नीरज नैयर
वेतन आयोग ने मानो विवादों का पिटारा खोल दिया है. जब से आयोग ने अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपी हैं उसके खिलाफ अवाजें उठने लगी हैं. चुनावी बजट की सौगातों के बीच वेतन आयोग की सिफारिशों पर टकटकी लगाए बैठे अधिकतर सरकारी मुलाजिम अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं. हालांकि हर तबके के लिए वेतनमान में वृद्धि की बात कही जा रही है मगर आयोग का सारा ध्यान क्रीमीलेयर की तरफ ही सिमटा दिखाई दे रहा है. छठा वेतन आयोग वो तारतम्य बनाकर नहीं चल पाया जो पूर्व के वेतन आयोग के वक्त नजर आया था. मौजूदा आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक न्यूनतम और अधिकतम वेतन अनुपात 1:12 से अधिक है, जो कि पिछले वेतन आयोग की सिफारिशों से कहीं ज्यादा है. आयोग की सिफारिशों में जहां अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतनमान में भारी असमानता व विसंगतियां हैं, वहीं भत्तों के आवंटन में भी भेदभाव किया गया है. सबसे हैरत की बात तो यह है कि आयोग ने जहां एक ओर उच्च श्रेणी के अधिकारियों के वेतन में 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की है, वहीं निम्न श्रेणी के कर्मचारियों के वेतन और भत्तावृद्धि 23 से 50 प्रतिशत के आस-पास ही रखी है. आयोग ने शीर्षस्थ कैबिनेट सचिव के वेतन में करीब 35500 रुपए की वृद्धि की बात कही है, जबकि निम्न श्रेणी के क्लर्क के वेतनमान में मामूली बढ़ोत्तरी की सिफारिश की गई है. निम्न स्तर के मुकाबले उच्च श्रेणी में 24 गुना वृद्धि समता के सिद्धांत पर कहीं से भी खरी नहीं उतरती. पूर्ववर्ती वेतन आयोगों ने अपनी सिफारिशों में प्रचलित वेतन, भत्ता महंगाई भत्ता और अंतरिम राहत में बढ़ोत्तरी में सभी श्रेणियों के लिये 20-40 प्रतिशत एक सरीखी वृध्दि देने को कहा था पर छठे वेतन आयोग ने इससे उलट ही काम किया है. मौजूदा आयोग की सिफारिश में जैसे-जैसे श्रेणियां और वेतन भत्ते बढ़ते हैं, वैसे-वैसे वेतन भत्तों आदि में बढ़ोत्तरी होती है. पांचवे वेतन आयोग में श्रेणी-1 के दायरे में आने वाले वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों को बेसिक वेतनमान 14300 से 26000 निर्धारित था जिसे बढ़ाकर अब 48200 से 67000 करने की सिफारिश की गई है. यानी करीब 34000-41000 का भारी भरकम इजाफा वेतनमान में किया गया है. वहीं श्रेणी-1 के मध्य स्तर के अधिकारियों का वेतनमान 8000-20900 के बजाए 21000-39100 करने की बात कही गई है. मतलब 13000-18200 का इजाफा जबकि श्रेणी-॥ व ॥। में करीब 8000-21000 और श्रेणी IV में मामूली बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव है. इसके साथ ही आयोग ने करीब 12 लाख ग्रुप डी कर्मचारियों के पदों को खत्म करने की सिफारिश की है. इनमें से एक लाख पद तो फिलहाल रिक्त पड़े हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रुप डी पदों पर जो कर्मचारी अभी कार्यरत् हैं, उनमें से न्यूनतम हाईस्कूल योग्यता रखने वाले कर्मचारियों को ग्रुप सी में प्रमोट कर दिया जाए और बाकी ग्रुप डी के पदों पर नई भर्तियां न की जाए. नई भर्तियों के बजाए मौजूदा पदों को ही समाप्त करने की सिफारिश से पता चलता है कि आयोग ने रोजगार बढ़ाने के बजाए बेरोजगार बढ़ाने वाली नीतियों पर जोर दिया है. आयोग की रिपोर्ट आने से पहले यह मानकर चला जा रहा था कि छठे वेतन आयोग में खासतौर से सेना और आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे सुरक्षा बलों का खास ध्यान रखा जायेगा. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. अधिकारियों की कमी से जूझ रही सेना ने वेतनमान में 100-200 प्रतिशत वृध्दि की मांग की थी. ताकि निजी क्षेत्र की चकाचौंध अफसरों को प्रभावित न कर पाए, मगर आयोग ने सभी मांगों को दरकिनार करते हुए सेना के हाथ में मामूली बढ़ोत्तरी का लॉलीपॉप थमा दिया है. सेना के जवान महसूस कर रहे हैं कि नागरिक सेवाओं के मुकाबले उनके साथ दोयम दर्जे का बर्ताव किया गया है. जवानों के वेतन में महज 1000 रुपए की मामूली बढ़ोत्तरी की गई है, वहीं लेफ्टिनेंट कर्नल और कर्नल के वेतनमान में भी मुश्किल से चार-पांच हजार का इजाफा किया गया है. जबकि नागरिक सेवा में उच्च श्रेणियों के कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में कई गुना वृध्दि की सिफारिश की गई है. ऐसे ही आयोग की सिफारिशों ने आखिल भारतीय सेवाओं में भी असमानता उत्पन्न कर दी है. आयोग ने यहां भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों (आईएएस) को खुश करने के लिये दोनों हाथ से लुटाने का प्रयास किया है. वहीं भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा(आईएफएस) को नजरअंदाज कर दिया है. छठे वेतन आयोग द्वारा भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के लिए सीनियर स्केल, जूनियर स्केल और सिलेक्शन ग्रेड वेतनमान 6100, 6600 और 7600 रुपए रखा गया है. जबकि भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के लिये क्रमश: 6500, 7500 तथा 8300 की सिफारिश की गई है. इसके पीछे आयोग का तर्क है कि आईएएस अफसरों की प्रारंभिक तैनाती सामान्यता छोटी जगहों पर होती है. उन्हें बार-बार स्थानांतरण का सामना करना पड़ता है और सेवा के शुरुआती दिनों में जिस दबाव का सामना करना पड़ता है, वह औरों से कहीं ज्यादा है. यहां यह साफ करना जरूरी है कि सेवा के प्रारंभ काल से लेकर अंत तक भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी आईएएस अफसरों की अपेक्षा कहीं अधिक तनावपूर्ण, जोखिमपूर्ण और दबावपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं. इस बात को खुद सुप्रीम कोर्ट और सोली सोराबजी समिति स्वीकार कर चुकीहै. ऐसे में आयोग का यह तर्क हास्यास्पद ही लगता है. इसके साथ ही राजस्व सेवा एवं कस्टम व केंद्रीय उत्पाद शुल्क के अधिकारियों के लिये 80000 रुपए वेतनमान तय किया गया है, वहीं प्रदेशों की कानून व्यवस्था की कमान संभाल रहे पुलिस महानिदेशकों के वेतन में असमानता रखी गई है. वेतन आयोग ने सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत तिब्बत सीमा बल, औद्योगिक सुरक्षा बल और सशक्त सीमा बल के पुलिस महानिदेशकों का वेतन रु. 80000 निर्धारित किया है जबकि प्रदेश स्तर पर इसमें विभिन्नता रखी गई है जो कहीं से भी तर्कसंगत नहीं है. राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशक के वेतन में असमानता की खाई भी छठे वेतन आयोग ने और चौड़ी कर दी है. आयोग की सिफारिश में कास्टेबल स्तर के पुलिस कर्मी के वेतनमान में महज 100-500 रुपये तक की वृध्दि का अनुमान है. जबकि यह सभी जानते हैं कि पुलिस महकमे में निचले स्तर के पुलिस कर्मियों का जनता से सीधा संवाद होता है. ऐसे में मामूली तनख्वाह के भरोसे परिवार की जिम्मेदारियों के साथ वह कब तक कर्तव्यनिष्ठता की राह पर चल पाएगा. आयोग को इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि ऊपर से लेकर नीचे तक वेतनमान में वृध्दि का तालमेल इस तरह से बैठाया जाए कि किसी को यह न लगे कि हमारे साथ अन्याय हुआ है. पुलिस महकमे मेें सुधार की बातें हमेशा से उठती आई हैं, मगर जब तक पुलिस कर्मियों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, ऐसी बातें बेमानी हैं. केंद्रीय कर्मचारियों में (रेलवे छोड़कर) पुलिस का हिस्सा करीब 41 प्रतिशत है जबकि इस पर महज 36 प्रतिशत ही खर्च किया जाता है. हर साल करीब 1000 जवान डयूटी के दौरान शहीद हो जाते हैं, उनका घर परिवार हर वक्त दहशत के साए में जीता रहता है. बावजूद इसके आयोग ने इनका कोई ध्यान नहीं रखा है. ऐसे ही भारतीय वन सेवा के अधिकारी भी वेतन आयोग की विसंगतियों का सामना कर रहे हैं. उनका आरोप है कि आयोग ने उनका पे स्केल घटा दिया है. अब तक आईएएस और आईएफएस के वेतनमान में सिर्फ 2-3 हजार रु. का अंतर था लेकिन नये पे स्केल लागू होने के बाद यह 15-18 हजार हो जाएगा. दरअसल तकरीबन 18-20 साल की सेवा पूरी करने के बाद एक आईएएस अफसर वन संरक्षक बनता है. इस पद का सुपर टाइम स्केल अभी 16400 से शुरू होता है लेकिन आयोग ने इस स्केल को घटाकर 15600 करने की अनुशंसा की है. जबकि 14 साल की सर्विस पूरी करने के बाद एक आईएएफ अधिकारी का सुपर टाइम स्केल अभी 18400 है जिसे बढ़ाकर 39200 करने की सिफारिश की गई है. यानी दोनों सेवाओं के अफसरों के वेतनमान में दोगुने का अंतर किया गया है. इसी तरह चीफ कंजर्वेटर ऑफ फारेस्ट (पीसीसीएफ) का मौजूदा स्केल 24040-26000 है. इस पद पर आईएफएस अफसर अपने कार्यकाल के अंतिम 4-5 सालों में पहुंच पाते हैं. 2-3 साल की सेवा के बाद अफसर 26000 रुपये के स्केल तक पहुंच जाते हैं जो अभी भारत सरकार के सचिव के बराबर हैं. लेकिन नई सिफारिशों में इसे बढ़ाकर 39200-67000 रखा गया है. तथा 13000 के पे ग्रेड का प्रावधान किया गया है. परन्तु 13000 के पे ग्रेड को पाने में अफसरों को कम से कम 12 साल इस पद पर कार्य करना होगा. जबकि जो अफसर इस पद पर पहुंच पाते है उनका कार्यकाल महज 4-5 साल का ही बचता है. इसका परिणाम यह होगा कि इस सेवा के अफसर सचिवों की भांति 80000 वेतनमान अब नहीं पा पाएंगे. कुल मिलाकर कहा जाए तो छठा वेतन आयोग हर पक्ष को संतुष्ट करने में नाकाम रहा है. वैसे तो हर पक्ष को संतुष्ट करना मुमकिन नहीं है. पर जब इतनी बड़ी तादाद में आयोग की सिफारिशों की मुखालफत हो रही है तो इन्हें अमलीजामा पहनाकर विवादों की आग में घी डालना उचित नहीं होगा.
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इतिहास
आजादी के बाद से अब तक कुल 6 वेतन आयोग गठित किए गये हैं.
आयोग गठन वर्ष रिपोर्ट सौंपी गई वित्तीय भार
पहला मई 1946 मई 1947 उपलब्ध नहीं
दूसरा अगस्त 1957 अगस्त 1959 39.62
तीसरा अप्रैल 1970 मई 1973 144.60
चौथा जून 1983 मई 1987 1282
पांचवां अप्रैल 1994 जनवरी 1994 17000
छठा जुलाई 2006 मार्च 2008 20,000
(करोड़ )
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क्या होता है वेतन आयोग
भारत सरकार हर 10 साल बाद एक वेतन आयोग का गठन करती है. जिसका काम केंद्रीय कर्मचारियों के वेतनमान को वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से निर्धारित करना होता है. आयोग में अध्यक्ष के साथ-साथ अन्य सदस्य भी होते हैं जिन्हें एक समयावधि में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी होती है. उसके बाद सरकार को अंतिम निर्णय लेना होता है कि किन सिफारिशों को लागू किया जाए और किसे नहीं.
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छठा वेतन आयोग
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जुलाई 2006 में जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में छठे वेतन आयोग का गठन किया था, जिसने 24 मार्च 2008 को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी. इस आयोग में जस्टिस श्रीकृष्ण के अलावा रविंद्र ढोलकिया, जे.एस. माथुर और सुषमा नाथ शामिल थीं.
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राज्यों की टूटेगी कमर
छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से राज्यों की वित्तीय दशा और खराब होने की संभावना है. जो राज्य पहले से ही बीमारू की श्रेणी में शामिल हैं उनके लिए तो आयोग की सिफारिशें किसी विपदा से कम नहीं हैं. अकेले कर्मचारियों की पेंशन वृद्धि से ही तकरीबन 1 लाख 90 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त वित्तीय बोझ उठाना होगा. मध्य प्रदेश की ही अगर बात करें तो उसके ऊपर 45 हजार करोड़ का कर्जा है. ऐसे में उसके लिए अतिरिक्त वेतन वृद्धि बहुत महंगी साबित होगी. आयोग ने केंद्रीय कर्मचारियों के पेंशन में 40 प्रतिशत इजाफे की सिफारिश की है. बढ़ोत्ती का यह प्रस्ताव 80 साल या उससे अधिक की उम्र के पेंशन पा रहे पूर्र्र्व कर्मचारियों के प्रस्तावित स्पेशल बढ़ोत्तरी से अलग है. हालांकि तमिलनाडू और हरियाणा ने नई सिफारिशों को तत्काल अपने राज्यों में लागू किए जाने पर सहमति जताई है मगर देश के बाकी राज्यों की प्रतिक्रिया अनुकूल नहीं दिखाई देती.
नीरज नैयर
9893121591
सोमवार, 28 जुलाई 2008
वेतन आयोग की वेतन विसंगतियां
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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