सोमवार, 2 फ़रवरी 2009
कुछ भी ठीक नहीं है भारतीय सेना में
नीरज नैयर
बचपन से हम भारतीय सेना के पराक्रम, शौर्य, अनुशासन, ईमानदारी और जिंदादिली के किस्से सुनते आए हैं इसलिए हमारा दिलो दिमाग सहज ही इस बात को मानने के लिए नहीं होता कि सेना में कुछ भी गलत हो सकता है. जब कभी सेना के किसी जवान या अफसर की अपराध में संलिप्तता की खबरें आती हैं तो हमें उसमें षड़यंत्र की धुंध दिखाई देने लगती है. मालेगांव धमाके इसका सबसे ताजा उदाहरण है. सेना को हम ऐसी संस्था के रूप में देखते हैं जहां केवल देश पर मर मिटने का जज्बा जगाया जाता है. जहां भ्रष्टाचार, विलासिता जैसे शब्दों के लिए कोई जगह नहीं होती. आपात स्थितियों में सेना जिस फरिश्ते की सी भूमिका में सामने आती है उसे हमारा दिमाग कभी भूलने को तैयार नहीं होता. लेकिन हकीकत अक्सर बिल्कुल वैसी नहीं होती जैसी हम कल्पना करते हैं, सेना पर भी ये बात लागू होती है. पिछले कुछ वक्त में सेना की वर्दी पर जितने दाग लगे हैं वो यह साबित करने के लिए काफी हैं कि अनुशासन की ऊंची-ऊंची दीवारों के पीछे कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है. यौन उत्पीड़न, बलात्कार, भ्रष्टाचार और भेदभाव जैसे अस्वीकार्य शब्द जो अब तक पुलिस महकमे की शोभा बढ़ाते रहे हैं. अब फौजी वर्दी के साथ भी जुड़ने लगे हैं. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि फौज की ईमानदारी को पुलिस के साथ तौलकर नहीं देखा जा सकता. फौज में जहां अनैतिक कृत्यों के एक-दो मामले सामने आते हैं. वहीं पुलिस में ऐसी लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है, लेकिन फिर भी सच यही है कि कायदे+कानून की अभेद समझे जाने वाली दीवार में दरारें पड़ने लगी हैं. अभी हाल में ही सेना के दूसरे सबसे बडे अधिकारी की भ्रष्टाचार में लिप्तता का सामने आया मामला इन दरारों की चौड़ाई को खुद ब खुद बयां कर रहा है. सेना में भ्रष्टाचार ऊपरी स्तर पर किस कदर फैल चुका है. यह मामला इसकी बानगी भर है. कैग भी अपनी रिपोर्ट सेना में तेजी से फैलते भ्रष्टाचार का खुलासा कर चुका है. कैग की रिपोर्ट में ही यह सच सामने आया था कि किस तरह से कुछ बड़े सैन्य अधिकारी सिक्किम और सियाचिन में तैनात जवानों की जिंदगियों का सौदा अपनी जेबें भरने के लिए कर रहे थे. जूतों की खरीद में अनियमितताओं के इस मामले को कैग ने 328 जवानों की मौत की वजह भी ठहराया था. 2005 में सौदा निरस्त करने के बाद भी सेना सालों तक इटली की एक कंपनी से खराब जूते खरीदती रही, यह जानने के बाद भी कि वो-15 डिग्री तापमान के बाद काम करना बंद कर देते हैं. ऐसे ही पेट्रोल की जगह पानी सप्लाई के मामले ने भी सेना में स्वार्थता और भ्रष्टाचार की परतों को उजागर किया था. घाटी में तैनात एक बिग्रेडियर लंबे समय तक सियाचिन में तैनात जवानों को पेट्रोल की जगह पानी की सप्लाई करता रहा. जब जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस गोरखधंधे से पर्दा उठाया तो सेना में भूचाल आ गया, लेकिन थोड़े ही वक्त में सबकुछ ऐसे शांत हो गया जैसे कुछ हुआ ही न हो. सेना के संगठनात्मक ढांचे में भ्रष्टाचार का बहाव न तो ऊपर से नीचे की ओर है और न ही नीचे से ऊपर की ओर. यह केवल ऊपरी सतह पर अपनी पकड़ बनाए हुए है. निचले स्तर पर न तो इतने अधिकार होते हैं और न ही इतनी हिम्मत की वो ऐसे-वैसे काम में हाथ डाल सकें. कई सैन्य अधिकारी खुद इस बात को दबी जबान से स्वीकार करते हैं कि कभी-कभी उन्हें आलाधिकारियों के ऐसे काम भी करने पड़ते हैं. जो आर्मी मैन्यूअल के खिलाफ हैं क्योंकि ऐसा न करने की दशा में उन्हें अनुशासनहीनता का तमगा लगाकर बाहर का रास्ता दिखाए जाने का डर होता है. भ्रष्टाचार के साथ-साथ महिला मुद्दे पर भी सेना जब तक कठघरे में खड़ी दिखाई देती है. मेजर जनरल स्तर तक के बड़े अधिकारी पर भी दर्ुव्यवहार के आरोप लग चुके हैं. जम्मू-कश्मीर के लेह जिले में तीसरी इन्फैंट्री में तैनात मेजर जनरल एके लाल पर कैप्टन नेहा रावत ने दर्ुव्यवहार का आरोप लगाकर सेना को हिलाकर रख दिया था. यह पहला मौका था जब इतने बड़े अफसर को ऐसे मामले ने जांच का सामना करना पड़ा हो. महिला अधिकारी ने योग की एक कक्षा के दौरान वरिष्ठ अधिकारी के व्यवहार पर आपत्ति जताई थी. योग कक्षा का आयोजन मेजर जनरल लाल ने ही किया था. वायुसेना की एक महिला अफसर ने भी ऐसी ही शिकायत की थी लेकिन उसे इसकी कीमत अपनी नौकरी से हाथ धोकर चुकानी पड़ी. सेना में महिला अधिकारियों से दर्ुव्यवहार और शोषण के कई मामले सामने आ चुके हैं. जम्मू में तैनात कैप्टन मेघा राजदान की रहस्यमय परिस्थितियों से हुई मौत को इसी नजरिये से देखा गया था. उनके पिता ने हत्या की आशंका जाहिर करते हुए वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों पर उंगली उठाई थी. एक अन्य महिला अफसर सुष्मिता चक्रवर्ती की मौत को भी उनके परिवार ने हत्या करार दिया था. बावजूद इसके सैन्य अधिकारी बेहतर चैनल सिस्टम की दुहाई देते नहीं थकते. अनुशासन की दीवार फांदकर सामने आए इन चंद मामलों के अलावा सेना के लिए सबसे घातक साबित हो रहा है बाहरी तौर पर उसकी धूल-धूसरित होती छवि. सैन्य अफसरों पर न सिर्फ बलात्कार जैसे संगीन आरोप लग रहे हैं बल्कि साबित भी हो रहे हैं. कश्मीर में सेना की छवि को मेजर रहमान हुसैन की करतूतों ने खासा प्रभावित किया था. रहमान पर तीन महिलाओं के साथ बलात्कार का आरोप था. जिसे लेकर बड़े पैमाने पर घाटी में विरोध प्रदर्शन भी हुए थे. सेना ने पहले तो सभी आरोपों को खारिज कर दिया था लेकिन बाद में उसे जांच का आदेश देने के बाद कोर्ट मार्शल की कार्रवाई शुरू करनी पड़ी. अपनी छवि को सुधारने के लिए 15 सालों में यह पहली बार था जब सेना ने किसी अफसर के खिलाफ कोर्ट मार्शल का इतना प्रचार किया. पिछले कुछ सालों से सेना में स्थितियां लगातार खराब होती जा रही हैं. अधिकारियों की कमी से जूझने के साथ-साथ उसे ऐसे मोर्चों पर भी जूझना पड़ रहा है जिनसे कभी उसका वास्ता नहीं रहा. तरक्की के लिए फर्जी मुठभेड़ के जो आरोप पुलिस को परेशान करते रहे थे वो अब सेना का भी हिस्सा बन गये हैं. जम्मू-कश्मीर में जिस तरह से मौलवी शौकत नाम के शख्स को घर से उठाकर फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने के बाद उसे पाकिस्तानी चरमपंथी अबू जाहिद बताना और उसके शव को श्रीनगर से 50 किलोमीटर दूर दफन कर देना यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि सेना भी पुलिस की राह पर चल निकली है. इस मामले ने पूरी घाटी में सेना के खिलाफ व्यापक माहौल तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी. सेना में वैसा कुछ भी नहीं चल रहा है जैसा अब तक हम सोचते आ रहे हैं. भ्रष्टाचार से लेकर शोषण जैसी कुरुतियां वहां अपनी पैठ बना चुकी हैं. शौर्य, अनुशासन और ईमानदारी जैसे शब्द अब उसका साथ छोड़ने लगे हैं.
नीरज नैयर
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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बड़ा ही दुखद लगा यह पढ़ना जानना.बहुत सही कहा आपने.....आज भी सैनिक जिस तरह से देश की आतंरिक बाह्य मोर्चे पर प्रत्येक विपदा में अपनी जान देकर रक्षा करने को तत्पर रहते हैं,उसमे इस तरह घुन लगते देखकर बड़ा ही दुःख होता है.एक यही विंग तो था जिसके इमानदारी पर हम नाज करते थे.
जवाब देंहटाएंशब्दों को जैसे पत्थर पे उकेरा है
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