शनिवार, 18 अक्तूबर 2008
न्यायमूर्ति हाजिर होऽऽऽ.....
डॉ. महेश परिमल
न्याय और अन्याय के बीच अधिक अंतर नहीं होता। जिसे न्याय मिलता है, उसका प्रतिद्वंद्वी यही मानता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है। न्यायाधीश का निर्णय कभी निष्पक्ष नहीं हो सकता। जिसे न्याय मिला, वह भी तो एक पक्ष है, फिर यह निर्णय निष्पक्ष कैसे हुआ? जितना अंतर न्याय और अन्याय के बीच है, उतना ही अंतर कामयाब और नाकामयाब के बीच है। अन्याय को लेकर हमेशा बड़ों पर ऊँगली उठती है। पर अब हमारे देश में न्याय को लेकर भी ऊँगलियाँ उठने लगी हैं। अब पंच परमेश्वर वाली बात केवल कहानियों तक ही सिमट गई है। हाल ही में देश के कुछ न्यायाधीशों की गलत हरकतों से यह साफ हो गया कि अब वे अन्याय को न्याय में बदलने के लिए अपने को बदलने के लिए तैयार हैं।
आज देश के समग्र न्यायतंत्र पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप की काली छाया मँडराने लगी है। सामान्य मनुष्य का अपराध एक बार माफ किया जा सकता है, किंतु सरकार ने जिन्हें न्यायाधीश की कुर्सी पर बिठाया है, वे यदि अपराध करते हैं, तो उन्हें किस तरह से माफ किया जाए? इन दिनों देश की अदालतों में न्यायमूर्तियों पर भ्रष्टाचार का एक नहीं, बल्कि तीन गंभीर मामलों की जमकर चर्चा है। इन तीन मामलों के कारण देश की न्यायतंत्र की प्रतिष्ठा को दाँव पर लग गई है।
पहला मामला कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन द्वारा 32 लाख रुपए हड़प लेने का है। इस मामले में जज ने अपना इस्तीफा नहीं देने का निर्णय लिया है। किंतु उन्हें बर्खास्त करने के लिए सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार को संसद में इंपिचमेंट का मोशन लाने का अनुरोध किया है। दूसरा मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज निर्मल यादव का है, जिन पर 15 लाख रुपए की रिश्वत लेने के आरोप के तहत पूछताछ करने की अनुमति सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस ने दे दी है। तीसरा मामला तो और भी गंभीर है, जो गाजियाबाद का है। यहाँ की अदालत में चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों के प्रोविडंट फंड के खातों में से निकाले गए 23 करोड़ रुपए फर्जी वाउचरों के माध्यम से निकाले गए। इस धनराशि का उपयोग तत्कालीन 36 यूडिशियल ऑफिसरों के लिए विविध ऐश्वर्यशाली वस्तुएँ खरीदने में किया गया। इस मामले में सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के 11 जजों को लिखित रूप से आरोपों का जवाब देने के लिए कहा है। यह काम उत्तरप्रदेश पुलिस को सौंपा गया है।
गाजियाबाद की कोर्ट की तिजोरी से जिस तरह से 23 करोड़ रुपए निकाले गए और उसका उपयोग जजों के लिए घरों के सामान खरीदने के लिए किया गया, उसके कारण देवतास्वरूप न्यायमूर्तियों के आचरण को लेकर कुछ सोचने के लिए विवश कर दिया। गाजियाबाद की एडीशनल सेशन्स जज श्रीमती रमा जैन को खयाल आया कि इस वर्ष फरवरी माह में अदालत की तिजोरी से फर्जी वाउचरों के माध्यम से 23 करोड़ रुपए निकाले गए हैं। उन्होंने तुरंत ही इसकी सूचना गाजियाबाद पुलिस को दी और एफआईआर दर्ज कराया। इसके बाद गाजियाबाद के एसएसपीए ने इस मामले की जाँच शुरू की।
पुलिस जाँच में यह सामने आया कि इस मामले के मुख्य सूत्रधार राजीव अस्थाना हैं। जिसने विभिन्न डिस्ट्रिक्ट जजों की सूचना से 2001 और 2007 के बीच अदालत की तिजोरी में से 23 करोड़ रुपए हड़प लिए थे। पुलिस के सामने अपने बयान में उसने इस बात को स्वीकार किया था कि इन रुपयों का उपयोग उसने अनेक जजों के लिए उनकी घर-गृहस्थी के सामान को खरीदने में किया था, जिसमें सुपी्रमकोर्ट के एक जज और इलाहाबाद हाईकोर्ट के 11 जज भी शामिल थे। अस्थाना ने यह भी दावा किया था कि गाजियाबाद के भूतपूर्व डिस्ट्रिक्ट जज आर.एस. चौबे के कहने पर उसने सुप्रीमकोर्ट के एकर् वत्तमान न्यायमूर्ति के घर भी टॉवेल, बेड-शीट, क्रॉकरी आदि चीजें पहुँचाई थीं। बाद में अस्थाना ने गाजियाबाद के एडिशनल चीफ युडिशियल मजिस्ट्रेट के सामने भी इस प्रकार का बयान दिया था।
गाजियाबाद की कोर्ट में काम करनेवाले तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों के वेतन में से जो राशि प्रोविडन्ट फंड और ग्रेयुटी के रूप में काट ली जाती है, उसे अदालत की तिजोरी में जमा कर लिया जाता है। अस्थाना के अनुसार उसने इन खातों में से गलत बाउचर बनाकर 23 करोड़ रुपए हड़प लिए थे। इन रुपयों में से कोलकाता हाईकोर्ट के एक वर्तमान जज के घर उसने टी.वी., फ्रिज और वॉशिंग मशीन जैसे उपकरण भी खरीद कर पहुँचाए थे। अस्थाना ने ऐसा दावा किया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के कम से कम सात सिटींग जजों को भी इन रुपयों में से लाभ मिला है। इनके लिए भी कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, फर्नीचर आदि वस्तुएँ खरीदी गई थीं। गाजियाबाद के एसएसपी ने इन जजों से पूछताछ करने की अनुमति सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस से माँगी हैं। उन्हें इस संबंध में मात्र लिखित प्रश्न पूछने की ही छूट दी गई है।
गाजियाबाद के एसएसपी दीपक रतन का कहना है कि इस संबंध में उन्हें 36 न्यायमूर्तियों को पूछने के लिए प्रश्नों की सूची तैयार कर राय सरकार को भेजी है। इन सवालों की एक बार सुप्रीमकोर्ट भी जाँच करेगी, उसके बाद ही सवालों को संबंधित न्यायाधीशों को भेजा जाएगा। इस मामले में अब तक राजीव अस्थाना समेत 83 लोगों के खिलाफ फौजदारी मामला फाइल किया गया। इनमें से 64 की धरपकड़ की गई है। अस्थाना ने यह स्वीकार किया है कि इस मामले में 36 न्यायमूर्ति भी शामिल हैं। इस मामले को एक तरफ राय सरकार रफा-दफा करने की कोशिश कर रही है, दूसरी तरफ भारत के पूर्व कानून मंत्री शांतिभूषण ने सुप्रीमकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर इस मामले की निष्पक्षता से जाँच की माँग की है। इनका साथ गाजियाबाद बार एसोसिएशन और ट्रांसपरंसी इंटरनेशनल नाम की संस्थाओं ने भी किया है। इसके पूर्व सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस के.जी. बालकृष्णन की इच्छा इन याचिकाओं की सुनवाई बंद दरवाजे में करने की थी, पर शांतिभूषण ने यह आरोप लगाया कि सरकार इस मामले को दबाना चाहती है, इसलिए ऐसा किया जा रहा है। इसके मद्देनजर अब इस मामले की सुनवाई खुली कोर्ट में की जा रही है।
हमारे देश में हाईकोर्ट या फिर सुप्रीमकोर्ट के कोई भी सिटिंग जज भ्रष्टाचार करे, तो उनके खिलाफ जाँच करने का कोई कानून ही नहीं है। अभी इस मामले की जाँच सुप्रीमकोर्ट जज द्वारा चयन की गई तीन जजों की समिति कर रही है, पर इनकी कार्रवाई अत्यंत गुप्त रखी जा रही है। इस मामले में सरकार की नीयत भी ठीक दिखाई नहीं दे रही है, क्योंकि जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के लिए संसद में दिसम्बर 2006 में जजीस इंक्वायरी बिल पेश किया गया था, पर सरकार न्यायपालिका के साथ किसी प्रकार का पंगा नहीं लेना चाहती, इसलिए इस प्रस्ताव को ताक पर रख दिया गया। बहरहाल इस मामले का जो भी फैसला आए, पर सच तो यह है कि इस मामले ने जजों को भी संदेह के दायरे में खड़ा कर दिया है।
देश के न्यायमूर्तियों को स्वच्छ होना ही नहीं, बल्कि स्वच्छ दिखना भी चाहिए। आज न्याय को लेकर कानून अपने हाथ में लेने से भी लोग नहीं चूक रहे हैं। कानून हाथ में लेना आम बात हो गई है। जो दमदार हैं, उन्हें मालूम है कि न्याय को किस तरह से अपने पक्ष में किया जा सकता है। इस मामले में यदि आरोपी न्यायाधीशों पर किसी प्रकार की ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो निश्चित ही लोगों न्याय पर से विश्वास उठ जाएगा और यह स्थिति बहुत ही भयावह होगी, यह तय है।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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