बुधवार, 26 अगस्त 2009
देश में बढऩे लगे पत्नी पीडि़त
डॉ. महेश परिमल
पत्नी पीडि़तों पर काफी जोक्स अक्सर हमारा मनोरंजन करते हैं। किटी पार्टियों में इस तरह के जोक्स सुनाकर महिलाएँ अपने आप पर गर्व करती हैं। जो महिला अपने पति को जितने अधिक तरह की प्रताडऩा देती है, वह उतनी ही अधिक प्रशंसनीय होती है। ऐसा इस तरह की पार्टियों में होता है। पर आजकल एक बहुत ही खतरनाक सच हमारे समाज में पसर रहा है। यह सच है पत्नी पीडि़त पुरुषों की बढ़ती संख्या। इस समय जो आँकड़े उपलब्ध हैं, उसके अनुसार इस समय देश में कुल 40 हजार पत्नी पीडि़त पुरुष हैं। आज महिलाएं लगातार आत्मनिर्भर बन रहीं है, इस बात की खुशी है। पर वे और अधिक आक्रामक भी होने लगी हैं, यह दु:ख की बात है। आक्रामकता यदि केवल आत्म सुरक्षा को लेकर नहीं, बल्कि अपने पति को प्रताडि़त करने में बढ़ रही है। इन दिनों इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। 2007 में पत्नी से परेशान 57 हजार 593 पुरुषों ने आत्महत्या का सहारा लिया। ऐसे में इनके पास तलाक के सिवाय और कोई रास्ता भी नहीं है। इनका परिवार बिखर रहा है। पहले इस तरह के मामले केवल बेडरूम तक ही सीमित रहते थे, अब ये मामले बाहर निकल रहे हैं। जो महिलाएँ केवल पुरुषों के अत्याचारों से पीडि़त थीं, अब उनके लिए यह सुखद आश्चर्य हो सकता है कि क्या ऐसा भी हो सकता है?
कुछ माह पहले भोपाल में भी एक उच्च अधिकारी ने यह शिकायत की थी कि उनकी पत्नी उन्हें कई तरह से प्रताडि़त करती हैं। घर का काम करवाती हैं और बच्चों के सामने ही उन्हें पीटती हैं। जो अधिकारी अपनी ऑफिस में सम्मान पाता हो, उसके नीचे के अधिकारी उसे 'सरÓ कहकर पुकारते हों, वही अधिकारी जब घर के तमाम कार्य करे, तो कितनी जिल्लत उठानी पड़ती होगी उसे? यह सोच इंसान को भी यदि आक्रामक बना दे, तो फिर समाज का चलना ही मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि यहाँ एक नहीं दोनों आक्रामक होंगे, तो परिमाम दु:खद ही होंगे। कुछ उदाहरणों से आगे बढ़ते हैं:- ये हैं दिवाकर भाई, इन्हें जब भी अपने माता-पिता को फोन करना होता है, तो बाहर एसटीडी जाकर फोन करते हैं। बाहर जाने का कोई न कोई बहाना बना ही लेते हैं। इसकी यही वजह है कि पत्नी उन्हें ऐसा नहीं करने देती। यदि उसे पता भी चल गया कि आज पति ने अपने माता-पिता से फोन पर बात की है, तो पति की खूब पिटाई होती है। वह भी बच्चों के सामने। कुछ ऐसा ही हाल प्रदीप का है, यदि ऑफिस से आकर वे घर का काम न करें, तो पत्नी उन्हें खूब मारती हैं। ऐसी बात नहीं है कि वे पढ़े-लिखे नहीं हैं, आफिस में वे एक उच्च अधिकारी हैं, लोग उन्हें 'सरÓ कहकर संबोधित करते हैं। अच्छा वेतन प्राप्त करते हैं। लेकिन घर आते ही वे घर के कामों में लग जाते हैं। इस काम में सब कुछ शामिल है, झाड़ू-पोंछा, बर्तन साफ करना, कपड़े धोना आदि। यदि कभी वे ऐसा न कर पाएँ, तो पत्नी उन्हें खूब मारती हैं। अब उनकी क्या मजबूरी है, ये तो वही जानें। एक कार ड्राइवर हैं रामप्रसाद, वे सरकारी कार चलाते हैं। उसकी पत्नी अक्सर उनकी झाउ़ू से पिटाई करतीं हैं। राम प्रसाद ने इसकी शिकायत पुलिस थाने में की। पहले तो पुलिस इसे मानने को ही तैयार न थी, पर जब राम प्रसाद ने मोबाइल कैमरे से खींची गई तस्वीर बताई, तो पुलिस को विश्वास हुआ। उसका दोष केवल इतना ही था कि उसकी पत्नी एक अच्छी बिल्डिंग में शानदार फ्लैट लेने को कह रही थी, जो उसके बस में नहीं था। जब उसने रहने के लिए एक चाल में किराए पर एक खोली ली, तो आगबबूला होकर पत्नी ने राम प्रसाद की पिटाई कर दी।
अब तक हम यही सुनते आ रहे हैं कि पति हमेशा पत्नी को प्रताडि़त करते हैं। उससे मारपीट करते हैं। पति से मानसिक रूप से प्रताडि़त कई महिलाओं ने आत्महत्या का भी सहारा लिया। कई महिलाएँ तो अवसाद की स्थिति में भी पहुंच चुकी हैं। अब जमाना बदल रहा है। महिलाएँ न केवल स्वतंत्र, बल्कि आत्मनिर्भर बन रहीं हैं। यही वजह हे कि अब पुरुष महिलाओं के अत्याचार के शिकार हो रहे हैं। 'सेव इंडिया फेमिली फाउंडेशनÓ के काउंसलर कहते हैं कि घरेलू हिंसा की शिकार केवल महिलाएँ ही हो रहीं हैं, ऐसी बात नहीं है। इस संस्था में हर वर्ष करीब एक लाख पुरुष फोन पर बताते हैं कि किस तरह पत्नी उन्हें प्रताडि़त करती हैं। काउंसलर कहते हैं कि हमारे देश में पत्नी द्वारा प्रताडि़त पतियों की संख्या किसी भी रूप में कम नहीं है। इसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
स्वांचेतन नामक एक अन्य संस्था के डायरेक्टर कहते हैं कि हम हर वर्ष पत्नी द्वारा प्रताडि़त 350 पुरुषों की काउंसिलिंग करते हैं। हमारे पास आने वाले अधिकांश पुरुषों की यही शिकायत होती है कि पत्नी द्वारा हमें मानसिक और शारीरिक प्रताडऩा दी जाती है। यही नहीं परिवार से कोई संबंध न रखने की धमकी भी पत्नी द्वारा दी जाती है। कई पुरुष तो पत्नी द्वारा पहुँचाई गई शारीरिक पीड़ा का सुबूत देते हैं। 'नेशनल क्राइम रेकाड्र्स ब्यूरोÓ(एनसीआरबी) के आँकड़ों पर नजर डालें, तो वर्ष 2007 में पुरुषों द्वारा किए गए अत्याचारों से तंग आकर 30 हजार 64 विवाहित महिलाओं ने आत्महत्या की, इसकी तुलना में महिलाओं द्वारा किए गए अत्याचार से पीडि़त होकर आत्महत्या करने वाले पुरुषों की संख्या 57 हजार 593 थी।
इसी संस्था ने वर्ष 2006 में महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए 'डोमेस्टिक वायलेंस एक्टÓ के खिलाफ देश भर में 7 रैलियाँ निकाली थीं। इस्रमें उच्च मध्यम वर्गके 1650 शहरी पुरुषों का आनलाइन सर्वेक्षण किया गया। इस सर्वेक्षण से पता चला कि उक्त 1650 में से 97 प्रतिशत पुरुष पत्नी द्वारा किए जा रहे अत्याचार और घरेलू हिंसा के शिकार हुए हैं। यह भी पता चला कि इन पुरुषों को भावनात्मक, शारीरिक, मानसिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी प्रताडि़त किया गया। इसमें भी आर्थिक प्रताडऩा के शिकार पुरुषों की संख्या अधिक थी। कई लोग इन आँकड़ों को गलत बताते हैं। उनका आरोप है कि यह सर्वेक्षण वैज्ञानिक तरीके से नहीं किया गया है, क्योंकि संस्था ने पुरुषों से संपर्क किया था, पत्नी से प्रताडि़त पुरुषों ने संस्था से संपर्क नहीं किया था। उधर 'आल इंडिया डेमोके्रटिक वूमंस एसोसिएशनÓ के अधिकारी बताते हैं कि एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक दहेज से होने वाली मौतों का आँकड़ा लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2007 में दहेज मौतों की संख्या 8 हजार 93 तक पहुँच गई थी।
परंतु उड़ीसा स्टेट वूमन कमिशन के अनुभव के अनुसार महिलाएँ अक्सर दहेज पर कानून की कड़ी नजर को देखते हुए ही पुरुषों पर इस तरह का आरोप लगाती हैं। इस बहाने महिलाएँ कानून से खेलने लगती हैं। इस संबंध में मयंक गुप्ता नाम के एक मैनेजमेंट स्नातक का किस्सा काफी चर्चा में आया। मयंक मूल रूप से कालिकट के हैं, परंतु जब वे मुंबई की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करते थे, तब उन्होंने अपनी सहकर्मी के साथ शादी की। विवाह के 6 महीने बाद ही उनमें विवाद शुरू हो गया। दोनों को ही लंबे समय तक काम करना पड़ता था। दोनों ही यह चाहते थे कि घर का काम मैं नहीं करुँ। मयंक के पिता एम आर गुप्ता ने देखा कि जब दोनों के बीच विवाद होता है, तो मयंक की पत्नी मयंक को खूब मारती है। मयंक के पिता को यह नागवार गुजरा। वे बताते हैं कि पति-पत्नी के बीच झगड़े तो होते ही रहते हैं, पर पत्नी जब पति की बुरी तरह पिटाई करती है, तो पति के आत्मसम्मान का क्या? अंतत: उन्होंने 'प्रोटेक्ट इंडिया फेमिली फाउंडेशनÓ(पीक)से संपर्क किया। अभी वे मयंक का उसकी पत्नी से तलाक के लिए प्रयास कर रहे हैं।
मैसूर में रहने वाले वेंकेटेश्वर को भी पत्नी से छुटकारा चाहिए। इसके लिए उन्होंने पुरुषों के लिए काम करने वाली संस्था 'पीपल्स अर्ज फॉर राइट्स एंड इक्वाालिटीÓ (प्योर) के काउंसलरों से संपर्क किया। उसने बताया कि घर में आते ही उसकी पत्नी रास्ता रोक लेती है और उसे आने नहीं देती। बार-बार उसका शाब्दिक अपमान करती है। उसे मारती है, चिमटी काटती है, नाखून से हमला करती है। एक शिक्षक के रूप में काम करने वाले वेंकेटेश्वर अपनी पत्नी द्वारा लगातार किए जा रहे अत्याचार से अपना आत्मसम्मान खो बैठा है। अब वह अपनी पत्नी से तलाक चाहता है।
आखिर क्या कारण है, इन सबके पीछे। कुछ संस्थाओं ने निष्कर्ष निकाला है कि इन विवादों के पीछे सबसे बड़ा कारण आर्थिक है। अधिकांश पत्नियाँ अपने पति की आवक से संतुष्ट नहीं होतीं। दूसरी ओर पति अपनी पत्नि द्वारा लगातार की जा रही आभूषणों की माँग को पूरा नहीं कर सकता। बस यहीं से होती है झगड़े की शुरुआत। इसके बाद कर्कश पत्नी यही चाहती है कि उसका पति अपने माता-पिता या भाई-बहनों की आर्थिक सहायता न करे। दहेज प्रताडऩा को लेकर अपने पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने में महिलाओं की संख्या कम नहीं है। बेंगलोर की एक संस्था के पास रोज ऐसे 20 मामले आते हैं। संस्था का अनुभव है कि पिछले तीन वर्षों में पतियों द्वारा की जा रही शिकायतों में यह पाया गया है कि पत्नी ने ही अपनी खीझ उतारने के लिए बेवजह दहेज प्रताडऩा का झूठा मामला बनाकर उनके माता-पिता को परेशान किया है।
सुप्रीम कोर्ट के जज आर.पी. चग की संस्था 'क्राइम अगेन्स्ट मेनÓ के अनुसार अभी 40 हजार पत्नी पीडि़त पुरष उनकी संस्था के सदस्य हैं। यह संख्या हर महीने बढ़ती ही जा रही है। यह सोचनीय है कि आज भारतीय नारी भले ही स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हो रहीं हैं, पर कहीं न कहंी उनमें यह भाव भी है कि आखिर हम कब तक पुरुषों की गुलामी सहेंगे? हमारे भी अधिकार हैं, हमें भी जीना आता है। आखिर हम भी तो परिवाररूपी गाड़ी का एक पहिया हैं। मतलब यही कि अब तक जो पुरुष सोच रहे थे, वही अब आत्मनिर्भर होकर नारी सोच रही है। तब फिर अंतर ही कहाँ रहा दोनों में। पहले पुरुष ने सदियों तक किया, अब नारी को कुछ साल तक तो करने दो। समाज का दूसरा अर्थ समझ है। यदि समाज में रहना है, तो समझ बढ़ानी होगी, दोनों को ही। नहीं तो वैवाहिक जीवन की बात तो दूर, ऐसा भी समय आ सकता है, जब दोनों ही अपनी-अपनी बात पर दृढ़ रहें, अलगाव रखें,बात न करें। बस फिर क्या होगा, यह कुछ समय बाद ही पता चल जाएगा। दोनों को अपने-अपने अहम् त्यागने होंगे। अहंकार से केवल परिवार ही नहीं, बल्कि समाज और वंश का ही नाश होता है। दोनों को ही समाज की आवश्यकता है। समाज भी दोनों से ही चलेगा। इसे दोनों ही समझ लें।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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