गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008
बॉलीवुड में चल रहा है साइज का जादू
डॉ. महेश परिमल
बहुत ही कम ऐसे लोग होंगे, जिन्होंने आज के फिल्मी पत्रिकाओं और अखबारों के फिल्मी पेजों पर प्रतिभावान नायिकाओं की तस्वीरें देखते होंगे। आज अखबारों और पत्रिकाओं के फिल्मी पेजों पर मांसल देहधारी नायिकाओं की तस्वीरें ही देखने को मिलती हैं। काफी समय से बॉलीवुड की अभिनेत्रियों की साइज अत्यंत महत्वपूर्ण बन गई है । यहाँ तक कि एक समय की तंदरुस्त अदाकाराओं का स्थान दुबली-पतली अभिनेत्रियों ने ले लिया है। यह साइज अब घटते-घटते जीरो तक पहुँच गया है। हाल ही में फिल्म 'टशन' में करीना कपूर ने अपनी देह की साइज को 'जीरो फीगर' कर लिया, उसके बाद भी उसका यह जादू चल नही पाया।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या भारतीय दर्शकों को खासकर पुरुषों को कितने फीगर वाली नायिकाएँ अच्छी लगती हैं? इसका सीधा-सादा उत्तर यही है कि हाड़पिंजर वाली अभिनेत्री तो कतई नहीं। जिस तरह से स्थूलकाय महिला किसी को अच्छी नहीं लगती, ठीक उसी तरह एकदम सिंगल हड्डी नायिका भी किसी को अच्छी नहीं लगती। मतलब साफ है कि जो एक निश्चित माप की नारी देह ही ऑंखों को भली लगती है। एक माप से कम नारी देह केवल हाडपिंजर के सिवाय कुछ भी नहीं होती। फिल्म 'धूम' में ईशा देओल ने अपना वजन काफी कम किया था। किंतु वह हाड़पिंजर जैसी तो कतई दिखाई नहीं दे रही थी। दूसरी ओर 'धूम 2' में ऐश्वर्या राय और विपाशा बसु के स्लीम-ट्रीम और सेक्सी फीगर ने बहुत ही धूम मचाया। किंतु फिल्म 'टशन' में करीना के जीरो फीगर का जादू चल नहीं पाया, इससे यह बात स्पष्ट नहीं ािेती कि दर्शक आखिर क्या देखना चाहते हैं?
अब पुराने जमाने की नायिकाओं के फीगर पर नजर डालते हैं। पहले की नायिकाएँ मांसल देह वाली थीं। मधुबाला, नूतन, मीनाकुमारी, नंदा, आशा पारेख, वैजयंतीमाला, वहीदा रहमान, हेलन, बिंदु, सायरा बानो, तनूजा, रेखा, हेमामालिनी और डिम्पल कपाड़िया जैसी तमाम नायिकाओं के शरीर भरावदार थे। कई फिल्मों के इनके शरीर की काफी नुमाइश भी की गई। इसके बाद आई परवीन बॉबी और जीनत अमान अपने शरीर के प्रति विशेष रूप से सचेत थीं। उन्हें मालूम था कि आकर्षक शरीर किसे कहा जाता है और इसे किस तरह से तराशा जाता है? अपनी इस जागरूकता को उन्होंने खूब भुनाया। यहीं से शरीर के प्रति सचेत रहने वाली नायिकाओं का प्रादुर्भाव हुआ। बहुत ही दुबली-पतली काया वाली माधुरी दीक्षित को सुभाष घई ने दूध के साथ शहद लेने की सलाह दी, इससे माधुरी का शरीर परदे पर सेक्सी दिखने लगा। श्रीदेवी भी अपने आकर्षक शरीर का प्रदर्शन समय-समय पर खूब किया। काजोल, मनीषा कोईराला, रवीना टंडन आदि भी मांसल देहधारी रहीं। किंतु उर्मिला मांतोडकर और करिश्मा कपूर ने आकर्षक देह की परिभाषा ही बदल दी। 'रंगीला' में उमला और 'दिल तो पागल है' में करिश्मा के स्लीम-ट्रीम फीगर के कारण हिंदी फिल्म उद्योग में परिवर्तन का दौर शुरू हो गया। अब नायिकाएँ जिम की तरफ कूच करने लगीं, ताकि परदे पर सेक्सी दिखाई दें। पर्सनल ट्रेनर की पूछ-परख बढ़ने लगी। शिल्पा शेट्टी जैसी कमनीय काया वाला नायिकाएँ भी अपने फीगर के प्रति जागरूक बनर् गई्र। इससे प्रिटी जिंटा को लगा कि उसका बजन कुछ अधिक ही है, इसलिए वह भी अपना वजन कम करने के अभियान में लग गई। उधर अपना वजन कम न कर पाने के कारण मनीषा कोईराला जैसी समर्थ अभिनेत्री एक तरह से फिल्मों से आउट ही हो गई।
अब धीरे-धीरे फिल्मों में मॉडलों का आगमन होने लगा। टीवी पर इन मॉडलों के शरीर का एक भाग ही सामने आता। वे अकसर साइड पोश पर अपने परिधानों और शरीर का प्रदर्शन करतीं। इसलिए इनके फिल्मों में आने से इनकी पूरी देह ही दर्शकों के सामने आने लगी। तब इन्हें समझ में आया कि फिल्मों के दर्शक कुछ अधिक ही सचेत हैं, इसलिए उन्होंने अपनी देह का तराशना शुरू कर दिया। ऐश्वर्या राय ने 'ताल' और 'हम दिल दे चुके सनम' के लिए अपना वजन बढ़ाया था। उधर पतली-दुबली किंतु ताड़ की तरह लम्बी मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन काफी मशक्कत के बाद अपने शरीर को भरावदार बना पाई। 'जिस्म' में विपाशा बसु खासी तंदरुस्त दिख रही थीं, प्रियंका चोपड़ा और लारा दत्ता ने 'अंदाज' के लिए अपना वजन बढ़ाया था। उधर कैटरीना कैफ ने 'सरकार' और 'मैंने प्यार क्यूँ किया' के लिए अपने शरीर को मांसल बनाया था। एकदम दुबली-पतली दीपिका पादुकोण को फराह खान ने 'ओम शांति शांति' के लिए वजन बढ़ाने के लिए कहा था। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे' में काजोल, 'डर' में जूही चावला,, 'लम्हे' में श्रीदेवी जैसी ख्यातनाम नायिकाओं के शरीर भरावदार थे, इसके बाद भी इन फिल्मों ने काफी दर्शक बटोरे। किंतु यशराज कैम्प के आदित्य चोपड़ा ने कीम शर्मा, शमिता शेट्टी और प्रीती झंगियानी जैसी ग्लैमरस डॉल के शरीर को भुनाने की कोशिश 'मोहब्बतें' में की, पर वे सफल नहीं हो पाए। उसी तरह 'मेरे यार की शादी', 'मुझसे दोस्ती करोगे', 'नील एन निकी' और 'झूम बराबर झूम' जैसी फिल्मों में नायिकाएँ को हॉट लुक की तरह पेश किया गया, पर यह प्रयोग सुपर-डुपर फ्लॉप हो गया। इसी भीड़ में स्लीम-ट्रीम रानी मुखर्जी का सिक्का अच्छा चल निकला। रानी मुखर्जी के साथ उनकी बाडी लैंग्वेज और अभिनय भी था, इसलिए दशकों ने उसे सहजता से स्वीकार कर लिया।
हाल ही में विपाशा बसु और करीना कपूर अपना वजन उतारकर बहुत ही खुश दिखाई दे रही है। उधर ईशा देओल, रिया सेन, कोयना मित्रा, सेलिना जेटली, पायल रोहतगी, अमृता राव और मल्लिका शेरावत जैसी सेक्सी अभिनेत्रियों का उपयोग फिल्मों में केवल दर्शकों को आकर्षित करने के लिए ही किया गया। इन्हें अपनी प्रतिभा के बल पर काम मिला, यह सोचना मूर्खता ही होगी। ये सभी अपनी सेक्सी देह के कारण ही फिल्मों में टिकी हुई हैं, ऐसा कहा जा सकता है। आयशा टांकिया, विद्या बालन और तब्बू जैसी अभिनेत्रियाँ अपने शरीर नहीं, बल्कि अपने अभिनय से दर्शकों को खींच लेती हैं। मलाइका अरोरा जैसी ग्लैमरस अभिनेत्री कहती है कि इकहरा बदन और आकर्षक लचक धारण करने वाली नारी ही सुंदर लगती हैं। हाड़पिंजर जैसी काया धारण करने वाली नारी को सुंदर नहीं कहा जा सकता। इस संबंध में कोकणा सेन शर्मा कहती हैं कि केवल मांसल देह के बजाए 'फीट' होना अधिक आवश्यक है।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि यदि अभिनेत्री में मांसल देह के साथ-साथ अभिनय क्षमता भी हो, तो दर्शक उसे हाथो-हाथ लेते हैं। मल्लिका शेरावत से बेहतर अभिनय की उम्मीद करना फिजूल है, लोग उसके शरीर को ही देखने उमड़ पड़ते हैं, इसे वह अच्छी तरह से जानती है। पहले ही नायिकाओं में अभिनय क्षमता गजब की थी, इसलिए वे आज भी अपनी दूसरी पारी खेल रही हैं, आज की नायिकाएँ दूसरी पारी खेल पाएँ, इसमें शक है। आज बॉलीवुड में केवल मांसल देहधारी नायिकाओं का ही बोलबाला है। अपने मांसल देह के कारण ये कुछ समय तक ही फिल्मों में चल पाती हैं। ममता कुलकर्णी, किमी काटकर, खुशबू, आयशा जुल्का, फरहा, माधवी, राधिका, अमला, अश्विनी भावे, वर्षा उसगाँवकर, श्रीप्रदा जैसी अभिनेत्रियाँ केवल अपनी देह के कारण ही कुछ समय तक चल पाई, उसके बाद ये सभी परदे से गायब हो गई। इसलिए यही कहा जा सकता है कि मांसल देह के साथ-साथ यदि अभिनय प्रतिभा हो, तो वे नायिकाएँ न केवल दर्शकों को आकषत करती हैं, बल्कि अपने अभिनय से रिझाती भी हैं। पुरानी अभिनेत्रियों को आज केवल उनके अभिनय के कारण ही जाना जाता है, मांसल देह के कारण नहीं।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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