गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

घर को लगी है आग घर के चिरागों से


डॉ. महेश परिमल
देश में एक के बाद एक धडाधड बम विस्फोट हो रहे हैं। कभी बेंगलुरु, कभी अमदाबाद कभी दिल्ली और कभी जयपुर। बम विस्फोट अब देश का स्थायी भाव बन गया है। एक विस्फोट की स्याही सूखने भी नहीं पाती कि दूसरा विस्फोट देश की सुरक्षा पर एक और सवालिया निश ान छोड़ जाता है।देश के नेता भले ही यह कहते रहे कि यह पडोसी मुल्क की चाल है, पर इतना तो समझ ही लेना चाहिए कि पडोसी मुल्क भी तब तक कुछ नहीं कर सकता, जब तक हमारे ही लोगों की श ह उसे न मिले।पेड़ कितना भी श ोर क्यों न मचा लें कि वे अब कुल्हाडी का अत्याचार नहीं सहेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए हम अवश्य विरोध करेंगे।पर वे पेड़ यह भूल जाते हैं कि कुल्हाडी पर लगा बेत आखिर लकडी का ही है, पेड़ का एक अंश है। तब भला कैसे हो सकता है विरोध? यदि बेत ही विरोध करना सीख जाए, तो यही पहला कदम होगा अत्याचार के विरुध्द। पर क्या ऐसा संभव है? जब हम अपने ही घर में छिपे हुए गद्दारों को नहीं सँभाल पा रहे हैं, तो फिर विदेशी गद्दारों से कैसे निबट पाएँगे?
भारत की गुप्तचर संस्था ''रॉ'' के विषय में मेजर जनरल वी. के. सिन्हा ने अपनी किताब में जो रहस्योद्धाटन किया है, वह एक-एक भारतीय को शर्मसार करने के लिए काफी है। जब देश की गुप्तचर एजेंसियों का यह हाल है, तो फिर सामान्य स्थिति में किस सुरक्षा की बात की जा सकती है? किताब में जो विस्फोटक जानकारी दी गई है, वह कुछ इस प्रकार है :-7 मार्च 2006 को वाराणसी में हुए बम विस्फोट में 20 लोग मारे गए, 11 जुलाई 2006 को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में रखे गए बम धमाकों से 186 लोग मारे गए, इसमें सम्पत्ति का नुकसान हुआ, सो अलग, 8 सितम्बर 2006 महाराष्ट्र के मालेगाँव में हुए बम विस्फोट में 28 लोग मौत के शिकार हुए, 18 मई 2007 को हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोट में 13 लोग हताहत हुए, उसके बाद फिर वहीं हैदराबाद में ही 25 अगस्त को ही हुए भयानक विस्फोट में 40 निर्दोषों ने अपनी जान गवाई। इसके बाद लुधियाना के एक छबिगृह में हुए विस्फोट में 6 और अजमेर शरीफ की दरगाह में 12 लोग मारे गए।पिछले दो महीनों से लगातार बम विस्फोट हो रहे हैं, अपराधी मिल भी रहे हैं, पर उससे क्या, उनके नेटवर्क के आगे पुलिस तत्र निष्फल साबित हो रहा है।

इन मामलों में देश की तमाम गुप्तचर एजेंसियाँ केवल हवा में सुबूत खोज रही हैं। दूसरी ओर एक जानकारी के अनुसार देश की चीफ कंट्रोलर ऑफ एक्सप्लोजिव्स याने विस्फोटक पदार्थों के नियामक का मानना है कि इन विस्फोटों को हमारे देश में ही बनाया गया है। वरिष्ठ नियामक द्वारा दिए गए ऑंकड़े एक आम आदमी को कँपकँपा देने वाले हैं। 2004 से लेकर 2006 के बीच 86 हजार 899 डिटोनेटर्स, 20 हजार 150 किलोग्राम विस्फोटक, 52 हजार 740 मीटर डिटोनेटिंग फ्यूज और 419 किलो जिलेटीन स्टीक की चोरी हो चुकी है। इतनी सामग्री से तो देश के कई महानगरों में भयानक विस्फोट हो सकते हैं। चोरी हुई ये सामग्री कहाँ किसे मिली और उसका क्या हुआ, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। इस तरह की खबरें इस देश पर आसन्न संकट को स्पश्ट करती हैं।
देश में विस्फोटकों के 21 हजार लायसेंसधारी उत्पादक हैं। पहाडों पर रास्ता बनाने के लिए, पुल या सडक बनाने के लिए या फिर खदानों में विस्फोट करने के लिए विस्फोटकों की आवश्यकता होती है। इसके लिए अमोनियम नाइट्रेट और पोटेशियम क्लोरेट जेसे रसायनों की जरूरत पडती है। ये रसायन खाद बनाने में और कोयले की खदानों में खूब उपयोगी हैं।आश्चर्य इस बात का है कि ये रसायन आसानी से बाजार में मिल जाते हैं।खुले आम बिकने वाले इन रसायनों की बिी में किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है। अमोनियम नाइट्रेट को फ्यूल आइल के साथ एक निश्चित मात्रा में मिलाया जाए एक विनाशकारी बम बन सकता है। चिंता का कारण यह है कि इतने विशाल पैमाने पर विस्फोटकों की चोरी हुई और हमारे गृह सचिव और रक्षा सचिव से बार-बार लिखित रूप से ध्यान में लाया गया, फिर भी विस्फोटकों की चोरी रुकी नहीं। यह भी संयोग है कि आतंकवादी हमले भी भी रुक नहीं रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम. के दृ नारायणन और देश के गृह मंत्री शिवराज पाटिल बार-बार कह रहे हैं कि त्योहारों के इस मौसम में कभी भी कहीं भी विस्फोट हो सकते हैं, उसके बाद भी विस्फोटकों की चोरी के खिलाफ किसी प्रकार के कडे कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
13 अप्रैल 2007 को केंद्र के गृहसचिव मधुकर गुप्ता ने इसे स्वीकार करते हुए कहा कि चोरी हुए विस्फोटकों को नक्सलग्रस्त क्षेत्रों में इस्तेमाल में लाया जा रहा है, यह चिंताजनक है। पर क्या उनके चिंता करने से समस्या का समाधान हो जाएगा? ये चोरी बिना किसी मिलीभगत से हो ही नहीं सकती। पहले उन गद्दारों का पता लगाया जाए, जिन्होंने इस चोरी में गद्दारों का साथ दिया है। वे भी कम गद्दार नहीं हैं। हाल ही में भगवान राम के खिलाफ न जाने क्या-क्या विष उगलने वाले करुणानिधि के ही तमिलनाडु में ही एक विस्फोटक उत्पादक के यहाँ से पिछले दो वर्षों में 51 हजार मीटर डिटोनेटर फ्यूज की चोरी र्हुई, उसी तरह श्रीलंका के नौकादल ने सागर के मध्य में एक भारतीय जहाज से 61 हजार डिटोनेटर बरामद किया था।इस पर किसी अरब कंपनी का लेबल था, परन्तु ये सभी डिटोनेटर्स हैदराबाद की एक कंपनी ने ही बनाया था।
ठससे यह स्पष्ट हो गया है कि पडोसी देश ने हमारे देश के न जाने कितने धनलोलुप लोगों को खरीद लिया है। इन्हीं गद्दारों की मदद से ही देश के विभिन्न स्थानों में बनने वाले विस्फोटकों की चोरी हो रही है।यही विस्फोटक ही आतंकवाद और नक्सलवाद से जुड़े लोगों को काम आ रहा है।भारत में होने वाले तमाम आतंकवादी हमले में इन्हीं विस्फोटकों का प्रयोग हो रहा है।विस्फोटकों का उत्पादन करने वाले राज्य हैं :-गुजरात, छत्तीसग़ढ, मध्यप्रदेश, उडीसा, तमिलनाडु, झारखंड और महाराष्ट्र। इन सभी स्थानों से बडे पैमाने पर विस्फोटकों की चोरी हो रही है। निश्चित है इसमें स्थानीय नागरिकों की मिलीभगत होगी।तो फिर सरकार इन्हें क्यों नहीं पकडती?
इन स्थानों से विस्फोटकों की चोरी पिछले दो-तीन वर्षों से लगातार जारी है। यदि इसके मूल में जाएँ, तो स्पष्ट हो जाएगा कि इसमें राज्यों के कई नेताओं की भी मिलीभगत है।केंद्र और राज्यों के बीच लगातार पत्र-व्यवहार जारी रहने के ेबाद भी यदि विस्फोटकों की चोरी हो रही है, तो इसका आशय यही है कि देश के आम आदमी और देश की विपुल संपदा की चिंता किसी को नहीं है, सब कुछ रामभरोसे चल रहा है।
डॉ. महेश परिमल

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