गुरुवार, 6 मार्च 2008
हरीश परमार की बाल कविताए
होली पर
सुबह-सुबह आकर किसने
फूलों पर डाला है रंग
होली के शुभ अवसर पर।
अपने चेहरे पर भी कोई
मल देता वैसा ही रंग
जाकर हम भी हिलमिल जाते
रंग-बिरंगे फूलों के संग।
तितली भौंरों को हम
थोड़ा मूर्ख बनाते
होेली के शुभ अवसर पर।
तारीफ करूँ कितनी फूलों की
फूलों से प्यारा कोई नहीं
जिसका बेटा इतना प्यारा
वो माता कभी रोई नहीं।
सारे जग को फूलों ने
आज बधाई दी है
होली के शुभ अवसर पर।
अच्छे-अच्छे गुणों का
रंग इकट्ठा करते जाओ
जितने मिले जन जीवन में
अपने रंग से नहलाओ
छोड़कर सारे भेदभाव
सारे जग को करो सलाम
होली के शुभ अवसर पर।
होली के दिन
छोटी सी पिचकारी में
मैं रंग भरकर लाई हूँ
अभी रंगूँगी बारी-बारी
मैं यह बतलाने आई हूँ।
पहले पापा तुम्हें रंगूँगी
पीला हरा होली का रंग
तुम जितना करते हो प्यार
मैं डालूँगी उतना रंग।
नहीं डरूँगी मैं तो मम्मी
तेरी फटकार से
आज तुम्हें रंग दूँगी मैं
रंग अबीर गुलाल से।
छिप न जाना राजा भैया
जरा सामने आ जाना
होली के प्यारे रंगों का
तुम भी तोहफा लेते जाना।
बदले में फिर रंग देना
मम्मी, पापा, भैया मुझको
दे जाएगा खुशियां सारी
होली का त्यौहार हमको।
परीक्षा
अब तो आई यारों परीक्षा सालाना
कॉपी और कलम से कर लो याराना।
करोगे मेहनत तो हो जाओगे पास
देगा बधाई तुम्हें सारा जमाना
हो गए अगर फेल तो दुखेगा दिल
ऑंसुओं से चुकाना पड़ेगा जुर्माना
अब तो आई यारों परीक्षा सालाना
कॉपी और कलम से कर लो याराना।
न खेलो न कूदो थोड़े कंजूस बनो
पढ़ाई में ज्यादा तुम मन लगाना
मम्मी-पापा ने जो देखें हैं जो सपने
उन सपनों को तुम साकार बनाना
अब तो आई यारों परीक्षा सालाना
कॉपी और कलम से कर लो याराना।
शिक्षा का महत्व तुम समझो मेरे भाई
इसमें छिपा है खुशियों का ंखजाना
तुम ही तो हो चमन के फूल प्यारे प्यारे
तुम्हें ही तो देश का गुलदस्ता है सजाना
अब तो आई यारों परीक्षा सालाना
कॉपी और कलम से कर लो याराना।
फूल अनमोल
तितली और भौंरे तो
आकर हमसे कहते हैं
फूलों की सुंदरता देखो
फूल अनमोल होते हैं।
नित नए लगते हैं फूल
और सदा महकते हैं
आते-जाते हर राही का
फूल स्वागत करते हैं
फूलों से बात करो तो
खुद फूल बात करते हैं
अपनी मधुर मुस्कान से
सबका मन हरते हैं
नन्हें-नन्हें बच्चों जैसे
फूल भी मासूम होते हैं
छेड़ोगे तो रो देते हैं
प्यार करो तो हंसते हैं।
सोने चाँदी से भी प्यारे
फूल अनमोल होते हैं
फूलों का जो लेते उपहार
वो किस्मत वाले होते हैं।
हवाएँ
नदी में नहा कर आती हवाएँ
तन को ठंडक पहँचाती हवाएँ
फूलों को छू कर आती हवाएँ
दिशओं को महकाने आती हवाएँ
सन्न् सन्न् संगीत सुनाती हवाएँ।
सावन के गीत गाती हवाएँ
उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम
दुनिया की सैर करती हवाएँ
घर में केलेंडर उड़ाती हवाएँ
जंगल में पेड़ हिलाती हवाएँ।
सागर में हंगामा मचाती हवाएँ
मैदान में धूल उड़ाती हवाएँ
दिखाई नहीं देती हमको हवाएँ
हर पल का अहसास कराती हवाएँ
जीवन के गीत गाती हैं हरदम
साँसों में आती जाती हवाएँ।
नदी
सुबह की रोशनी में
मुस्कराती है नदी
उछलती है, कूदती है
धूम मचाती है नदी
शाम के साए में
उदास हो जाती है नदी
ऍंधेरी काली रात में
शांत रहती है नदी
गुलाबी जाड़ों से शरमा कर
सिमट जाती है नदी
लजाती सकुचाती राह में
धीरे-धीरे बहती है नदी
समुद्र सा चौड़ा सीना लिए
बरसात में दौड़ती है नदी
अपनी सारी शक्ति ले कर
सबको डराती है नदी।
उपहार
फूलों में रंग होते हैं
फूल खूबसूरत होते हैं
फूलों में खुशबू होती है
इसलिए फूल मुझे अच्छे लगते हैं
नया वर्ष हो या किसी का जन्मदिन
मुझे फूलों का उपहार देना
अच्छा लगता है
मुझे भी खुशी होगी
जब कोई समझेगा
मेरी तरह
फूलों की बातें
और मुझे भी
फूलों का उपहार देगा।
हरीश परमार
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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