सोमवार, 20 अक्तूबर 2008

अब शौक से फरमाएँ ई-सिगार


डॉ. महेश परिमल
दो अक्टूबर से पूरे देश में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की घोषणा की गई है। घोषणाओं से क्या होता है, इससे किसका भला हुआ है। आज रोज ही मंत्रियों के बयान आ रहे हैं कि आतंकवाद को सख्ती से निपटा जाएगा। बयान आते ही कहीं न कहीं एक धमाका हो ही जाता है। जब भी यह कहा गया है कि बम विस्फोट के तहत कई शहरों में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है, यह घोषणा दूसरे दिन ही तहस-नहस हो जाती है, जब कई विस्फोटों से शहर की शक्ल ही बदल जाती है। इसलिए घोषणाएँ करना और उस पर अमल करना दोनों ही अलग-अलग बात है। इधर स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा हुई, उधर चेन्नई की एक कंपनी ने ई-सिगार बेचने की घोषणा कर दी। कंपनी का दावा है कि यह ई-सिगार शरीर को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुँचाती, इसका कभी भी, कहीं भी सेवन किया जा सकता है। धूम्रपान प्रेमियों के लिए यह एक अच्छी खबर हो सकती है कि अब वे खुले आम ई-सिगार का सेवन करेंगे और धूम्रपान का मजा लेंगे।
आखिर यह ई-सिगार है क्या? ई-सिगार को विदेशों में सुपर सिगार के नाम से जाना जाता है। यह सिगरेट जैसा ही दिखने वाला एक साधन है। उसके सफेद हिस्से में रि-चार्जेबल बैटरी होती है। फिल्टर के बाद के हिस्से में ऐसी कॉट्रीज होती है, जिसे बदला जा सकता है। इसमें ऊपर बताए अनुसार ही डाइल्यूटेड निकोटिन, पानी आदि का तरल द्र्रव्य होता है। ई-सिगार में सामने के भाग में इंडिकेटर लाइट होती है। उपयोगकर्ता सामान्य सिगरेट की तरह ही इसके कश ले सकता है। यह बात सच है कि इसे निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी में उपयोग कर सकते हैं, लेकिन इसे पूरी तरह से निर्दोष मानना बिलकुल गलत है। निकोटिन किसी भी रूप में स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं है। विश्व के सारे डॉक्टर इस पर ऐसा ही सोचते हैं। ई-सिगार बनाने वाली चेन्नई स्थित कंपनी एसपीके के प्रवक्ता सुनीत कुमार का इस संबंध में कहना है हम भारत में पहली बार ई-सिगार लेकर आएँगे। हम इसे हाँगकाँग से मँगवाएँगे और जरूरतमंदों के बीच इसे बेचेंगे। यह धूम्रपान की जानलेवा असर से बिलकुल मुक्त है और विदेशों में इसका उपयोग धूम्रपान का व्यसन छुड़ाने के लिए किया जाता है।

कैंसर का उपचार करते डॉक्टर्स का कहना है कि सामान्य सिगरेट में कम से कम चार हजार हानिकारक रसायन होते हैं। इसमें से 54 रसायन तो इस रोग के वाहक हैं। ई-सिगार के समर्थकों का कहना है कि ई-सिगार में डाइल्यूट किया हुआ निकोटिन, पानी और तम्बाखू का परफ्यूम होता है, जिसको पीने से सिगरेट पीने का ही अहसास होता है। ई-सिगार को कहीं भी पी सकते हैं। उसे जलाने की आवश्यकता नहीं होती और उससे धुऑं भी नहीं होता। इसीलिए सार्वजनिक स्थानों पर इसके सेवन से मित्रों या अन्य लोगों में किसी तरह का कोई नुकसान होने की संभावना नहीं रहती। इस सिगार के वितरक इतने होशियार हैं कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की तमिलनाड़ु शाखा के कुछ डॉक्टररों से यह कहलवाया है कि ई-सिगार स्वास्थ्य के लिए किसी भी रूप में हानिकारक नहीं है। अब इन डॉक्टरों को कौन समझाए कि जब यह कहा जा रहा है कि इसमें निकोटिन है, तो फिर यह कैसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं हो सकती? निकोटिन किसी भी रूप में हो, शरीर में किसी भी तरह से लाभ नहीं पहुँचाती। इस तरह का बयान देने वाले डॉक्टर निश्चित रूप से दंड के भागी हैं।
इन दिनों ई-सिगार चीन, इजराइल और यूरोपीय देशों में खुले आम बिक रही है। इसका एक पैकेट दो हजार रुपए में मिलता है। इस सिगार के उत्पादकों का दावा है कि यूरोपीय देशों के फूड एंड ड्रग्स विभाग ने इस सिगार को कानूनी रूप से मान्यता दी है। दूसरी ओर वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने इस प्रोडक्ट को अभी तक हरी झंडी नहीं दिखाई है। डब्ल्यूएचओ के तम्बाखू मुक्त अभियान के कार्यवाहक डायरेक्टर डग्लास बेचर ने ई-सिगार को पूरी तरह से निर्दोष या सुरक्षित बताने के दावे को नकार दिया है। उनका मानना है कि ई-सिगार इंसान के शरीर में निकोटिन का प्रवेश कराती है और निकोटिन किसी भी रूप में शरीर के लिए लाभप्रद नहीं है। ई-सिगार को पूरी तरह से निर्दोष होने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। डब्ल्यूएचओ ने इसे किसी तरह से कानूनी मान्यता नहीं दी है। ई-सिगारके उत्पादक इस संबंध में भ्रम फैलाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। इसके अलावा उसने 193 देशों को चेतावनी देते हुए नोटिस भेजी है, जिसमें कहा गया है कि ई-सिगार बोगस, अनटेस्डेड तथा खतरनाक हो सकती है।
भारत के संदर्भ में देखा जाए, तो ई-सिगार से सावधान रहने की आवश्यकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि ये सिगार चीन में बनाए जाते हैं। चीन कितना विश्वसनीय है यह हाल ही में वहाँ के बने खिलौनों पर हमारे देश में प्रतिबंध से जाना जा सकता है। चीन के दूध के सेवन के बाद होने वाली बीमारियों पर भी इन दिनों विवाद चल ही रहा है। इसलिए चीन के उत्पाद को ऑंख मूँदकर स्वीकार करना बहुत ही मुश्किल है। डब्ल्यूएचओ के डग्लास ने जिनेवा में पत्रकारों को संबोधित करते हुए इस संबंध में कहा है कि ई-सिगार का टाक्सिकोलोजिकल और क्लिनीकल परीक्षण अभी हुआ नहीं है। तो फिर इसे सुरक्षित कैसे कहा जा सकता है? इसे सरल भाषा में यही कहा जा सकता है कि ई-सिगार में हानिकारक जहरीले रसायनों का इस्तेमाल किया गया है, यह तो तय है, पर कितनी मात्रा में किया गया है, इसका परीक्षण होना बाकी है। जब तक यह परीक्षण नहीं हो जाता, तब तक इसे किसी तरह से स्वीकार करना स्वास्थ्य को खतरे में डालना ही होगा।
सन 2003 में डब्ल्यूएचओ के 200 छोटे बड़े सदस्य देशों के बीच यह समझौता हुआ था कि सिगरेट के पैकेट पर मोटे अक्षरों से यह लिखा जाए कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, साथ ही इससे संबंधित तस्वीर छापना भी अनिवार्य होगा। इस समझौते पर 160 देशों ने तुरंत अमल में लाना शुरू कर दिया, पर हमारे देश में इसका कितना पालन हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। हमारे देश में तम्बाखू लॉबी राजनीति पर इतनी हावी है कि वह जो चाहती है, करवा लेती है। यहाँ यह बात ध्यान देने लायक है कि तम्बाखू के विभिन्न उत्पादों के सेवन से विश्व में हर वर्ष 54 लाख लोग तड़प-तड़पकर दम तोड़ देते हैं। हृदय रोग, लकवा और कैंसर जैसी अनेक बीमारियों के पीछे यही तम्बाखू ही है। इतनी मौतों के बाद भी जब सरकार नहीं चेती, तो फिर आम आदमी की क्या बिसात? वह तो पैदा ही होता है बेमौत मरने के लिए, फिर मौत चाहे तम्बाखू से हो, शराब से हो या फिर बम विस्फोट से। इसलिए ई-सिगार को अपने होठों से लगाने से पहले यह अवश्य सोच लें कि कहीं यह हमारी जान जोखिम में न डाल दे।
डॉ. महेश परिमल

19 टिप्‍पणियां:

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    ..............

    bada hi rochak aur jankariparak aalekh hai aapka.
    par unka kya kiya jaye jo apni jaan ko jaanboojhkar dhuyen me udane me nahi hichkichate.

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