राजेश आर सिंह
सरकारी कार्यालयों में अक्सर लोगों का काम अटकाने का मामला सामने आता रहता है आम आदमी को इस समस्या से छुटकारा दिलाने के उद्देश्य से भारत सरकार नें वर्ष २००५ में राइट्स टू इन्फार्मेशन एक्ट ( आर. टी. आई ) कानून बनाया । जम्मू-कश्मीर को छोड़ कर यह कानून देश के सभी हिस्सों में लागू है । देश का कोई भी नागरिक इस अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है । इस कानून के जरिये अपने काम से सम्बंधित जानकारी पा सकता है इस विषय में कुछ खास जानकारियां इस प्रकार है ।
आरटीआई कानून का मकसद :- इस कानून का मकसद सार्वजनिक विभागों के कामों की जवाबदेही तय करना और पारदर्शिता लाना ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके । इसके लिए सरकार नें केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों का गठन भी किया है ।
आरटीआई कानून के दायरे में आने वाले विभाग :- सरकारी दफ्तर, पीएसयू, अदालतें, संसद व विधानमंडल, स्थानीय संस्थाए, सरकारी बैंक, सरकारी अस्पताल, बीमा कम्पनियाँ, चुनाव आयोग, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, और राष्ट्रपति कार्यालय आदि आरटीआई कानून के दायरे में आते है । इनके आलावा वैसे एनजीओ जो सरकार से फंडिंग प्राप्त करते हों, पुलिस, सीबीआई व सेना के तीनों अंगों की सामान्य जानकारी भी इस कानून के तहत ली जा सकती है ।
इनपर आरटीआई कानून नहीं लागू होता :- किसी भी खुफिया एजेंसी की वैसी जानकारियां जिनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा व अखंडता को खतरा हो, को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है । लेकिन मानवाधिकार उल्लंघन होने व इन संस्थाओं में भ्रष्टाचार के मामलों की जानकारी ली जा सकती है । अन्य देशों के साथ भारत के सम्बन्ध से जुड़े मामलों की जानकारी को भी इस कानून से अलग रखा गया है साथ ही साथ निजी संस्थाओं को भी इस दायरे से बाहर रखा गया है । लेकिन इन संस्थाओं की सरकार के पास उपलब्ध जानकारी को सम्बंधित विभाग के माध्यम से हासिल किया जा सकता है ।
क्या है थर्ड पार्टी :- आरटीआई कानून में थर्ड पार्टी का जिक्र है । इसके तहत वैसी प्राइवेट कंपनियां आती है, जो सरकार से मदद नहीं लेती है और जो सूचना के अधिकार कानून के दायरे में नहीं आती । इन कंपनियों के बारे में जानकारी सिर्फ़ सरकारी विभागों के माध्यम से मांगी जा सकती है, लेकिन वे कंपनिया सीधे जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है ।
कहां करे अप्लाई :- सम्बंधित विभागों में पब्लिक इन्फारमेंशन आफिसर को एक ऍप्लिकेशन देकर इच्छित जानकारी मांगी जा सकती है . इसके लिए सरकार नें सभी विभागों में एक पब्लिक इन्फार्मेशन आफिसर यानी पीआईओ की नियुक्ति की है . उसकी सहायता के लिए एपीआईओ भी होता है .
कैसे करें अप्लाई :- सादे कागज पर हाँथ से लिखी हुई या टाईप की गई अप्लिकेशन के जरिये से जानकारी मांगी जा सकती है । वैसे कुछ राज्यों को छोड़ कर सभी राज्यों में इसके फार्म मुफ्त में मिलते है । आरटीआई अप्लिकेशन के साथ १० रूपये की फीस भी जमा करानी होती है ।
अप्लिकेशन में क्या लिखें :- क्या सूचना चाहिए, कितनी अवधि की सूचना चाहिए, अपना नाम, पता, फ़ोन या मोबाईल नम्बर, ताकि सूचना देने वाला विभाग आपसे संपर्क कर सके । इसके अलावा फीस का विवरण भी देना होता है । अगर सूचना मांगने वाला गरीबी रेखा के नीचे आता है तो उसे कोई फीस नहीं देनी पड़ती, लेकिन ऍप्लिकेशन के साथ बीपीएल कार्ड की कॉपी अटैच करनी पड़ती है ।
कैसे जमा कराएँ फीस :- केन्द्र व दिल्ली से संबंधित सूचना आरटीआई के तहत लेने की फीस है १० रूपये । वैसे ज्यादातर राज्यों में भी १० रूपये ही है, पर कुछ राज्य ज्यादा भी चार्ज कर रहे है । फीस कैश, बैंक ड्राफ्ट, या पोस्टल ऑडर के रूप में दी जा सकती है ।
इन भाषाओँ का इस्तेमाल करें :- हिन्दी, अंग्रेजीया किसी भी स्थानीय भाषा में ऍप्लिकेशन दी जा सकती है ।
सूचना मिलने में देरी होने पर क्या करें :- आमतौर पर सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी तीस दिन में मिल जानी चाहिए । थर्ड पार्टी यानी प्राइवेट कंपनी के मामले में ४५ दिन और जीवन और सुरक्षा से संबंधित मामलों में ४८ घंटों में सूचना मिलनी ही चाहिए । ऐसा न होने पर संबंधित विभाग के संबंधित अधिकारी पर एक केस के लिए २५० रूपये प्रतिदिन के हिसाब से २५ हजार रूपये तक का जुर्माना हो सकता है ।
इसके अंतर्गत कौन आते है :- यह अधिनियम ज़म्मू-कश्मीर राज़्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू है (एस। 12)।
सुचना का क्या मतलब होता है :- सूचना का मतलब है- रिकार्डों, दस्तावेज़ों, ज्ञापनों, ई-मेल, विचार, सलाह, प्रेस विज्ञप्तियाँ, परिपत्र, आदेश, लॉग पुस्तिकाएँ, ठेके, टिप्पणियाँ, पत्र, उदाहरण, नमूने, डाटा सामग्री सहित कोई भी सामग्री, जो किसी भी रूप में उपलब्ध हों। साथ ही, वह सूचना जो किसी भी निजी निकाय से संबंधित हो, किसी लोक प्राधिकारी के द्वारा उस समय प्रचलित किसी अन्य कानून के अंतर्गत प्राप्त किया जा सकता है, बसर्ते कि उसमें फाईल नोटिंग शामिल नहीं हो। (एस।-2 (एफ))
इसके अंतर्गत निम्न चीजें आती है :-
(1) कार्यों, दस्तावेज़ों, रिकार्डों का निरीक्षण,
(2) दस्तावेज़ों या रिकार्डों की प्रस्तावना/सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना,
(3) सामग्री का प्रमाणित नमूने लेना,
(4) रिंट आउट, डिस्क, फ्लॉपी, टेपों, वीडियो कैसेटों के रूप में या कोई अन्य ईलेक्ट्रॉनिक रूप में जानकारी प्राप्त करना (एस- 2(ज़े))
लोक अधिकारी के कर्तव्य :-
1. इस कानून के लागू होने के १२० दिन के भीतर निम्न सूचना प्रकाशित कराना अनिवार्य होगा,
2. सरकार द्वारा अपने संगठनों, क्रियाकलापों और कर्त्तव्यों के विवरण
3. अधिकारियों और कर्मचारियों के अधिकार और कर्त्तव्य
4. अपने निर्णय लेने की प्रक्रिया में अपनाई गई विधि, पर्यवेक्षण और ज़िम्मेदारी की प्रक्रिया सहित
5. अपने क्रियाकलापों का निर्वाह करने के लिए इनके द्वारा निर्धारित मापदण्ड
6. अपने क्रियाकलापों का निर्वाह करने के लिए इनके कर्मचारियों द्वारा उपयोग किए गए नियम, विनियम, अनुदेश, मापदण्ड और रिकार्ड
7. इनके द्वारा धारित या इनके नियंत्रण के अंतर्गत दस्तावेज़ों की कोटियों का विवरण
8. इनके द्वारा गठित दो या अधिक व्यक्तियों से युक्त बोर्ड, परिषद्, समिति और अन्य निकायों के विवरण। इसके अतिरिक्त, ऐसे निकायों में होने वाली बैठक की ज़ानकारी आम जनता की पहुँच में है या नहीं
9. इसके अधिकारियों और कर्मचारियों की निर्देशिका
10. इसके प्रत्येक अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा प्राप्त की जाने वाली मासिक वेतन, इसके विनियमों के अंतर्गत दी जाने वाली मुआवज़े की पद्धति सहित
11. इसके द्वारा संपादित सभी योजनाएँ, प्रस्तावित व्यय और प्रतिवेदन सहित सभी का उल्लेख करते हुए प्रत्येक अभिकरण को आवंटित बज़ट विवरण
12. सब्सिडी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की विधि, आवंटित राशि और ऐसे कार्यक्रमों के विवरण और लाभान्वितों की संख्या को मिलाकर
13. इसके द्वारा दी जाने वाली रियायत, अनुमतियों या प्राधिकारियों को प्राप्त करने वालों का विवरण,
14. इनके पास उपलब्ध या इनके द्वारा धारित सूचनाओं का विवरण, जिसे इलेक्ट्रॉनिक रूप में छोटा रूप दिया गया हो
15. सूचना प्राप्त करने के लिए नागरिकों के पास उपलब्ध सुविधाओं का विवरण, जनता के उपयोग के लिए पुस्तकालय या पठन कक्ष की कार्यावधि का विवरण, जिसकी व्यवस्था आम जनता के लिए की गई हो
16। जन सूचना अधिकारियों के नाम, पदनाम और अन्य विवरण (एस. 4 (1)(बी))
लोक अधिकारी का क्या मतलब है :- इसका अर्थ है कोई भी स्थापित या गठित प्राधिकारी या निकाय या स्वशासी संस्थान [एस-२(एच)] जिसका गठन निम्न रीति से हुआ है-
* संविधान द्वारा या उसके अंतर्गत
* संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून द्वारा
* राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून के द्वारा
उपयुक्त शासन द्वारा जारी अधिसूचना या आदेश द्वारा जिसमें निम्न दो बातें शामिल हों-
1. वह सरकार द्वारा धारित, नियंत्रित या वित्त पोषित हो
2. उक्त सरकार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धन ग्रहण करता हो
राजेश आर सिंह
शुक्रवार, 21 अगस्त 2009
जरूरी है सूचना के अधिकारों का इस्तेमाल
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दृष्टिकोण
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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