मंगलवार, 18 मार्च 2008
कितनी सुरक्षित हैं हमारी सीमाएँ
डॉ. महेश परिमल
आए दिनों अखबारों की सर्ुख्ाियाँ बनती रहती हैं कि सीमा पार करते हुए सैकड़ों घुसपैठिए पकड़े गए। या फिर सीमा पार करने की कोशिश में कई लोगों को मार गिराया गया। क्या हमारे देश की सीमाएँ अधिक असुरक्षित हैं कि आए दिन वहाँ कुछ न कुछ होता ही रहता है? कहा जाता है कि जिस देश की सीमाएँ जितनी अधिक सुरक्षित होंगी, वह देश उतनी ही तेजी से विकास करता है। ऑंकड़ों के हिसाब से देखा जाए, तो हमारा देश प्रगति की राह मेंं तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसे यदि सच मान लिया जाए, तो इसे भी सच मानना होगा कि मात्र 500 से 1500 रुपए की रिश्वत देकर कोई भी हमारे देश की सीमा के भीतर आकर तबाही मचाकर आराम से ेजा सकता है।
पिछले दिनों मुम्बई पुलिस ने एक बांग्लादेशी घुसपैठिए को पकड़ा, जिसने बहुत सी चौंकाने वाली जानकारियाँ दी. उसने जो कुछ भी बताया, उसके हिसाब से बांग्लादेश, नेपाल या फिर पाकिस्तान की सीमा से भारत में घुसने की फीस मात्र 500 से 1500 रुपए है। रकम इतनी कम होने का कारण यही है कि घुसपैठिए इससे अधिक रकम हमारे जवानों को नहीं दे सकते। इसलिए इतनी रकम देकर कोई भी हमारे देश में आसानी से प्रवेश कर सकता है। केंद्र सरकार का कहना है कि मुम्बई में जो विस्फोट हुए उसकी जानकारी महाराष्ट्र सरकार को पहले ही दी जा चुकी थी। उधर महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटिल का कहना है कि ऐसी कोई पुष्ट जानकारी केंद्र सरकार द्वारा हमें नहीं दी गई है। उसे तो सामान्य चेतावनी ही समझा जा सकता है। सच जो भी हो, पर यह भी सच है कि हमारी सीमाएँ असुरँक्षित हो गई हैं।
देश में पुलिस ओर सैनिकों के अलावा अन्य सुरक्षा एजेंसियाँ हैं, जिनकी जवाबदारी इस तरह की घटनाओं के चलते बढ़ जाती है। जैसे कि सीमा सुरक्षा दल, भारत-तिब्बत सुरक्षा बल, स्टेट रिजर्व पुलिस, सेंट्रल रिजर्व पुलिस, केंद्रीय औद्यौगिक सुरक्षा बल, आर्म्ड प्रोविंशियल फोर्स, असम राइफल्स, सशस्त्र सीमा बल, नेशनल सिक्योरिटी गार्ड आदि-आदि। सरकारी फाइलों को खंगाल लें, अब तो हम सबको सूचना का अधिकार हर नागरिक के पास है। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार ने पुलिस बल और शस्त्रों में खासी बढाेत्तरी की है। 1997 में केंद्रीय पुलिस संगठन में कुल 5 लाख 80 हजार जवान थे, जिसे बढ़ाकर 2005 में 7 लाख 13 हजार किया गया।
अर्ध सैनिक बल काफी समय से कह रहा है कि आतंकवादियों के पास हमसे अच्छे अत्याधुनिक हथियार और संदेश भेजने की मशीनरी है। यदि हमारे पास भी ऐसे ही हथियार और मशीनरी हो जाए, तो हम आतंकवादियों का सफाया करने में सक्षम हो सकते हैं। उनका कहना है कि आजकल आतंकवादी अपने कंप्यूटर पर एक कॉमन पासवर्ड रखते हैं, जिसमें वे एक ई-मेल टाइप करते हैं 'बच्चे की डिलीवरी हो गई, माँ सलामत है'। इसे वे किसी को भेजते नहीं है, बस कंप्यूटर मेें 'सेव' करते हैं। कॉमन पासवर्ड की मदद से दुनिया भर के आतंकवादियों को इसकी जानकारी मिल जाती है और उनका काम पूरा हो जाता है।
हकीकत यह है कि अर्ध सैनिक बलों को अत्याधुनिक संसाधनों से लैस करने के लिए केंद्र सरकार ने अपने बजट में 350 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है। 1997- 98 में अर्ध सैनिक बलों के लिए बजट में 4486 करोड़ रुपए की बढ़ोत्तरी की गई। इसे 2006-2007 में बढ़ाकर 16 हजार 34 करोड़ रुपए कर दिया गया। इसके बाद ीाी हमारे अर्ध सैनिक बल आतंकवादियों की गतिविधियों का पता लगाने में विफल साबित हो रहे हैं। आखिर इस खतरनाक और जानलेवा विफलता का कारण क्या है? इसके दो मुख्य कारण हैं, इन कारणों के विश्लेषण के पहले यह जान लें कि अर्ध सैनिक बलों की लापरवाही के कारण किस तरह के गंभीर परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं।
लोकसभा में गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने पिछले दिनों एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि पिछले पाँच वर्षों में हमारे देश बाकायदा वीजा लेकर आने वाले 8 से 10 हजार पाकिस्तानी 'लापता' हैं, इसी तरह गैरकानूनी तरीके से देश में घुस आए बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र खासकर मुम्बई में कुल एक से डेढ़ करोड़ बांग्लादेशी निवास कर रहे हैं। इसमें नेपालियों को शामिल नहीं किया गया है, इसके अलावा नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले नाइजीरियाई भी शामिल नहीं किए गए हैं। ऑंकड़े ही बताते हैं कि स्थिति कितनी खतरनाक है। जब तक इन लोगों पर अंकुश नहीं रखा जाएगा, तब तक आतंकवाद की घटनाएँ तो होती ही रहेंगी।
इसके अलावा घुसपैठियों के नाम पर सीमाओं से हमेशा दूसरे देश के लोग भारत आते ही रहते हैं। मात्र 500 से 1500 रुपए में सीमा में प्रवेश देने वाले अर्ध सैनिक बलों का सीमाओें पर तैनात होने का कोई अर्थ नहीं है। पिछले एक माह का अखबार देखा जाए, तो स्पष्ट होगा कि विभिन्न क्षेत्रों से करोड़ों रुपए की हेरोइन, कोकीन और अन्य मादक द्रव्यों की बरामदगी की गई है। इसका आशय यह हुआ कि अर्ध सैनिक बलों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। सारी विदेशी ताकतों को प्रवेश सीमाओं से ही मिल रहा है। इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं अर्ध सैनिक बल। जब तक इनके भ्रष्ट कारनामों पर अंकुश नहीं लगाया जाएगा, तब तक इस देश का भला संभव नहीं है। अभी भी हालात इतने बेकाबू नहीं हुए हैं, यदि समय रहते इस पर काबू पा लिया गया, तो ठीक है, अन्यथा हो यह सकता है कि हमारे देश का नाम भले ही हिंदुस्तान हो, पर इसी देश में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएँगे।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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डॉ. महेश परिमल जी इस बिमारी का एक ही इलाज हे, हमे एक हिटलर चाहिये,फ़िर देखो केसे सभी सीधे होते हे,
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