सोमवार, 24 अगस्त 2009

प्रेम दो, प्रेम लो


डॉ महेश परिमल
ईश्वर ने जब सृष्टि की रचना की, तब से प्रेम शुरू हुआ। प्रेम कई तरह का होता है। माँ अपने बच्चों को करती है। पिता भी बच्चों को प्रेम करते हैं। बहन-भाई भी एक दूसरे को प्रेम करते हैं। प्रेम अनमोल है। यह संसार की सबसे खूबसूरत वस्तु है, जो दिखाई नहीं देती, इसे केवल महसूस किया जा सकता है। कहते हैं हम जो कुछ भी करते हैं, प्रकृति हमें वैसा ही लौटाती है। पौधा रोपने के बाद उसकी देखभाल की जाए, तो आगे चलकर वह पेड़ बनता है और फल देता है। ठीक इसी तरह अपने बच्चों को प्रेम देकर बड़ा करने वाले माता-पिता को भी बच्चे बड़े होकर उनकी देखभाल करते हैं। इस तरह का लेन-देन बरसों से चला आ रहा है। अगर हम किसी को प्रेम से बुलाते हैं, उनसे बातचीत करते हैं, तो वह भी हमसे प्रेम से बातवीत करेगा। प्रेम से बड़े से बड़े काम आसानी से हो जाते हैं।
प्रेम किसी से भी किया जा सकता है। इंसान जानवर को भी प्रेम करता है। जानवर भी प्रेम की भाषा खूब समझते हैं। हर कोई प्रेम का भूखा होता है। ईश्वर ने हर किसी को प्रेम करना सिखाया है। प्रेम के बिना दुनिया एक पल भी नहीं रह सकती। पूरी दुनिया में हर कोई किसी न किसी तरह से प्रेम करता है। किसी को पेड़-पौधों से प्रेम होता है, किसी को प्रकृति से। कोई मशीनों से प्रेम करता है, तो कोई पुस्तकों से। किसी को दिन-रात प्रयोगशाला में बैठना अच्छा लगता है, तो किसी को समुद्र या नदी किनारे बैठना अच्छा लगता है।
प्रेम के हमारे जीवन में अनेक रंग हैं। इन सबसे बड़ा प्रेम है, वह है देशप्रेम। देश को प्रेम करना ही चाहिए। जो अपने देश को प्रेम नहीं करता, वह मूर्ख है। देश को प्रेम करने वाला कभी दु:खी नहीं रहता। देश इंसान को बनाता है। देश के लिए जान लुटाने वाले शहीद कहे जाते हैं। जब हम देश को प्रेम करते हैं, तो देश हमें प्रेम करता है। हम जो कुछ भी देश को देंगे, देश उससे दस गुना हमें देगा। प्रेम ऐसी वस्तु है, जिसे जितना बाँटो, उतना ही बढ़ता जाता है। जो प्रेम करते हैं, वे कभी निराश नहीं होते। प्रेम करना अच्छी आदत है। हम किसी को प्रेम देंगे, तभी हमें प्रेम मिलेगा। इसीलिए कहते हैं कि प्रेम दो, प्रेम लो।
प्रेम के बिना कोई भी कभी भी कहीं भी जिंदा नहीं रह सकता। आज पूरी दुनिया प्रेम पर ही टिकी है। प्रेम से आज तक कोई वंचित नहीं रहा। पशु-पक्षी भी अपने बच्चों को प्रेम करते हैं। प्रेमे से प्रेमबड़ी कोई चीज नहीं है। प्रेम की भाषा वही समझता है, जो प्रेम करता है। प्रेम के आगे नफरत हमेशा हार जाती है। प्रेम से ही नफरत का अंधेरा दूर किया जा सकता है। प्रेम संबल देता है। मां का प्रेम भरा हाथ सर पर फिरता है, तो बेटा दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत से टकरा जाता है। प्रेम शैतानों को भी सुधार देता है। हर किसी को प्रेम की आवश्यकता होती है। प्रेम के बिना न तो इंसान की कल्पना की जा सकती है और न ही दुनिया की। प्रेम के बिना संसार में कुछ भी नहीं हो सकता। यदि हमें सचमुच अच्छे से जीना है, तो प्रेम करना सीखना होगा। तभी हम बहुत सारा प्रेम पाएँगे और सबको प्रेम लुटाऍंगे।
डॉ महेश परिमल

2 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल ही सही कहा है आपने जिन्दगी मे प्रेम का बहुत ही महत्व है .........प्रेम ही सबकुछ है ......अतिसुन्दर

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  2. बहुत सुन्दर सत्य कथन आभार परिमल जी

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