शनिवार, 21 फ़रवरी 2009
इस परीक्षा में क्या खाएँ, क्या पीएँ
डॉ. महेश परिमल
एक तरफ मौसम परिवर्तन के साथ होती गरमी की दस्तक और दूसरी तरफ परीक्षा का तनाव दोनों ही बच्चों को अपने शिकंजे में जकड़ने को तैयार होते हैं। परीक्षा की शुरुआत होते ही बच्चोें पर मानसिक तनाव इतना अधिक बढ़ जाता है कि कई मासूम तो भय के कारण ही बीमार हो जाते हैं। विद्यार्थयों के लिए परीक्षा के पहले का सप्ताह मानसिक और शारीरिक स्वस्थता की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण होता है। इस समय न केवल पढ़ाई की ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, अपितु पूरी नींद और पोषणयुक्त आहार भी उनके लिए बेहद जरूरी है।
परीक्षा के दिनों में किए गए भोजन का प्रभाव शरीर और दिमाग दोनों पर शीघ्रता से पड़ता है। इसलिए पालकों को बच्चों के खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। विद्यार्थी-वर्ग त्वरित भूख शांत करने के लिए फास्टफुड और तेल से बनी वस्तुओं को अधिक महत्व देते हैं। परिणाम स्वरूप डायरिया, डीहाइड ्रेशन, एसीडिटी, तलुओं में जलन, घबराहट जैसी बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।
अधिक मेहनत करने वाले विद्यार्थी परीक्षा के दिनों में देर रात तक जागकर पढ़ाई करते हैं और सुबह परीक्षा देने के लिए जाते समय भूखे पेट ही घर से निकल जाना उचित समझते हैं, जबकि भूखे पेट मानसिक श्रम करना बीमारी को आमंत्रित करता है। कभी-कभी भूख के कारण ब्लडप
्रेशर घट या बढ़ जाता है, हाथ-पैर काँपने लगते हैं, शरीर पसीना-पसीना हो जाता है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, क्योंकि भूखे रहने पर शरीर में शर्करा की कमी हो जाती है जिससे मस्तिष्क को शर्करारूपी ईंधन न मिल पाने के कारण उसकी कार्यक्षमता धीमी पड़ जाती है। मानसिक तनाव और रात्रि जागरण का प्रभाव पाचन कि्रया पर पड़ता है और पेट की गड़बड़ अनेक रोगों को जन्म देती है।
कई माता-पिता परीक्षा के दौरान बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति अधिक सजगता बरतते हुए उन्हें बाजार के जूस, फलों का रस, मिल्कशेक, गन्ने का रस, लस्सी, फलूदा आदि देते हैं। वे इन्हें बाजार से खरीदकर फि्रा में रख देते हैं और रात्रि में पढ़ाई करते समय बच्चों के हाथ में थमा देते हैं। बाजार में मिलने वाली इन चीजों में फुड पॉइानिंग का खतरा अधिक रहता है। इसलिए बच्चोें को ताजे फलों का रस दिया जाना चाहिए। वैसे भी फलों का सेवन किसी भी समय किया जा सकता है। फलों में प्रचुर मात्रा में फाईबर होने के कारण ये पाचन तंत्र को सबल बनाता है साथ ही इसमें उपस्थित शर्करा की मात्रा मस्तिष्क की कार्यक्षमता को भी विकसित करती है।
परीक्षा के समय भारी एवं देर से पचने वाला भोजन लेने से आलस और नींद घेर लेती है। अत: विद्यार्थीयों को चाहिए कि वे परीक्षा के दिनों में हल्का नाश्ता लें साथ ही दोपहर और रात्रि के भोजन में सादा एवं सुपाच्य भोजन लें। कई विद्यार्थी मानसिक तनाव के कारण ठीक से भोजन नहीं कर पाते और भूखे रहते हैं साथ ही रात में देर तक जागने के लिए चाय या कॉफी का सहारा लेते हैं। ऐसा करने से उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। कमजोरी महसूस होती है और पढ़ाई के प्रति अनिच्छा की भावना आती है। भोजन के प्र्रति अरूचि दर्शाने वाले बच्चों के माता-पिता को उनके स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। माँ को चाहिए कि वे इन्हें फलो का ताजा रस या फल, दूध से बनी वस्तुएँ अधिक मात्रा में दें, जिससे उनके शरीर में शर्करा और ग्लूकाो की मात्रा बराबर बनी रहे। दूध से बनी वस्तुएँ पाचन में हल्की और स्फूर्तिदायक होती हैं। इनसे खट्टी डकारें आना जैसी तकलीफ दूर होती है।
रात-दिन एक कमरे में कैद होकर केवल पढ़ाई पर ही ध्यान देने वाले बच्चों के लिए यह आवश्यक है कि वे भोजन के समय सभी के साथ मिल बैठ कर भोजन करें। साथ मिलकर भोजन करने से मानसिक तनाव कम होता है और कुछ समय की ताजगी अध्ययन के लिए दोगुना उत्साह भर देती है। उन क्षणों में माता-पिता को भी चाहिए कि वे उनसे पढ़ाई संबंधी कोई बात न करें और बातचीत के द्वारा वातावरण को हल्का बनाए जिससे विद्यार्थी ताजगी का अनुभव करे।
सुबह परीक्षा देने जाते समय हल्के नाश्ते के रूप में फ्रूट-सलाद, दूध से बनी सामग्री जैसे खीर, दहीं-चपाती, साबुदाने की खीर, फलों का रस, ग्लूकाो वाले बिस्किट, नारियल का पानी आदि दिया जा सकता है। इनका सेवन करने से रात्रि जागरण के कारण होने वाले पित्त के प्रकोप से छुटकारा मिलता है। कभी-कभी ग्लूकाो की कमी के कारण परीक्षा हॉल में मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है। एकदम से किसी प्रश् का उत्तर याद नहीं आता और घबराहट के कारण शरीर पसीने से भीग जाता है, ऐसे में विद्यार्थी को अपने पास नमक और ग्लूकाो का पानी, नीबूं का शरबत, नारंगी या संतरे का जूस रखना चाहिए। एक-दों घूंट की मात्रा में इनका सेवन करने से मानसिक तनाव पल भर में ही दूर हो जात है।
आज अभिभावक और माता-पिता बच्चों की परीक्षा को लेकर उनसे भी अधिक सजग हैं और अपना कर्तव्य अच्छी तरह समझते हुए उसे निभाने का पूरा प्रयास करते हैं। इसी प्रयास में वे जाने-अनजाने उन्हें अधिक नंबर या प्रतिशत लाने के लिए दबाव बनाते हैं, जो कि गलत है। परीक्षा के दौरान विद्यार्थी को माता-पिता के स्नेह और प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। अध्ययन के प्रति बार-बार की रोक-टोक और अधिक नंबर लाने का दबाव उन्हें मानसिक रूप से पीड़ा पहुँचाता है। पहले से ही परीक्षा को लेकर भय से घिरे विद्यार्थी माता-पिता के दबाव के कारण अधिक भयभीत हो जाते हैं और मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। अत: माता-पिता को चाहिए कि वे परीक्षा के दिनों में केवल उनकी शारीरिक स्वस्थता की अधिक चिंता करें और उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ होने में सहयोग प्रदान करें।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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