गुरुवार, 23 अक्तूबर 2008
भारतीय सेना को बदनाम करने की साजिश
डॉ. महेश परिमल
आए दिन अखबारों में यह पढ़ने को मिलता रहता है कि घाटी में तैनात सेना के एक जवान को खुले आम अर्धनग्न करके घुमाया गया। इतना ही नहीं, उसे सड़कों पर घुमाते हुए उसके गले पर जूतों की माला भी पहनाई गई। कल्पना कीजिए, एक जवान हाफ पेंट या फिर केवल अतर्वस्त्रों में खड़ा है, उसके गले पर जूतों का हार है, नागरिकों का एक दल उसके साथ मारपीट कर रहा है। उस पर आरोप है कि उसे एक कश्मीरी महिला के साथ अनाचार करते हुए रँगे हाथ पकड़ा गया है। इसलिए नागरिक ही उसे सजा दे रहे हैं। पिछले महीने इस तरह की करीब चार-पाँच घटनाएँ ऐसी हो चुकी हैं, जिसमें सेना के जवान को सजा देने में कश्मीरियों ने कानून ही अपने हाथ में ले लिया है।
इस तस्वीर का एक पहलू तो बड़ा ही भयानक है, किंतु दूसरा पहलू बहुत ही मर्मांतक है, पीड़ादायी है। आज इसे समझने के लिए कोई तैयार ही नहीं है कि यह सब एक साजिश के तहत हो रहा है। इसकी योजना पड़ोसी देश में बनती है और इसे कश्मीर की वादियों में अंजाम दिया जाता है। हमारे गुप्तचर इसे अच्छी तरह से समझते हैं, पर स्थानीय प्रशासन का सहयोग न मिलने के कारण लाचार हैं। आज घाटी की राजनीति पर आईएसआई हावी है। उसी के इशारे पर आज कश्मीर में कई ऐसे कार्य हो रहे हैं, जो हमारे देश के हित में तो कतई नहीं हैं। आज आईएसआई ने घाटी के नेताओं को एक तरह से खरीद ही लिया है। इन नेताओं द्वारा लगातार यह माँग उठाई जा रही है कि घाटी से सेनाओं को हटा देना चाहिए। लेकिन उनकी नहीं सुनी जा रही है, इसलिए एक साजिश के तहत भारतीय सेना को बदनाम करने के लिए ऐसा किया जा रहा है, ताकि कश्मीरी यह समझें कि जब तक घाटी में सेना है, तब तक उनका उध्दार संभव नहीं है। इसके तहत अब आईएसआई ने एक योजना के अंतर्गत घाटी में तैनात सेना के जवानों को इस तरह से बदनाम किया जा रहा है, जिससे वे अपना मनोबल खो दें और कुछ ऐसा कर जाएँ, जो उनके लिए घातक हो जाए।
एक दृश्य की कल्पना करें-सेना के एक जवान को एक संदिग्ध व्यक्ति दिखाई देता है, जो हथियारों से लैस है। जवान उसका पीछा करता है, इसे वह संदिग्ध व्यक्ति अच्छी तरह से जानता है। कुछ देर तक लुकाछिपी चलती है, अंत में वह संदिग्ध व्यक्ति एक मकान में घुस जाता है। सेना का जवान उस मकान के सामने जाकर सोचता है कि उस मकान के अंदर जाया जाए या नहीं। युवक का हथियारों से लैस होना और उसकी संदिग्ध गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए सेना का जवान उस मकान में प्रवेश कर जाता है। उसके अंदर घुसते ही उस मकान का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया जाता है। उसके बाद शुरू हो जाता है शोर। दौड़ो-दौड़ो, सेना का एक जवान एक अबला की इज्जत लूट रहा है, अरे कोई तो उस अबला को बचाओ। सेना का जवान कुछ समझे, इसके पहले ही लोग उसे चारों तरफ से घेर लेते हैं। उसके बाद शुरू हो जाता है, जवान को बुरी तरह से मारपीट का सिलसिला। उसकी वर्दी फाड़ दी जाती है, बेरहमी से बेइज्जत किया जाता है, उसे जूतों की माला पहनाकर शहर की गलियों में अर्धनग्न अवस्था में घुमाया जाता है। इस तरह से शर्मसार होकर जवान भीतर से पूरी तरह से टूट जाता है।
जम्मू-कश्मीर की सरहदों एवं तमाम शहरों में तैनात सेना के अधिकारियों ने रक्षा मंत्री ए. के. एंटोनी से यह माँग की है कि अब इस खेल को खत्म ही कर दिया जाए। इससे जवानों का मनोबल टूट रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि जवान स्वयं ही यह निर्णय ले लें कि अब घाटी तो क्या, इस देश सेवा को ही नमस्कार कर लिया जाए। इस जहालत से तो अच्छा है कि अपने शहर में ही एक चाय की दुकान ही खोल लिया जाए, ताकि इज्जत की रोटी तो मिल सके। आईएसआई चाहती ही यही है कि सेना का मनोबल टूटे और वे यहाँ से चले जाएँ, ताकि घाटी वास्तव में आतंकवादियों के लिए स्वर्ग बन जाए। खरीदे गए राजनेताओं के साथ मिलकर आईएसआई सेना के जवानों को एक साजिश के तहत बदनाम कर किया जा रहा है।
सेना के जवानों को इस तरह से प्रताड़ित करने की अंतिम घटना किश्तवाड़ जिले के चतरु गाँव की है। वहाँ सेना के जवानों ने दो आतंकवादियों को मार गिराया। इससे कुपित होकर आतंकवादियों ने नागरिकों को उकसाया कि सेना उनके साथ जबर्दस्ती कर रही है। स्थानीय प्रशासन की अनदेखी से कुछ नागरिकों की मिलीभगत से सेना के जवानों के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो जाता है। नागरिक सेना के जवानों के खिलाफ एकजुट होने लगते हैं। नागरिक कहते हैं कि जिन्हें सेना के जवानों ने आतंकवादी समझकर मार गिराया है, वे तो मछुआरे थे। इनका आतंकवाद से कोई संबंध नहीं था। बस इसी बात को लेकर जवानों का विरोध शुरू हो जाता है। पर इस भीड़ से यह कौन पूछे कि यदि मारे गए लोग मछुआरे थे, तो उनके पास ए. के. 56 राइफल और अन्य हथियार कहाँ से आए और वे आधी रात को कहाँ मछली मारने गए थे? बाद में तो यह भी तय हो गया कि दोनों आतंकवादी मुहम्मद अशरफ और मुहम्मद सुलतान थे। पर उस समय तो नागरिकों के जोश के आगे सेना के जवानों के हौसले पस्त हो जाते हैं। रही सही कसर मीडिया पूरी कर देता है, वह तो सेना के जवानों पर मानवाधिकार हनन का आरोप लगा देता है। इस तरह से एक सोची-समझी साजिश के तहत सेना के जवानों को बदनाम कर उसे भीतर से तोड़ देने की कोशिश लगातार हो रही है।
पिछले महीने ही श् रीनगर से 40 किलोमीटर दूर कंगन गाँव में नागरिकों ने केवल सुनी-सुनाई बात पर ही सेना के एक जवान रणजीत सिंह के साथ मारपीट शुरू कर दी। जवान ने भी भीड़ का मुकाबला पूरी शिद्दत के साथ किया और एक जवान को मार भी डाला, पर 50-60 लोगों के बीच एक जवान की क्या बिसात, सो उस भीड़ ने पीट-पीटकर उस जवान को मार ही डाला। इसके बाद हुर्रियत कांफ्रेस ने एक दिन के लिए घाटी बंद का आह्वान किया और जवानों के खिलाफ माहौल बनाया। इस घटना से स्पष् ट है कि कमजोर राज्य का सहारा लेकर सेना के जवानों को लगातार बदनाम किया जा रहा है। इसके पीछे निश्चित रूप से आईएसआई का ही हाथ है, पर उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पा रही है। उसके लिए हमेशा ठोस सुबूत की माँग की जाती है, पर ठोस सुबूत तो कभी मिल ही नहीं सकते, यह सभी जानते हैं। भारतीय सेना के अफसर भी यही कहते हैं कि इस मामले में केंद्र सरकार का रवैया काफी ढीला-ढाला है।
एक तरफ 24 घंटे अपने अपने फर्ज को पूरा करने में तत्पर सेना के जवान वैसे ही तनाव में रहते हैं। घर-परिवार से दूर होकर हर मौसम में नागरिकों की रक्षा करने के संकल्प के साथ डटे इन जवानों को मानसिक रूप से किसी का सहारा चाहिए। उन्हें आत्मबल की आवश्यकता है, किंतु उसके बजाए इन्हें मिलती है बदनामी। ऐसे में निश्चित रूप से ये लोग मानसिन यंत्रणा के शिकार होते हैं। कई बार ये अपने ही अफसरों या साथियों पर गोली चला देते हैं, तो कई बार आत्महत्या कर लेते हैं। ये सारी स्थितियाँ इस बात की ओर संकेत करती हैं कि आज सेना के जवान स्वयं को असुरक्षित पा रहे हैं। दूसरों क सुरक्षा का भार अपने ऊपर लेने वाले जब स्वयं ही असुरक्षित हो जाएँ, तो उनसे कैसे हो पाएगा नागरिकों की सुरक्षा का महती काम? इस दिशा में शीघ्र ही कुछ न किया गया, तो आईएसआई की साजिश कामयाब हो जाएगी और सेना के जवानों में न तो कोई जोश होगा और न ही देश की सुरक्षा का संकल्प।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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sahi kaha aapne...is disha me thos sakatmak pahal kee anivarya aawashyakta hai,nahi to ye chtee ghatnayen hi bade uthal puthal ka karan banengee.
जवाब देंहटाएंहां आप जो बता रहे हैं, सेना के वरिष्ठ अधिकारी उसकी अनौपचारिक पुष्टि कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंहां आप जो बता रहे हैं, सेना के वरिष्ठ अधिकारी उसकी अनौपचारिक पुष्टि कर रहे हैं।
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