गुरुवार, 13 अगस्त 2009
बंटी का संकल्प
भारती परिमल
स्कूल का नया सत्र शुरू हो रहा था। आज स्कूल का पहला दिन था। सभी बच्चे खुशी-खुशी स्कूल जा रहे हैं। बंटी भी सुबह जल्दी उठकर स्कूल जाने के लिए तैयार हो गया और गुनगुनाता हुआ स्कूल बस में जा बैठा। बस में वही जाने-पहचाने चेहरे फिर से दिखाई दिए, जो स्कूल में उसके साथ होते थे। सभी अपने दोस्तों से मिलकर बहुत खुश थे और एक-दूसरे को अपने-अपने छुट्टियों के अनुभव सुना रहे थे।
थोड़ी देर पहले खुश हो कर अपनी सीट पर बैठने वाला बंटी एकाएक दु:खी हो गया। वह उन चेहरों में नीरज का चेहरा तलाशने लगा जो कि वहाँ नहीं था, क्योंकि उसने दूसरी स्कूल में एडमिशन ले लिया था। आज उसे नीरज की कमी खल रही थी। बंटी और नीरज दोनों ही बहुत अच्छे दोस्त थे। यूं तो स्वभाव दोनों के अलग थे- एक एकदम शरारती, तो दूसरा एकदम सीधा-सादा। उसके बाद भी दोनों दोस्त थे, यही एक आश्चर्य था। मगर एक की शरारत दूसरे के लिए भारी पड़ी और उसे स्कूल ही छोडऩा पड़ा। हाँ, बंटी की शरारत के ही कारण नीरज को स्कूल से निकाला गया था। इसीलिए आज बंटी जो घर से निकलते समय खुश था, वह बस में बैठते ही पिछले दो महीने पहले की घटना याद कर बिल्कुल उदास हो गया।
उसे याद आ गई दो महीने पहले की वह शरारत, जिसने उससे उसका प्यारा दोस्त छीन लिया था। परीक्षा का आखिरी दिन था। नौवीं कक्षा का सबसे कठिन पेपर था। वैसे कठिन उन लोगों के लिए, जिन्होंने अच्छी तरह पढ़ाई नहीं की थी। ऐसे छात्रों में बंटी भी शामिल था। इसलिए वह भी नकल करने के नए उपाय सोच रहा था।
जहाँ बंटी नकल करने के उपाय सोच रहा था, वहीं नीरज एकांत में बैठा पेपर शुरू होने से पहले रिवीेजन कर रहा था। बंटी ने जब उसे पढ़ते हुए देखा तो सोचने लगा कि काश मैंने भी साल भर शरारत न करके पढ़ाई पर ध्यान दिया होता तो आज मुझे परीक्षा का डर न होता।
तभी परीक्षा शुरू होने की घंटी बजी और वे सभी लोग जो कॉपी-किताबें खोल कर रिवीजन कर रहे थे, उन सभी ने जल्दी-जल्दी अपनी किताबें बंद की और उन्हें बैग में रख कर अपने लॉकर में रखने को भागे। नीरज ने बैग लॉकर में रख तो दिया, पर उससे एक गलती हो गई-लॉकर बंद करते वक्त लॉकर की चाबी वहीं छूट गई। नीरज इस बात से बेखबर परीक्षा हॉल की तरफ चल पड़ा।
बंटी भी परीक्षा हॉल की तरफ बढ़ रहा था कि उसकी निगाह लॉकर की तरफ गई। उसने देखा कि उन लॉकर्स में से एक लॉकर की चाबी उसी में फँसी हुई है। शायद कोई जल्दबाजी में यह गलती कर गया है। किसी की जल्दबाजी बंटी के लिए सुनहरा अवसर साबित हुई। उसे नहीं मालूम था कि यह नीरज का लॉकर है। उसे तो बस उसके अंदर रखी किताब से मतलब था। उसने जल्दी से लॉकर खोलकर किताब निकाली, शर्ट के अंदर रखी और तेजी से हॉल के अंदर जाकर अपनी सीट पर बैठ गया।
प्रश्न-पत्र हल करते समय उसने अवसर का फायदा उठाते हुए इस किताब की मदद से एक-दो प्रश्न भी हल किए। जब उसे किताब की जरूरत न रही, तो उसने उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया। बस यही उसकी सबसे बड़ी गलती थी या यँू कहिए कि नीरज की बदकिस्मती। जो किताब बंटी ने खिड़की से बाहर फेंकी थी, वह सीधे प्रिंसीपल मैडम के पैरों के सामने गिरी। वह उसी समय राउंड पर निकली थी। उन्होंने किताब उठाई और अंदर नाम पढ़कर हैरान रह गई। वे तेजी से हॉल में आई और मैडम को किताब थमाते हुए बोलीं कि यह किताब जिस छात्र की है, उसे तुरंत मेरे रूम में भेजिए।
बंटी किताब देखते ही उसे पहचान गया। वह मन ही मन खुश हो रहा था कि चलो मेरा नाम तो नहीं आएगा, क्योंकि यह किताब न तो मेरे पास से मिली है और न ही इस पर मेरा नाम लिखा है। इसलिए मैं तो बच गया। काश कि बंटी को पता होता कि उस किताब में किसका नाम लिखा हुआ है। उसने जल्दबाजी में यह तो देखा ही नहीं था। इस जल्दबाजी का दु:खद परिणाम तब नजर आया जब मैडम ने नीरज को प्रिंसीपल मैडम के रूम में जाने को कहा। बंटी अवाक रह गया, पर वह कुछ नहीं कर सकता था।
प्रिंसीपल मैडम ने नीरज को नकल करने के लिए खूब डाँटा। वह उनके सामने रोया, गिड़गिड़ाया और य$कीन दिलाने की कोशिश की कि मैंने नकल नहीं की है, लेकिन मैडम पर उसकी बातों का कोई असर न हुआ। उन्होंने उसका उस दिन का पेपर निरस्त कर दिया।
नीरज को इस बात का इतना दु:ख हुआ कि उसने वह स्कूल ही छोड़ दिया। बंटी नकल करके पास तो हो गया, पर उसे यह सफलता काफी खल रही थी, क्योंकि उसी की गलत हरकत के कारण नीरज होशियार होने के बाद भी न केवल फेल हो गया, बल्कि उसने तो वह स्कूल ही छोड़ दिया। उसने अपनी इस गलती का प्रायश्चित करने का विचार किया।
बस में बैठे-बैठे वह उन दिनों की याद करने लगा, जब दोनों रोज शाम को साथ-साथ होते, मस्ती करते। उसे याद आ रहा था कि किस तरह उसे नीरज सदैव कहा करता- बंटी तुम अब पढïऩा-लिखना शुरू कर दो, नहीं तो हो सकता है, इस नकल के चक्कर में तुम तो भले ही पास हो जाओ, पर कोई दूसरा तुम्हारी गलती के कारण परेशानी में पड़ जाएगा। अचानक तेज झटके के साथ बस रुकी, बस उसके स्कूल के सामने खड़ी थी। उसने बेग उठाया और स्कूल की ओर चल पड़ा।
स्कूल बस से उतर कर जब उसने स्कूल के मैदान में कदम रखा तो सबसे पहले उसने यह संकल्प लिया कि अब वह कभी ऐसी कोई शरारत नहीं करेगा कि जिसके लिए उसे बाद में पछताना पड़े। वह अब हमेशा अपने दोस्तों की सहायता करेगा और एक अच्छा आज्ञाकारी छात्र बनेगा। यही उसका प्रायश्चित होगा। इसी संकल्प के साथ उसने कक्षा में प्रवेश किया।
भारती परिमल
लेबल:
बच्चों का कोना
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )