सोमवार, 11 मई 2009

अब ऑंकड़ों पर टिकी,देश की दशा और दिशा

डॉ. महेश परिमल
एक बार किसी से पूछा गया कि यदि आपके सामने शेर आ जाए, तो आप क्या करेंगे? जवाब था, उस समय मेरा कोई काम नहीं है, जो कुछ करेगा, शेर करेगा। यह करारा जवाब आज के मतदाताओं पर बिलकुल सटीक बैठता है। सभी मतदाताओं ने अपनेर् कत्तव्य का निर्वाह करते हुए मतदान कर दिया। अब उनके हाथ में कुछ भी नहीं है, अब जो कुछ भी होगा, वे विजयी प्रत्याशी करेंगे। मतदान यज्ञ पूर्ण हो गया, अब सभी हार-जीत के समीकरण में उलझ गए हैं। अब ऑंकड़े ही इस देश की दिशा और दशा तय करेंगे। कई अपनी थकान उतार रहे हैं, तो कई भक्ति में लग गए हैं। अब उन्हें मतदाताओं की कोई चिंता नहीं है। भविष्य का फैसला लोगों ने इवीएम मशीन में कैद कर दिया है। कई दिग्गजों के भाग्य का फैसला अब 16 मई को ही होगा।
यदि भारतीय मतदाताओं का दुर्भाग्य है कि जब-तक उनके पास मत देने का अधिकार रहता है, तब तक सभी दलों के नेता उसके आगे-पीछे घूमते हैं। जैसे ही वह अपने इस अधिकार को इस्तेमाल करता है, वैसे ही उससे वह अधिकार पूरे 5 वर्ष तक छीन जाता है। अब नेताओें के आगे-पीछे घूमने की बारी उसकी होती है। बहुत ही मूर्ख है भारतीय मतदाता, नेताओं के आश्वासनों पर वह इतना अधिक विश्वास करने लगता है कि अपने पास रखा एकमात्र अधिकार उसे सौंपने में देर नहीं करता। उसके बाद तो उसे कोई नहीं पूछता। ये नेता भी आम आदमी की समस्याओं पर चुनाव के पहले खूब बोलते हैं, पर चुनाव के बाद उन्हें इतना भी वक्त नहीं मिलता कि वे आम आदमी की समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक कुछ सोच सकें। सचमुच बहुत अभागे हैं हमारे नेता, इन्हें भी समय नहीं मिलता कि आम आदमी की समस्याओं पर कुछ सोच सकें। क्यों सोचें? चुनाव जीतने के बाद ये आम आदमी कहाँ रह जाते हैं। ये तो वीआईपी हो जाते हैं। सच यही है कि आम आदमी के बारे में आम आदमी ही सोचता है, वीआईपी नहीं। जिसने चुनाव जीता, वह तो अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर सोचेगा। उसके सामने क्या औकात है आम आदमी की?
नेताओं के पास यह भी सोचने का समय नहीं है कि आखिर मतदान का प्रतिशत लगातार क्यों गिर रहा है? मात्र 50 से 55 प्रतिशत मतदान पर ही पूरा गणित टिका है। क्या बाकी के मतदाता जागरुक नहीं हैं? क्या इन्हें अपनेर् कत्तव्यों का अहसास नहीं है? शेष मतदाता यह अच्छी तरह से जानते हैं कि आज जो भी हमारे सामने हमारा सच्चा प्रतिनिधि होने का दावा करने वाला, हमारे दरवाजे पर वोट की भीख माँगने वाला याचक आया है, वह पूरी तरह से मायावी है। वह छल कर रहा है। उसका सच्चा स्वरूप तो संसद में देखा जा सकता है, जहाँ उसे बोलना होता है, वहाँ वह नहीं बोलता, इसके अलावा जहाँ उसे नहीं बोलना होता है, वहाँ वह इतना अधिक बोलता है कि उसे मार्शल द्वारा धक्के देकर बाहर निकालना पड़ता है। वोट देते समय हमने ऐसे किसी प्रतिनिधि की कल्पना नहीं की थी। फिर यह कौन आ गया, हमारे विचारों को खंडित करने वाला?
इधर कांग्रेस कितना भी गरज ले, लेकिन वह भी भीतर ही भीतर विपक्ष में बैठने के लिए तैयार है। उधर भाजपा भी कितना भी दावा कर ले कि वह अपने बल पर सरकार बना लेगी, उसका भी दावा खोखला साबित होने वाला है। अब तो यह तय है कि बिना किसी तालमेल या खरीद-फरोख्त के सरकार बनाई ही नहीं जा सकती। अन्य दलों के दावे भी खोखले सिद्ध होंगे, यह तय है। इस बार मतदाता ने किसी लहर में आकर अपना वोट नहीं दिया है। अब उसे अपने वोट का महत्व समझ में आने लगा है। कई बार मतदाता भी सोचने लगता है कि उसके पास कोई भी बेहतर विकल्प नहीं है। उसे साँपनाथ-नागनाथ में से किसी एक को चुनना है। दोनों ही स्थितियों में फजीहत मतदाता की ही होनी है, इसलिए न चाहते हुए भी उसे उस व्यक्ति को वोट देना पड़ता है, जो कम बेईमान है। वैसे बेईमानी को उसके पास कोई मापदंड नहीं है। आज उसे जो कम बेईमान लग रहा है, कल वही उसे सबसे बड़ा बेईमान दिखाई देने लगेगा। इसलिए अब वह किसी एक दल पर भरोसा नहीं करता। अब वही मतदाता कुछ-कुछ जातिवाद से भी ऊपर उठने लगा है। अपने अधिकार के प्रति वह कुछ और सजग होने लगा है। फिर भी वह पूरी तरह से सजग नहीं है। उसकी सजगता अभी तो नहीं, पर भविष्य में अपना असर दिखाएगी, यह तय है।
अभी यह माना जा रहा है कि इस बार मतदान करने वाले दस प्रतिशत बढ़े हैं, इसका आशय यही हुआ कि इस बार युवाओं ने अपनी सक्रियता दर्शाई है। मतदान के दिन घर में ही घुसे रहने वाला युवाओं ने इस बार बाहर निकलकर अपनी ताकत का खुलासा किया है। अभी भी युवा इस दिशा में पूरी तरह सचेत नहीं हुआ है, पर यही युवा इसी तरह अपनी सक्रियता दिखाए, तो वह दिन दूर नहीं, जब चुनाव से अपराधियों का पूरी तरह से सफाया ही हो जाए। प्रत्याशियों ने भी इस बार मतदाताओं को जगाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए हैं। टीवी के माध्यम से बार-बार मतदाताओं को विभिन्न दलों ने अपनी उपलब्धियों का बखान किया है। कहीं-कहीं एसएमएस का भी इस्तेमाल किया गया। यही नहीं इस बार तो विभिन्न शहरों में चल रहे एफएम रेडियो के माध्यम से मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की गई है। हिंदी के विशेषज्ञों से लिखवाए गए कई स्लोगनों ने युवाओं को आकर्षित किया। कई दलों ने डिस्काउंट कूपनों का सहारा लिया। कई स्थानों पर युवाओं ने नेताओं पर अपना गुस्सा भी जाहिर किया।
जिन स्थानों पर नेताओं के खिलाफ युवाओं ने अपनी नाराजगी दिखाई, वह एक संकेत है, नेताओं के लिए, जिसे समझने की आवश्यकता है। यदि नेताओं ने इसे नजरअंदाज किया, तो इसका परिणाम भी भुगतने के लिए उन्हें तैयार रहना होगा। यह पीढ़ी और अधिक आक्रामक भी हो सकती है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि मतदान के प्रति लोगों में अब रुझान बढ़ रहा है। अब नेताओं के झूठे और कोरे आश्वासनों से जनता मानने वाली नहीं है, उन्हें चाहिए ठोस प्रत्याशी, जो न केवल उन्हें सुरक्षा दे, बल्कि उनकी समस्याओं को गंभीरता से ले। केवल अपना घर भरने वाले सांसदों को अच्छा सबक सिखा चुकी है, यह जनता। बस इंतजार करें 16 मई का......
डॉ. महेश परिमल

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