दरवाजा कहा जाता है, में तम्बाखू, बीड़ी, सिगरेट रखकर उसे गंदा करते हैं। ये सभी नशीली चीजें हैं, फिर इसे ईश्वर के दरवाजे पर क्यों रखते हैं?
आप कहेंगे ये भी भला कोई बात हुई। हमारा मुँह ईश्वर का दरवाजा भला कैसे हुआ? मैं कहता हूँ, हम अपने आराध्य देव, ईश्वर, राम, रहीम, हे गुरु, हे भगवान जैसे पवित्र शब्दों का उच्चारण अपने मुँह से ही तो करते हैं, तो फिर यह जगह पवित्र तो हुई ही न। अब आप ही बताएँ, इस पवित्र स्थान पर उन गंदी और नशीली चीजों का क्या काम?
गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है ''जीह देहरी द्वार'' अब बताओ भला तम्बाखू, बीड़ी, सिगरेट जैसी नशीली चीजों का सेवन करने वाले सुबह-सुबह भगवान के द्वार मुख पर गंदी चीजें रख देते हैं। ऐसा वे रोज करते हैं। इसके बाद ईश्वर से हम यह अपेक्षा रखें कि वे हमारा भला करेंगे, तो यह मूर्खता है। हमारे इस कर्म से हमारे हृदय का ईश्वर भला कैसे प्रसन्न रहेगा। यह तो ईश्वर से दुश्मनी करना हुआ। आप सोच सकते हैं यह दुश्मनी आपको कितनी महँगी पडेग़ी? आप ईश्वर को दु:ख देकर उससे खुशी प्राप्त करने की सोच भी कैसे सकते हैं?
जीवन स्वयं अपने आपमें एक नशा है। यदि इसे अच्छी तरह से जीया जाए, ता नशे से भी यादा मजा देता है। इंसान को नशे का गुलाम कभी नहीं होना चाहिए। वैसे भी गुलामी अच्छे विचारों को आने से रोकती है। प्रत्यक्ष रूप से हमें यह लगे कि इंसान तम्बाखू खा रहा है, पर इसके दूरगामी दृष्टिकोण से देखें, तो होता यह है कि तम्बाखू इंसान को खा रहा है। यह एक भयानक सच है, जिसे प्रत्येक व्यसनी को स्वीकारना होगा।
- आप नशा नहीं बीमारियाँ खरीदते हैं?
- नशा करके आप अपने बच्चों के सपनों से खेलते हैं।
- नशा आपको भीतर से खोखला कर देता है।
- नशा करके आप बुद्धि का साथ छोड़ देते हैं।
- नशा करके आप पशु से भी गए-गुजरे हो जाते हैं।
इस पर भी क्या आप नशा करना चाहेंगे? आइए संकल्प लें और नशा छोड़कर एक नया सवेरा लाने का प्रयास करें।
डॉ. महेश परिमल
लेबल:
चिंतन
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
bahut hi accha sandesh..aapke likhne ke andaj se use or khoobsurat bana diya..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व विचारणीय लेख है।बधाई।
जवाब देंहटाएंwakai bahut badhiya vichar..
जवाब देंहटाएं