शनिवार, 2 मई 2009

नेताओं के उड़न खटोले का खर्च गरीब जनता पर



डॉ. महेश परिमल
विश्व आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। लोगों की नौकरियाँ जा रही हैं, बेरोजगारी बढ़ रही है। कई आत्महत्याएँ हो रही हैं। महँगाई बढ़ रही है। जमाखोरों के पौ-बारह हैं। व्यापारी आम जनता को लूटने में लगे हैं। उधर आम जनता की सारी समस्याओं को एक बार में खत्म करने का नारा लेकर निकले हमारे देश के नेता चुनाव जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। लोगों के पास पहुँचने के लिए ये नेता लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं। उडऩ खटोले पर आए नेता को देखने-सुनने के लिए आम जनता उमड़ पड़ती है। यह भारतीय जनता है, वह यह भूल जाती है कि नेता के इस उडऩ खटोले का खर्च आज नहीं, तो कल उसकी जेब से ही निकलेगा। मंदी के इस दौर में भी इन नेताओं को आड़े नहीं आती। उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि कल यदि चुनाव जीत गए, तो पूरे खर्च सूद समेत वसूल हो जाएँगे।
इन उडऩ खटोलों पर उडऩे का गणित यदि समझ लिया जाए, तो सचमुच हमें पता चल जाएगा कि ये नेता किस तरह से अपने भाषण के माध्यम से आम जनता को भ्रमित कर रहे हैं। यूँ तो सभी राज्यों का अपना एक उडऩ खटोला है। पर उस राज्य के मुख्यमंत्री आचार संहिता के चलते उसका इस्तेमाल नहीं कर सकते, पर चुनाव आयुक्त या चुनाव अधिकारी बेखौफ उस उडऩ खटोले का इस्तेमाल कर सकते हैं। नेताओं द्वारा उडऩ खटोलों के इस्तेमाल ने इस वर्ष रिकॉर्ड तोड़ा है। इस बार विमान से अधिक हेलीकाप्टर का इस्तेमाल हुआ है। अब आपको बता दें कि इसका किराया कितना है? इन हेलीकाप्टरों में दो सीटर का एक घंटे का किराया 45 हजार से एक लाख रुपए तक होता है। उसमें भी यदि डबल इंजन वाला है, तो उसका किराया 70 हजार से डेढ़ लाख रुपए होता है। इसमें चार लोग ही बैठ सकते हैं। यदि हेलीकाप्टर दिन भर के लिए लिया गया है, तो एक घंटे का 5 से दस हजार रुपए वेटिंग चार्ज लिया जाता है। यदि कहीं रात रुकना हो गया, तो 30 हजार रुपए अतिरिक्त। यदि प्राइवेट जेट किराया पर लिया जाए, तो उसका एक घंटे का किराया डेढ़ से दो लाख रुपए होता है।
हमारे देश में हेलीकाप्टर किराए पर देने वाली छोटी-बड़ी 55 कंपनियाँ हैं। इन सबके पास कुल 180 हेलीकाप्टर हैं। इसमें से कांगे्रस ने ही कुल 10 विमान और 20 हेलीकाप्टर बुक किए हैं। इसके बाद भाजपा का नम्बर आता है, जिसने 8 विमान और 10 हेलीकाप्टर बुक किए हैं। इसी तरह सपा ने एक विमान और 2 हेलीकाप्टर, जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के लिए पूरा एक हेलीकाप्टर ही बुक किया गया है। हाल ही में इन्होंने अपना हेलीकाप्टर सीधे चुनावी सभा के पास ही उतारा, जिससे काफी विवाद हुआ। वैसे विवादास्पद हरकतें और विवादास्पद बयान इनकी कमजोरी हैं। इसके अलावा प्रजा का उद्धार करने के लिए उडऩ खटोले में घूमने वाले शरद पवार, जयललिता, उद्धव ठाकरे, करुणानिधि,नवीन पटनायक, नीतिश कुमार, रामविलास पासवान, ओमर अब्दुल्ला, अजीत सिंह, ममता बनर्जी, मायावती भी हैं। जो कभी विमान से या फिर हेलीकाप्टर से आम जनता को उनकी तमाम समस्याओं का समाधान के लिए पार्टी को जिताने की अपील करते हैं।
इसके अलावा बड़े उद्योगपतियों और फाइव स्टार होटलों के पास अपने विमान और हेलीकाप्टर हैं। चुनाव के समय ये लोग अपने विमान और हेलीकाप्टर नेेेताओं को इस्तेमाल करने के लिए देते हैं। चुनाव न हों, तो नेता इनके विमान का खुलकर इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में कांगे्रसाध्यक्ष सोनिया गांधी रिलायंस के विमान से मास्को गईं थी, तब इस पर विवाद हुआ था, अंतत: कांग्रेस को इसका किराया देना पड़ा था। इसके अलावा एक बार सोनिया गांधी ने श्रीनगर जाने के लिए वायुसेना के विमान का इस्तेमाल किया था, तब भी विवाद हुआ था। वैसे वायुसेना के विमान का उपयोग प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, गृहमंत्री, सशस्त्र सेना के प्रमुख आदि ही कर सकते हैं। इसीलिए बाद में यह स्पष्टीकरण दिया गया कि इस विमान में सोनिया जी के साथ देश के गृहमंत्री भी थे।
इस बार चुनाव में जेट विमानों का इस्तेमाल अपेक्षाकृत कम हुआ है। फिर भी इतना तो तय है कि चुनावों में यदि केवल विमानों का खर्चा इतना अधिक है, जिससे एक छोटे से राज्य का बजट ही बन सकता है। पार्टियों को तो इसका हिसाब देना ही नहीं है, क्योंकि इस देश में राजनैतिक पार्टियों के पास धन कहाँ से आता है और कहाँ खर्च किया जाता है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। आखिर ऐसा क्यों है, क्या इस लोकतांत्रिक देश में ऐसा संभव है? एक पान वाले को अपने सालाना आय और खर्च का हिसाब देना होता है, तो फिर इन राजनैतिक दलों से इससे क्यों दूर रखा गया है? क्या पार्टियाँ किसी तरह का व्यापार करती हैं, आखिर उनकी आय कैसे होती है? क्या यह जानने का अधिकार जनता के पास नहीं है? क्या एक जनहित याचिका लगातार आम आदमी सरकार से पूछ सकता है? सूचना का अधिकार आखिर किसलिए है? गांधीजी की आरती उतारने वाले ये नेता शायद यह भूल गए कि गांधीजी ने लोगों से मिलने के लिए ट्रेन के तीसरे दर्जे डिब्बे का इस्तेमाल किया। उसके बाद अपने भाषण से जनता को आंदोलित कर दिया। उनकी सादगी को कौन नेता याद करता है। आज ये उडऩ खटोले में बैठकर जनता के सामने आते हैं और उन्हें आश्वासनों के पहाड़ पर खड़ा करके चले जाते हैं, 5 साल के लिए।
इन उडऩ खटोलों पर बैठने के खतरे भी कम नहीं हैं। आए दिनों हेलीकाप्टर खेत पर उतारने, इमर्जेंसी लेंडिंग, हेलीकाप्टर में खराबी आदि के समाचार मिलते ही रहते हैं। माधवराव सिंधिया का देहांत इसी विमान दुर्घटना में हुआ, जब वे एक चुनावी सभा को संबोधित करने के लिए जा रहे थे। दक्षिण भारत की अभिनेत्री सौंदर्या भी जब चुनावी सभा को संबोधित करने के लिए जा रही थीं, तब उसका हेलीकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उनकी मौत हो गई। फिर भी इन नेताओं की हिम्मत तो देखो, केवल अपनी जीत के लिए अपनी जान खतरे में डालकर लगातार हवाई यात्राएँ कर रहे हैं। क्या वास्तव में इनके दिल में जनता के लिए प्यार है? क्या सचमुच ये देश के लिए समर्पित हैं? क्या वास्तव में ये यह चाहते हैं कि देश की सारी समस्याओं का समाधान हो जाए? क्या कोई निजी स्वार्थ नहीं है इनका? क्या सचमुच ये देश की भलाई के लिए गंभीर हैं? इन सभी सवालों का जवाब देश की जनता एक नई इबारत के रूप में लिख रही है, जिसका पता 16 मई को ही चलेगा। तब तक इन नेताओं से हमें ईश्वर ही बचाए।
डॉ. महेश परिमल

3 टिप्‍पणियां:

  1. सबका सारा ख़र्च ग़रीब जनता के ही सिर तो है परिमल जी. इस बेचारी का क्या किया जाए?

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  2. bhut acha laga kitani bariki sa data liya apana lakin ab to lagata hai ki netao ka sath janta bhi doshi hai janta ne is ber bot hi nahi dala hai agar janta bot dalti to ho sakta hai ki rajnetik party may bhi badlab ata

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